
अशोक भाटिया
आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने सियासी मैदान में पूरी सक्रियता साथ एंट्री लेने जा रही है। मायावती ने बिहार चुनाव को लेकर बड़ा ऐलान करते हुए कहा है कि उनकी पार्टी राज्य में किसी गठबंधन के साथ नहीं, बल्कि अकेले दम पर चुनाव मैदान में उतरेगी। साथ ही उन्होंने राज्य की कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित कराने के लिए सख्त कदम उठाने की अपील की है।बिहार में खासकर दलितों, अति पिछड़ों, शोषितों, गरीबों और महिलाओं के खिलाफ अन्याय, शोषण और हत्या की घटनाएं लंबे समय से चिंता का विषय रही हैं। लेकिन चुनाव से पहले भाजपा से जुड़े उद्योगपति और नेता गोपाल खेमका की राजधानी पटना में हुई हत्या ने कानून व्यवस्था की बदहाली को उजागर कर दिया है। उन्होंने कहा कि यदि चुनाव आयोग अभी से इन घटनाओं पर संज्ञान लेकर आवश्यक कार्रवाई करता है तो शांतिपूर्ण चुनाव कराना संभव होगा।
मायावती ने यह भी आरोप लगाया कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के दौरान बढ़ती हिंसा यह दिखा रही है कि कुछ शक्तियां अपने स्वार्थ के लिए माहौल को अस्थिर करना चाहती हैं। बसपा सुप्रीमो ने साफ किया कि बहुजन समाज पार्टी दलितों, पिछड़ों, शोषितों, मजदूरों और वंचित वर्गों की पार्टी है, जो अपने कैडर कार्यकर्ताओं और शुभचिंतकों के बलबूते पर चुनाव लड़ती है।
इधर बहुजन समाज पार्टी में घर वापसी के बाद आकाश आनंद ने बिहार की सियासी पिच पर कदम रख दिया है। छत्रपति शाहूजी महाराज की जयंती के मौके पर पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में आयोजित सम्मेलन में मायावती के भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय चीफ कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद की मौजूदगी ने पार्टी की नई उम्मीदों को जन्म दिया है। बिहार की राजनीति में यह उनकी पहली बड़ी परीक्षा मानी जा रही है जो बीएसपी के लिए निर्णायक साबित हो सकती है।बिहार युवा आबादी वाला राज्य है और तमाम दल युवाओं को साधना चाहते हैं। बसपा भी बिहार विधानसभा चुनाव में दो दो हाथ के लिए तैयार है। पार्टी सभी 243 सीटों पर लड़ने की तैयारी कर चुकी है। इस तरह मायावती के भतीजे आकाश आनंद की पहली सियासी परीक्षा बिहार में होने जा रही है, लेकिन सवाल यही है कि क्या पार्टी को सियासी संजीवनी दे पाएंगे?वैसे युवा आबादी वाला यह राज्य राजनीतिक दलों के लिए बेहद अहम बना हुआ है, क्योंकि एक आंकड़े के अनुसार बिहार की 58% आबादी 25 वर्ष से कम उम्र की है।
उसी सम्मेलन में आकाश आनंद कहा कि जिस तरह बहन मायावती ने उत्तर प्रदेश में दलित, पिछड़े और अति पिछड़ों को साथ लेकर इतिहास रचा है उसी तरह बिहार में भी बसपा एक नया सामाजिक परिवर्तन लेकर आएगी। मायावती ने साहू जी महाराज की स्मृति में गरीबों को जमीन देकर और शिक्षा को बढ़ावा देकर उत्तर प्रदेश में महत्वपूर्ण काम किया है जिसे बिहार में भी दोहराया जाएगा। मायावती ने अपने भतीजे और पार्टी के युवा चेहरा आकाश आनंद को चुनावी मैदान में उतारा है। आकाश आनंद ने बिहार में अपने पहले दौरे और कार्यकर्ताओं की बैठक से चुनावी अभियान की शुरुआत कर दी है, जहां उन्होंने पार्टी कैडर में नया जोश भरने का प्रयास किया।
गौर करने वाली बात यह है कि उत्तर प्रदेश से सटे इलाकों में बसपा मजबूत है। गोपालगंज, चंपारण और शाहाबाद क्षेत्र बसपा का मजबूत पॉकेट माना जाता है। पार्टी दलित वोट में पिछड़ा औरत पिछड़ा का तड़का लगाना चाहती है। इसी क्रम में साहू जी महाराज की जयंती मनाई गई और जाति विशेष को साधने की कोशिश हुई बहुजन समाजवादी पार्टी की ओर से पटना के श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में साहू जी महाराज की जन्म जयंती के मौके पर सम्मेलन का आयोजन किया कार्यक्रम में बिहार भर से आए बसपा के कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया।
वोट बैंक की अगर बात कर ले तो बिहार में दलितों की आबादी 19।65% है। अति पिछड़ा आबादी 36.01% है तो पिछड़ों की आबादी 27.12% है। अगर तीनों वोट बैंक को जोड़ लिया जाए तो यह आंकड़ा 82% के आसपास पहुंच जाता है। इसी समीकरण के जरिए बसपा बिहार में अकेले दम पर सरकार बनना चाहती है। बसपा बिहार में किसी के साथ गठबंधन नहीं करना चाहती है और इसके संकेत भी साफ तौर पर दे दिए गए हैं।
