
विनोद कुमार सिंह
(स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार)
संसद का वर्तमान मानसून सत्र देश की राजनीतिक फिज़ा में एक बार फिर तीखे टकराव और गूंजते नारों की आहट लेकर आया है। यह सत्र ऐसे समय में आरंभ हुआ है जब देश के भीतर और सीमाओं के पार कई संवेदनशील घटनाएं घट चुकी हैं, जिन पर विपक्ष सरकार को जवाबदेह ठहराने की पूरी तैयारी में है। विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले और उसके बाद हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की पृष्ठभूमि में यह सत्र और भी अहम हो जाता है। सरकार से असहमत स्वर संसद भवन की दीवारों से टकरा रहे हैं और हर ओर यह कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार का सत्र हंगामों से भरा रहेगा।
सत्र से ठीक पहले रविवार को केंद्र सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी जिसमें लगभग सभी प्रमुख विपक्षी दलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस बैठक में जो माहौल उभरा, उससे यह स्पष्ट हो गया कि संसद का यह मानसून सत्र शांतिपूर्ण नहीं रहने वाला। विपक्ष ने पहलगाम आतंकी हमले में सुरक्षा चूक, ऑपरेशन सिंदूर में भारत की विदेश नीति की विफलता, बिहार में मतदाता सूची में हो रहे विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर चुनावी साजिश की आशंका और जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग को लेकर सरकार को चारों ओर से घेरने की योजना बनाई है।
यह भी उल्लेखनीय है कि हाल ही में विपक्ष के 24 दलों की एक बैठक हुई थी जिसमें उपरोक्त चार मुद्दों को संसद में उठाने का साझा निर्णय लिया गया। यह विपक्षी एकता इस बार संसद में ज्यादा आक्रामक और संगठित रूप में दिखाई दे सकती है। लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने साफ तौर पर कहा कि पहलगाम हमला और सीमाओं पर दोहरे मोर्चे पर आ रही चुनौतियों को सरकार हल्के में नहीं ले सकती। उन्होंने प्रधानमंत्री से अपेक्षा जताई कि वे इन मुद्दों पर स्वयं संसद के माध्यम से राष्ट्र को संबोधित करें और अपनी जवाबदेही स्पष्ट करें।
राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने भी संसद में इन मुद्दों को पुरज़ोर तरीके से उठाने की बात कही। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत-पड़ोसी देशों के बीच सीज़फायर कराने के दावे पर चिंता जताई और कहा कि यदि ऐसी अंतरराष्ट्रीय घोषणाएं हो रही हैं, तो भारत सरकार की चुप्पी रहस्यमयी है। संजय सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री को स्वयं संसद में उपस्थित होकर इन संवेदनशील मामलों पर अपना स्पष्टीकरण देना चाहिए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि आज जब दिल्ली में गरीबों की रोज़ी-रोटी छीनने वाली बुलडोजर कार्रवाई हो रही है, तब भी सरकार ने मौन साध रखा है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए गारंटी कार्ड की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है जब यूपी, बिहार और पूर्वांचल के प्रवासी मज़दूरों की दुकानें और ठेले उजाड़े जा रहे हैं। संसद में राष्ट्रीय सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, चुनावी पारदर्शिता और आम नागरिक की ज़िंदगी से जुड़े हर मसले पर सवाल उठाए जाएंगे।
इस बीच सरकार भी पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतर चुकी है। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू और उनके कनिष्ठ मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बैठक में सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि सरकार हर मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि सरकार सत्र के दौरान कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पेश करने और पारित कराने का इरादा रखती है। इनमें माल और सेवा कर, कराधान कानून, राष्ट्रीय खेल प्रशासन और भारतीय प्रबंधन संस्थान से जुड़े संशोधन विधेयक शामिल हैं। साथ ही विरासत स्थल संरक्षण और खान-खनिज विनियमन संबंधी विधेयकों पर भी सरकार का विशेष ध्यान है।
कांग्रेस, एनसीपी, डीएमके, आरपीआई (ए) समेत सभी प्रमुख विपक्षी दलों ने संकेत दिए हैं कि वे संसद के अंदर सरकार से तीखे सवाल करेंगे और यदि उत्तर नहीं मिला तो संसद के बाहर भी आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे। ऐसे में यह सत्र न सिर्फ विधायी गतिविधियों के लिए बल्कि देश की राजनीति में पक्ष और विपक्ष के बीच संवाद, संघर्ष और संतुलन का भी प्रमुख केंद्र बनेगा।
भारतीय संसदीय परंपरा का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब-जब संसद में जनहित से जुड़े गंभीर सवाल उठे हैं, तब-तब लोकतंत्र की गरिमा और गंभीरता नई ऊंचाइयों तक पहुँची है। लेकिन जब वही संसद पार्टी स्वार्थों, राजनीतिक बदले और भाषायी शोर-शराबे का मंच बन जाती है, तब जनता का विश्वास डगमगाता है। यह सत्र उन दोनों संभावनाओं के बीच झूल रहा है। सरकार के पास विधायी कामकाज को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है तो विपक्ष के पास जवाब मांगने का नैतिक अधिकार।
अब यह देखना शेष है कि देश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था के गलियारों में उठती आवाज़ें किस दिशा में जाती हैं। क्या संसद इस बार फिर बहस और संवाद का माध्यम बनेगी या केवल नारे और व्यवधान ही उसकी पहचान बनेंगे—इसका उत्तर आने वाले दिनों में पूरे देश को मिलेगा। जब सत्ता और विपक्ष आमने-सामने खड़े होंगे, तब यह तय होगा कि संसद का यह मानसून सत्र केवल हंगामेदार रहेगा या ऐतिहासिक भी।