नये कानून से बुजुर्ग मां-पिता की सुध लेने की सार्थक पहल

Meaningful initiative to take care of elderly parents through new law

ललित गर्ग

देश में वृद्धों के साथ उपेक्षा, दुर्व्यवहार, प्रताड़ना बढ़ती जा रही है, बच्चे अपने माता-पिता के साथ बिल्कुल नहीं रहना चाहते, वे उनके जीवन-निर्वाह की जिम्मेदारी भी नहीं उठाना चाहते हैं, जिससे भारत की बुजुर्ग पीढ़ी का जीवन नरकमय बना हुआ है, वृद्धजनों की पल-पल की घुटन, तनाव, जीवन-निर्वाह करने की जटिलता एवं उपेक्षा को लेकर समय-समय पर जहां न्यायालयों ने अपनी चिन्ता जतायी है, वहीं सरकार ने कानून बनाकर बुजुर्गों को उन्नत एवं शांति देने के प्रयास किये हैं, लेकिन इसके बावजूद वृद्ध लोगों का जीवन कष्टमय एवं जटिल बना हुआ है। वृद्ध माता-पिता की देखभाल एवं भरण-पोषण की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। अदालतों में गुजारा-भत्ते से जुड़े विवाद बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं। यही वजह है कि केंद्र सरकार वृद्ध माता-पिता की देखभाल के लिये बाध्य करने वाले 2007 के कानून में बदलाव लाकर, इसका दायरा बढ़ाने के मकसद से नये कानून लाने की तैयारी में है। माता-पिता और बुजुर्गों की देखभाल से जुड़े वर्षों पुराने कानून को प्रभावी व व्यावहारिक बनाने की कोशिश निश्चित रूप से सामाजिक एवं पारिवारिक ताने-बाने में वृद्धों को सम्मानजनक जीवन देने की सार्थक एवं सराहनीय कोशिश है।

इस समय देश में करीब 10.5 करोड़ बुजुर्ग लोग हैं और 2050 तक इनकी संख्या 32.4 करोड़ तक पहुंच जाएगी। भारत सहित 64 ऐसे देश होंगे जहाँ 30 प्रतिशत आबादी 60 वर्ष से अधिक उम्र की होगी। एकल परिवार के दौर में बुजर्गों की देखभाल और भरण पोषण एक बड़ी समस्या के तौर पर उभर रही है ऐसे में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुजुर्गों की देखभाल के लिये मेंटिनेंस ऐंड वेलफेयर ऑफ पैरंट्स ऐंड सीनियर सिटिजन ऐक्ट 2007 में संशोधन की पहल की है, नये बिल के मुताबिक अब घर के बुजुर्गों की जिम्मेदारी सिर्फ बेटे ही नहीं, बल्कि बहू-दामाद, गोद लिए गए बच्चे, सौतेले बेटे और बेटियों की भी होगी। बिल लाने का मकसद बुजुर्गों का सम्मान सुनिश्चित करना है। पहले वृद्ध माता-पिता अपनी संतानों से दस हजार रुपये तक का गुजारा भत्ता पाने के हकदार थे। बताया जा रहा है कि नये विधेयक के अनुसार अब माता-पिता का गुजारा भत्ता बच्चों की आर्थिक हैसियत से तय होगा। वहीं बच्चों के साथ कटुता कम करने के प्रयासों में माता-पिता व बुजुर्गों को त्यागने अथवा दुर्व्यवहार पर बच्चों को दी जाने वाली सजा में कमी करने की भी तैयारी है। ऐसा सामाजिक संगठनों से विमर्श के बाद किया गया है। क्योंकि लंबी सजा से माता-पिता और बच्चों के संबंधों में ज्यादा खटास बढ़ती है। कहा जा रहा है कि सरकार बजट सत्र में इस विधेयक को पेश कर सकती है। दरअसल, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने बुजुर्गों की देखभाल से जुड़े 2007 के कानून में बदलाव की पहल तब की, जब समाज में बुजुर्गों की अनदेखी व दुर्व्यवहार के मामले तेजी से बढ़े हैं।

भारतीय संस्कृति एवं सभी धार्मिक ग्रंथों में माता पिता को भगवान का रूप माना गया है और उनकी निःस्वार्थ सेवा करने की बात कही गयी है, लेकिन इसके बावजूद कई लोग अपने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा करना तो दूर उल्टा उन्हें परेशान करते रहते हैं। इसलिये विभिन्न राज्यों की सरकारें बुजुर्ग आत्म-सम्मान के लिये नये कानून बना रही है। उत्तरप्रदेश में योगी सरकार अब बुजुर्ग मां-बाप की संपत्ति हड़प कर उन्हें बेदखल करने वाले बच्चों के खिलाफ सख्त कानून लाने की तैयारी कर रही है। इसके तहत माता-पिता की संपत्ति हड़प कर उन्हें घर से बाहर निकलने वाले बेटे-बेटियों की खैर नहीं होगी। कुछ दूसरी तरह से असम सरकार ने वृद्धों की उपेक्षा पर विराम लगाने की दृष्टि से ही राज्य कर्मचारियों के लिए नवंबर में दो विशेष अवकाश शुरू किए हैं, ताकि वे अपने माता-पिता या सास-ससुर के साथ समय बिता सकें। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अपनी घोषणा में परिवार के महत्व पर जोर दिया। 6 और 8 नवंबर को मिलने वाली ये विशेष छुट्टियां कर्मचारियों को उनके बुजुर्ग माता-पिता या सास-ससुर से जुड़ने के लिए हैं। इसका उद्देश्य परिवार के वरिष्ठ सदस्यों के प्रति सम्मान और देखभाल दिखाना है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अपनी घोषणा में परिवार के महत्व पर जोर देते हुए कहा है कि ‘माता-पिता का आशीर्वाद हमारे जीवन के लिए आवश्यक है। एक आदर्श नागरिक के रूप में, अपने माता-पिता की भलाई सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है।’