दरअसल बिहार में बहुजन समाजवादी पार्टी का वोट प्रतिशत स्थिर नहीं रहा है। बसपा को 5% से कम वोट मिल रहा है। 1995 विधानसभा चुनाव की अगर बात कर ले तो बसपा को 1.34 प्रतिशत वोट मिले और खाते में दो सीटें गई। 2000 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 1.89% वोट मिले और खाते में पांच विधानसभा सीटें गयी। बता दें कि अक्टूबर 2005 के विधानसभा चुनाव में बसपा के वोट प्रतिशत में इजाफा हुआ और पार्टी को 4.17 प्रतिशत वोट हासिल हुए और पार्टी के खाते में चार विधानसभा सीट गई। 2010 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 3.21% वोट हासिल हुए और एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई 2015 के चुनाव में बसपा को 2.5% वोट मिले और एक भी सीट खाते में नहीं गई 2020 के चुनाव में बसपा को 1.5% वोट हासिल हुए और एक सीट पर जीत हासिल हुई बाद में जीते हुए विधायक जमा खान जदयू में शामिल हो गये।
लोकसभा 2024 के चुनाव में बसपा को बिहार में कुल 1.75 फीसदी वोट मिले थे। उस समय बसपा 37 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। 7 सीटों औरंगाबाद, भागलपुर, बक्सर, गया, जहानाबाद, कटिहार, सासाराम पर तीसरे स्थान पर रही थी। वहीं, 6 सीटों अररिया, दरभंगा, गोपालगंज, हाजीपुर, जमुई, झंझारपुर, काराकाट, मधेपुरा, मधुबनी, महाराजगंज, पश्चिमी चंपारण, पाटलिपुत्र, पटना साहिब, पूर्णिया, उजियारपुर और वैशाली में चौथे स्थान पर थी।
वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी, का कहना है कि “बहुजन समाजवादी पार्टी समय-समय पर अकेले चुनाव लड़ती रही है। उत्तर प्रदेश से सटे इलाकों में बहुजन समाजवादी पार्टी थोड़ी बहुत मजबूत है। बहुजन समाजवादी पार्टी एक जाति की राजनीति करती है। भले ही सभी सीटों पर लड़ने का दावा पार्टी की तरफ से किया जाता है लेकिन उनके पक्ष में नतीजा नहीं आते हैं। मायावती ने युवा नेता आकाश आनंद को मैदान में उतारा है और एक तीर से कई निशाना साधना चाहती है। उनके विधायक जीत तो जाते हैं, लेकिन जल्द ही वह दूसरे दल में शामिल चले जाते हैं।”
हालांकि बताया यह भी जाता है कि बसपा वर्तमान में सबसे बुरे दौर से ही गुजर रही है। यूपी जैसे राज्य, जहां से बीएसपी उभरी, वहां उसका अब सिर्फ एक विधायक है। लोकसभा में कोई सांसद नहीं है। 2024 लोकसभा में पूरे देश में बसपा को सिर्फ 2 फीसदी ही वोट मिला था। यूपी में उसका वोट शेयर गिरकर 9.35 फीसदी परआ गया है। वहीं, लोकसभा के बाद महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी बसपा खाता नहीं खोल पाई। ऐसे में बिहार का चुनाव बसपा के लिए अहम है।
बताया जाता है कि बसपा बिहार में जेडीयू के वोट वैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। बिहार में कुर्मी और कोइरी जदयू के कोर वोटर माने जाते हैं। लेकिन, बसपा इस बार चुनाव में बड़ी संख्या में कुर्मी-कोइरी जाति के प्रत्याशियों उतारने की योजना बना रही है। इसके अलावा मुसलमान करीब 17 फीसदी हैं। मायावती मुस्लिमों को भी पर्याप्त संख्या में प्रतिनिधित्व देने जा रही हैं। बसपा ने इस बार कुर्मी समाज से आने वाले अनिल चौधरी को प्रदेश प्रभारी बनाया है। वे चुनाव में काफी पैसा खर्च कर रहे हैं। अनिल चौधरी की वजह से बसपा को कुर्मी वोट भी मिलने की संभावना है।
यूपी से सटे बिहार के जिलों में 4 फीसदी से अधिक जाटव बीएसपी के कोर वोटर रहे हैं। बीएसपी के सभी सीटों पर लड़ने से थोड़ा-बहुत नुकसान दोनों गठबंधनों को होगा, लेकिन एनडीए पर इसका असर अधिक हो सकता है, क्योंकि बसपा का वोट बैंक दलित वोटर ही हैं, जबकि एनडीए के दो सहयोगी चिराग पासवान की लोजपा और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की हम पार्टी का आधार भी दलित वोटर ही हैं। पासवान वोटर जहां चिराग के साथ लामबंद हैं, वहीं मुसहर सहित महादलित जीतन राम मांझी के कोर वोटर हैं। बसपा के मजबूती से लड़ने पर पासवान और महादलित वोटरों में यदि 1 फीसदी भी सेंधमारी करती है तो सीधे तौर पर एनडीए का समीकरण गड़बड़ा सकता है, खासकर उन सीटों पर जहां लोजपा और हम की बजाय भाजपा और जदयू के प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार