सीता राम शर्मा ‘चेतन’
बियासी वर्षीय वृद्ध पिता ने अखबार पढ़ते हुहु सतहत्तर वर्षीय मां को मातृ दिवस की बधाई दी तो मां की आंखो में आंसू आ गए । उसका कलेजा हाहाकार कर उठा । कानों में दोनों छोटे बेटों द्वारा कहे गए अपशब्द और दी गई गालियां पिघले शीशे की तरह उसके कानों में चूभने लगी । वह चीत्कार उठी – पता नहीं किस जन्म के अपराध और घोर पाप का परिणाम भुगत रही हूं ऐसे नालायक कपूतों को पाकर । बोलते हुए सिसक उठी थी वह – हिजड़ी ! गांव की बीच सड़क पर खड़ा होकर अपने दोनों हाथों से गंदे-गंदे ईशारे करता हुआ एक बार नहीं चार बार चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था वह उस दिन – हिजड़ी, हिजड़ी है तू ! और फिर अपने बाप, बड़े भाई, भाभी और उसकी बेटी के लिए कितने ही गंदे अपशब्द कहता रहा था नालायक ! छिः धिक्कार है ऐसे बेटों पर – – –
इससे पहले कि सीने के दर्द से फटती मां कुछ और कहती पिता चिल्लाए थे – अरे, नाम मत लो उन नालायकों का ! देखा नहीं था उस दिन दोनों कमरे में घुसकर सामने खड़े हो कैसे चिल्ला-चिल्ला कर गाली दे रहे थे दोनों को मां-बहन की ! कैसे हाथ झटकते बोल रहे थे दोनों, देखो बुढ़ा-बुढ़ी का मुंह देखो न, कैसे सुअर जैसे मुंह लटका कर बैठा है दोनों । दोनों का दोनों मा – – – है ये लोग । और फिर ऊ कालिया तो बिना रुके मां बहन की गालियां देता गुस्से में ऐसे चिल्लाने लगा था कि लगा कि आज तो हमलोग को दोनों मिलकर मार ही देगा ! उस दिन तो सच कहते हैं – – – फिर सिसक कर रोने लगे थे वो भी ! रुक-रुककर कहते जा रहे थे – जीवन में पहली बार इतना डर गया था मैं भी, कि सारी रात डर के मारे नींद नहीं आई । दोनों का गुस्से में चिल्लाता, गाली देता चेहरा रात भर आंखों के सामने घूमता रहा । उधर उनकी औरतें, उनके बच्चे, सब के सब चिल्लाए जा रहे थे । किसी को दया नहीं आई बूढ़े मां-बाप पर – – –
उफ्फ ! सामने हांथ मैं चाय के दो गिलास लिए खड़ा मंझला बेटा भीतर ही भीतर समय और समाज से विवश हुआ इतना ही बोल पाया था – सब ठीक हो जाएगा । ईश्वर पर भरोसा रखो – – –
मां फफकती बोल पड़ी थी – कुछ ठीक नहीं होगा अब । बुद्धि भ्रष्ट हो गई है उनकी । इतनी मुश्किल, इतने दुखों से पाला था उनको पर उनकी गालियां अब – – –
अच्छा अब चुप रह । चाय पी और याद मत कर बीती हुई बात – – – बेटा कुछ और बोलता उससे पहले बीच में टोकते हुए पिता बोल पड़े – अरे इ याद नहीं कर रही थी । अखबार में पढ़कर मैं ही बोला था इसको कि आज मातृ दिवस है । क्या तकलीफ पाना है । सब का, हर घर में यही हाल है अब तो । छोड़ जाने दे ये सब बात, नालायक संतानों के लिए क्या करेगा मातृ दिवस भी !