ब्रांड और ब्रांडी की शादी

सुरेश खांडवेकर

विवाह के निमंत्रण से में दंग रह गया। अपने आप को सौभाग्यशाली समझने लगा और किसी तरह शादी में जाने की तैयारी में जुट गया।

जैसे ही पता चला कि फाइव स्टार होटल में एक ब्रांड और ब्रांडी के शादी की पार्टी में शामिल होने का मधुर मदिर मिलन का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैं फूला नहीं समाया।

मेने तीन बार कपड़े पहने, उतारे फिर दूसरे, तीसरे पहने। बार-बार जो सबसे अच्छी पोशाक दिखती उसे पहनता, फिर उतार देता। लग रहा था कि आधुनिक कपड़े पहनने के स्थान पर यदि सांस्कृतिक या प्रादेशिक कपड़े पहने तो अच्छा होगा। क्योंकि यूरोप और अमेरिकन स्टाइल के कपड़े तो बहुत महंगे और अपने जेब के बाहर के थे। फिर पता भी नहीं चलता की नए कपड़े लेटेस्ट फैशन के है या पुराने। पुराने कपड़े थे वे उस समय के डिजाइन थे। कुल दो चार बार पहने थे। पर अब दस सालों में शरीर का हाल बिगड़ गया है। फैशन भले ही वही हो।

इसलिए निर्णय लिया। भारतीय पहनावे के कुर्ता पजामा जैकेट निकालें। पहले, लंबे-लंबे चितरंगी, कशीदाकारी कोट और सिर पर पगड़ी भी डाली। पर यह सोच कर कि लोग न जाने हमें ‘बैंड वाले समझेंगे’ इसलिए मैंने इसे रद्द कर दिया। सूट तो बहुत पुराने थे। उसके मतलब के जूते भी नहीं थे। इसलिए चूड़ीदार पजामा, लम्बा कुर्ता, जैकेट और सिर पर मखमली टोपी डाल ली।
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समझ में नहीं आ रहा था की ऐसी शादी में कौन से कपड़े पहने। जिससे दूल्हा दुल्हन भी इंप्रेस भी हों जाय। साथ साथ घराती और बाराती भी हमें ऐसा वैसा ना समझे। लोग हमें भी तो यथायोग्य अपना सम्मानीय समकक्ष समझे।

जब छोटा था छोटी-छोटी बातों को लेकर रोता था। पेट में दर्द, गले में खांसी, जुकाम, कफ, पाचन में कमी आदि से परेशान होता। तो माता पिता ने मेरी मुलाकात ब्रांडी से ही करवाई थी। बाद में घर‌ में डॉक्टर्स ब्रांडी आने लगी। दिल तो मिलना ही था‌ । इस तरह ब्रांडी से अच्छे रिश्ते बन गए।

धीरे धीरे बड़ा होता गया। दोस्त भी बड़े होते गये। कुछ बड़े दोस्तों से हुई मुलाकाते हुई। उन्होंने कई ब्रांडों से भी मुलाकात करवा दी। मैं तो इनकी कालोनियों में भी घूमने लगा। स्पिरिट, बीयर, व्हिस्की, तरह-तरह की वाइन, रेड वाइन, ब्लैक वाइन, रम, वोडका अब तो मैकडॉनल्ड, जॉनी वाकर किंगफिशर, प्रीमियर, बैग पाइपर, ये नाम भी याद हो गए हैं। पहले, डॉक्टर की ब्रांडी दवाई के नाम पर गुपचुप लिया करता था। सुनता था कानूनी पाबंदियां थी। समाज और सरकार ने इसे स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल होने के कारण गैर कानूनी पेय घोषित किया था। अब इस पर लेबल चढ़ गया है। कानूनी बंधनो से मुक्त हो गया है। ब्रांडेड और देसी या लोकल के नाम से भी ये ब्रांड आते गए। एक ब्रांड सैकड़ों लोकल ब्रांड़ो को जन्म देता है। यह नए ब्रांड हमारे बचपन के साथ सरकारें भी बड़ी होती गई। ब्रांडी का भी परिवार बढे और ब्रांडों के भी। इस तरह ब्रांड और ब्रांडी का एक बहुत बड़ा समाज खड़ा हो गया।

बचपन के समय कानून में बहुत पेचीदगियों थी। तब ब्रांड और ब्रांडी से मेलजोल चोरी-छिपे होता था। पकड़े जाने पर समाज में भी थू- थू होती थी। पुलिस भी पकड़ लेती थी। हवालात में डाल देती थी। अब इसके कानूनी सीमाओं, विधानों की पेचीदगियां समाप्त हो रही है। यह पेय प्रगति,सत्यापन,अर्थवर्धन, प्रमाणिकता, आधुनिकता और सहज भाव आने लगा है। समाज में समरसता स्थापित करने का एक माध्यम बन गया है। कानूनी लिबास में या वैधानिक परिधानों में यह एक उच्च वर्ग की एक आधुनिक जीवन शैली है। पहले कहा जाता था, ब्रांड और ब्रांडी से मस्तिष्क शून्य हो जाता है। नस नाड़ियों शिथिल हो जाती है। अब यह स्टेटस सिबंल हो गया है। अब इससे व्यापारिक‌ नस नाडियां मजबूत होती है।

