महानायक कुँवर कदम सिंह

megastar kunwar kadam singh

सुरेन्द्र अग्निहोत्री

10 मई 1857 की क्रान्ति के महानायक कुँवर कदम सिंह की अस्थियाँ (इग्लैण्ड) से न आने के कारण रक्षाबन्धन नहीं मनाते पूर्व रियासत बहसूमा के लोग

कुंवर कदम सिंह का जन्म 25-10-1831 में बहसूमा रियासत के राजमहल में हुआ था। राजा नैन सिंह के बड़े भाई कुंवर जहाँगीर सिंह का विवाह खूबड़ गौत्र में मनीराम की पुत्री रामकौर से हुआ था जिससे कुंवर देवी सिंह पैदा हुए। कुंवर देवी सिंह का विवाह नसीरपुर के रतन सिंह की बेटी प्राणकौर से हुआ जिससे पुत्र हुआ कुंवर कदम सिंह। इन्हीं कुंवर कदम सिंह को रानी लाड़कौर ने परीक्षितगढ़ का केयरटेकर बनाया था। कुंवर कदम सिंह अविवाहित थे।

कुंवर कदम सिंह ने मेरठ क्रान्ति का नेतृत्व किया। ब्रिटिश शासन में भारत के वाइसराय लार्ड कार्नवालिस के पश्चात 1846 ई0 में लार्ड डलहौजी गर्वनर जनरल बनकर भारत आये थे।

वर्ष 1857 में लार्ड डलहौजी गर्वनर जनरल थे। वे गुर्जर जाति के लिए सबसे खतरनाक सिद्ध हुए। 31 अक्टूबर 1849 ई0 को उन्होंने एक कानून बनाया जिसे (लौजीलेकसी एक्ट) कहा जाता है। इस कानून के तहत किसी हिन्दू को ईसाई बन जाने पर उसे पैतृक सम्पत्ति में उत्तराधिकार के साथ तिगुनी सम्पत्ति दी जाती थी। दूसरे कोई भी ईसाई किसी भी हिन्दू सम्पत्ति में मनमाने ढंग से अधिकार पा सकता था। भारी जन विरोध के बावजूद 29 अप्रैल, 1850 ई० को इस कानून को लागू कर दिया गया ।

इस एक्ट के अनुसार डलहौजी ने किला परीक्षितगढ़ का कुछ भाग तो लण्डौरा रियासत के अधीन करके लण्डौरा राजा हरवंश सिंह, कुंवर रगवीर सिंह, सौतेली माता कमला आदि को अपने पक्ष में कर लिया। बाकी भाग पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया । मेरठ के तत्कालीन कलैक्टर आर०एच० डनलप द्वारा मेजर नरल हैविट को 28 जून 1857 ई0 को लिखे पत्र से पता चलता है कि राव कदम सिंह मेरठ के क्रांतिकारियों का सरताज थे एवं पूर्वी परगने क्षेत्र के क्रांतिकारियों के नेता थे। उनके साथ 10 हजार क्रांतिकारियों ने बलिदान दिया जोकि प्रमुख रूप से मवाना, हस्तिनापुर, रियासत परीक्षितगढ़ बहसूमा क्षेत्र के थे। ये क्रांतिकारियों कफन के प्रतीक के तौर पर सिर पर सफेद पगड़ी बाँधकर चलते थे । क्रांतिकारियों ने पूरे जिले में खुलकर विद्रोह कर दिया था और परीक्षितगढ़ के राव कदम सिंह को पूर्वी परगने का राजा घोषित कर दिया था। राव कदम सिंह व दलेल सिंह और पृथ्वीसिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने परीक्षितगढ़ की पुलिस पर हमला बोल दिया और पुलिस को मेरठ तक खदेड़ दिया।

उसके बाद संभावित युद्ध की तैयारी में रियासत परीक्षितगढ़ किले पर तीनों तोपें चढ़ा दी थीं। ये तौपें तब से किले में दबी पड़ी है। जब सन् 1803 में अंग्रेजों ने दोआब में अपनी सत्ता जमाई, उसके बाद हिम्मतपुर और बुकलाना के क्रांतिकारियों ने राव कदमसिंह के नेतृत्व में गठित क्रांतिकारी सरकार की स्थापना के लिए अंग्रेज परस्त गाँवों पर हमला बोलकर बहुत से गद्दारों को मौत के घाट उतार दिया। क्रांतिकारियों ने इन गाँवों से लगान को भी वसूला था।

