एमपी विधानसभा चुनाव विगत आकड़ो से आगामी तुलना

नरेंद्र तिवारी

मध्यप्रदेश विधानसभा का आगामी राजनैतिक परिदृश्य क्या होगा ? किसकी बनेगी सरकार और कौन बनेगा मध्यप्रदेश का अगला मुख्यमंत्री ? यह प्रश्न आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनैतिक चर्चाओं के महत्वपूर्ण प्रश्न बन गए है। इन प्रश्नों पर आम-खास सभी की नजर है। प्रदेश में अभी शिवराज सिंह के नैतृत्व में भाजपा की सरकार है। यह सरकार राज्य में विकास यात्राओं के माध्यम से जनसामान्य तक पहुचने का प्रयास कर रहीं है। सांगठनिक रूप से कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा अधिक मजबूत दिखाई पड़ती है। संगठन स्तर पर 2018 ओर 2023 में कोई बड़ा अंतर नही दिखता। तब भी भाजपा संगठन का ढांचा कांग्रेस से अधिक मजबूत और जवाबदेह था। अब भी कांग्रेस संगठन का ढांचा सम्पूर्ण प्रदेश में लचर, बिखरा ओर कमजोर नजर आता है। कांग्रेस संगठन जनता से जुड़ाव की मजबूत रणनीति बनाने में विफल दिखाई दे रहा है। इसके विपरीत भाजपाई सांगठनिक ढांचा जनता से निकटता में सफल दिखाई देता है। कांग्रेस की तुलना में भाजपा जनता को अपने पक्ष में करने में सफल दिखाई देती है। भाजपा संगठन में तेजी है, गति है, बहाव है। कांग्रेस संगठन में सुस्ती है, अवरोध है, ठहराव है। प्रदेश में कमलनाथ कांग्रेस के सांगठनिक ढांचे में फुर्ती लाने में अब तक सफल दिखाई नही देते है। सच यह भी है कि वर्ष 2018 में भी भाजपा का सांगठनिक ढांचा कांग्रेस से बहुत अधिक मजबूत था। बावजूद इसके लंबे समय से प्रदेश की सत्ता पर काबिज रहने वाली भाजपा कांग्रेस की अपेक्षा कम सीट पाकर सत्ता से बाहर हो गयी थी। बाहर ही नही हुई थी। जिस भारतीय जनता पार्टी के पास वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में बहुमत से 40 सीट अधिक थी। वह 2018 में अपने कब्जे वाली 56 विधानसभाओं में पराजित हो गयी। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 165 सीटों पर विजय श्री प्राप्त कर एक रिकॉर्ड बनाता था। 2018 में भाजपा 109 सीटों पर ही विजय श्री दर्ज करा पाई। जब भी संगठन का ढांचा इसी तरह मजबूत था। सरकारी मशीनरी सहयोग कर रही थी। कांग्रेस ने लचर सांगठनिक ढांचे के बावजूद 2013 के 58 विधानसभा के आंकड़े को दुगुना करने में सफलता पाई याने 58 से 114 विधानसभा पाकर बसपा एवं निर्दलीयों की मदद से सरकार बनाई। आखिर वह कौनसे कारण है जिसने 2018 में भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया था। वह तो शिवराज सिंह चौहान का राज योग, कमलनाथ का कमजोर नियंत्रण और महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा और महत्वाकांक्षाओं के फलस्वरूप 15 महीने चली सरकार औंधे मुंह गिर गयी। प्रदेश की बागडोर फिर शिवराज के पास आ गयी। 2018 के चुनाव में भाजपा और शिवराज की पराजय का मुख्य कारण सहज रूप से सत्ता विरोधी मतदान को तो माना ही जाता है किंतु इसके साथ काँग्रेस द्वारा किसानों की कर्ज माफी को अपने वचन-पत्र में शामिल करना चुनाव के पूर्व गांव-गांव जाकर किसानों से कर्ज माफी के फार्म भरवाने की राजनीति ने किसानों का मन काँग्रेस के पक्ष में बना दिया था। मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज चौहान का बडबोलापन भी 2018 में भाजपा की पराजय का कारण बना था। सीएम शिवराज ने आरक्षण के विषय पर मंच से कहा था ‘कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नही कर सकता है’ शिवराज सिंह चौहान के इन शब्दों को स्वर्ण समाज ने गम्भीरता से लिया स्वर्ण समाज ने नाराजगी जताई, स्पाक्स नामक राजनैतिक दल का गठन हुआ। इस बयान का सबसे अधिक असर ग्वालियर चंबल सम्भाग में हुआ जहां भाजपा को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। माई का लाल बयान प्रमोशन में आरक्षण के संदर्भ में था सो स्वर्ण कर्मचारी भाजपा के खिलाफ गए। आदिवासी बाहुल्य सीटों में कर्जा माफी ओर स्वर्ण बाहुल्य में ‘माई का लाल’ ने भाजपा के खिलाफ माहौल बन दिया था। 2018 में कांग्रेस के ज्योतिरादित्य भी मुख्यमंत्री के चर्चित चेहरे थै। मध्यप्रदेश की जनता ने कांग्रेस को वोट ही महाराजा ज्योतिरादित्य के चेहरे पर दिया था। जिनका धुंआधार प्रचार कांग्रेस को बहुमत के करीब ले गया। कांग्रेस हाईकमान ने कमलनाथ को प्रदेश की बागडोर थमा दी। अब जबकि 2023 में विधानसभा चुनाव होना है, प्रदेश में शिवराज सिंह बतौर मुख्यमंत्री काबिज है। काँग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ एक संकल्प के साथ अपनी सरकार को गिराए जाने का बदला लेने के लिए आतुर है। वर्तमान हालातो में कमलनाथ को प्रदेश के किसी कांग्रेसी क्षत्रप से कोई चुनौती नहीं है। वें पार्टी के सबसे स्वीकार नेता है। इस लिहाज से पार्टी में गुटबाजी कम दिखाई दे रही है। कमलनाथ देश के सीनियर नेता है। मध्यप्रदेश में उनका प्रशंसक वर्ग मौजूद है। 15 महीने की कमलनाथ सरकार जनता के नजरिये से बहुत खराब नहीं थी। किसानों के कर्ज माफी की प्रक्रिया चल रही थी। विधुत के भारी बिलों से जनता को निजात मिलने लगी थी। निराश्रित पेंशन की राशि बढ़ने लगी थी। मिलावट खोरो पर सरकार सख्त रुख अपना रही थी। आपराधिक तत्वों पर बिना भेदभाव कार्यवाहीं का सिलसिला चल ही रहा था की महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया के विद्रोह ने कमलनाथ की पन्द्रह माही सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया। शिवराज मुख्यमंत्री बने अबकी बार उनकी छवि भी बदली हुई दिखाई दी, बुलडोजर का बहुतायत से प्रयोग किया जाने लगा। अपराधियो पर नकेल कसी जाने लगी। अपराध मुक्त प्रदेश बनाने की कोशिश की जाने लगी। अब विकास यात्राओं के माध्यम से जनहितैषी योजनाओं का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। प्रदेश में सरकारी तंत्र अधिक हावी दिखाई दे रहा है। कांग्रेस ने राजस्थान, छतीसगढ़ ओर हिमाचल में पुरानी पेंशन लागू कर मध्यप्रदेश में भी इसके संकेत दिए है। किसानों की कर्ज माफी का मुद्दा अब भी जिंदा है। शिवराज फूंक-फूंक कर कदम रख रहे है। शिकायत मिलने पर मंच से अधिकारी,कर्मचारियों को निलंबित करने की उनकी शैली लोगो को अच्छी लग रहीं है। बुलडोजर का भी प्रशंसक वर्ग है। इन तमाम हालातों के मध्यनजर 2023 में शिवराज के हाथ लगेगी सत्ता या कमलनाथ अपनी सरकार गिराने का बदला लेने में सफल हो पाएंगे। इन प्रश्नों के जवाब वक्त के गर्त में छुपे है। 2018 की नजर से 2023 में मध्यप्रदेश विधानसभा को देखने पर मुकाबला रोचक नजर आता है। तथ्य यह भी है कि 2018 में शिवराज को बहुमत से दूर करने वाली प्रदेश की जनता ने 2019 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ की सरकार होने के बावजूद मध्यप्रदेश की 29 में से 28 सीटों पर भाजपा को बम्फर जीत दिलाई। 2019 लोकसभा में भाजपा को 58 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए जो विधानसभा में भाजपा को प्राप्त मतों से करीब 18 फीसदी अधिक है। काँग्रेस के वोट प्रतिशत में भी लोकसभा चुनाव में कमी आई थी। इन आंकड़ों से प्रतीत होता है कि प्रदेश की जनता का मूड 2018 में शिवराज के खिलाफ बना हुआ था। विगत विधानसभा में बनी अपनी माई के लाल की इमेज को क्या शिवराज परिवर्तित करने में सफल हो पाए है। 2023 विधानसभा में इन सभी प्रश्नों के उत्तर मिल सकेंगे। अब शिवराज के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया भी है। क्या भाजपा उनके चेहरे को भी चुनाव के दौरान आगे कर सकती है। देखने वाली बात होगी।