सीता राम शर्मा ” चेतन “
जी 20 के सफल समारोह के बाद भारत विश्व मित्र की अपनी वास्तविक छवि में वैश्विक पटल पर है ! वसुधैव कुटुम्बकम के सनातन और पुरातन मंत्र के साथ धरती के अंतिम छोर तक के मनुष्यों को अपना परिवार और उनके भविष्य को अपना भविष्य मानकर सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की ठोस, पारदर्शी, असंदिग्ध तथा धर्म और न्याय सम्मत दृष्टि और कार्य संस्कृति भारत का इतिहास रही है, वर्तमान भी है और निःसंदेह भविष्य भी रहेगी । विश्व के जिस भी मनुष्य, समूह या देश को भारत की इस अनमोल विरासत पर संदेह या अविश्वास है वह अकाट्य रुप से या तो अज्ञानता, अदूरदर्शिता का शिकार है या फिर उसकी मानसिकता के मुख्य हिस्से में ही कोई मानसिक विकार है ! भारत पर कुछ भी सोचने और बोलने से पहले उसे अपने उस ज्ञात-अज्ञात विकार को दूर करने की जरूरत है । जो ऐसा कर पाने में असमर्थ हैं उन्हें अब ऐसा करने को विवश करने का काम वर्तमान भारत सरकार को करना चाहिए । वह ऐसा कर सकती है । वह इसमें समर्थ है । जैसा बीमार वैसा उपचार की नीति और कार्य पद्धति के हिसाब से उसका अविलंब उपचार होना ही चाहिए । हालांकि अलग-अलग माध्यमों से वह ऐसा कर भी रही है पर यह काम वह ससमय पूरी सजगता, सक्रियता और जरूरत पड़ने पर पूरी सख्ती के साथ करे इस पर उसे पूरी प्राथमिकता और गंभीरता से विचार तथा व्यवहार करना चाहिए । वह ऐसा करेगी भी, यह सिद्ध और प्रगाढ़ विश्वास ही ऐसे चिंतन और लेखन का कारण भी है ।
द्विपक्षीय युद्धों के काल और निकट भविष्य में संभावित वैश्विक महायुद्ध के आपदा काल में घोर आंतरिक राजनीतिक षड्यंत्रों से ग्रस्त भारत को अपनी कैसी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय भूमिका का निर्धारण और निर्वहन करना चाहिए ? यह वर्तमान समय का आवश्यक चिंतन और विमर्श का विषय है । जिस पर निरंतर और समयानुकूल चिंतन और कार्य करते रहने की जरूरत है । गौरतलब है कि आज जब वैश्विक महामारी के दुष्परिणाम और जारी युद्ध संकट की स्थिति से लगभग पूरी दुनिया परेशान है तब उनके दुष्प्रभावों से बहुत हद तक खुद को सुरक्षित रखने वाला भारत ना सिर्फ कुछ शत्रु और विश्वासघाती मित्र देशों की आंखों में खटक रहा है बल्कि देश के भीतर भी कुछ राष्ट्रघाती, देश विरोधी, घोर स्वार्थी और षड्यंत्रकारी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के संकटों से भी जूझ रहा है । निकट भविष्य में भीतरघात का यह संकट अंतरराष्ट्रीय शत्रु शक्तियों के गठजोड़ से कई तरह के नये संकट खड़े करने का हर संभव प्रयास करेगा इसमें तनिक भी संदेह नहीं है । अतः ऐसे में बहुत जरूरी है कि एक राष्ट्र के रुप में भारत भविष्य के सशक्त समर्थ और शक्तिशाली भारत के सपनों को साकार करने के लिए हर नई पुरानी चुनौतियों से निपटने से कहीं आगे जाकर एक ऐसा खुफिया और मारक तंत्र विकसित करे जो शत्रुओं के द्वारा संकट उत्पन्न करने से पहले ही उनकी बदनीयती का फन कुचल दे । सबसे बेहतर तो यह होगा कि देश एक ऐसा तंत्र विकसित करे जो राष्ट्र के भीतर राष्ट्र विरोधी व्यक्तित्व, समूह और शक्तियों की मानसिकता के जन्म लेने से पहले ही उसे कुचल दे । अपनी दूर दृष्टि से भारत यह भी निर्धारित करे कि वैश्विक जगत में कौन उसका मित्र है और कौन शत्रु ? यह निर्धारित करे कि वह कैसे मित्रता की निश्चितता एंव सत्यता को परख सकता है और कैसे या तो शत्रु को मित्र बनने के लिए बाध्य कर सकता है या फिर शत्रु के हर शत्रुतापूर्ण षड्यंत्र और कुकृत्य का नाश समुचित कठोर दंड विधान अथवा अन्य प्रभावी माध्यमों से कर सकता है ? अंतरराष्ट्रीय शत्रुता की पुरानी सूची की पहली पंक्ति में नापाक पाकिस्तान के साथ चीन का नाम तो सर्वविदित है पर मित्र शत्रु राष्ट्रों के रुप में पर्दे के पिछे इनके मुख्य सहयोगी रहे देशों के साथ अपने ताजा संबधों पर सजग और गंभीर बने रहने की जरूरत भारत को है । बहुत संक्षिप्त में कहा जाए तो इस कड़ी में अमेरिका का नाम तेजी से बेहतर होते संबधों के बावजूद सबसे उपर रखा जा सकता है क्योंकि समय-समय पर दोस्त बनते दिखते अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा हो या बाइडेन, दोनों ने भारत के साथ प्रगाढ़ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने दिखाने का प्रदर्शन करते हुए भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से जिस तरह का व्यवहार किया और करवाया है, वह यह सिद्ध करता है कि वे भारत के साथ जिस गहरी