कोलंबस खोजी समुद्री-नाविक और साम्राज्यवादी था।कोलंबस के वक्त यूरोपीय व्यापारी भारत समेत एशियाई देशों के साथ व्यापार करते थे.जमीन के रास्ते आकर वे एशियाई देशों को अपना माल बेचते और यहां से मसाले वगैरह ले जाते.रास्ता ईरान और अफगानिस्तान से होकर निकलता था. 1453 में इस इलाके में मुस्लिम-तुर्की साम्राज्य स्थापित हो गया था, जिसने यूरोपीय व्यापारियों के रास्ते बंद कर दिए. एशियाई देशों के साथ यूरोप का व्यापार बंद हो गया. यूरोप के व्यापारी परेशान हो गए.तभी कोलंबस के मन में समुद्री रास्ते भारत जाने का विचार आया.उसे पता नहीं था कि भारत कितनी दूर है.उसे तो बस अपने जूनून पर भरोसा था.3अगस्त,1492को कोलंबस ने तीन जहाजों और 90नाविकों के साथ भारत की खोज अभियान पर निकला।कई हफ्ते गुजर गए लेकिन सफर खत्म नहीं हुआ.दूर-दूर तक फैले समंदर में जमीन का नामो निशान नहीं दिख रहा था.बड़ी परेशानियों के बाद 12अक्टूबर,1492 को कोलंबस के जहाजों ने धरती को छुआ.वह बहामास का सैन सल्वाडोर द्वीप था.कोलंबस को लगा कि वो भारत पहुंच चुका है.अपने आखिरी वक्त तक उसे यह भ्रम बना रहा कि उसने जिन इलाकों की खोज की है वो भारत है,उसने इसे इंडीज का नामकरण दिया,(इसे आज भी वेस्ट इंडीज ही कहा जाता है।) जबकि वह भारत नहीं बल्कि अमेरिकी द्वीप हैं.अमेरिका पहुँचने वाला वह प्रथम यूरोपीय नहीं था किन्तु उसने यूरोप-अमेरिका के बीच विस्तृत सम्पर्क को बढ़ावा दिया।अमेरिका में स्पेनी उपनिवेशवाद या फिर यूरोपीय उपनिवेशवाद का श्रेय कोलंबस को ही जाता है।
….पता नहीं क्यों, नंदीग्राम (प.बंगाल) की यायावरी के संदर्भ में मुझे कोलंबस का यह प्रसंग बार-बार याद आता रहा।
…..पापा को मैंने कभी नहा-धोकर,धूप-दीप-नैवेद्य लेकर पूजा पाठ करते नहीं देखा।वाल्मीकि रामायण या फिर श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करते नहीं देखा, किसी खास वेद-उपनिषद-पुराण का अध्ययन करते नहीं देखा।लेकिन,वह तुलसी साहित्य के मर्मज्ञ थे।
रामचरितमानस की अलग-अलग साईज की प्रतियां उनके पास रहीं हैं।तुलसीदास कृत रामचरितमानस के अतिरिक्त कवितावली,दोहावली और विनय पत्रिका की मूल प्रति के साथ-साथ उन पर टिप्पणियों का एक विशाल भंडार रहा है उनके पास।पटना में जहां कहीं भी रामचरितमानस पर केंद्रित प्रवचन होता,चर्चा होती,वह जरूर शामिल होने की कोशिश करते। मुझे कुछ वैसे प्रसंग भी याद हैं,जब पटना सिटी के किसी मुहल्ला,मंदिर या सार्वजनिक स्थल पर प्रवचन होता, आफिस के बाद पापा और पंडितजी चाचा पटना सिटी जाते,वहां 10-11बजे रात को कार्यक्रम समाप्त होता,आधी रात को यह जोड़ी पटना सिटी स्टेशन आती,गए रात किसी ट्रेन से पटना जंक्शन उतरते,फिर वहां से पैदल ही राजवंशी नगर तक लौटते।इस जोड़ी को कभी पानी की बोतल या टिफिन का डब्बा साथ रखते नहीं देखा।
