सीता राम शर्मा ” चेतन “
हम जब भी संपूर्ण मनुष्य जाति की भलाई और एक बेहद सुन्दर, सभ्य, शांतिपूर्ण, सुरक्षित और खुशहाल दुनिया का चिंतन करते हैं स्वाभाविक रूप से यह विचार आता है कि वर्तमान समय में दुनिया की सबसे बड़ी और पहली जरूरत है दुनियाभर के देशों की शांति, सुरक्षा और विकास के लिए एक सर्वहितकारी सर्वमान्य वैश्विक मानवीय संगठन और संविधान की ! ऐसा सर्वमान्य समर्थ और शक्तिशाली वैश्विक संगठन और उसका संविधान, जिसमें बिना किसी भेदभाव के दुनिया के हर एक देश के लिए निर्भयता, स्वतंत्रता और विकास का प्रावधान हो । जिसका सदुपयोग करते हुए कोई भी देश किसी भी स्थिति या परिस्थिति में दूसरे किसी भी देश की स्वतंत्रता और सुरक्षा में अंश मात्र भी बाधा या संकट उत्पन्न ना कर सके । ऐसा वैश्विक संविधान जिससे कोई भी राष्ट्र दूसरे राष्ट्र का किसी भी तरह से शोषण या संहार ना कर सके । ऐसा प्रभावशाली वैश्विक संविधान जिससे एक राष्ट्र के द्वारा दूसरे राष्ट्र पर अनावश्यक हस्तक्षेप और अतिक्रमण की संभावनाओं तक को समाप्त कर दिया जाए । ऐसा वैश्विक संविधान जिससे सदियों तक दुनियाभर के देशों और मनुष्यों में आपसी प्रेम, सौहार्द, सामंजस्य, शांति, सहयोग, सहअस्तित्व और अटूट विश्वास का भाव और आचरण बना रहे ! ऐसा संविधान जिसके बनने और लागू होने के बाद सदियों तक किसी राष्ट्र का दूसरे राष्ट्र से कोई युद्ध ना हो ! ऐसा वैश्विक संविधान जिसके लागू होने के बाद दुनिया के किसी भी हिस्से में घोर अमानवीय व्यक्तिगत और सामुहिक अपराध करने का कोई व्यक्ति, समूह या देश साहस ही ना कर सके । जिसके लागू होते ही दुनिया से ना सिर्फ आतंकवाद का पूरी तरह सफाया हो जाए बल्कि आने वाले समय में किसी भी स्थिति परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति में आतंकवादी बनने का विचार ही जन्म ना ले सके । दुनिया के किसी भी हिस्से में दो राष्ट्र की सीमाओं पर कभी तनाव की स्थिति ही उत्पन्न ना हो । गलत ना करने का जितना भय और जितनी विवशता एक अत्यंत कमजोर, पिछड़े, अभावग्रस्त, गरीब राष्ट्र में हो उससे कहीं ज्यादा भय और विवशता दुनिया के सबसे शक्तिशाली संपन्न विकसित राष्ट्र में हो ! ऐसा वैश्विक संविधान जो मानवीय जगत के साथ उसके थल, जल और नभ की सुरक्षा और विकास के लिए भी शत-प्रतिशत समर्थ और कारगर हो !
वैश्विक शांति, सुरक्षा और विकास की ऐसी परिकल्पना पढ़ सुनकर आपको घोर आश्चर्य होगा कि क्या यह संभव है ? तो बता दूं कि ऐसी दुनिया का स्वप्न असंभव तो कदापि नहीं, हाँ थोड़ा मुश्किल अवश्य है । पर उतना मुश्किल भी नहीं कि जिस पर तत्काल आगे बढ़ा ना जा सके । इसी विश्वास के आधार पर अब बात आगे, कि इसके लिए क्या करना होगा ? कैसे करना होगा ? प्रारंभ कहां से हो और कौन करे ? यदि इस कार्य की शुरुआत वो ना करे, जो इसके लिए योग्य और जिम्मेवार है तो फिर कौन करे ? अंततः जब ऐसा वैश्विक संविधान बने तो वो कैसा बने ? उसका मूल आधार क्या हो ? उसके सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण नियम कानून क्या हो ? उसमें किस-किस क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान दिया जाए, जिससे वह वैश्विक संविधान पूरी दुनिया में दीर्घकालीन स्थाई शांति, सुरक्षा और सहयोग का वातावरण बनाए रखने में सफल सिद्ध हो सके ?
