
अशोक भाटिया
पिछले 2 हफ्तों से देश में राहुल गांधी की वोटर्स अधिकार यात्रा को लेकर को लेकर बहुत चर्चे थे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज बिहार विधानसभा चुनावों की दिशा ही मोड़ दी है। मोदी ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद ) और कांग्रेस द्वारा अपनी स्वर्गीय मां हीराबेन मोदी के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणियों को एक शक्तिशाली भावनात्मक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का संकेत दे दिया है। मां की गाली के नैरेटिव को बिहार की सांस्कृतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए मातृ-सम्मान से जोड़कर मोदी ने मतदाताओं को प्रभावित करने की रणनीति अपनाई है। आइये देखते हैं कि मोदी का यह भावनात्मक दांव बिहार विधानसभा चुनावों में कितना कारगर हो सकता है? दरअसल 27 अगस्त 2025 को दरभंगा के जाले में वोटर अधिकार यात्रा के दौरान कांग्रेस के एक स्थानीय नेता मो. नौशाद ने कथित तौर पर मंच से मोदी और उनकी मां के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की। इस वायरल वीडियो को भाजपा ने मां की गाली बताया था । भाजपा का कहना था कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव इस मंच पर मौजूद थे, पर इस टिप्पणी को रोकने की कोशिश नहीं की।
आगामी बिहार विधानसभा चुनावों में, राजद और कांग्रेस भाजपा, मोदी और नीतीश कुमार के गठबंधन के खिलाफ खड़े हैं। राहुल गांधी अपने पास मौजूद सभी रणनीति आजमा रहे हैं और इसलिए चुनाव जीतने के लिए दृढ़ हैं। राहुल संवैधानिक मानसिकता के साथ बोलते हैं और महसूस करते हैं कि जितना अधिक वह मोदी की आलोचना करते हैं, उतना ही लोग इसे बर्दाश्त करते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। लोगों को राजनीतिक विरोधियों की आलोचना करने का अधिकार है लेकिन किसी को भी व्यक्तियों और किसी की मां और परिवार की आलोचना करने का अधिकार नहीं है। मोदी ने अपने भाषण में तुरही बजाई, लेकिन राहुल को दोष क्यों दें? उनकी मां सोनिया गांधी ने भी मोदी की आलोचना की है, इसलिए राहुल और विपक्ष के लिए मोदी की दिवंगत मां की आलोचना करने का रिवाज है।
कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करते ही वह और भी आक्रामक हो गई है, क्योंकि कांग्रेसियों ने सोचा था कि यह देश उनका है और उन्होंने इसे हमेशा के लिए उन्हें सौंप दिया है। लेकिन मोदी ने कांग्रेस के इन विचारों को तोड़ना शुरू कर दिया और तभी से कांग्रेस की हथेलियों की आग सिर पर जाने लगी। भाजपा जो विपक्ष में भी थी, सरकार के कामकाज की आलोचना करती थी। लेकिन वह इतने निचले स्तर पर कभी नहीं गई। यहां तक कि नेहरू के समय में जब भारत चीन से हार गया था, राम मनोहर लोहिया नेहरू के बहुत आलोचक थे, लेकिन जनसंघ चुप रहा। एक स्थानीय कांग्रेस समर्थक मोहम्मद रिजवी ने मोदी की दिवंगत मां की आलोचना की और फिर मोदी का गुस्सा बढ़ गया। एक विपक्षी दल के रूप में, उनकी नीतियों की आलोचना करना ठीक है, लेकिन किसी के लिए भी उनकी दिवंगत मां की आलोचना करना उचित नहीं है। लेकिन कांग्रेस की ओर से किसी ने भी इसके लिए माफी नहीं मांगी है। यह राजनीतिक अहंकार है और यह राहुल है बल्कि पूरा गांधी परिवार भी है। राहुल ने बिहार विधानसभा चुनावों में बोलना बंद कर दिया है। उन्होंने कई बार आयोग की आलोचना की है और हर बार उन्हें आयोग द्वारा फटकार लगाई गई है। लेकिन वे इससे सीखेंगे। तो वीर सावरकर की आलोचना के दौरान भी ऐसा ही हुआ। राहुल खुद को राजकुमार मानता है और इसलिए वह सोचता है कि सभी लोग उसके गुलाम हैं। लेकिन 55 वर्षीय नेता अभी तक देश के किसी भी राज्य में शानदार सफलता हासिल नहीं कर पाए हैं। फिर भी, कांग्रेस के लोगों को लगता है कि राहुल कांग्रेस को अतीत की सफलता की ओर ले जाएंगे। लेकिन राहुल इस मामले में विफल रहे हैं। राजद हो या अखिलेश की समाजवादी पार्टी, ये सभी जानते तक नहीं हैं कि राजनीति में न्यूनतम नैतिकता बनाए रखनी है। राहुल ने हाल ही में बिहार में वोट चोरी के खिलाफ यात्रा निकाली, लेकिन उसे ठंडी प्रतिक्रिया मिली। राहुल को अपनी आलोचना के नतीजों को जानना चाहिए। विपक्ष ने ऐसे बात करना शुरू कर दिया है जैसे कोई संतुलन ही नहीं है, इसलिए जनता इन विपक्षी दलों खासकर राहुल और तेजस्वी को सबक नहीं सिखा पाएगी।