खुद का शरीर तो बिगड़ जाता ही है। परिवार भी बिखर जाता है ऐसा कहा जाता था। अब कानून ने उसे टॉनिक या रसायन घोषित कर दिया है। ब्रांड और ब्रांडी बहुत सज धज कर,अच्छे लेबलों में, अच्छे से सज संवर कर आते हैं। चोरी छुपे ब्रांड और ब्रांडी बाजार या बाग बगीचे में आते थे। बाद में छोटी-छोटी खिड़कियों से जैसे सिनेमा के टिकट वाली खिड़की होती थी।‌ वहां से झांकती थी अब आलीशान शोरूम में वह लटके झटके दिखाती हैं। कह सकते हैं कि ब्रांड ने अच्छे वस्त्र धारण किए है तो ब्रांडी में लगभग सारे वस्त्र उतार दिए हैं। ब्रांडी वस्त्र उतारकर आमजन को रिझा रही है। तो ब्रांड लाइफस्टाइल से ब्रांडी को लुभाता रहता है।

होटल हयात में इनकी शादी का कार्यक्रम हुआ। स्वाभाविक था की ब्रांड ब्रांड की शादी में सभी ब्रांड आएंगे।

परिवार तो सबका होता है। छोटे से बड़ा होता है। ऐसे ही ब्रांड और ब्रांडी का परिवार भी छोटे से बड़ा हुआ। पहले ब्रांड और ब्रांडी लोकल रहते थे। ठर्रे में नाम होता था। गरीबों की पसंद थे। नकली से असली होने लगे। सोमरस और संजीवनी के नाम से जाने जाते थे। औषधि के रूप में थी। अब गलत खानदान और खानपान से रोग बढ़ गया है। सुरा, संजीवनी की भी मांग बढ़ी। औषधियां के प्रकार भी बढ़े। इनका अंग्रेजी नामकरण आरंभ हुआ। अंग्रेजी का नशा ही कुछ और होता है। बियर, व्हिस्की,जिन, वाइन इनके देश में दो सौ से ज्यादा ब्रांड हो गए हैं। अब तो वही ब्रांड अच्छा जिसका नाम पढ़ने में आपको दिक्कत हो। उच्चारण करने में आपको परेशानी हो।
ब्रांड और ब्रांडी की शादी में यह सभी छोटे बड़े प्रतियोगी शामिल तो होने ही थे। साथ साथ इसके सपोर्टर्स, बोतले बनाने वाले, ढक्कन बनाने वाले, लेबल बनाने वाले, एंबेसडर माडल‌, ब्रांड एम्बेसडर, बेचने वाले, होलसेलर डिस्ट्रीब्यूटर सभी आएंगे और अपने रंग में रंगेगे।

हम भी ठीक-ठाक कपड़े पहन कर चल दिए होटल ग्रेंड हयात में, जहां ब्रांड ब्रांडी के गले में वरमाला पड़नी थी।

बैंड वालों की निस्तेज चेहरे को ठर्रे ने ढक रखा था। ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना, आज मेरे यार की शादी है।’ निसंकोच हाथ फैला फैला कर न्यौछावर मांग रहे थे। रम का सहारा लेकर ढोल वाला ढोल पीट रहा था ‘यह देश है वीर जवानों का।’

वर माला होने से पहले सभी ने अपने अपने चहेते ब्रांड और ब्रांडी के साथ संबंध स्थापित किए

कुछ लोगों ने आशीर्वाद दिया। किसी ने शुभकामनाएं दी, किसी ने बधाइयां दी। बाद में शादी के भोज के पहले अपने, अपने तरीके से मेहमानों ने पूरे उल्हास के रसपान किया। नाच नाच कर धूम धड़ाका किया। और शादी संपन्न हुई। इस तरह ब्रांड और ब्रांडी की शादी में ब्रांडों की बारात निकली थी।
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कई लोग अपने अपने बुद्धि, योग्यता और क्षमता के अनुसार सज धज कर आए। किसी ने पैरों में नकली एलेन कूपर के जूते डालें। किसी ने एडिगडास के शूज पहने। कोई पीटर जॉन के सूट में आया, कोई ड्रेस कोड में। तितली वाली टाई पहने बेयरे ट्रे लेकर घूम रहे थे।