…मेरे लिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से जुड़े स्थलों का भ्रमण,उनसे जुड़ी पाठ्य सामग्रियों का अध्ययन, अवलोकन,आकलन,विश्लेषण या उनका दस्तावेजीकरण धार्मिकता से ज्यादा एक समृद्ध विरासत को सहेजना, संवारना है।
16अप्रैल,2022को मैं घाटशिला में था,मेरे जेहन में नंदीग्राम(प.बंगाल)की यायावरी का प्रोग्राम बन-बिगड़ रहा था, जो घाटशिला के 250किमी की परिधि में है।
मैंने बार-बार पढ़ा है,लिखा है,बोला है कि जब हर पात्र एक दूसरे को शक की निगाह से देखता हो,एक दूसरे से कुटिलता से पेश आ रहा हो,परस्पर व्यवहार में पारदर्शिता का अभाव हो, महाभारत अवश्यंभावी हो जाता है,जहां हारने वाला तो सब कुछ गंवाता ही है, जीतने वाले को भी कुछ हासिल नहीं हो पाता।लेकिन जब हर पात्र श्रेष्ठतम मर्यादाओं के पालन के लिए कटिबद्ध हो रामराज्य की परिकल्पना तभी साकार हो सकती है।
वाल्मीकि रामायण हो,रामचरितमानस हो या फिर त्रेतायुग के मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के कालखंड पर प्रकाश डालने वाली किसी भी भाषा की किसी भी विधा की प्रस्तुति या रचना-नंदीग्राम की चर्चा आते ही मर्यादा पुरुषोत्तम के भाई भरत का चरित्र हमारे सामने उपस्थित हो जाता है।भरत की सगी मां थी कैकेई।कैकई ने दशरथ से दो वचन मांगे थे-पहला श्रीराम को 14साल का बनवास और दूसरा कि अयोध्या का राजसिंहासन भरत को सौंपा जाए। जब यह प्रकरण अयोध्या में चल रहा था,भरत ननिहाल गए हुए थे। उनकी अनुपस्थिति में ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ वनगमन के लिए निकल लिए थे।जब भरत अयोध्या लौटे,तो हतप्रभ रह गए वह अग्रज राम को ही राजसिंहासन पर देखना चाहते थे।तमाम बंधु बांधवों के साथ वह चित्रकूट के वन में जाकर अग्रज श्रीराम,भाभी सीता और लक्ष्मण से मिले।मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से उन्होंने अयोध्या लौटकर राजगद्दी संभालने की प्रार्थना की।मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने मर्यादाओं का पालन करते हुए 14वर्ष का वनवास पूरा करने को ही प्राथमिकता दी।लेकिन भरत भी कुछ कम नहीं थे। उन्होंने निश्चय किया कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के अनुपस्थिति में राज काज वह चलाएंगे तो जरूर, लेकिन राज सिंहासन पर बैठेंगे नहीं।उन्होंने अग्रज श्रीराम से उनकी खड़ाऊं मांग ली।अयोध्या के राज सिंहासन पर खड़ाऊ को ही प्रतीक स्वरूप शोभायमान किया और स्वयं अयोध्या नगर के बाहर नंदीग्राम में रहकर तपस्वी के जीवन को स्वीकार, अंगीकार और आत्मसात किया।