अजेश कुमार
वर्ष 2024 में होने वाले आम चुनाव को करीब छः महीने बाकी है। लेकिन इसे लेकर सत्ता से बाहर रह रही राजनीतिेक पार्टियों में बेचैनी देखी जा रही है। सत्ता में वापसी के लिए इन विपक्षी राजनीतिक पार्टियांे ने केन्द्र में राज कर रही भाजपा नीत गठबंधन को हटाने के लिए इंडिया ( इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लुसिव अलायंस ) द्नाम से नया गठबंधन बनाया है। कांग्रेस नीत यूपीए (यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस ) की छतरी से अलग राइजिंग हो रहे इस नए गठबंधन का प्रयास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शाइनिंग इंडिया को कमजोर कर सत्ता पाना है। विपक्षी गठबंधन इंडिया ने वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए देश की जनता के समक्ष एक वैकल्पिक राजनीतिक,सामाजिक और आर्थिक एजेंडा पेश करने का ऐलान किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शाइनिंग इंडिया के मुकाबले राइजिंग ‘इंडिया’ गठबंधन को अगर देखा जाए तो 26 दलों के इस गठबंधन में 22 दल परिवारवादी हैं,जो अपने ही दल में लोकतंत्र के मानकों को न अपना कर देश में लोकतंत्र बचाने का दृढ़ संकल्प ले रहे हैं। ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल इन दलों ने लोकतंत्र बचाने का संकल्प तो ले लिया है,लेकिन सवाल यह है कि लोकतंत्र खतरे में है या इनकी पारिवारिक राजनीति ? अगर गौर किया जाए तो लोकतांत्रिक तरीके से आगे बढ़ रही भाजपा ने साधारण तरीके से भाजपा कार्यकर्ता रहे नरेन्द्र मोदी को पहले मुख्यमंत्री और वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनाकर लोकतंत्र का एक अनूठा उदाहरण पेश किया है। लोकतांत्रिक तरीके से आगे बढ़ी भाजपा के मुकाबले ‘इंडिया’ के सबसे बड़े दल कांग्रेस को देखा जाए तो उसमें लोकतंत्र को लेकर कितनी चिंता है ? परिवारवाद से न निकल पाने के कारण ही इस दल से निकल कर कई राजनेता दूसरे दल में शामिल हो गए या स्वयं नए दल का गठन कर लिया। कई ने तो कांग्रेस को पारिवारिक पार्टी कहकर भाजपा का ही दामन थाम लिया। शरद पवार और ज्योतिरादित्य सिंधिया इसके प्रमाण हैं। लोकतंत्र को बचाने का दावा करने वाले दूसरे क्षेत्रीय दलों में भी कमोवेश यही स्थिति है। अवसरवाद और उपयोगितावाद के अनुरूप सत्ता सुख भोगने के आदी अवसरवादी राजनेता मौके की नजाकत को भांपकर उचित ठिकाने की तलाश में रहते हैं। चुनाव के आसपास ऐसी गतिविधियां काफी तेज हो जाती है। सत्ता को बरकरार रखने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी जहां अपने कुनबे को मजबूत करना चाहती है वहीं सत्ता से दूर रहने वाली विपक्षी पार्टियां ऐन केन प्रकारेण सत्ता हासिल करने के लिए बेमेल गठबंधन करने से नहीं चूकतीं। ‘इंडिया’ का उदय भी इसी मकसद से हुआ लगता है। देश का मतदाता इस सारी कसरत को बड़ी ही बारीकी से देख और समझ रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर पटना में 16 दलों की कसरत बेंगलुरू तक आते-आते 26 दल तक आ गई है। नीतीश कुमार ने राजद जैसी परिवारवादी पार्टी से ‘पंजा’ लड़ाने की बजाय हाथ ही मिला लिया। सत्ता पाने या अपना अस्तित्व बचाने के लिए छोटे-बड़े दल अपने-अपने राजनीतिक समीकरण को सही रखने के लिए गठबंधन का हिस्सा बन रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में बसपा व कांग्रेस से गठबंधन कर सरकार बना चुकी और बाद में दरकिनार हुई सपा प्रमुख अखिलेश यादव भाजपा से दो-दो हाथ करने के लिए ‘Ikats’का सहारा चाह रहे हैं। उत्तर प्रदेश की ही एक और परिवारवादी पार्टी रालोद प्रमुख जयंत चैधरी भी सत्ता सुख पाने को बेताब हैं। यही वजह रही कि जयंत चैधरी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को सहारा देने की बजाय राइजिंग ‘इंडिया’ का हिस्सा बन गए। महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार बनाने के लिए राजनीतिक दलों में की गई तोड़-फोड़ का ही नतीजा रहा कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से टूट कर अलग हुए गुट के नेता अजित पवार स्वयं और