डॉ. वंदना सेन
भारतीय संस्कृति में माँ शब्द में एक ऐसा अपनापन है। जिसमें ममता की गहराई है, वात्सल्य का ऐसा अमूल्य खजाना है, जो दुनिया में कहीं अन्यत्र नहीं मिल सकता। इसीलिए हमारे महापुरुषों ने माँ को भगवान का दर्जा दिया है, वहीं किसी भी बच्चे के लिए प्रथम गुरु भी केवल माँ ही है। वास्तव में आज के वातावरण में भी माँ की अद्भुत ममता का कोई मुकाबला नहीं है। कहते हैं किसी व्यक्ति के पास दुनिया की सारी दौलत है और माँ नहीं है, तो वह दुनिया का सबसे बड़ा गरीब आदमी है। दुनिया में धन तो परिश्रम करके भी कमाया जा सकता है, लेकिन माँ का प्यार पैसे से कभी नहीं खरीदा जा सकता है।
कहते हैं भगवान हर समय हर जगह उपलब्ध नहीं हो सकता हैं, इसी लिए भगवान ने माँ को बनाया हैं। हालांकि माँ की महानता को प्रदर्शित करते हुए बहुत कुछ लिखा जा चूका है, पढाया जा चुका हैं पर फिर भी माँ की महिमा इतनी अपरंपार है कि इसके बाद भी सब कम ही लगता हैं। वास्तव में माँ की महानता के लिए शब्द दे पाना अत्यंत ही दुष्कर कार्य है। भारत में माँ को पूजने के लिए एक दिन नहीं, पूरी जिंदगी लोग लगा देते हैं। कहा जाता है कि माँ की ममता अनमोल है, उसकी कीमत कोई नहीं चुका सकता है। जन्म से पूर्व भी माँ हमको नौ महीने तक संभाल कर रखती है।
यत्र नार्यन्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवता। जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। यहां देवता का आशय किसी मूर्ति या चित्र से नहीं है, बल्कि एक ऐसे वातावरण से है, जो भारतीय वातावरण से ओतप्रोत है। जहां ऐसी मानसिकता का आंतरिक बोध है जो समस्त भूमंडल पर नारी की शक्ति को प्रकट करती हैं। वास्तविकता यह है कि नारी भगवान द्वारा की गई ऐसी रचना है, जिसके हृदय में सूर्य जैसा तेज, समुद्र जैसी गहरी गंभीरता, मन को स्नेह भाव सिक्त करने वाली चन्द्रमा जैसी शीतलता और पृथ्वी जैसी सहनशील करने वाली क्षमता है। इसलिए भारतीय संस्कृति में नारी का सर्वोच्च स्थान है। कहने का तात्पर्य यही है कि नारी ही शक्ति है और नारी ही नारायणी है।
वर्तमान समय में घर का उचित रूप से कामकाज संभालने वाली नारी दोहरी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रही है। अपने कुशल प्रबंधन के चलते नारी इस भूमिका में अपनी सार्थकता को बेहतर तरीके से प्रमाणित करती है। कहा जाता है किसी भी व्यक्ति की प्रथम गुरु उसकी माँ होती है। किसी व्यक्ति में जो भाव और संस्कार माँ देती है, वह उसके सम्पूर्ण जीवन का महत्वपूर्ण आधार होती है। यह भाव ही व्यक्ति के जीवन की दिशा तय करते हैं। कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, इस मामले में माँ की बड़ी भूमिका होती है। माँ चाहे तो अपने बच्चों का भविष्य बना सकती है, चाहे तो बिगाड़ सकती है। इसलिए किसी भी व्यक्ति के लिए मां का स्थान पूजा के स्थान से कम नहीं होता। जिसके मन में माँ या नारी के प्रति श्रद्धा भाव रहता है, उसके जीवन में समाधान की राह प्रशस्त होती जाती है।
महिलाओं के बारे में यह कहना किसी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं है कि नारी समाज की शिल्पकार होती है। वह परिवार और समाज को उत्थान के मार्ग पर ले जाने का अभूतपूर्व सामर्थ्य भी रखती है। आज परिवार में जो वातावरण दिखाई देता है, उसे बनाने में नारी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह सर्वथा प्रामाणिक तथ्य है कि जब हम एक आदमी को शिक्षित करते हैं तो मात्र एक व्यक्ति ही शिक्षित होता है, लेकिन जब आप किसी नारी को शिक्षित करते है तो एक पूरी पीढ़ी को तो शिक्षित किया ही जाता है, बल्कि पूरे वातावरण में शिक्षा की सुरभि को प्रवाहित करते हैं। कहा जाता है कि जब आसपास के वातावरण में शिक्षा की सुगंध प्रसारित होती है तो वहां निवास करने वाले व्यक्ति सुख और शांति के साथ जीवन यापन करते हैं।
वर्तमान में महिलाओं ने जिस शक्ति का अहसास कराया है, वह अतुलनीय है। हालांकि भारत में नारी की महत्ता को किसी भी जमाने में कम नहीं माना गया। पुरातन काल में भी भारतीय नारी ने पुरुषों के उत्थान में कदम कदम पर सहारा दिया है। जहां तक आध्यात्मिक और धार्मिक पक्ष की बात है तो यही कहा जाता है कि पुरुष यदि शिव है तो नारी उसकी शक्ति है। सीता हैं तो राम है, राधा है तो कृष्ण है। महिला भगवान से भी बड़ी है। तभी तो दोनों के नाम का एक साथ उच्चारण करने पर नारी का नाम पहले आता है। माँ के उपकारो का वर्णन करना तो असंभव है।
हम यह भली भाँती जानते हैं कि माँ बाप ने हमें आज इस लायक बनाया है, माँ नहीं होती तो हम इस धरती पर भी नहीं होते। लेकिन वर्त्तमान में हम माँ बाप की सेवा से विमुख होते जा रहे हैं। देश में वृद्धाश्रम में अनेक बुजुर्ग अपने बच्चों की अकर्मण्यता को दिखा रहे हैं, इसके बाद भी माँ के दिल में बच्चे के लिए जगह होती है। यही होता है माँ का रूप।
(लेखिका सहायक प्राध्यापक हैं)