
प्रीति पांडेय
फतेहपुर का मज़ार विवाद यूपी विधानसभा के मानसून सत्र तक भी पहुंच गया, सत्र के दूसरे दिन नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय ने सरकार से इस मसले पर तीखे सवाल दाग दिए, जवाब देने के लिए सत्ता पक्ष की तरफ से मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा सरकार फतेहपुर जैसी घटना का बिलकुल समर्थन नहीं करती । उन्होंने बताया कि मामले में 10 नामजद और 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है और न्यायिक प्रक्रिया के तहत सभी को सज़ा मिलेगी । जैसे ही खन्ना आरोपिये के नाम पढ़ने को हुए उनकी बगल में बैठे मुख्यमंत्री ने उन्हें कुछ इशारा किया । हालांकि उन्होंने उनसे क्या कहा ये सुनाई तो नहीं दिया लेकिन ये क्लिप सोशल मीडिया पर जमकर वायरल होने लगा । लोग अपनी पोस्ट में लिखने लगे की आरोपियों के नाम सदन में लेने से सीएम ने मंत्री साहब को रोक दिया । मामला यहीं नहीं रुका सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “जब मुख पर मुख्य ही पाबंदी लगा रहे हैं, तो सत्य कैसे सामने आएगा ।”
चलिए अब बात असल घटना की कर लेते है फ़तेहपुर के अबूनगर इलाक़े में नवाब अब्दुस समद के मक़बरे को लेकर विवाद पैदा हो गया है. कई हिंदू संगठन इसके अंदर मंदिर होने का दावा कर रहे हैं । इन संगठनों का दावा है कि इस मक़बरे के भीतर हिंदू देवी-देवताओं के निशान हैं। 11अगस्त की सुबह नवाब अब्दुस समद के मकबरे पर हिंदू समुदाय के लोग भगवा झंडा फहराने पहुंच गए । मौके पर जमकर बवाल हुआ, तोड़फोड़ हुई और चारों ओर भगवा झंडे लहराने लगे, जय श्री राम के नारे लगने लगे । मुस्लिम समुदाय के लोग इससे भड़क गए और बवाल बढ़ गया । पत्थरबाज़ी तक होने लगी । हालात के मददेनज़र पुलिस प्रशासन ने मौके पर पुलिसबल और पीएसी की तैनाती की । हालांकि, बाद में फ़तेहपुर के ज़िलाधिकारी रविंद्र सिंह ने दावा किया कि अब हालात ‘सामान्य’ हैं। पुलिस ने दस ज्ञात और 150 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है. एसपी अनूप कुमार सिंह ने कहा, ”उपद्रवियों की पहचान की जा रही है”
फतेहपुर: मक़बरे को लेकर विवाद, सियासी तकरार तेज़
फतेहपुर में ऐतिहासिक मक़बरे को लेकर छिड़े विवाद ने राजनीतिक माहौल गरमा दिया है। ओमुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) का आरोप है कि इस घटना में भाजपा ज़िला अध्यक्ष मुखलाल पाल की महत्वपूर्ण भूमिका रही। भाजपा ने फिलहाल इस पर सीधी टिप्पणी करने से परहेज़ किया है, जबकि विधानसभा में मंत्री सुरेश खन्ना ने भरोसा दिलाया कि दोषियों के खिलाफ कानूनन कार्रवाई की जाएगी।
घटना वाले दिन मुखलाल पाल का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब साझा हुआ, जिसमें वे पुलिस अधिकारियों से फोन पर बात करते और कथित तौर पर सख़्त लहजे में बातें करते नज़र आ रहे हैं। अब वे लोगों से शांति बनाए रखने की अपील कर रहे हैं, लेकिन इससे पहले उन्होंने सार्वजनिक रूप से 11 अगस्त 2025 को मक़बरे के अंदर स्थित शिव मंदिर में पूजा करने की घोषणा की थी और लोगों से वहां पहुंचने का आह्वान किया था।
इसके बाद सोमवार को हिंदू संगठनों के कार्यकर्ता इकट्ठा होकर जुलूस की शक्ल में मक़बरे की ओर बढ़े। पुलिस द्वारा लगाए गए बैरिकेड्स को भीड़ ने तोड़ दिया और परिसर में प्रवेश कर लिया। सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें कथित तौर पर मजार तोड़ने की घटना दिखाई देती है, हालांकि अधिकारियों ने इसकी पुष्टि नहीं की।
