सदियों पहले समूचे विश्व के लिए ज्ञान का सागर बने जिस नालंदा को आक्रांताओं ने तहस-नहस कर दिया था, उसका पुनरुत्थान एक बहुत बड़ा और युगांतकारी कदम है
प्रो. महेश चंद गुप्ता
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार के राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन किया है। इसी के साथ सदियों के बाद नालंदा विश्वविद्यालय पूरे विश्व में ज्ञान के प्रसार के लिए उठ खड़ा हुआ है। 455 एकड़ में 1749 करोड़ की लागत से बना नालंदा का नया परिसर केवल कंकरीट की एक इमारत भर नहीं है, बल्कि इस इमारत के निर्माण से हमारे देश का गौरवशाली इतिहास पुनजीर्वित हुआ है। यह भारत को विश्व गुरु बनाने के लक्ष्य की ओर बढ़ा एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसके जरिए समूची दुनिया में ज्ञान की अलख जगाने के साथ-साथ एक नया इतिहास रचा जाना तय हो गया है।
तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के महज दस दिन बाद मोदी नालंदा विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में गए हैं। मोदी का नालंदा जाना अनायास नहीं है बल्कि यह उनका पूरे सोच-विचार, विमर्श और चिंतन के बाद लिया गया निर्णय है। अब यह बात किसी से छिपी नहीं है कि मोदी जो भी निर्णय करते हैं, उसमें कोई न कोई बड़ा उद्देश्य निहित होता है। मोदी नालंदा के बहाने देश को आगे बढऩे का संदेश दे रहे हैं।
सदियों पहले समूचे विश्व के लिए ज्ञान का सागर बने जिस नालंदा को आक्रांताओं ने जलाकर खाक और तहस-नहस कर दिया था, उसका पुनरुत्थान एक बहुत बड़ा और युगांतकारी कदम है। श्रीराम मंदिर की स्थापना के उपरांत नालंदा हमारे राष्ट्र के पुनरुत्थान का एक और उदाहरण बना है। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।
नालंदा में प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहरों के पास नई इमारत की तामीर हमें गौरवान्वित कर रही है। वैसे तो इमारतेंं रोज बनती हैं मगर नालंदा में यह नव निर्माण अनूठा है, देश के लिए गर्व का विषय है। नालंदा में मोदी ने कहा भी है कि ‘‘मैं नालंदा को भारत की विकास यात्रा के लिए एक शुभ संकेत के रूप में देखता हूं। नालंदा केवल नाम नहीं है। नालंदा एक पहचान है, एक सम्मान है। नालंदा एक मूल्य है, नालंदा मंत्र है, गौरव है, गाथा है। नालंदा है उद्घोष इस सत्य का कि आग की लपटों में पुस्तकें भले जल जाएं लेकिन आग की लपटें ज्ञान को नहीं मिटा सकतीं। नालंदा के ध्वंस ने भारत को अंधकार से भर दिया था। अब इसकी पुनस्र्थापना भारत के स्वर्णिम युग की शुरुआत करने जा रही है।’’
मोदी ने सच ही कहा है क्योंकि आक्रांताओं ने नालंदा के वैभव को तीन बार नष्ट किया। दो बार इसका पुननिर्माण किया गया। 12 वीं शताब्दी में कुतुबद्दीन ऐबक के सेनापति बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय के लाखों पुस्तकों वाले पुस्तकालय में आग लगवा दी। इतिहासकारों के अनुसार यह विनाशकारी आग तीन महीने तक भडक़ती रही, जिससे वहां सब कुछ नष्ट हो गया।