असम सरकार ने पूर्व में राज्य विधानसभा ने असम कर्मचारी माता-पिता जिम्मेदारी एवं जवाबेदही तथा निगरानी नियम विधेयक, 2017 या प्रणाम विधेयक भी पारित कर चुकी है। इसका मकसद यह सुनिश्चत करना है कि राज्य सरकार के कर्मचारी अपने वृद्ध हो रहे माता-पिता या शारीरिक रूप से अशक्त भाई-बहन की देखभाल करें नहीं तो उनके वेतन से पैसे काट लिए जाएंगे। पूरे देशभर के लोग इस कानून को असम सरकार का एक अच्छा कदम बताया। नियमों के तहत अगर कोई व्यक्ति (सरकारी कर्मचारी) उसपर निर्भर माता-पिता की देखभाल नहीं करता तो उसके कुल वेतन का 10 प्रतिशत हिस्सा काट लिया जाएगा और वह राशि माता-पिता के खाते में डाल दी जाएगी। दिव्यांग (शारीरिक रूप से अशक्त) भाई-बहन होने की स्थिति में वेतन से 15 प्रतिशत तक हिस्सा काट लिया जाएगा।

अब केन्द्र सरकार द्वारा 2007 के कानून में बदलाव लाकर, नये विधेयक में इससे जुड़े कानून की व्यावहारिक दिक्कतों को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि, मंत्रालय ने कानून में बदलाव की पहल वर्ष 2019 में कर दी थी। इसी साल लोकसभा में एक विधेयक भी पेश किया गया था। इसके व्यापक पहलुओं की पड़ताल के लिये विधेयक को बाद में संसदीय समिति के पास भेज गया था। संसदीय समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने एक बार फिर एक विधेयक को संसद में पेश किया था। लेकिन वह पारित नहीं हो पाया था। कालांतर 17वीं लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने के कारण विधेयक निष्प्रभावी हो गया था। जिसके बाद अब सरकार नये सिरे से इस विधेयक को संसद में लाने की तैयारी में है। उल्लेखनीय है कि इस विधेयक में कई नये प्रावधानों को जोड़ा गया है। विधेयक में प्रत्येक जिले में बुजुर्गों की गणना, मेडिकल सुविधाओं से लैस वृद्ध आश्रम व जिला स्तर पर एक सेल गठित करने जैसे प्रावधान हैं।

संतान द्वारा बुजुर्गों की आवश्यकताओं को पूरा न करना गरिमा के साथ स्वतंत्र जीवन जीने जैसे मानवाधिकारों का हनन है। संयुक्त परिवारों के विघटन और एकल परिवारांे के बढ़ते चलन ने इस स्थिति को नियंत्रण से बाहर कर दिया है। वृद्धों की उपेक्षा एवं दुर्व्यवहार के इस गलत प्रवाह को रोकने की दृष्टि से नया कानून प्रभावी कदम है, इससे बच्चों की अपने माता-पिता की उपेक्षा पर विराम लग सकेगा। सभी के लिये बुजुर्ग पीढ़ी के लिए सम्मान, सुरक्षा और कल्याण को सुनिश्चित करना प्राथमिकता होनी ही चाहिए। हम एक ऐसी दुनिया बनाएं जहाँ हर बुजुर्ग अपने बुढ़ापे को गरिमा, आत्मसम्मान, सुरक्षा और स्वस्थता के साथ जी सके। वृद्धों को बंधन नहीं, आत्म-गौरव के रूप में स्वीकार करने की अपेक्षा है। वृद्धों को लेकर जो गंभीर समस्याएं आज पैदा हुई हैं, वह अचानक ही नहीं हुई, बल्कि उपभोक्तावादी संस्कृति तथा महानगरीय अधुनातन बोध के तहत बदलते सामाजिक मूल्यांे, नई पीढ़ी की सोच में परिवर्तन आने, महंगाई के बढ़ने और व्यक्ति के अपने बच्चों और पत्नी तक सीमित हो जाने की प्रवृत्ति के कारण बड़े-बूढ़ों के लिए अनेक समस्याएं आ खड़ी हुई हैं। यदि परिवार के वृद्ध कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं, रुग्णावस्था में बिस्तर पर पड़े कराह रहे हैं, भरण-पोषण को तरस रहे हैं तो यह हमारे लिए वास्तव में लज्जा एवं शर्म का विषय है। वर्तमान युग की बड़ी विडम्बना एवं विसंगति है कि वृद्ध अपने ही घर की दहलीज पर सहमा-सहमा खड़ा है, वृद्धों की उपेक्षा स्वस्थ एवं सृसंस्कृत परिवार परम्परा पर काला दाग है, यह आदर्श-शासन व्यवस्था के लिये भी शर्म का विषय है। इन त्रासद एवं डरावनी स्थितियों से वृद्धों को मुक्ति दिलाने के लिये नये कानून बनाने के साथ उसे सख्ती से लागू करने की भी अपेक्षा है।