प्रभु श्रीराम जितने दिन भी वनवास के लिए अयोध्या के बाहर रहे,उनके अनुज भरत ने भी नंदीग्राम में एक तपस्वी का ही जीवन जिया था।वनवास पूरा कर जब राम वापस अयोध्या आए तो सबसे पहले नंदीग्राम में जाकर उन्होंने भरत से मुलाकात की थी।फिर,सारे लोग एक साथ अयोध्या आए थे।भरत जब नंदीग्राम में तपस्या करने आ गए थे उसके बाद उनके पिता राजा दशरथ की मृत्यु हुई।पिता के पिंडदान की बात आई तो भरत ने नंदीग्राम में ही एक कुंड की स्थापना करवाई। इस कुंड को आज भरत कुंड नाम से जाना जाता है। त्रेतायुग का वह नंदीग्राम आज अयोध्या-प्रयागराज मार्ग पर सुल्तानपुर के निकट बताया जाता है,जहां पापा के देहावसान के बाद भी मैं 26जनवरी,2022 को गया भी था।
…. लेकिन मेरी दुविधा यह थी कि पिछले दो-तीन वर्षों में समाचार माध्यमों में यह बार-बार प्रचारित प्रसारित हुआ है कि भारत सरकार ने 9राज्यों में 15 ऐसे स्थलों की शिनाख्त की है जहां जहां से होकर मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम गुजरे हैं और उनमें से एक पश्चिम बंगाल का नंदीग्राम भी है।नंदीग्राम से मात्र 250किमी दूर तक पहुंच कर,बिना नंदीग्राम गए हुए और अपने को पूर्ण रूप से आश्वस्त किए बिना मैं अपने मुख्यालय पटना या डालटेनगंज लौटना नहीं चाहता था।
नंदीग्राम तक पहुंचने के कई विकल्प है यहाँ का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन है-मोगराजपुर,जो तामलुक-दीघा से जुड़ा है।हावड़ा से चलने वाली 5-7 सीधी बसें भी हैं।दीघा, हल्दिया और मेचेदा से भी सीधी बसें चलती हैं।हल्दिया से नौका लेकर भी नन्दीग्राम पहुँचा जा सकता है।मैंने ट्रेन से घाटशिला से मेचेदा और बस से मेचेदा से नंदीग्राम का विकल्प चुना।भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम(आईआरसीटीसी) ने स्वदेश दर्शन(देखो अपना देश) कार्यक्रम के तहत रामायण सर्किट पर एक विशेष ट्रेन का परिचालन शुरू किया है।अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस इस पूर्णतया वातानुकूलित पर्यटक ट्रेन में यात्री कोच के अतिरिक्त दो रेल डाइनिंग रेस्तरां एक आधुनिक किचन कार व यात्रियों हेतु फुट मसाजर,मिनी लाइब्रेरी, आधुनिक एवं स्वच्छ शौचालय और शॉवर क्यूबिकल आदि की सुविधा भी उपलब्ध है।साथ ही सुरक्षागार्ड, इलेक्ट्रॉनिक लॉकर एवं सीसीटीवी कैमरे भी प्रत्येक कोच में उपलब्ध हैं।AC फर्स्ट क्लास की यात्रा के लिए 1,21,735 रुपये प्रति व्यक्ति और AC सेकंड क्लास की यात्रा के लिए 99475 रुपये प्रति व्यक्ति का शुल्क निर्धारित हुआ है।
पहली रामायण सर्किट ट्रेन सफदरजंग,दिल्ली स्टेशन से रविवार 7नवंबर,2021 को रवाना हुई.
