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- मैं एचआईएल की शानदार फॉर्म को एफआईएच प्रो लीग में जारी रख सर्वश्रेष्ठ देना चाहता हूं
- मैं हॉकी में आज जहां भी पहुंचा उसका पूरा श्रेय मेरे बड़े भाई को है
- मेरा संकल्प है, हर टूर्नामेंट, हर मैच, हर खिलाड़ी से सीखना, चाहे वह जूनियर हो या सीनियर
सत्येन्द्र पाल सिंह
नई दिल्ली : जुगराज सिंह की कहानी अभावों के बीच से अपने जीवट से खुद की भारत के बेहतरीन हॉकी ड्रैग फ्लिकर के रूप में पहचान बनाने की प्रेरक दास्तां है। अपने परिवार की गुजर बसर के लिए जुगराज ने कभी भारत की सरहद पर अटारी-वाघा बॉर्डर तिरंगा और पानी की बोतलें बेचीं। जुगराज सिंह ने अपने संकल्प से खुद को पुरुष हॉकी टीम में कप्तान हरमनप्रीत सिंह के बाद खुद को भारत के दूसरे सर्वश्रेष्ठ ड्रैग फ्लिकर के रूप अलग पहचान बनाई है। सात बरस के फिर से शुरू हुई हीरो पुरुष हॉकी इंडिया लीग (एचआईएल) 2024-25 में जुगराज सिंह ने पेनल्टी कॉर्नर सबसे ज्यादा 12 गोल कर श्राची रार बंगाल टाइगर्स को खिताब जिताने में अहम भूमिका निभाई। जुगराज सिंह ने शानदार हैट्रिक जमा बंगाल टाइगर्स को राउरकेला में हैदराबाद तूफांस के खिलाफ फाइनल 4-3 से जीत दिला एचआईएल चैंपियन बनाने में बतौर ड्रैग फ्लिकर अपना हुनर दिखा भारत के दक्षिण अफ्रीकी कोच क्रेग फुल्टन का दिल जीता। अटारी ,पंजाब में जन्में जुगराज सिंह की भारत के शीर्ष हॉकी ड्रैग फ्लिकर के रूप में खुद को स्थापित बनाने की कहानी उनके जीवट और धैर्य की कहानी है। जुगराज के पिता भारतीय फौज में कुली का काम करते थे और अचानक बीमार पड़ गए और ऐसे मुश्किल दौर में बहुत कम उम्र में जुगराज ने अपने परिवार को चलाने की जिम्मेदारी खुद संभाली। जुगराज इन चुनौतीपूर्ण मुश्किल दिनों को याद करते हुए कहते हैं,‘मैंने एक बार भी यह सवाल नहीं किया कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं। उस समय मेरा परिवार मेरी सबसे पहली प्राथमिकता था। मैं जानता था कि मैं कड़ी मेहनत कर अपने परिवार की मदद कर सकता हूं और इसी से परिवार को दो वक्त का खाना मयस्सर हो सकता है। मैं पानी की बोतलें और तिरंगे झंडे बेच कर मैं अपने परिवार को चलाने में मदद कर सकता था क्योंकि हमाारे पास कमाई का कोई और दूसरा जरिया ही नहीं था। तब मेरा मानना था कि मेरी मेहनत मेरे भविष्य का रास्ता तय करेगी और ऐसा हुआ भी।’
जुगराज कहते हैं, ‘मैंने अपने हिस्से का संघर्ष झेला, लेकिन मेरा हमेशा से यह विश्वास रहा है कि मेहनत से हर मुश्किल पर पार पाया जा सकता है। जब तक मुझमें भारत के लिए खेलने का दम है, कड़ी मेहनत जारी रखूंगा क्योंकि भारत ने मुझे सब कुछ दिया है। मैं भारतीय टीम के लिए बड़े मंचों पर अपना खेल बेहतर करने को लिए प्रेरित हूं। मेरा अगला बड़ा लक्ष्य भारत को विश्व कप, एशियाई खेलों और ओलंपिक