राजस्थान के व्यापारियों के साथ एमपी के सेंधवा पहुंचा मिश्रित अन्नकूट

Mixed Annakut reached Sendhwa in MP with traders from Rajasthan

नरेंद्र तिवारी

दीपावली का जगमगाता पर्व आनंद और उल्लास का अवसर है। यह उत्सव अपने आप में नवीनता समाहित किये हुए है। इस उत्सव के पूर्व एक और जहां भवनों, घरों, दुकानों, मकानों, कार्यालयों में रंगाई, पुताई की जाती है। इन स्थानों को दीपको की राशनी से सजाया जाता है। भारत के इस सांस्कृतिक उत्सव में बाजारों में सज़ावट के सामानों के साथ स्वादिष्ट मिठाईयों और पकवानों से बाजार भरे रहते है, घर पर भी तरह तरह के व्यंजन बनाए जाते है। दीपावली के इस उत्सव में रिश्तेदारों, निकट संबंधियों को खुशहाली की कामनाओं के साथ मिठाईयों का आदान प्रदान किया जाता है। पांच दिवसीय दीपावली उत्सव के चौथे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस पूजा से जुडी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण द्वारा ही सर्व प्रथम गोवर्धन पूजा आरम्भ करवाई गयी थी। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर ब्रज वासियों को इंद्रदेव के क्रोध से बचाया था। यही कारण है की गोवर्धन पूजा में गिरिराज के साथ कृष्ण जी के पूजन का भी विधान है। गोवर्धन पूजा के बाद अन्नकूट प्रसादी के वितरण का महत्व है। भारत वर्ष में अन्नकूट महोत्सव का आयोजन एक सप्ताह से पंद्रह दिवस तक चलता रहता है। आमतौर पर अधिकांश स्थानों पर छप्पन भोग की प्रसादी अलग अलग या कुछ स्थानों पर मिश्रित सब्जी बनाकर प्रसादी के रूप में वितरित की जाती है। जबकि एमपी की सीमा पर स्थित व्यवसायिक नगर सेंधवा में मिश्रित अन्नकूट का प्रचलन 50 बरसो से अधिक समय से चला आ रहा है। दीपावली उत्सव में गोवर्धन पूजा के बाद से अलग अलग स्थानों पर इस अन्नकूट प्रसादी का वितरण आरम्भ होता है। इसे लेकर समाज बहुत उत्साहित रहता है।

अन्नकूट बनाने की कला में माहरत इस स्वादिष्ट एवं पोषक व्यंजन के लगातार बनाते रहने से हासिल होती है। राजस्थान के भीलवाड़ा के स्थाई निवासी कान्हा हलवाई इन दिनों एमपी के सीमावर्ती शहर सेंधवा में हलवाई का कार्य कर रहे है, उन्होंने बताया की राजस्थान के भीलवाड़ा एवं जयपुर में बरसों से अन्नकूट 56 भोगो को मिलाकर बनाया जाता है। इसी प्रकार का प्रचलन एमपी के सेंधवा में बरसो से चल रहा है। यहां अन्नकूट प्रसादी बड़े चाव से ग्रहण की जाती है। यह इतनी प्रचलित हो गयी है की शहर में सावन माह में आयोजित भागवत कथाओं में गोवर्धन पूजा के प्रसंग के दिन यह प्रसादी बनाना अनिवार्य हो गया है। स्थानीय गणेश मंडलो द्वारा भी गणेश उत्सव के दौरान इस प्रसादी का वितरण किया जाता है।

कान्हा हलवाई की मानें तो एमपी के इंदौर, भोपाल, जबलपुर, रतलाम सहित छोटे शहरों में अन्नकूट प्रसादी 56 प्रकार के भोग ईश्वर को समर्पित कर अलग-अलग वितरित किये जातें है, कुछेक स्थानों पर कच्ची सब्जियों को मिलाकर पकाया जाता है, जिसे पूरी के साथ खाया जाता है मिठाईयों को अलग से परोसा जाता है। बतौर कान्हा हलवाई राजस्थान और एमपी के सेंधवा में मौसमी सब्जियों, फलों, मिठाईयों, पूरी, पकवानों को मिलाकर उबाला जाता है। उसके बाद तैयार होती है अन्नकूट प्रसादी जो दीपावली में गोवर्धन पूजा के बाद निजी एवं सामूहिक तौर पर आयोजन के माध्यम से वितरित की जाती है। अन्नकूट प्रसादी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रकृति से जुड़ा है। यह सर्दी के मौसम की शुरुवात में उपलब्ध मौसमी सब्जियों, फलों, एवं अनाजों का एक पौष्टीक मिश्रण है, जो शरीर को सम्पूर्ण पोषण प्रदान करता है। इसमें मौजूद विभिन्न पोषक जैसे फाइबर, खनीज और विटामिन बदलती जलवायु के लिए शरीर को तैयार करते है।

