लोकसभा में जी राम जी बिल पेश-संसद में घमासान मचा – विपक्षी पार्टियों द्वारा इस बिल का पुरजोर विरोध
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था दशकों से संरचनात्मक चुनौतियों, बेरोज़गारी अस्थायी आजीविका और कृषि-आधारित जोखिमों से जूझती रही है। वर्ष 2005 में लागू किया गया महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) इन चुनौतियों के विरुद्ध एक ऐतिहासिक हस्तक्षेप था,जिसने पहली बार ग्रामीण नागरिकों को रोज़गार का कानूनी अधिकार प्रदान किया। अब संसद में पेश किया गया ‘विकसित भारत रोज़गार और आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण) (वीबी-जी रामजी) बिल न केवल इस कानून को समाप्त करता है, बल्कि ग्रामीण रोज़गार की अवधारणा को एक नए वैधानिक ढांचे में पुनर्परिभाषित करने का दावा करता है। यही कारण है कि यह विधेयक नीतिगत से अधिक राजनीतिक, वैचारिक और सामाजिक बहस का केंद्र बन गया है।
यदि हम इसको संवैधानिक दृष्टिकोण से देखेंगे तो,मनरेगा ने अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) और अनुच्छेद 39 (राज्य के नीति निर्देशक तत्व) की भावना को व्यावहारिक रूप दिया था। यदि नया कानून अधिकार आधारित नहीं रहता,तो यह प्रश्न उठेगा कि क्या यह संविधान की सामाजिक न्याय की भावना से पीछे हटना है। यह मुद्दा भविष्य में न्यायिक समीक्षा का विषय भी बन सकता है।
साथियों बात अगर हम वीबी-जी रामजी बिल क्या है,एक नया कानूनी ढांचा इसको समझने की करें तो,वीबी-जी रामजी बिल का पूरा नाम विकसित भारतरोज़गार और आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण) बिल है। सरकार के अनुसार यह कानून विकसित भारत 2047 के राष्ट्रीय विज़न के अनुरूप तैयार किया गया है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण भारत को केवल अस्थायी रोज़गार नहीं, बल्कि स्थायी आजीविका, कौशल -आधारित रोजगार और आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में ले जाना है। इस बिल के तहत ग्रामीण परिवारों को गारंटी वाले काम के दिनों की संख्या 100 से बढ़ाकर 125 करने का प्रस्ताव है, जिससे ग्रामीण श्रमिकों की वार्षिक आय में वृद्धि का दावा किया जा रहा है।
मनरेगा को समाप्त कर नया कानून ऐतिहासिक बदलाव,यह बिल संसद में प्रस्तुत होते ही इसलिए विवादों में आ गया क्योंकि यह 2005 के मनरेगा अधिनियम को पूरी तरह समाप्त कर देता है। मनरेगा केवल एक योजना नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा और अधिकार आधारित कानून के रूप में स्थापित रहा है। इसमें काम का अधिकार, समय पर काम न मिलने पर बेरोज़गारी भत्ता, और पारदर्शिता के लिए सामाजिक अंकेक्षण जैसे प्रावधान शामिल थे। वीबी-जी रामजी बिल इन प्रावधानों को किस हद तक बनाए रखता है या बदलता है,यही वर्तमान बहस का केंद्र है।गारंटी वाले कार्यदिवस -100 से 125 दिन का प्रस्ताव,सरकार का कहना है कि 125 दिनों की रोज़गार गारंटी ग्रामीण परिवारों को अधिक आर्थिक सुरक्षा प्रदान करेगी। यह कदम विशेष रूप से उन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण माना जा रहा है जहाँ कृषि मौसम पर निर्भरता अधिक है और गैर-कृषि रोजगार के अवसर सीमित हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का तर्क है कि दिनों की संख्या बढ़ाना तभी सार्थक होगा जब भुगतान समय पर हो, काम की गुणवत्ता सुनिश्चित हो और बजटीय आवंटन पर्याप्त हो।