में हॉकी स्वर्ण पदक जिताना है। मैं कड़ी मेहनत करना जारी रखूंगा और इन चुनौतियों के लिए खुद को तैयार करूंगा। मैं बराबर खुद को बेहतर करने में लगा हूं और जब तक हॉकी खेलूंगा, तब तक ऐसा करता रहूंगा। मैं एचआईएल की अपनी इस शानदार फॉर्म को एफआईएच प्रो हॉकी लीग में जारी रख कर अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहता हूं। एचआईएल ने मेरा आत्मविश्वास बहुत बढ़ाया है। में अच्छी फॉर्म में हूं और यदि मौका मिला तो मैं एचआईएल की अपनी इस शानदार लय को एफआईएचल प्रो लीग में भी जारी रखना चाहता हूं और भारतीय टीम के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहता हूं। एचआईएल प्रो लीग बड़ा टूर्नामेंट है और मैं बराबर पूरी शिद्दत से अपना शानदार प्रदर्शन को बेताब हूं। शुरूआत दौर के संघर्ष के बावजूद अपने बड़े भाई से प्रेरणा पाकर जुगराज का हॉकी खेलने के लिए जुनून कभी कम नहीं हुआ। जुगराज ने मात्र सात बरस की उम्र में ही हॉकी खेलना शुरू का दिया था।’
जुगराज बताते हैं,‘मेरे भाई हमारे गांव में हॉकी खेलते थे लेकिन जब मेरे पिता की तबीयत खराब हुई तब मेरे बड़े भाई ने हॉकी खेलना छोड़ पिता की तरह फौज में कुली का काम शुरू कर दिया। बावजूद इसके मेरे बड़े भाई ने हॉकी खेलने से कभी नहीं रोका और बराबर हॉकी में अपनी चमक दिखाने के लिए बराबर मेरा हौसला बढ़ाया। मैं हॉकी में आज जहां भी पहुंचा उसका पूरा श्रेय मेरे बड़े भाई को है।’
28 बरस के ड्रैग फ्लिकर जुगराज सिंह का जीवट बंगाल टाइगर्स के लिए हैदराबाद तूफांस के खिलाफ फाइनल में तीन गोल सहित उनके पहली बार एचआईएल में शिरकत करते हुए सबसे ज्यादा दर्जन भर गोल कर बंगाल टाइगर्स को खिताब जिताने के रूप में साफ दिखा। जुगराज कहते हैं, ‘हर खिलाड़ी एचआईएल फाइनल में हैट्रिक जमाने का सपना संजोता है। मैं फाइनल में हैट्रिक जमाने की कोई योजना तो पहीं बनाई थी लेकिन जब मैंने दो गोल कर दिए तो जब मुझमें तीसरा गोल करने का भी विश्वास जग गया। पहली बार एचआईएल में शिरकत कर सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी का अवॉर्ड पाना निजी तौर पर बहुत बड़ी उपलब्धि है और मैं इसे जीवन भर याद रखूंगा। मैं जानता था कि एचआईएल मेरे लिए यह दिखाने का मौका था कि मैं क्या कर सकता हूं। मैं यह साबित करना था कि मैं केवल बंगाल टाइगर्स के लिए ही नहीं बल्कि भारतीय टीम के भी भरोसेमंद स्कोरर और पेनल्टी कॉर्नर को गोल में बदलने वाला ड्रैग फ्लिकर हूं। एचआईएल मुझे अपने कौशल को सही ढंग से दर्शाने का सही मंच दिया। मैं हर मैच से पहले प्रतिद्वंद्वी टीम के गोलरक्षक के जेहन में क्या चल रहा है, उसे पढ़ने की कोशिश करता हूं इससे पेनल्टी कॉर्नर को गोल में बदलने में मदद मिलती है। मेरा संकल्प है, हर टूर्नामेंट, हर मैच, हर खिलाड़ी से सीखना, चाहे वह जूनियर हो या सीनियर।’