घाटशिला में स्टील एक्सप्रेस ट्रेन मुझे सुबह 6.50में मिली,जिसने मुझे खड़गपुर 8.20में पहुंचाया।स्टील एक्सप्रेस मेचेदा में नहीं रूकती,सो खड़गपुर से मेचेदा तक हावड़ा लोकल से जाना पड़ा।मेचेदा से नंदीग्राम के लिए लोकल बस में बैठना पड़ा।
मेचेदा से नंदीग्राम की बस में बैठे-बैठे मैं नंदीग्राम से संबंधित समसामयिक इतिहास को याद करता रहा…।
…यह क्षेत्र ब्रिटिश युग से ही सक्रिय राजनीति का हिस्सा रहा है।1947 में, भारत के वास्तविक स्वतन्त्रता प्राप्त करने से थोड़े दिन पहले, “तमलुक” को अजॉय मुखर्जी और उनके साथियों ने अंग्रेजों से कुछ दिनों के लिए मुक्त करा लिया था।प.बंगाल में वामपंथी सरकार के दौर में 35 वर्षों तक नन्दीग्राम लाल दुर्ग का हिस्सा रहा है।सीपीआई के इलियास मोहम्मद शेख 2001 और 2006 में यानि कि दो बार विधायक रहे थे।एक ‘स्टिंग ऑपरेशन’ के दौरान, इलियास मोहम्मद शेख के भ्रष्ट कारनामों का भाण्डा फूटा था और उन्हें विधायक पद से इस्तीफा देना पड़ा था।2009 में हुए उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस की फिरोज़ा बीबी निर्वाचित हुई थी।
सन् 2007 में, तत्कालीन पश्चिम बंगाल की सरकार ने सलीम ग्रुप को “स्पेशल इकनॉमिक ज़ोन” नीति के तहत, नन्दी ग्राम में एक ‘रसायन केन्द्र’ (केमिकल हब) की स्थापना करने की अनुमति प्रदान की थी।ग्रामीणों ने इस निर्णय का प्रतिरोध किया था।पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में 14 ग्रामीण मारे गए थे और पुलिस पर बर्बरता का आरोप लगा था।तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी के वरिष्ट नेताओं ने इस आन्दोलन को ‘औद्योगीकरण के विरुद्ध’ घोषित किया था।सरकार-समर्थकों के अनुसार, यह क्षेत्र एक औद्योगिक क्षेत्र बन जाता जिससे राज्य में और अधिक निवेश तथा नौकरियों के द्वार खुलते,बेरोजगार युवाओं के लिए बहुत बड़ी संख्या में रोजगार उपलब्ध होते।प्रमुख विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस का कहना था कि असल में वह औद्योगीकरण के विरुद्ध नहीं है, बल्कि सरकार के अमानवीय रवैए के खिलाफ है।फिरोज़ा बीबी तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाली ‘भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमिटी’ की सक्रिय कार्यकर्ता रही हैं और इसी कमिटी ने 2008 में राज्य सरकार को औद्योगिक विकास के लिए कृषिभूमि को अधिग्रहण करने की अपनी योजना को रद्द करने पर मजबूर किया था।
बुद्धिजीवियों में इस मसले पर मतभेद रहा है।एक तरफ महाश्वेता देवी,अपर्णा सेन और मेधा पाटकर जैसे लोगों ने सरकार की आलोचना की, दूसरी तरफ सौमित्रो चटर्जी,नीरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती,तरूण मजुमदार, उपन्यासकार बुद्धदेव गुहा, देबेश रॉय, साहित्यकार अमिताभ चौधरी,सरोदवादक बुद्धदेव दासगुप्ता, इतिहासकार अनिरुद्ध रॉय,फुटबॉलर पीके बनर्जी, आर्किटेक्ट सैलापति गुहा, वैज्ञानिक सरोज घोष आदि सरकार के पक्ष में खड़े थे।