इन तमाम प्रश्नो के जवाब ढूंढने से पहले हमें यह समझना होगा कि एक सक्षम, सशक्त और प्रभावशाली वैश्विक शांति वाले संविधान के लिए सबसे पहले जरूरत है दुनियाभर के देशों के एक वैश्विक संगठन की । वैश्विक संविधान के निर्माण और उसके सफल क्रियान्वयन के लिए दुनियाभर के देशों की सहभागिता वाले एक शक्तिशाली वैश्विक संगठन का होना आवश्यक है । जिसका गठन और अस्तित्व उच्चतम और अत्यंत पारदर्शी तथा शक्तिशाली लोकतांत्रिक मूल्यों और कार्यप्रणाली के आधार पर हो । उस वैश्विक संगठन का संचालन, परिचालन और उसके संविधान के क्रियान्वयन का पूरा तरीका भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के आधार पर हो ! किसी भी एक, दो या कुछ देशों के बीच जटिल विवाद या हो रहे टकराव की स्थिति में समाधान की प्रक्रिया सभी सदस्य देशों के मत के बहुमत से हो । आइए, अब विचार करते हैं कि यह वैश्विक संगठन कैसा और किन शक्तियों से युक्त हो जिसके माध्यम से हम एक भय मुक्त शांतिपूर्ण, सुरक्षित और समृद्धशाली दुनिया का निर्माण कर सकें । ऐसे वैश्विक संगठन के निर्माण में मुख्य बाधाएं क्या हैं ? उन्हें कैसे दूर किया जाए ? उस संगठन द्वारा वैश्विक शांति के लिए बनाए जाने वाले संविधान का मूल स्वरूप क्या हो ? मुख्य नियम कानून क्या हो ?
गौरतलब है कि वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में वैश्विक शांति, सुरक्षा और विकास के लिए जो एक प्रमुख संस्था है वह संयुक्त राष्ट्र है । जिसकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात वैश्विक शांति के चिंतन और लक्ष्य के साथ ही की गई थी । दुर्भाग्य से यह वैश्विक संगठन पूरी ईमानदारी से सुरक्षित विश्व के लिए उतना निष्पक्ष, पारदर्शी, ईमानदार, सशक्त, जवाबदेह और जिम्मेवार नहीं बन पाया, जो वैश्विक शांति के लक्ष्य को साधने के लिए जरूरी था । इसमें भी कोई दो राय या शक की गुंजाइश नहीं कि यह संगठन भविष्य में भी कभी खुद में उतने व्यापक बदलाव नहीं कर पाएगा, जितना वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों और भविष्य की संभावित चुनौतियों से निपटने के लिए जरूरी है । बहुत संक्षिप्त में इसका कारण बताया जाए तो वह यह है कि आज ये संगठन जिस तरह चंद स्वार्थी विकसित और शक्तिशाली प्रतिद्वंदी राष्ट्रों के हाथों की कठपुतली बना उनके पापी हितों की ही पूर्ति करने का वैश्विक हथियार कवच बना हुआ है यह वैश्विक शांति के अपने निर्माण लक्ष्यों के विपरीत अपनी नीतिगत कमियों और निष्क्रियता से बढ़ते वैश्विक उन्माद, आतंकवाद और टकराव को प्रोत्साहित करने का काम कर रहा है । बहुत संक्षिप्त में स्पष्ट है कि जिस संगठन के मुख्य सदस्य देशों की समृद्धि और शक्तिशाली अर्थव्यवस्था तथा रूतबे का आधार ही हिंसक युद्धक हथियारों और विध्वंसक संयत्रों, संसाधनों का उत्पादन और व्यापार हो, वे सदस्य देश भला कैसे दीर्घकालीन वैश्विक शांति के पैरोकार बन सकते हैं ? अतः स्पष्ट है कि यदि सचमुच दुनियाभर के अधिकांश मनुष्यों और देशों को एक सर्वमान्य सर्वव्यापी सर्वहितैषि वसुधैव कुटुम्बकम वाली प्रेमपूर्ण, शांतिपूर्ण, सर्व सुरक्षित, समृद्धिदायक और शक्तिशाली मानवीय व्यवस्था बनाए रखने वाला वैश्विक संगठन और संविधान चाहिए तो उसे वर्तमान परिस्थितियों और भविष्य में आने वाली संभावित चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए एक नये दोषरहित, सर्वहितकारी, सक्षम और शक्तिशाली वैश्विक संगठन और उसके संविधान का निर्माण करना चाहिए ।