राज्यों पर बढ़ेगा वित्तीय बोझ- वीबी -जी रामजी बिल का एक बड़ा संरचनात्मक बदलाव यह है कि इसमें राज्य सरकारों की वित्तीय जिम्मेदारी बढ़ाई गई है। मनरेगा में केंद्र सरकार की भागीदारी अपेक्षाकृत अधिक थी, जबकि नए बिल में राज्यों से अधिक खर्च की अपेक्षा की जा रही है। इससे संघीय ढांचे में असंतुलन की आशंका जताई जा रही है, विशेषकर उन राज्यों में जिनकी वित्तीय स्थिति पहले से ही कमजोर है।रोज़गार से आजीविका की ओर नीति का झुकाव-सरकार का दावा है कि यह बिल केवल ‘काम उपलब्ध कराने’ तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी आजीविका के साधनों को विकसित करेगा। इसके अंतर्गत कौशल विकास,स्थानीयसंसाधनों पर आधारित रोजगार, ग्रामीण उद्यमिता और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देने की बात कही गई है। यह दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनाई गई सस्टेनेबल लाइवलीहुड अप्रोच से मेल खाता है।
साथियों बात अगर हम मनरेगा बनाम वीबी-जी रामजी,मूलभूत अंतर को समझने की करें तो, मनरेगा एक अधिकार आधारित कानून था, जिसमें ‘काम मांगने’ का अधिकार स्पष्ट था। इसके विपरीत, वीबी-जी रामजी बिल को लेकर यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि यह अधिकार आधारित दृष्टिकोण से हटकर मिशन मोड में लागू होने वाली योजना बन सकता है। यदि ऐसा हुआ, तो ग्रामीण श्रमिकों की कानूनी सुरक्षा कमजोर हो सकती है।काम का स्वरूप- अकुशल श्रम से आजीविका तकमनरेगा मुख्यत-अकुशल श्रम पर केंद्रित रहा है,जैसे जल संरक्षण सड़क निर्माण, तालाब खुदाई आदि। इसके विपरीत, वीबी-जी रामजी बिल का दावा है कि वह रोज़गार से आगे बढ़कर आजीविका पर ध्यान देगा। इसमें कौशल विकास, स्थानीय संसाधनों पर आधारित रोजगार और ग्रामीण उद्यमिता को शामिल करने की बात कही गई है। यह बदलाव सैद्धांतिक रूप से सकारात्मक है, लेकिन यह तभी सफल होगा जब जमीनी स्तर पर पर्याप्त प्रशिक्षण और बाज़ार से जुड़ाव सुनिश्चित किया जाए।वित्तीय संरचना-केंद्र बनाम राज्य मनरेगा में वित्तीय भार का बड़ा हिस्सा केंद्र सरकार उठाती थी,जिससे राज्यों को अपेक्षाकृत राहत मिलती थी। नए बिल में राज्य सरकारों की वित्तीय हिस्सेदारी बढ़ाई जा रही है। इससे संघीय ढांचे में असंतुलन की आशंका जताई जा रही है, विशेषकर गरीब और पिछड़े राज्यों के लिए। यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि क्या सभी राज्य इस बढ़े हुए बोझ को वहन करने में सक्षम होंगे।पारदर्शिता और जवाबदेही,मनरेगा की एक बड़ी ताकत उसका सामाजिक अंकेक्षण तंत्र था, जिसने इसे अपेक्षाकृत पारदर्शी बनाया।वीबी-जी रामजी बिल में इस तरह के स्वतंत्र सामाजिक अंकेक्षण की व्यवस्था कितनी मज़बूत होगी, यह अभी स्पष्ट नहीं है। यदि जवाबदेही तंत्र कमजोर हुआ,तो भ्रष्टाचार और असमान क्रियान्वयन की आशंका बढ़ सकती है राजनीतिक अर्थव्यवस्था-मनरेगा ने ग्रामीण मजदूरों को न्यूनतम सुरक्षा देकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मांग को बनाए रखा। नया कानून यदि इस सुरक्षा को कमजोर करता है, तो इसका प्रभाव केवल मजदूरों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। सरकार का दावा है कि आजीविका -केंद्रित मॉडल लंबे समय में अधिक टिकाऊ होगा, लेकिन अल्पकालिक संक्रमण चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