अपने लोगों को मनचाहे विभाग का मंत्री बनाने में कामयाब रहे। महाराष्ट्र में अजित पवार और भाजपा के बीच पूर्व में जिस तरह की बयानबाजी चल रही थी उसको देखने के बाद अजित का एकाएक हृदय परिवर्तन क्यों हुआ ? इसे भाजपा सहित मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अच्छी तरह से जानते है। महाराष्ट्र में घटित इस घटनाक्रम को प्रदेश का मतदाता भी अच्छी तरह समझ रहा है। लेकिन देखा जाए तो महाराष्ट्र के इस घटानाक्रम से लोकतंत्र को नुकसान हुआ है। सत्ता सुख के लिए गठबंधन की यह प्रक्रिया विपक्षी दलों तक ही सीमित नहीं रहता। सत्ता बचाने के लिए सत्तारूढ़ दल भी गठबंधन का ही सहारा लेता है। यही कारण है कि विपक्षी दलों की बेंगलुरू में हुई रणनीतिक बैठक के बाद केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन का हिस्सा रहे 38 दलों के साथ बैठक कर अपना शक्ति प्रदर्शन कर संदेश दिया कि वे भी 2024 के लिए तैयार हैं। भाजपा ने भी एनडीए का कुनबा बढ़ाने के लिए जीतनराम मांझी और ओम प्रकाश राजभर के अलावा आंध्र प्रदेश की एक क्षेत्रीय पार्टी को अपने कुनबे में शामिल कर लिया। विपक्षी दलों की रणनीति को भांपकर भाजपा भी सत्ता को बरकरार रखने के लिए बेमेल समझौते कर रही है और अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं की उपेक्षा कर बाहरी मौकापरस्तों को उपकृत कर रही है। मिशन-2024 में सफलता हासिल करने के लिए ‘इंडिया’ में शामिल दलों का लक्ष्य किसी भी तरह से भाजपा को शिकस्त देना है। विजयश्री हासिल करने के लिए राइजिंग ‘इंडिया’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘ष्शाइनिंग इंडिया’ को कमजोर करना चाह रही है। ‘इंडिया’ की गठबंधन राजनीति पर नजर रख रहे राजनीतिक विशलेषकों का मानना है कि नरेन्द्र मोदी की शाइनिंग को कमजोर करना विपक्षी दलों के लिए आसान नहीं है। ‘इंडिया’ नीत गठबंधन दलों की निगाह 2024 के लोकसभा चुनाव पर है। लेकिन इसके पहले चार राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं जिनमें विपक्षी दलों में ही समझौते को लेकर घमासान हो सकता है। अपना जनाधार बढ़ाने का प्रयास कर रही ‘आप’ सहित अन्य क्षेत्रीय पार्टियां सीट बंटवारे का पेंच फंसा सकती हैं। वर्ष 2014 में केन्द्र में भाजपा नीत सरकार के गठन के बाद से ही विपक्ष का बिखराव जगजाहिर है। आपसी सामंजस्य न होने से ही वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ विपक्षी दलों का एकजुट होना और मिशन-2024 को पूरा करना आसान नहीं है। एनडीए के प्रधानमंत्री के चेहरे नरेन्द्र मोदी के मुकाबले विपक्ष के प्रधानमंत्री का चेहरा अभी तक सामने नहीं आया है। कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते सबसे अधिक सीटें चाहेगी। कांग्रेस को देश के उत्तर प्रदेश सहित करीब दस राज्यों में अपने लिए सम्मानजनक सीटें हासिल करने के लिए क्षेत्रीय दलों से जरूरत से ज्यादा समझौता करना पड़ेगा।
लोकसभा चुनाव से पहले चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी सीटों का बंटवारा मुद्दा बन सकता है। चार राज्यों के चुनाव में अगर सीटों का बंटवारा हो भी जाता है तो भी मिशन-2024 को सफल बनाने में सीटों के बंटवारे का पेंच विपक्षी दलों बिशेषकर कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा। 26 विपक्षी दलों के गठबंधन के लिए बेंगलुरू में हुए विचार-विमर्श में भी मत भिन्नता स्पष्ट दिखलाई पड़ रही है। उत्तर प्रदेश,बिहार,महाराष्ट्र और दिल्ली में जो परिस्थियां हैं,उससे सीटों का बंटवारा मुद्दा बन सकता है। ऐसे में विपक्षी दलों के गठबंधन से उदित ‘इंडिया’ में घमासान हो सकता है। यदि विपक्षी दलों में तालमेल सही तरीके से हो जाता है तो मजबूत विपक्ष भाजपा नीत एनडीए को अच्छी टक्कर दे सकता है वरना 2024 से पहले ही lsfVax होने वाला ‘इंडिया’ अस्ताचल (lsfVax) में जा सकता है। फिलहाल,वर्ष-2024 के चुनाव में बहुत कुछ जनता पर निर्भर होगा कि वह चुनाव में एनडीए को मौका देकर समृद्ध भारत को मौका देगी या ‘इंडिया’ को राइज कर आजमाएगी या फिर कोई और फैसला करेगी ?