नालंदा में लगाई गई आग किसी इमारत, पुस्तकालय को नष्ट करने का नहीं, बल्कि भारत के गौरव को आहत करने का प्रयास था क्योंकि प्राचीन मगध साम्राज्य (आधुनिक बिहार) में 5वीं शताब्दी ई. में स्थापित नालंदा विश्वविद्यालय का नाम समूची दुनिया में था। इसमें दुनिया भर के दस हजार विद्यार्थी पढ़ते थे। दुनिया के पहले आवासीय विश्वविद्यालय के रूप में नालंदा विश्वविद्यालय का वैभव ही ऐसा था, जिसने चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया सहित दुनिया भर के विद्वानों को आकर्षित किया। नालंदा में चिकित्सा, आयुर्वेद, बौद्ध धर्म, गणित, व्याकरण, खगोल विज्ञान और भारतीय दर्शन जैसे विषय पढ़ाए जाते थे। भारतीय गणित के प्रणेता और शून्य के आविष्कारक आर्यभट्ट छठी शताब्दी ईस्वी के दौरान नालंदा के प्रतिष्ठित शिक्षकों में से एक रहे। इतिहासकारों के अनुसार सदियों पहले नालंदा में दाखिला आसान नहीं था। यहां प्रवेश के इच्छुक विद्यार्थियों को कठिन साक्षात्कार प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था।
यह सब इतना वैभवशाली था, जो आसुरी शक्तियों और विनाशकारी सोच वालों से देखा नहीं जा रहा था। आसुरी शक्तियों ने समय-समय पर हमारे वैभव को मिटा कर हमें निराश, हताश और आहत करने के लिए प्रयास किए। अतीत मेंं समय चक्र कुछ ऐसे चला, जिससे आसुरी शक्तियां हावी हो गईं। विदेशी आक्रांताओं की वजह से एक लंबे कालखंड तक देश में प्रतिकूल हालात बने रहे। आक्रांताओं ने हमारे नालंदा जैसे विशाल भवन नष्ट कर दिए। हमारे अस्तित्व के खात्मे की कोशिशें की गईं मगर वह ज्ञान को भला किस प्रकार मिटा पाते। उस ज्ञान को कैसे मिटाते, जो हमारे सहज स्वभाव में है। वक्ती तौर पर भवनों को ढहा देने वाले आक्रांता खुश हो कर चले गए लेकिन जिस प्रकार काले बादलों का अंधेरा छंटने पर सूर्य की सप्त रश्मियां वातावरण को फिर से जगमग कर देती हैं, उसी प्रकार राष्ट्रीय महत्व के संस्थान और उत्कृष्टता के रूप में नामित नालंदा विश्वविद्यालय से पुन: शिक्षा का उजियारा फूटना शुरू हो गया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने विश्वास व्यक्त किया है कि नालंदा वैश्विक हित का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनेगा। मोदी का मिशन है कि भारत, दुनिया के लिए शिक्षा और ज्ञान का केंद्र बने और फिर से विश्व के समक्ष सर्वप्रमुख ज्ञान केंद्र के रूप में पहचाना जाए लेकिन यह मिशन कैसे पूरा होगा, इस पर विचार किए जाने की जरूरत है। नालंदा विश्वविद्यालय भारत की शैक्षणिक विरासत और जीवंत सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रतीक है। नालंदा का फिर से उठ खड़ा होना निश्चय की खुशी का मौका है। यह हमारे शैक्षिक उत्थान की प्रेरणा बनेगा मगर नालंदा की प्रेरणा तभी काम आएगी, जब हम शैक्षिक उत्थान के लिए समर्पित भाव से काम करेंगे। शैक्षिक उत्थान ही विकसित भारत की संकल्पना को साकार कर सकता है।
मैं चार दशक से ज्यादा समय दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहा हूं। एक शिक्षक के रूप में लंबे अनुभव की बदौलत मेरी यह मान्यता है कि शिक्षा और विकास एक-दूसरे के पूरक हैं। शिक्षा की सीढ़ी पर चढक़र ही विकास की प्रत्येक मंजिल पर पहुंचा जा सकता है। अगर हम आजादी के सौ साल पूरे होने के अवसर पर वर्ष 2047 तक भारत को एक विकसित देश के रूप में देखना चाहते हैं तो यह शिक्षा की बदौलत ही संभव है लेकिन यह इतना सरल और सहज नहीं है। इसके लिए देश के विश्वविद्यालयों के लिए जमकर काम करना होगा। सरकारी विश्वविद्यालयों को ऊर्जावान बनाना होगा। सभी राज्यों को अपने-अपने विश्वविद्यालयों का ढांचा मजबूत करने के लिए होड़ लगानी पड़ेगी। अभी देश में प्राथमिक शिक्षा से लेकर स्नातकोत्तर तक शिक्षा और सरकारी विश्वविद्यालयों की जो हालत है, वह बेहद चिंताजनक है।
