
रविवार दिल्ली नेटवर्क
हिंदी दिवस के अवसर पर जनवादी लेखक संघ, मुंबई और स्वर संगम फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में विरंगुला केंद्र, मीरा रोड (पूर्व) में बहुभाषी कवि सम्मेलन का अत्यंत सफल आयोजन हुआ। खचाखच भरे हुए सभागार में श्रोताओं ने आरंभ से अंत तक तन्मयता पूर्वक हिंदी, उर्दू, मराठी एवं बंगाली काव्य-साहित्य का आस्वाद लिया। दिल्ली से पधारी प्रमुख अतिथि, लेखिका-कवयित्री एवं एक्टिविस्ट अनिता भारती ने अपनी प्रभावशाली कविताएँ सुनाईं और कहा कि कोई भी भाषा छोटी या बड़ी नहीं होती। उन्होंने बताया कि मराठी से हिंदी में दलित साहित्य का अनुवाद पढ़ने के बाद उन्हें नई जीवन-दृष्टि और शक्ति प्राप्त हुई। विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर कुसुम त्रिपाठी ने कहा कि हिंदी प्रेम और भाईचारे की भाषा है, वर्चस्व की नहीं। वरिष्ठ कवि एवं शायर हृदयेश मयंक और राकेश शर्मा ने अपनी ग़ज़लों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। राकेश शर्मा की ग़ज़ल— “न हिंदी है, न उर्दू है मेरे अशआर की भाषा; मैं शायर हूँ, मेरा दिल बोलता है प्यार की भाषा”—को खूब सराहा गया, जबकि हृदयेश मयंक की पंक्तियाँ— “फिर कहीं शोर उठा और कहीं आग लगी, उसमें जलता हुआ मेरा घर उभर कर आया”—पर तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी।
मुस्तहसन अज्म, नैमिष राय, अनिल गौड़, भूपेंद्र मिश्र, सुनील ओवाल, आरिफ महमूदाबादी, आर.एस. विकल, रमन मिश्र, राजीव रोहित, इरफान शेख, सतीश शुक्ल रकीब, कुसुम तिवारी, जानी अंसारी, सुनील कुलकर्णी,पुलक चक्रवर्ती सुरेश कोपीडष्कर, आर.एस. आघात आदि ने हिन्दी, मराठी, उर्दू व अन्य भाषाओं में अपनी कविताएँ और शायरी प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। सभा की अध्यक्षता शैलेश सिंह ने की, संचालन जुल्मीरामसिंह यादव ने किया और आभार-प्रदर्शन डॉ. मुख्तार खान ने व्यक्त किया। इस अवसर पर डॉ. गुलाब यादव, मुशर्रफ शम्सी, संजय पांडे, विनोद यादव, मोइन अंसार, विजय यादव, दिनेश गुप्त, धर्मेंद्र चतुर्वेदी, अक्षय यादव, शिवशंकर सिंह, रामू जायसवाल, सभाजीत यादव, हेमंत सिंह सहित शहर के अनेक कवि, चिंतक, पत्रकार, नाट्यकर्मी और अन्य गणमान्य व्यक्तित्व बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। कार्यक्रम भाषाओं की विविधता और काव्य की एकता का जीवंत साक्ष्य बना और साहित्य-प्रेमियों को संवाद, रचनात्मक ऊर्जा तथा मानवीय संवेदनाओं का सशक्त अनुभव प्रदान किया।