होती मित्रता के प्रदर्शन का ढोंग करते रहे हैं वह उनके कुछ नीजि स्वार्थों, षड्यंत्रों या विवशताओं का परिणाम भर ही है ! अमेरिका के लिए एक प्रसिद्ध भारतीय कहावत का जिक्र किया जा सकता है, जो है – दगा किसी का सगा नहीं । हालाकि कठोर सत्य यह है कि ऐसी नीति और नीयत वाले लोगों या समूहों के उत्थान का पतन अवश्य होता है । इसलिए भारतीय अपेक्षा और प्रयास तो गलत के सुधार का ही है और रहेगा । अमेरिका सुधरता है या नहीं यह तो उसकी मति और गति के भविष्य पर निर्भर करता है, पर भारत को चाहिए कि वह उस पर पूरा विश्वास अभी तो बिल्कुल ही ना करे । भारत को अमेरिका के साथ अमेरिका की तरह प्रोफेशनल और मुद्दों पर आधारित संबंध और मित्रता बनाए रखने की जरूरत है । यूं भी रुस के बाद यदि भारत के वैश्विक मित्र की दृष्टि से असंदिग्ध मित्र देखने खोजने का प्रयास किया जाए तो जापान, फ्रांस और इजराइल जैसे कुछ देश अमेरिका से बहुत पहले सामने आते हैं ।
वैश्विक संबंधों और कूटनीतिक जरूरत अथवा प्रयासों का जिक्र करते हुए यह कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में भारत को कनाडा प्रकरण की आड़ में अमेरिका जैसे देशों को भी यह स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि भारत अपनी नीति और नीयत में निचले और दोयम दर्जे की राजनीति और कूटनीति नहीं करता । रही बात कनाडा की तो भारत ने कनाडाई प्रधानमंत्री टूडो के संसदीय वक्तव्य और हिमाकत का जिस सख्ती से जवाब दिया है या जवाबी कार्रवाई की है, उस सख्ती को अभी और बढ़ाने की जरूरत है । भारत को कनाडा द्वारा खालिस्तानी आंदोलन और आंदोलनकारियों को प्रश्रय तथा प्रोत्साहन देने वाली गतिविधियों पर सख्त प्रतिक्रिया देते हुए यह वैश्विक संदेश देने की जरूरत है कि भारत विश्व को एक परिवार मानता है पर यदि कोई देश भारत की इस उदारता का दुरुपयोग कर उसके खिलाफ कोई षड्यंत्र करेगा तो भारत उसे कदापि सहन नहीं करेगा । अपने ही देश के नियम कानून की अनदेखी, अवहेलना कर असंवैधानिक और अनैतिक रुप से किसी देश से भागे अपराधियों और आंतकवादियों को प्रश्रय देकर उनके द्वारा उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचवाने, अमानवीय हिंसा कराने और देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम दिलाने में सहयोग करने वाले देश को भारत वैश्विक अपराधी मानता है । भारत ने ना कभी ऐसा वैश्विक अपराध किया है, ना ही करेगा और यदि कोई भारत के विरुद्ध ऐसा करता है तो वह किसी भी कीमत पर उसे सहेगा भी नहीं । वर्तमान समय में कनाडा द्वारा ऐसा करना प्रत्यक्ष रुप से वैश्विक आचर संहिता का घोर उल्लंघन है । भारत ऐसे देश को अपने साथ वैश्विक मानवता का भी शत्रु मानता है । भारत को वैश्विक बिरादरी को इस बात के लिए भी सचेत और सतर्क करना चाहिए कि यदि वह आज किसी स्वार्थ वश कनाडा की इन गतिविधियों पर उसे किसी भी तरह का समर्थन देती है या फिर उसके इस अंतरराष्ट्रीय अपराध पर चुप रहने की गलती करती है तो आने वाले समय में कभी भी उसकी इस गलती का नुकसान उसे भी भुगतान पड़ सकता है जैसे कभी पाकिस्तानी आतंकवाद का दुष्परिणाम अमेरिका को भुगतना पड़ा था । जगजाहिर है कि एक समय स्वार्थ वश अमेरिका ने भारत के विरुद्ध जन्म लेने वाले पाकिस्तानी आतंकवाद पर लगभग चुप रह कर उसका अप्रत्यक्ष समर्थन किया था ! यदि उसने समय रहते भारत के विरुद्ध पाकिस्तान में आतंकवाद को जन्म और पोषण देने का विरोध किया होता तो पाकिस्तान कभी आतंकवाद और उसके बड़े गुनाहगार खुंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन का बड़ा और सुरक्षित पनाहगाह नहीं बना होता । कुल मिलाकर सार यही है कि भारत को अब वैश्विक कूटनीति में चीनी साम्राज्यवाद और पाकिस्तानी आतंकवाद के साथ-साथ कनाडाई आतंकवाद समर्थन की नीति पर भी ज्यादा सक्रियता और सख्ती के साथ ना सिर्फ अपना कठोर विरोध दर्ज करना चाहिए बल्कि वैश्विक बिरादरी को भी उस विरोध का अहम साझेदार बनाना चाहिए क्योंकि आतंकवाद का सच तो यही है कि वह कभी भी किसी का भला नहीं कर सकता और जो इसे जन्म या प्रश्रय देने का अपराध करता है देर-सवेर वह उसका भी सर्वनाश ही करता है । पाकिस्तान उसका ज्वलंत उदाहरण है । अंतिम बात यही कि भारत को कनाडाई प्रधानमंत्री की नीति-मति और गति की कठोर आलोचना और निंदा करते हुए उनकी आतंक परस्त नीतियों से वैश्विक समुदाय के साथ उसके सीमावर्ती देश अमेरिका और उसकी खुद की कनाडाई आम जनता को भी सजग करते रहना चाहिए ।