आजादी के बाद सत्तर सालों में शिक्षा को नजरअंदाज ही किया गया है। बजट में शिक्षा के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं किए गए। इसी कारण हमारे सरकारी विश्वविद्यालय और अन्य उच्चतर संस्थान पिछड़ गए। हमारे देश में प्राइवेट विश्वविद्यालय निरंतर विस्तार कर रहे हैं, पैसा कमा रहे हैं लेकिन इसके विपरीत यूजीसी की फंडिंग वाले विश्वविद्यालय पिछड़ रहे हैं। हमारे ज्यादातर विश्वविद्यालयों का बुनियादी ढांचा मजबूत नहीं है। उनमें विश्व स्तरीय स्मार्ट क्लास रूम का अभाव है। अच्छे ऑडिटोरियम, लाइब्रेरी, एकेडमिक ब्लॉक्स और बेहतरीन लैब की कमी खलती है। जो भारत प्राचीन काल में समूचे विश्व में शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था, जिस भारत में उच्च शिक्षा के दुनिया के पहले विश्वविद्यालयों में शामिल सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, उस भारत में विश्वविद्यालयों की मौजूदा स्थिति विचारणीय है। इस वजह से देश में उच्च शिक्षा गुणवत्ता के लिहाज से पिछड़ रही है। धनवान लोगों के बच्चे तो उच्च शिक्षा के लिए विदेश चले जाते हैं और वहीं कॅरियर बनाकर बस भी जाते हैं। आम लोगों के बच्चे प्राइवेट विश्वविद्यालयों में शोषण झेल रहे हैं। यूजीसी फंडिंग वाले विश्वविद्यालयों की स्थिति सुधारी जाए तो हालात बदले जा सकते हैं। ऐसा तभी संभव है, जब हम हमारे विश्वविद्यालयों को वल्र्ड रैंकिंग में लाएंगे। उन्हें बड़ा ब्रांड बनाने की दिशा में काम करेंगे।
हालांकि मोदी सरकार ने शैक्षिक उत्थान के प्रयास शुरू किए हैं। नई शिक्षा नीति इसका प्रमाण है। मोदी मानते हैं कि ‘‘जब शिक्षा का विकास होता है तो अर्थव्यवस्था और संस्कृति की जड़ें भी मजबूत होती हैं। हम विकसित देशों को देखें तो पाएंगे कि वे अर्थ, सांस्कृतिक लीडर तब बने, जब वह एजुकेशनल लीडर हुए। आज दुनिया भर के छात्र उन देशों में जाकर पढऩा चाहते हैं। कभी ऐसी स्थिति हमारे यहां नालंदा और विक्रमशिला जैसे संस्थानों में हुआ करती थी।’’
मोदी के पास विजन है, वह व्यापक काम कर रहे हैं और देश का गौरव लौटा रहे हैं। अभी हम जिस कालखंड में जी रहे हैं, वह भारत के लिए क्रांतिकारी, गौरवशाली और बड़े सकारात्मक बदलावों का कालखंड है। पूरी दुनिया हमारी संस्कृति को मान रही है। भारत की गौरवशाली और प्राचीन संस्कृति की तरफ लोगों का रूझान है। पाश्चात्य संस्कृति की ओर खिंचे रहने वाले युवा भी हमारी संस्कृति को पुन: अंगीकार कर रहे हैं। मोदी का सपना भारत को विश्व गुरु बनाने का है। यह सपना शिक्षा की बदौलत सच हो सकता है। आज नालंदा फिर से उठ खड़ा हुआ है। इसी तर्ज पर आगे चलकर समूचे देश के विश्वविद्यालयों को प्रगति पथ पर बढ़ाया जाए। यह काम केवल सरकार या संबंधित विश्वविद्यालय प्रशासन के जिम्मे छोडऩे से नहीं होगा। इसके लिए सबको मिलकर काम करना होगा।
(लेखक प्रख्यात शिक्षा विद्, चिंतक और वक्ता हैं। वह 44 सालों तक दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे हैं।)