हमारी संस्कृति में कहा गया है कि मां सबसे ऊपर है। लेकिन राहुल, जिसे किसी भी भारतीय मूल्यों की चिंता नहीं है, मां के महत्व को क्या जानना चाहिए। राहुल, जो इतालवी संस्कृति में पले-बढ़े हैं, अपनी मां के महत्व को जानते हैं। राहुल सत्ता खोने से परेशान हैं और इसलिए वह इस तरह के आरोप लगा रहे हैं। वह हर उस राज्य में हार गए जहां उन्होंने यात्रा की। कांग्रेस को अब इन पराजयों के बारे में पता नहीं है। उन्होंने कहा, ‘राहुल को माफी मांगनी चाहिए। अब भी राहुल उसी सामंती मानसिकता के साथ मोदी पर आरोप लगा रहे हैं। उन्हें चौकीदार कहा जाना चाहिए और कभी-कभी राफेल जेट पर मोदी द्वारा उनकी आलोचना की जानी चाहिए, लेकिन यह जनत थे जिन्होंने उन्हें नकार दिया। राहुल और तेजस्वी बिहार विधानसभा चुनाव में हार का सामना कर रहे हैं, इसलिए वे मोदी की आलोचना कर रहे हैं और उनकी दिवंगत मां की आलोचना कर रहे हैं। लेकिन इसने विपक्ष को और भी उजागर कर दिया है। सभी को इस पर एक छाप रखनी चाहिए। क्योंकि चुनाव आते हैं और जाते हैं लेकिन शब्द बने रहते हैं।
बहरहाल बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भाजपा के लिए यह दांव नरेटिव सेट करने में कितना कारगर होगा, यह बिहार के मतदाता समीकरण, एनडीए की एकता, और विपक्ष की कमजोरियों पर निर्भर करता है। बिहार में मातृ-सम्मान गहरा सांस्कृतिक मूल्य है, खासकर छठ पूजा जैसे त्योहारों के संदर्भ में। मोदी ने कहा कि कांग्रेस और राजद ने मेरी मां को गाली दी, जो हर बिहारी मां का अपमान है। इसे छठी मैया से जोड़कर उन्होंने ग्रामीण और महिला मतदाताओं को लक्षित किया। सोशल मीडिया पर जनता का गुस्सा दिख रहा है। लोग इसे बिहार की संस्कृति का अपमान बता रहे हैं। यह नरेटिव OBC, EBC, और दलित समुदायों, जो एनडीए के वोट बैंक हैं, में सहानुभूति जगा सकता है। कांग्रेस की रक्षात्मक प्रतिक्रिया जैसे सुप्रिया श्रीनेत का कहना कि वीडियो नहीं देखा है या तेजस्वी की चुप्पी ने भाजपा को नरेटिव सेट करने में बढ़त दे सकती है।
मोदी का यह दांव न केवल मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश है, बल्कि एनडीए के सहयोगी दलों जनता दल (यूनाइटेड), लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) , और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को एकजुट करने का भी प्रयास है। पिछले दिनों कई बार देखा गया कि एनडीए के सहयोगी दल आपस में सिर फुटौव्वल के लिए तैयार थे।
चिराग पासवान , जेडीयू और हम के बीच खींचतान दिख रही थी। अभी सीटों बंटवारे को लेकर भी ठन सकती है। पर इन सब मुद्दों पर मोदी की मां को गाली भारी पड़ गई है। यह नरेटिव जेडीयू को भाजपा के साथ मजबूती से जोड़ता है। चिराग ने इसे बिहार की अस्मिता पर हमला बताया, जो पासवान और EBC समुदायों को प्रभावित करता है। उनकी युवा अपील और मोदी के साथ नजदीकी ने इस नरेटिव को EBC और दलित वोटरों तक पहुंचाया। चिराग की सक्रियता, जैसे विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेना ने LJP को एनडीए के भीतर मजबूत किया। जीतन राम मांझी ने इसे महागठबंधन की नैतिक हार करार दिया। जिससे दलित (मुसहर) समुदाय में भाजपा का समर्थन बढ़ेगा।
मोदी का यह दांव बिहार की सांस्कृतिक संवेदनशीलता विशेष रूप से मातृ-सम्मान से जुड़ा है । जाहिर है कि भाजपा की कोशिश है कि किसी भी तरह महिला मतदाताओं को प्रभावित किया जा सके।यह कोई गोपनीय तथ्य नहीं है कि बिहार में महिला मतदाताओं की भागीदारी हाल के वर्षों में बढ़ी है। 2020 के विधानसभा चुनाव में 59।7% महिलाओं ने मतदान किया, जो पुरुषों (57।5%) से अधिक था। यही कारण है कि सभी दलों का मुख्य फोकस महिला मतदाताओं पर ही है।
बिहार में मातृ-सम्मान गहरा सांस्कृतिक मूल्य है, खासकर छठ पूजा जैसे त्योहारों के संदर्भ में। भाजपा और एनडीए ने इस दांव को महिला वोटरों तक पहुंचाने के लिए कई कदम उठाए हैं। भाजपा महिला मोर्चा ने बिहार और झारखंड में विरोध मार्च निकाले, इसे नारी सम्मान से जोड़ा। नीतीश कुमार की जीविका दीदी योजना, जो 1.5 करोड़ महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों से जोड़ती है को मोदी ने इस नरेटिव के साथ जोड़ा। उन्होंने कहा, जीविका दीदियां बिहार की शक्ति हैं, और मां का अपमान उनकी ताकत को चुनौती देता है।