…तपती दोपहरी के दिन में एक बजे मैं नंदीग्राम पहुंचा।मेरी अपेक्षाओं के अनुरूप ही त्रेतायुगीन नंदीग्राम की पहचान स्थापित करता कोई भी सबूत वहां नहीं था।हां!एक जानकीनाथ मंदिर जरूर है,जहां एक शादी हो रही थी। मंदिर के बाहर श्यामा प्रसाद मुखर्जी और विवेकानंद की प्रतिमा है। स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र बने इस भव्य मंदिर का निर्माण नंदीग्राम बाजार में 1803 में महिषादल के तत्कालीन राजा नंदलाल उपाध्याय व उनकी महारानी जानकी उपाध्याय ने कराया था। करीब 66 फीट ऊंचा व 32 फीट चौड़े इस मंदिर का परिसर 43 डेसीमिल भूखंड पर फैला है।नंदीग्राम से थोड़ा हटकर रियापाड़ा गांव में 1000साल पुराना महारूद्र सिद्धनाथ मंदिर है।
नन्दीग्राम कोलकाता से दक्षिण पश्चिम दिशा में 70 किमी दूर, औद्योगिक शहर हल्दिया के सामने और हल्दी नदी के किनारे बसा है।यह हल्दिया डेवलपमेंट अथॉरिटी का हिस्सा है।हल्दिया के लिए ताजी सब्जियाँ, चावल और मछली की आपूर्ति नन्दीग्राम से होती है।हल्दिया की ही तरह,नन्दीग्राम भी,व्यापार और कृषि के लिए अनुकूल है।नन्दीग्राम की किनारों पर, गंगा(भागीरथी)और हल्दी(कंशाबती के अनुप्रवाह) नदियाँ फैली हुईं हैं और इस तरह ये दोनों नदियाँ यहाँ की भूमि को उपजाऊ बनातीं हैं।यहां 60% आबादी मुसलमानों की हैं।नन्दीग्राम विधानसभा क्षेत्र, “तामलुक” लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है।2001में ही इसे खुले में शौच से मुक्त क्षेत्र घोषित किया जा चुका था।यहां का एकमात्र कॉलेज- नन्दीग्राम कॉलेज विद्यासागर विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है।यहाँ कई स्कूल हैं,जैसे-बीएमटी शिक्षा निकेतन,नन्दीग्राम गर्ल्स हाई स्कूल,असद्तला बानामली शिक्षा निकेतन,रायपारा गर्ल्स हाई स्कूल,खोदम बारी हायर सेकेण्डरी स्कूल, और मर्दापुर शिक्षा निकेतन आदि।
… मैं बीएमटी शिक्षा निकेतन के प्रधानाध्यापक रंजीत शास्वत से मिलता हूं-उन्हें बताता हूं कि समाचार माध्यमों में प्रचारित, प्रसारित रामायणयुगीन नंदीग्राम की पहचान स्थापित करने वाले स्थलों के भ्रमण हेतु मैं नंदीग्राम आया,लेकिन यहां तो वैसा कुछ भी नहीं दिख रहा।वह अपनी अनभिज्ञता जाहिर करते हैं।वह बताते हैं कि वह पश्चिम मिदनापुर जिले के मूलवासी हैं, नौकरी के सिलसिले में हाल ही में पदस्थापित हुए हैं।
अगर,नंदीग्राम में रामायणकालीन तथ्यों के साक्ष्य मिलते तो मैं रात्रि विश्राम की व्यवस्था करता, अन्यान्य लोगों से मिलता।चूंकि,इसकी संभावना नहीं थी,सो मैंने यथाशीघ्र लौटना ही श्रेयस्कर समझा।पटना लौटकर भी समाचार माध्यमों में गलत सूचना के प्रचारित, प्रसारित होने के कारणों की पड़ताल करता रहा-तो प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो की पुरानी प्रेस विज्ञप्ति मिली,जिसमें 2018में तत्कालीन केन्द्रीय राज्य मंत्री, स्वतंत्र प्रभार केजे अल्फांसो ने लोकसभा को रामायणकालीन स्थलों की सूची दी थी। इस सूची में नंदीग्राम को अयोध्या के निकट बताया गया था। लगता है-समसामयिक सार्वजनिक जीवन में नंदीग्राम (प.बंगाल)की चर्चा ज्यादा होती है,सो गलतफहमीवश मीडिया के एक वर्ग में रामायणकालीन नंदीग्राम और वर्तमान नंदीग्राम (प.बंगाल)को एक ही बताकर प्रचार-प्रसार मिल गया,जो ग़लत है।