संजय रोकड़े
भारत ही नही बल्कि विश्व में सिनेमा जगत का स्वरूप और चरित्र बड़ी तेजी से बदल रहा है। देश-दुनिया में नए नए ओटीटी प्लेटफार्म्स के बाजार में आ जाने से भारतीय सिनेमा उद्योग में भी खासा बदलाव देखा जा सकता है। जिस तरह से ओटीटी प्लेटफार्म्स मनोरंजन बाजार पर अपना एकाधिकार कायम करते जा रहे है ऐसे में मुख्यधारा के सिनेमा उद्योग का चिंतित होना लाजिमी ही है।
काबिलेगौर हो कि सिनेमा जगत में होने वाले इस बदलाव को लेकर एंटिटी वन व वानखेड़े ब्रदर्स मीडिय़ा समूह ने फनकार स्टूडियो अंधेरी मुंबई में ‘बड़े पर्दे का सिनेमा बनाम ओटीटी प्लेटफार्म’ पर एक सार्थक चर्चा आयोजित की।
इस चर्चा में अमित कर्ण, वरिष्ठ पत्रकार ने गिरीश वानखेड़े, वरिष्ठ सिनेमा विश्लेषक, ट्रेड एनालिस्ट, डिस्ट्रीब्यूटर और मल्टीप्लेक्स चेन के अधिकारी से मनोरंजन जगत में होने वाले सामयिक बदलाव पर रोचक बातचीत की।
इस चर्चा की शुरूआत करते हुए फिल्म पत्रकार अमित ने बताया कि भारत में सिनेमा को लेकर दर्शकों के मन में एक अलग तरह की उधेडबुंद चलने लगी है। वह यह है कि आखिर फिल्म थियेटर में जा के देखे या ओटीटी प्लेटफार्म्स पर। इसी कसमकश में आज देश में ओटीटी प्लेटफार्म्स का विस्तार और व्यापार तेजी से बढ़ रहा है।
वरिष्ठ फिल्म पत्रकार अमित ने एक आंकड़े का हवाला देते हुए बताया कि कोविड़ के पहले याने करीब 2018 में भारत में ओटीटी का मार्केट 4 हजार करोड़ का था जो अब 2024 तक बढक़र 13 हजार करोड़ तक होने जा रहा है।
आश्चर्य की बात यह है कि इस काल में मुख्यधारा के सिनेमा का बाजार बड़ी तेजी से गिरकर 11 हजार 5 सौ करोड़ में सिमट कर रह गया।
इस चर्चा में अमित ने गिरीश से सवाल कर यह जानने की कोशिश की कि आखिर क्या वजह है कि दर्शक थियेटर की बजाय ओटीटी की तरफ मुड़ रहा है। इसको लेकर ने गिरीश ने बड़ी ही साफगोई से बताया कि भारत में दर्शकों का ओटीटी की तरफ मुड़ने या उस ओर रूझान नही होने का एक नही बल्कि अनेक कारण है। इसका सबसे बड़ा और प्रबल कारण कोविड़ को बताते हुए कहा कि जब कोविड़ काल में थियेटर बंद हो गए थे तो बड़ी संख्या में दर्शक मनोरंजन के लिए ओटीटी प्लेटफार्म्स की ओर बढ़े। कोविड़ काल में ओटीटी दर्शकों के लिए एक विकल्प बन कर उभरा।
इसके साथ ही वे बोले कि कोविड़ काल खत्म होने के बाद भी दर्शक भारत में सिनेमा की तरफ उतना नही मुड़ा जितना मुडना चाहिए था। इसका एक अहम कारण यह भी रहा है कि आज भारत में थियेटर में जाकर फिल्म देखना एक आम नागरिक के लिए बहुत मंहगा सौदा हो गया है। एक मध्यमवर्गीय परिवार मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखने से पहले दस बार सोचने लगा है, क्योंकि टिकट इतनी मंहगी हो गयी है कि वह थियेटर में फिल्म देखने की बजाय थोड़ा इंतजार करके ओटीटी पर देखना स्वीकार करता है।
गिरीश ने सिनेमा की तरफ दर्शक का रूझान कम होने का एक अहम कारण यह भी बताया कि आजकल निर्माता-निदेशक जनता के लिए फिल्म बनाने की बजाय राजनीतिक विचारधारा को लेकर फिल्में बनाने लगे है। इस तरह की फिल्मों के माध्यम से राजनेताओं को खुश करना चाहते है मगर समाज में इसका असर बड़ा विपरित देखने को मिला है।
इस चर्चा में बॉलीवुड के साथ ही साऊथ की फिल्मों और विदेशी सिनेमा पर भी विस्तार से बातचीत हुई।
इस चर्चा में मुंबई और मध्य भारत बेस्ड़ म्यूजिक लेबल ‘बॉलीवुड़ म्यूजिक टुडे’ के सीईओ व गीतकार संजय रोकड़े विशेष तौर पर बतौर अतिथि मौजूद थे।
इस मौके पर भोजपुरी फिल्मों के निर्माता नीतिन भाई, वरिष्ठ लेखक आलौकिक राही सहित सिनेमा जगत की अनेक हस्तियां व सिनेप्रेमी उपस्थित थे।