राव कदमसिंह बहसूमा परीक्षितगढ़ रियासत के अंतिम राजा नैन सिंह के भाई का पौत्र था। राजा नैन सिंह के समय रियासत में 349 गाँव थे और इसका क्षेत्रफल लगभग 800 वर्ग मील था। वर्ष 1818 में नैन सिंह की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने रियासत पर कब्जा कर लिया था। इस क्षेत्र के लोग पुनः अपना राज चाहते थे इसीलिए क्रांतिकारियों ने कदमसिंह को अपना राजा घोषित कर दिया। 10 मई 1857 ई० को मेरठ में हुए सैनिक विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ के पूर्वी क्षेत्र में क्रांतिकारियों ने राव कदम सिंह के निर्देश पर सभी सड़कें रोक दीं और अंग्रेजों के यातायात और संचार को ठप कर दिया। मार्ग से निकलने वाले सभी यूरोपियनों को लूट लिया। मवाना, हस्तिनापुर, बहसूमा के क्रांतिकारियों ने राव कदम सिंह के भाई दलेल सिंह और देवी सिंह आदि के नेतृत्व में बिजनौर के विद्रोहियों के साथ साझा मोर्चा गठित किया और बिजनौर के मण्डावर, दारानगर और घनौत क्षेत्र में धावे मारकर वहाँ अंग्रेजी राज को हिला दिया। इनकी अगली योजना मण्डावर के क्रांतिकारियों के साथ बिजनौर पर हमला करने की थी । मेरठ और बिजनौर दोनों ओर के घाटों, विशेषकर दारानगर और रावली घाट पर राव कदम सिंह का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। ऐसा प्रतीत होता है कि कदमसिंह विद्रोही हो चुकी बरेली बिग्रेड के नेता बख्त खान के सम्पर्क में था क्योंकि उसके समर्थकों ने ही बरेली बिग्रेड को गंगा पार करने के लिए नावें उपलब्ध कराई थीं। इससे पहले अंग्रेजों ने बरेली के विद्रोहियों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए गढ़मुक्तेश्वर के नावों के पुल को तोड़ दिया था । 26 जून, 1857 ई० को बरेली बिग्रेड का बिना अंग्रेजी विरोध के गंगा पार कर दिल्ली चले जाना खुले विद्रोह का संकेत था । जहाँ बुलन्दशहर में विद्रोहियों का नेता बुलीदाद खान वहाँ का स्वामी बन बैठा, वहीं मेरठ में क्रांतिकारियों ने कदम सिंह को राजा घोषित किया और खुलकर विद्रोह कर दिया । 28 जून, 1857 को मेजर नरल हैविट को लिखे पत्र में तत्कालीन कलैक्टर जनरल ने मेरठ के हालातों पर चर्चा करते हुए लिखा कि यदि हमने शत्रुओं को सजा देने और अपने दोस्तों की मदद करने के लिए जोरदार कदम नहीं उठाए तो जनता हमारा पूरी तरह साथ छोड़ देगी और आज का सैनिक और जनता का विद्रोह कल व्यापक क्रांति में परिवर्तित हो जायेगा । राव कदम सिंह के क्रांतिकारियों एवं मेरठ के क्रांतिकारी हालातों पर काबू पाने के लिए अंग्रेजों ने मेजर विलियम्स के नेतृत्व में खाकी रिसाले का गठन किया जिसने जुलाई 1857 को पहला हमला पाँचली गाँव पर किया । इस घटना के बाद राव कदम सिंह ने परीक्षितगढ़ छोड़ दिया और उन्होंने बहसूमा में मोर्चा लगाया। जहाँ गंगा खादर से उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई जारी रखी।

18 सितम्बर 1857 ई० को राव कदम सिंह के समर्थक क्रांतिकारियों ने मवाना पर हमला बोल दिया और तहसील को घेर लिया। खाकी रिसाले के वहाँ पहुँचने के कारण भयंकर युद्ध हुआ। क्रांतिकारियों को पीछे हटना पड़ा। 20 सितम्बर 1857 ई० को अंग्रेजों ने दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया। हालातों को देखते हुए राव कदम सिंह एवं दलेल, पिर्थाेसिंह अपने हजारों समर्थकों के साथ गंगा के पार बिजनौर चले गये। जहाँ नवाब महमूद खान के नेतृत्व में अभी भी क्रांतिकारी सरकार चल रही थी। थाना भवन के काजी इनायत अली और दिल्ली से बहादुरशाह जफर के तीन मुगल शहजादे भी भागकर बिजनौर पहुँच गये।

