धर्मनिरपेक्ष हिन्दुओं से ‘नफ़रत के सौदागरों ‘ को सीख लेनी चाहिये

'Merchants of hate' should learn from secular Hindus

निर्मल रानी

हमारे देश के मंदिरों व शिवालों में प्रातः व सायंकालीन आरतियों के बाद जो प्रार्थनायें की जाती हैं उनमें प्रत्येक सनातनी धर्मावलंबी यह प्रार्थना भी करता है कि ‘प्राणियों में सद्भावना हो ‘, विश्व का कल्याण हो। हमारा ही धर्म हमें विश्व बंधुत्व व वसुधैव कुटुंबकम का पाठ भी पढ़ाता है और यही हमें ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः ‘ की सीख भी देता है। यह वाक्यांश भारतीय विचारधारा में सार्वभौमिक एकता और भाईचारे की भावना के प्रतीक हैं तथा समग्र हिन्दू सोच को प्रतिबिंबित करती हैं। निश्चित रूप से यही भारतीय हिन्दू समाज का स्वभाव भी है। और भारतीय बहुसंख्यकों के यही मानवतापूर्ण संस्कार ही भारत को विश्व के सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में पहचान दिलाते हैं। परन्तु हमारे देश में दशकों से अनेक संकीर्णतावादी संगठन ऐसे भी सक्रिय हैं जिन्हें न तो ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की सोच पसंद है न ही विश्व बंधुत्व,वसुधैव कुटुंबकम और प्राणियों में सद्भावना जैसी बातें इन्हें पसंद हैं। और न ही इन्हें विश्व के कल्याण से कोई वास्ता है। यह संकीर्ण साम्प्रदायिकतावादी देश और दुनिया को अपने ही कट्टरपंथी रंग में रंगना चाहते हैं । यह संकीर्ण व विद्वेषपूर्ण विचार, धर्म और हिन्दू जागरण के नाम पर देश के आम शांतिप्रिय लोगों को उकसाता व भड़काता है। और इसके पीछे की सबसे बड़ी चाल यह है कि इसी वैमनस्य व साम्प्रदायिकता के नाम पर न जाने कितने निखट्टुओं को सत्ता मिल जाती है। और जो लोग लिपिक या चौकीदार अथवा सिपाही के योग्य भी नहीं होते उन्हें देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में राज करने का अवसर मिल जाता है।

पिछले दिनों देश में एक ऐसे विषय को विवाद का रूप दे दिया गया जो आज़ादी के 78 वर्षों बाद भी कभी विवाद का विषय था ही नहीं। उत्तर प्रदेश के कई शहरों में प्रशासन द्वारा अलविदा (रमज़ान का आख़िरी शुक्रवार ) की नमाज़ सड़कों पर या अपने घरों की छतों पर पढ़ने पर रोक लगा दी गयी। जिसके कारण अलीगढ़ जैसे शहर में मुसलमानों ने प्रशासन के निर्देशों की पालना करते व सहयोग करते हुये ईद की नमाज़ ईदगाह में सुबह 7 बजे और 7:45 पर यानी दो बार में अदा की गयी। ऐसा पहली बार हुआ था। दिल्ली में भी कई भाजपा विधायकों ने एक सुर में सड़क पर नमाज़ पढ़ने पर रोक लगाने की मांग की। उधर मुस्लिम धर्मगुरुओं द्वारा मुस्लिम समुदाय के लोगों से यह कहा गया कि लोग मस्जिदों में जब नमाज़ पढ़ने जाएं तो अगर एक मस्जिद में जगह ख़त्म हो जाए तो दूसरी मस्जिद में जाकर नमाज़ पढ़ लें। उन्होंने मुसलमानों से यही अपील की कि सड़कों पर नमाज़ न पढ़ी जाए और क़ानून व्यवस्था को बनाए रखने हेतु प्रशासन के निर्देशों का पालन किया जाये।