प्रसिद्ध सामजिक सेवी, अग्रवाल समाज के वरिष्ठ पिरचंद मित्तल सेंधवा ने अन्नकूट की मिश्रित प्रसादी के बारे में बताते हुए कहा ‘उनकी स्मृति के अनुसार शहर में प्रथम बार सर्वेश्वर जिनिंग फैक्ट्री जिसके मालिक भागीरथ भराड़िया एवं उनके साथीगण थै। यह राजस्थान से ही एमपी के सीमावर्ती शहर सेंधवा व्यवसाय हेतु आए थै, धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत भागीरथ भराड़िया जी भजन कीर्तन के बहुत शौकीन होकर उन्होंने 1965 के दीपावली उत्सव में गोवर्धन पूजा के पश्चात अन्नकूट प्रसादी का आयोजन दीपावली मिलन के तौर पर किया था। यह शहर में अन्नकूट प्रसादी वितरण का प्रथम आयोजन था।’ बकौल पिरचंद मित्तल उसी के बाद धीरे धीरे निजी तौर पर फिर मंदिरों के माध्यम से अन्नकूट प्रसादी का आयोजन किया जाने लगा। गोवर्धन पूजा के बाद शहर के बड़े धार्मिक स्थलों पर अन्नकूट प्रसादी का आयोजन किया जाता है। इस मिश्रित अन्नकूट प्रसादी का जायका जो यहां बनता है और कहीं ढूढ़ने पर नहीं मिलता, एक बार जो इस प्रसादी को ग्रहण करता है। वह इसके स्वाद का दीवाना हो जाता है। ऐसा जायका मुंबई दिल्ली की फाइव स्टार रेस्टोरेंट में भी मिलना मुश्किल है शायद अन्नकूट तो उनकी सूची में शामिल ही न हो।
सेंधवा से विवाह के बाद मुंबई गयी प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य ‘अन्नू श्री अनीता अग्रवाल’ ने बताया की सेंधवा का मिश्रित अन्नकूट उन्हें खोजने पर भी नहीं मिला उनका कहना है की मथुरा वृदावन में भी उन्होंने सेंधवा जैसा मिश्रित अन्नकूट खोजने का प्रयास किया किंतु नहीं खोज पाई। मुंबई मै तो अन्नकूट क्या होता है समझा पाना ही सम्भव नहीं हुआ। सेंधवा जहां दीपावली उत्सव के बाद अन्नकूट प्रसादी का आयोजन होता है। दीपावली के बाद इस अन्नकूट की याद आती है, कोशिश रहती है इस प्रसादी को सेवन किया जाए।

गोवर्धन पूजा के बाद मिश्रित अन्नकूट प्रसादी राजस्थान के भीलवाड़ा, जयपुर और एमपी के सेंधवा में ही गोवर्धन पूजा के बाद सार्वजनिक आयोजन के माध्यम से में निर्मित होता है।

जैसा की वरिष्ठ समाज सेवी पिरचंद मित्तल ने बताया 1965 में सबसे पहले सर्वेश्वर जिनिंग में अन्नकूट प्रसादी का आयोजन हुआ था। उसके बाद सेंधवा में मिश्रित अन्नकूट का प्रचलन बढ़ता ही गया। यह राजस्थान से मारवाड़ी व्यवसाईयों के साथ एमपी के सेंधवा शहर में आया और स्थाई रूप से सेंधवा के स्वाद में शामिल हो गया। गोवर्धन पूजा के बाद इस शहर के बहुत से लोग एक सप्ताह तक घर भोजन नहीं करते धार्मिक स्थलों पर अन्नकूट प्रसादी के वितरण से ही सप्ताह भर तक तक इस प्रसादी का आनंद लेते है। मिश्रित अन्नकूट का जायका महंगे भोजन और पकवानों पर भारी है। इस जायके की प्रसिद्धि के चलते अब स्थानीय हलवाई इसे दीपावली के दौरान बनाकर बेचते है। गोवर्धन पूजा के बाद एमपी के सेंधवा शहर में मिश्रित अन्नकूट प्रसादी का सिलसिला आरम्भ होगा जो सभी धार्मिक स्थलों में अलग अलग दिवस आयोजित होता है। भारत देश के विभिन्न प्रांतों के अपने जायके है, राजस्थान के जयपुर, भीलवाड़ा और एमपी के सेंधवा की अन्नकूट प्रसादी का जायका भी मजेदार स्वाद से भरपूर है जो एक बार जुबान पर चढ़ गया तो बरसों याद रहता है।