राव कदमसिंह आदि के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने बिजनौर से नदी पार कर कई अभियान किये। उन्होंने रंजीतपुर में हमला बोलकर अंग्रेजों के घोड़े छीन लिए। 5 जनवरी 1858 ई० को नदी (गंगा) पार कर मीरापुर एवं मुज्जफरनगर में पुलिस थाने को आग लगा दी। इसके बाद राव कदम सिंह ने हरिद्वार क्षेत्र में मायापुर गंगा नहर चौकी पर हमला बोल दिया और कनखल में अंग्रेजों के बँगले जला दिये। राव कदम सिंह के इन अभियानों से उत्साहित होकर नवाब महमूद खान ने राव कदम सिंह एवं दलेल सिंह, प्रिर्थाेसिंह आदि के साथ मेरठ पर पुनः आक्रमण करने की योजना बनाई परन्तु उससे पहले ही 28 अप्रैल 1858 ई० को बिजनौर में क्रांतिकारियों की हार हो गई और नवाब को रामपुर के पास से गिरफ्तार कर लिया। उसके पश्चात राव कदम सिंह एवं दलेल सिंह, प्रिर्थाेसिंह, देवीसिंह एवं बहसूमा के अन्य क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर बरेली ले गये और कुछ क्रांतिकारियों को मेरठ ले गये। राव कदम सिंह के साथ ही 10 हजार क्रांतिकारियों को एक-एक करके फाँसी दे दी थी।

मेरठ गजेटियर के अनुसार 28 जुलाई 1858 ई० में दलेल सिंह, प्रिथसिंह, देवी सिंह, भवानी सिंह आदि का बहसूमा के राज परिवार के सदस्यों को फाँसी दे दी परन्तु राव कदम सिंह की फाँसी को गोपनीय रखा था या तो उन्हें बरेली में फाँसी दी अन्यथा विदेश इंग्लैण्ड (लन्दन) में ले जाकर फाँसी दी। उनकी फाँसी गोपनीय रखी थी।

राव कदमसिंह के साथ 10 हजार क्रांतिकारियों को मौत के घाट उतार दिया गया था और बहसूमा रियासत परिवार पूरी तरह नष्ट कर दिया गया। परिवार के व्यक्तियों ने जंगल अर्थात गंगा नदी के किनारे छुपकर जीवन निर्वाह किया तथा कुछ समय पश्चात बहसूमे आकर बसे थे। हमें गर्व है कि हमारे पूर्वज शासक होने के साथ-साथ विश्व की महान क्रांति के महानायक भी थे। इस क्रांति में तीन लाख पाँच सौ सत्तर के लगभग लोगों को फाँसी दी गई जिसमें राव कदम सिंह के 10 हजार क्रांतिकारियों, बहसूमा रियासत के लगभग 60 या 62 व्यक्तियों को फाँसी दी गई। पूरे देश में लगभग 60 या 62 हजार के लगभग गुर्जर (समाज) के व्यक्तियों को फाँसी दी गई थी। लगभग सवा लाख नबावों एवं मुस्लिमों को फाँसी दी गई थी। अन्य पिछड़े एवं दलितों को फाँसी दी गई थी। वर्ष 28 जुलाई – 31 जुलाई 1858 ई० को ब्रिटिश शासन ने बहसूमा राज परिवार को फाँसी दी थी।

उस वर्ष 28 से 31 जुलाई के बीच ( रक्षाबन्धन) का त्यौहार पड़ा होगा । कहा जाता है कि यह संकल्प लिया गया कि हम कुंवर प्रताप सिंह नागर बहसूमा के नागर एवं क्षेत्र के गुर्जर और अन्य इस त्यौहार को उनके सम्मान की रक्षा करते हुए तब तक नहीं मनाएंगे जब तक विदेश (इग्लैण्ड) से राव कदम सिंह जी की अस्थियाँ नहीं आ जाएगी l अस्थियां नहीं आने तक हमारा संघर्ष जारी रहेगा।