अब बात ऐसे नये वैश्विक संगठन के अस्तित्व और उसके सर्व हितकारी, सर्वमान्य, शक्तिशाली संविधान की तो सबसे पहले यह जरूरी है कि उसका अस्तित्व लोकतांत्रिक प्रक्रिया वाला हो । जिसके निर्माण से लेकर संचालन तक की संपूर्ण भविष्य यात्रा में दुनिया के सभी देशों की महत्वपूर्ण और समान भूमिका हो । चाहे वह दुनिया का सबसे बड़ा, समृद्ध, शक्तिशाली देश हो या फिर सबसे छोटा, गरीब और कमजोर राष्ट्र हो, सबके पास उसे बनाने, चलाने, सुधारने का समान अधिकार हो । जिसके संविधान का मूल आधार दुनिया के हर मनुष्य, मनुष्यता और राष्ट्र की रक्षा हो । जो हिंसा, आतंक और युद्ध के सख्त खिलाफ हो । जिसका एकमात्र प्रमुख उद्देश्य और कार्य हिंसा, आतंक और युद्ध मुक्त समाज, देश और दुनिया हो । जो किसी समूह या देश के द्वारा प्रायोजित और षड्यंत्रकारी हिंसा के विरूद्ध बहुत सख्ती के साथ सिर्फ और सिर्फ हिंसा का ही हिमायती हो । जो अमानवीय कृत्य करने वाले लोग या देश को दंड देने की सख्त प्रक्रिया में किसी भी तरह के मानवाधिकार के नियम और कानून के हस्तक्षेप को पूरी तरह नकारता हो । जो हिंसक और युद्धक गतिविधियों के खिलाफ तीव्र और कठोर हिंसा का हिमायती हो । जिसके पास दुनिया के हर राष्ट्र की रक्षा का सर्वोच्च अत्यंत शक्तिशाली वैश्विक संवैधानिक अधिकार हो । जिसके पास दुनिया की सबसे शक्तिशाली रक्षा सैना हो और उसमें दुनिया के हर देश के सैनिक हों । जिसकी रक्षा सामग्री और हथियारों तथा संसाधनों में क्षमतानुसार हर देश का योगदान हो । जिस वैश्विक संगठन के अस्तित्व में आने के बाद किसी भी देश को दूसरे या भिन्न मतवाले शत्रु राष्ट्र का तनिक भी भय ना हो । जिसके अस्तित्व में आने के बाद किसी भी राष्ट्र को बाह्य सुरक्षा के लिए किसी भी तरह की रक्षा सैना या युद्धक सामग्री, हथियारों, संसाधनों की जरूरत ही ना पड़े । बहुत संक्षिप्त में कहें तो वह एक ऐसा वैश्विक संगठन हो जिसके अस्तित्व में आने के बाद दुनियाभर के देश अपनी सुरक्षा के प्रति पूरी तरह निश्चित होकर अपनी आंतरिक मानवीय और प्रशासनिक व्यवस्था और उसके विकास कार्यों पर ध्यान केन्द्रित कर सकें । जो अनावश्यक धन और संसाधन उन्हें आवश्यक रूप से राष्ट्र रक्षा हेतु खर्च करने पर विवश होना पड़ता है, उसे वह अपनी मानवीय आबादी की आवश्यक व्यवस्था और उसके विकास कार्यों पर खर्च कर सकें ! जिस वैश्विक संगठन का प्रमुख उद्देश्य और कार्य युद्ध विहीन दुनिया और वैश्विक शांति तथा सुरक्षा हो ! गौरतलब है कि वैश्विक मानवता और राष्ट्र हित वाले ऐसे किसी भी संगठन और उसके संविधान में मुख्य बाधा दुनिया के वे चंद शक्तिशाली राष्ट्र हैं, जो दुनिया के हर देश में राष्ट्र रक्षा का भय, आतंक और निरंतर युद्ध की आशंकाओं को उत्पन्न कर अपने हथियारों का व्यापार करते हैं । विध्वंसक हथियारों के व्यापार के बूते समृद्धशाली और शक्तिशाली हुए ये राष्ट्र कभी नहीं चाहेंगे कि कोई ऐसा वैश्विक संगठन बने, जिसके अस्तित्व में आने के बाद उनकी समृद्धि और शक्ति का मूल आधार ही समाप्त हो जाए । उन्हें इसके लिए तैयार करने का काम उनकी जनता में मनुष्यता के मूल धर्म-कर्म का बोध उत्पन्न कर ही किया जा सकता है । दूसरा आसान मार्ग यह है कि वैश्विक शांति और सुरक्षा वाले ऐसे वैश्विक संगठन के प्रारूप पर विश्व जनमानस और दुनियाभर के देशों का ध्यान आकृष्ट किया जाए । ऐसे संगठन के निर्माण और उसकी उपयोगिता पर विश्वव्यापी संवाद और चर्चा का माहौल बनाया जाए ! यदि ऐसा सफल प्रयास हो तो निःसंदेह पूरी दुनिया का भला होगा और दीर्घकालीन वैश्विक शांति का हमारा भारतीय स्वप्न वैश्विक स्वप्न बन साकार भी होगा !