परन्तु इसी सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ योगी का भी एक बयान चर्चा में आया। उन्होंने सड़कों पर नमाज़ अदा करने के विरुद्ध मुसलमानों को प्रशासन द्वारा दी गई चेतावनी का पूरी तरह बचाव किया और कहा कि -‘सड़क चलने के लिए होती है और जो लोग बोल रहे हैं उन्हें हिंदुओं से अनुशासन सीखना चाहिए। कुल 66 करोड़ लोग प्रयागराज में आए, कहीं कोई लूटपाट नहीं, कहीं कोई आगज़नी नहीं, कहीं कोई छेड़ख़ानी नहीं, कहीं कोई तोड़फोड़ नहीं, कहीं कोई अपहरण नहीं, यह होता है अनुशासन… यह है धार्मिक अनुशासन। मुख्यमंत्री ने मेरठ में सड़कों पर नमाज़ अदा करने के विरुद्ध प्रशासन द्वारा दी गई चेतावनी पर उठे विवाद के बारे में पूछे जाने पर सरकार के क़दम का बचाव करते हुए कहा कि इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि महाकुंभ में इस बार श्रद्धालुओं की रिकार्ड उपस्थित रही। प्रशासनिक लापरवाहियों के चलते भगदड़,आगज़नी व यातायात जाम जैसी कुछ घटनाएं भी हुईं। परन्तु निश्चित रूप से इन सबके बावजूद बहुसंख्य शांतिप्रिय हिन्दू श्रद्धालु देश विदेश से आये और संगम में स्नान कर वापस चले गये। निश्चित रूप से इनसे अनुशासन की सीख लेने की ज़रुरत है। परन्तु इसी कुंभ में चंद सत्ता संरक्षित लोग ऐसे भी थे जो खुले आम लोगों को आत्मरक्षा के नाम पर शस्त्र वितरित कर रहे थे। इसी महाकुंभ में कुछ लोग ऐसे भी थे जो संविधान का मज़ाक़ उड़ाते हुये हिन्दू राष्ट्र स्थापना की बातें कर रहे थे,इसी महाकुंभ में कुछ ऐसे भी थे जो ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः,प्राणियों में सद्भावना और विश्व का कल्याण जैसे मूलभूत सनातनी सिद्धांतों की खिल्ली उड़ाते हुये धर्म विशेष के लोगों के मेले से बहिष्कार की बात कर रहे थे। कई संतरूपी वेषधारियों ने सत्ता के संरक्षण में केवल धर्म विशेष के विरुद्ध नफ़रत फैलाने जैसा कारोबार फैला रखा था। कुछ लोग ऐसे भी थे जो यातायात की असुविधा से खिन्न होकर बड़े पैमाने पर ट्रेंस में तोड़फोड़ कर रहे थे। परन्तु वास्तव में धन्य हैं वह करोड़ों बहुसंख्य अनुशासित देशभक्त कुंभ श्रद्धालु जिन्होंने इनके ज़हरीले व देश व संविधान विरोधी आवाहनों को धत्ता बताते हुये मेले में शांति बनाये राखी। निश्चित रूप से देश व दुनिया को ऐसे मानवतावादी हिन्दुओं से सीख लेने की ज़रुरत है।

सच पूछिये तो इसी महाकुंभ के दौरान प्रशासनिक ग़लतियों के चलते जब इन्हीं श्रद्धालुओं पर भगदड़ जैसा संकट मंडराया तो इन्होंने प्रयागराज के सैकड़ों मस्जिदों,इमामबाड़ों,दरगाहों व मुस्लिम शैक्षणिक संस्थाओं में पनाह लेने के बाद वहां के मुस्लिम समाज के प्रति अपने प्रेम,विश्वास व सद्भावना के जो भाव सोशल मीडिया पर व्यक्त किये वही भाव देश के बहुसंख्य भारतीयों के भाव हैं। धर्मनिरपेक्षता से नफ़रत करने वालों को किसी विपक्षी नेता से नहीं बल्कि स्वयं अपने ही वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपई के बयानों से सीख लेनी चाहिये। वाजपेई का कहना था कि ”अगर भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं है, तो भारत बिल्कुल भारत नहीं है। ” यह भी वाजपेयी के ही शब्द थे कि “भारत भाजपा या आरएसएस की वजह से धर्मनिरपेक्ष नहीं है।” बल्कि “भारत धर्मनिरपेक्ष है क्योंकि इसकी 82% आबादी हिंदू है। यह हिंदुओं की विचार प्रक्रिया और दर्शन है जो इस देश को धर्मनिरपेक्ष बनाता है। हिंदू किसी एक किताब या एक पैग़ंबर से बंधे नहीं हैं। यहाँ तक कि नास्तिक भी हिंदू है। हिंदू धर्म सभी को गले लगाता है।” नफ़रत के सौदागरों के लिये ही वाजपेई ने यह भी कहा था कि “अगर भारत में कोई हिंदू अपने बहुसंख्यकों के आधार पर अपने लिए ज़्यादा अधिकार मांगता है और अल्पसंख्यक समुदाय के लिए कम अधिकार मांगता है, तो मैं ऐसे व्यवहार को सांप्रदायिक कहूँगा।” इसलिये निःसंदेह देश के धर्मनिरपेक्ष हिन्दुओं से ‘नफ़रत के सौदागरों ‘ को सीख लेनी चाहिये।