साथियों बात अगर हम महात्मा गांधी का नाम हटाना- प्रतीकात्मक या वैचारिक निर्णय? इसको समझने की करें तो,विधेयक को लेकर सबसे तीखी राजनीतिक प्रतिक्रिया महात्मा गांधी के नाम को हटाने पर आई है। विपक्ष का तर्क है कि गांधी केवल एक नाम नहीं, बल्कि ग्रामीण विकास, श्रम की गरिमा और सामाजिक न्याय के प्रतीक हैं। प्रियंका गांधी सहित कई विपक्षी नेताओं ने सवाल उठाया है कि नाम बदलने से ज़मीनी समस्याओं का समाधान कैसे होगा,और इससे सरकारी धन का अनावश्यक खर्च क्यों किया जा रहा है।प्रियंका गांधी का बयान,विपक्ष की चिंता का स्वर,प्रियंका गांधी ने इस बिल पर सवाल उठाते हुए कहा कि महात्मा गांधी का नाम न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में सम्मान का प्रतीक है। उनका कहना है कि जब योजनाओं के नाम बदले जाते हैं, तो सरकारी दफ्तरों, दस्तावेज़ों और स्टेशनरी में बदलाव पर भारी खर्च आता है,जिसका सीधा लाभ जनता को नहीं मिलता। उन्होंने इसे वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने वाला कदम बताया।विपक्ष की आशंकाएँ- अधिकार कमजोर होने का डर-विपक्ष का मुख्य आरोप है कि मनरेगा को खत्म करना गरीबों के अधिकारों को कमजोर करने जैसा है। उनका कहना है कि यदि नया कानून अधिकार आधारित न होकर योजना आधारित हुआ, तो भविष्य में सरकारें इसे आसानी से बदल या सीमित कर सकती हैं।संसदीय बहस और संभावित हंगामा-इन तमाम मुद्दों के चलते संसद में इस बिल पर हंगामेदार बहस की संभावना जताई जा रही है। यह बहस केवल रोज़गार नीति तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि संविधान, संघीय ढांचा, सामाजिक न्याय और गांधीवादी मूल्यों तक जाएगी।
साथियों बात ग्राम सरकार का पक्ष,नई गति और विकसित भारत का लक्ष्य इसको समझने की करें तो,केंद्र सरकार का कहना है कि यह बिल ग्रामीण भारत को ‘नई गति’ देगा और 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य में अहम भूमिका निभाएगा। सरकार के अनुसार, मनरेगा की सीमाओं को पहचानते हुए यह नया कानून अधिक आधुनिक, परिणाम- उन्मुख और दीर्घकालिक समाधान प्रस्तुत करता है।
साथियों बात अगर हम अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य -रोजगार गारंटी की वैश्विक प्रासंगिकता इसको समझने की करें तो विश्व स्तर पर रोजगार गारंटी जैसे कार्यक्रमों को सामाजिक सुरक्षा के महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में देखा जाता है। भारत का यह नया प्रयोग अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नज़र में भी रहेगा कि क्या यह अधिकार आधारित मॉडल से हटकर भी समान या बेहतर परिणाम दे सकता है।’दुनियाँ के कई देशों में रोजगार गारंटी या सार्वजनिक कार्य कार्यक्रम लागू हैं,लेकिन भारत का मनरेगा मॉडल अधिकार आधारित होने के कारण विशिष्ट रहा है। वीबी-जी रामजी बिल यदि अधिकार से हटकर मिशन मॉडल अपनाता है, तो भारत एक अलग वैश्विक प्रयोग की ओर बढ़ेगा, जिसकी सफलता या विफलता पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नज़र रहेगी।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे क़ि सुधार यापुनर्परिभाषा ?,वीबी-जी रामजी बिल निस्संदेह ग्रामीण रोजगार नीति में एक बड़ा बदलाव है। यह सवाल अभी खुला है कि क्या यह बदलाव ग्रामीण गरीबों के जीवन में वास्तविक सुधार लाएगा या यह केवल एक वैचारिक और प्रतीकात्मक पुनर्परिभाषा बनकर रह जाएगा।इसका उत्तर विधेयक के अंतिम स्वरूप, क्रियान्वयन की पारदर्शिता और राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करेगा।