‌बैंड बाजे वाले सारे लोकल ब्रांडों में थे। आसपास के मिलने जुलने वाले कुछ नकली ब्रांडो में। कुछ पटरी ब्रांडो में कुछ थोक ब्रांडों में थे।
कुछ मेहमान फोटो खिंचवाने वाले स्टेज पर आ रहे थे।‌ कुछ छुपे रहना चाहते थे। कुछ अपने बुलावे का इंतजार कर रहे थे। कुछ चाह कर भी अपना चेहरा दिखाना नहीं चाहते थे। कहीं अपमान ना हो जाए।

दूल्हा दुल्हन के स्टेज पर जाने वाले सेलिब्रिटीज थे लाइफस्टाइल वाले थे। उनके हाथ उपहार नहीं, ब्रांड थे। कुछ मेहमान ऐसे भी थे जो महाराजा की तरह उपहार देने के लिए किसी को साथ लाए थे।‌ उनका उपहार बड़ा और कीमती था। सबको दिखाना भी चाहते थे।
बड़े लोगों ने जो पहना था, जो लेना-देना था, वही ब्रांड था। उनका आना ही ब्रांड था और जाना भी ब्रांड था। उनके द्वारा दी जाने वाली चीज भी ब्रांड थी। असल में वह चीज तो थी ही नहीं ब्रांड थी। ब्रांडी की सहेली से किसी ने पूछा,

‘तुमने कौन सी सैंडल पहनी है बड़ी सुंदर है?’ वो कहने लगी,

‘सैंडल नहीं यह ब्रांड है गूची है!! मैं कभी सैंडल नहीं पहनती!’

कुछ लोगों ने अपने गिफ्रट पैको पर अलग से पन्नियां चिपका रखी थी। ताकि उनका रहस्यमय मूल्यवान उपहार केवल ब्रांड या ब्रांडी ही देखें। कुछ गिने-चुने ऐसे भी थे जो खुले दिल से उपहार दे रहे थे। रोडो की वॉच, झाड़ू लगाने वाला रोबोट, मिलानो से लाया गाउन, हाइड का पर्स, अमिताभ बच्चन की फोटो के साथ कल्याण ज्वैलर की माला। जुबा केसरी के डिब्बे। तो कुछ ब्रांड और ब्रांडी के खूबसूरत शराब और शबाब के प्याले लाये थे।। एक ने तो अपनी फिल्म में हीरोइन का रोल देते हुए ब्लैंक चेक ऑफर कर दिया। तो सारे ब्रांडो ने उसे घेर लिया। कमाल हो गया ब्रांड ब्रांड के शादी में! ब्रांडी हो गई हीरोइन। इस तरह ब्रांड और ब्रांड की शादी की बारात सजी थी।

शादी का कार्यक्रम संपन्न होने को था। मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री वर वधु को आशीर्वाद देने पहुंचे। मुख्यमंत्री को देखते हुए केंद्रीय मंत्री केवल दो वाक्य बोले, ‘जीएसटी देने से बीड़ी- सिगरेट से कैंसर नहीं होता और ना ही शराब हानिकारक होती है।’ ब्रांडी और ब्रांड से मैं भली भांति परिचित हूं! इसलिए कानून में जरूरी संशोधन किया जा रहा है।

एक वृहद उदर कार्य सम्पन्न समाजसेवी ने मंत्री जी के कान में कहां, ‘स्वदेशी और जनोपयोगी चीजों का इतना मान बढ़ा है, तो क्यों ना ब्रांड और ब्रांडी प्रधानमंत्री जन औषधि योजना में शामिल की जाए।’

मंत्री जी ने कहा, ‘इस पर पहले‌ से ही विचार विमर्श चल रहा है।’

मंत्री के जाते ही ठर्रा चीख चीख कर बोला, ‘मंत्री बोलता है कानूनी संशोधन करेंगे। बड़ी कंपनी को ध्यान में रख करेंगे। हमें क्या मिला? हम तो कॉटेज इंडस्ट्री वाले हैं ना ? हम‌तो रोज कमाते और रोज खाते हैं।घरेलू इंडस्ट्री है ना हमारी? हमारी कौन सुनेगा? हमारे पास इतना दाम और दम कहा है? जो ब्रांडो के पास है।

उधर एक पव्वे ने कटे बाल वाली ब्रांडी की सिस्टर लीली के बालों को पीछे से सूंघ लिया। बस शादी के बारात में धिंगामुस्ति शुरू हो गई।

अंत में एक सभ्य सोमरसी बोला, ‘शुद्ध घी के लिए कानून बने, पुरानी दवाइयों के लिए। स्वदेशी अपनाने के लिए कानून बने। रियायते मिली। क्या देसी दारू के लिए भी आंदोलन करना पड़ेगा? इसमें कितना छुपा रोजगार है? नेताओं के कान में पर्दे इस पर कब तक पड़े रहेंगे?