हिंदू संगठनों का दावा है कि मक़बरे के भीतर शिवलिंग मौजूद है। मठ मंदिर संरक्षण संघर्ष समिति ने भी इसे मंदिर बताया है। ज़िलाधिकारी रविंद्र सिंह का कहना है कि इस दावे की पुष्टि के लिए अभिलेखों की जांच कराई जाएगी।
सपा और भाजपा में आरोप-प्रत्यारोप
सपा विधायक मोहम्मद हसन रूमी का आरोप है कि घटना पुलिस की मौजूदगी में हुई। उन्होंने कहा कि मक़बरे का गाटा नंबर 753 है, जिसका क्षेत्रफल 10 बीघा 17 बिस्वा है, जबकि मंदिर का गाटा नंबर 1159 है और यह काफी दूरी पर स्थित है।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए लिखा कि फतेहपुर की घटना भाजपा की “तेजी से घटती लोकप्रियता” का संकेत है। उनके मुताबिक, जब भी भाजपा और उसके सहयोगियों की पोल खुलने लगती है, तब वे सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश करते हैं।
इस बयान के जवाब में उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि अखिलेश यादव केवल राजनीतिक फ़ायदा उठाने की नीयत से बयानबाज़ी कर रहे हैं, जो राज्य के माहौल को ख़राब कर सकती है।
पांच शताब्दी पुराने मक़बरे पर विवाद
फतेहपुर के गज़ेटियर के अनुसार, शहर में नवाब अब्दुस समद का मक़बरा ही एकमात्र ऐसा ढांचा है जिसका ऐतिहासिक महत्व है। यह इमारत उनके पुराने और जीर्ण-शीर्ण किले के ठीक बगल में स्थित है।
गज़ेटियर में दर्ज विवरण के मुताबिक, अबू नगर का नाम अब्दुस समद के बड़े पुत्र अबू मोहम्मद के नाम पर रखा गया था। मक़बरे पर लगे शिलालेख में अब्दुस समद की मृत्यु 1699 ईस्वी और उनके बेटे अबू मोहम्मद की मृत्यु 1704 ईस्वी बताई गई है।
डिज़ाइन के संदर्भ में गज़ेटियर इसे एक “भारी और कुछ असंगठित संरचना” बताता है, जिसके चारों कोनों पर स्थित गुंबद केंद्रीय गुंबद की बराबरी करते हैं। कभी इस परिसर में एक विशाल पत्थर का जलाशय और सुंदरता से निर्मित मंडप भी मौजूद था।
मक़बरे के मौजूदा संरक्षक मोहम्मद नफ़ीस का कहना है कि यह इमारत लगभग 500 साल पुरानी है और यहां अबू मोहम्मद व अबू समद की मज़ारें स्थित हैं। उनके मुताबिक, “इसका निर्माण कार्य दस वर्षों में पूरा हुआ था। मुझसे पहले अनीस भाई इसकी देखरेख करते थे, उनके निधन के बाद यह ज़िम्मेदारी मैंने संभाली।”
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफेसर हेम्ब्रम चतुर्वेदी का मानना है कि इस मक़बरे को लेकर विस्तृत ऐतिहासिक अभिलेख उपलब्ध नहीं हैं। वे बताते हैं कि अतीत में इस इलाके में मुस्लिम शासकों का प्रभुत्व रहा, जिनके पास बड़ी-बड़ी जागीरें थीं और जो यहां के व्यापार की सुरक्षा करते थे। अक्सर उनका अंतिम विश्राम स्थल भी उसी स्थान पर बनाया जाता था जहां वे रहते थे। हालिया विवाद के बाद इतिहासकारों की रुचि इस इमारत में और बढ़ गई है।
लखनऊ के इतिहासकार रवि भट्ट कहते हैं कि अब्दुस समद के जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन उस समय प्रमुख व्यक्तियों के नाम पर मक़बरे बनवाना आम बात थी।
उनका यह भी कहना है कि मौजूदा विवाद में किसी भी पक्ष के पास ठोस सबूत नहीं हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस क्षेत्र में असनी और भिटौरा जैसे पुरातात्विक स्थल मौजूद हैं, जो वैदिक काल के प्रभाव का संकेत देते हैं। हालांकि, केवल कुएं और परिक्रमा मार्ग की उपस्थिति से मंदिर होने का दावा सिद्ध नहीं किया जा सकता।