पंच परिवर्तन से होगा राष्ट्र परिवर्तन

Nation will change through Panch Parivartan

प्रो.महेश चंद गुप्ता

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने एक सौ साल पूरे होने के मौके पर आने वाले समय के लिए समाज में परिवर्तन लाने का बीड़ा उठाया है। संघ ने समाज में परिवर्तन के अपने दृष्टिकोण को पंच परिवर्तन के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसके तहत लाखों स्वयंसेवक काम में जुटे हुए हैं। संघ की मान्यता है कि समाज में बड़ा बदलाव केवल कुछ लोगों के प्रयासों से नहीं बल्कि संपूर्ण समाज की शक्ति से ही संभव है। यह ऐसा विचार है जो समाज के जीवन में समयानुकूल परिवर्तन लाने की बात तो करता ही है, राष्ट्रहित में जीवन को ढालने का आग्रह भी इसमेंं है। अपने शताब्दी पर्व पर संघ ने समाज के सामने पंच परिवर्तन के जिस विचार को रखा है, वह केवल कोई नारा या अभियान नहीं है बल्कि इससे बढक़र एक दीर्घकालिक सामाजिक संकल्प है।

आरएसएस का यह विश्वास रहा है कि राष्ट्र का निर्माण केवल सत्ता या नीतियों से नहीं होता बल्कि समाज के स्वभाव, संस्कार और आचरण से होता है। पंच परिवर्तन की अवधारणा इसी सोच का विस्तार है। यह कोई क्षणिक विचार नहीं है बल्कि सौ वर्षों के अनुभव, प्रयोग और मंथन का निचोड़ है। संघ के स्वयंसेवक वर्षों से समाज के भीतर काम करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि यदि परिवर्तन स्थायी चाहिए तो उसे समाज की जड़ों तक पहुंचना होगा।

संघ चालक मोहन भागवत बार-बार कह चुके हैं कि पंच परिवर्तन भारतीय समाज की दिशा और दशा तय करने वाले हैं। यह कथन केवल औपचारिकक भाषण का हिस्सा नहीं बल्कि उस आत्मविश्वास की अभिव्यक्ति है जो समाज की सामूहिक शक्ति पर भरोसा करता है। संघ का मानना है कि कुछ चुनिंदा लोग समाज को नहीं बदल सकते। समाज स्वयं जब बदलने का निश्चय करता है, तभी राष्ट्र बदलता है। सवाल उठता है कि आखिर पंच परिवर्तन क्या है? इस उत्तर है कि इसमें देश का आमूलचूल परिवर्तन छिपा हुआ है। पंच परिवर्तन के पांच सूत्रों में सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी आचरण और नागरिक कर्तव्य को लिया गया है और ये सूत्र दरअसल आधुनिक भारत के सामने खड़ी जटिल चुनौतियों का समग्र उत्तर और समस्याओं का समाधान हैं। हमें ये सूत्र अलग-अलग दिखते जरूर हैं लेकिन भीतर से एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। किसी एक को नजरअंदाज करके दूसरे को साधा नहीं जा सकता। हमें सभी सूत्रों को एकरूपता में देखना होगा।

अगर सबसे पहले सामाजिक समरसता की बात करें तो देश की विविधता उसकी ताकत भी है और उसकी चुनौती भी है। जाति, वर्ग, क्षेत्र और भाषा के नाम पर उपजने वाले तनाव हमारे सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करते हैं। संघ हमेशा से यह माननता आया है कि जब तक समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सौहार्द और अपनापन नहीं बढ़ेगा, तब तक ‘विकसित भारत’ को यथार्थ रूप नहीं दिया जा सकता। सामाजिक समरसता बढ़ेगी तो व्यर्थ के विवादों से मुक्ति मिलेगी और ऊर्जा निर्माण में लगेगी, टकराव में जाया नहीं होगा। इसी प्रकार पर्यावरण संरक्षण आज किसी एक संगठन या देश का मुद्दा नहीं है बल्कि यह मानवता का सवाल बन चुका है। बढ़ता प्रदूषण, घटते जल-स्रोत और बिगड़ता पारिस्थितिक संतुलन सीधे-सीधे जन-स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। पंच परिवर्तन सृष्टि को ‘माता’ मानकर जीवन शैली में बदलाव की वकालत करता है। संघ का कहना है कि सृष्टि सभी प्राणियो की मां के समान है जो हमारे जीवन का आधार है लेकिन भौतिकतावादी जीवन शैली और उपभोग की अंधी दौड़ के कारण प्रकृति का निरंतर शोषण हुआ है। पश्चिमी विकास के चिंतन पर आधारित इस मॉडल ने मात्र पांच सौ सालों मेंं पर्यावरण का संतुलन बिगाड़ कर रख दिया है। संघ पंच परिवर्तन के जरिए इसमें सुधार चाहता है और उसकी सोच केवल वृक्षारोपण तक सीमित नहीं है बल्कि उसमेंं उपभोग की आदतों पर पुनर्विचार का आग्रह है। संघ इसके तहत कम उपभोग, संतुलित जीवन और प्रकृति के साथ सह अस्तित्व की बात करता है।

इसी प्रकार स्वदेशी आचरण का सूत्र हमें हमारी जड़ों की ओर लौटने के लिए प्रेरणा देता है। संघ के लिए स्वदेशी की अवधारणा यह केवल आर्थिक नीति तक सीमित नहीं है बल्कि सांस्कृतिक आत्म विश्वास का मुद्दा भी है। स्वदेशी अपनाने से स्थानीय उद्योगों और कारीगरों को बल मिलता है, रोजगार के अवसर बढ़ते हैं और आर्थिक असमानता कम करने की दिशा बनती है। आज आय की असमानता लगातार बढ़ती जा रही है। जहां एक ओर कुछ लोग आसानी से करोड़ों के फ्लैट बुक करा लेते हैं और दूसरी ओर बड़ी आबादी दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रही है। ऐसे में स्वदेशी आचरण सामाजिक न्याय का भी माध्यम बन सकता है, यह संघ बता रहा है।

पंच परिर्वतन के पांचों सूत्र परस्पर जुड़े हुए हैं। इन्हें अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता। फिर भी मुझे लगता है कि कुटुंब प्रबोधन शायद पंच परिवर्तन का सबसे संवेदनशील और गहरा सूत्र है। आधुनिक जीवन की दौड़ में संयुक्त परिवार टूटे हैं, एकल परिवार बढ़े हैं और उसके साथ ही अकेलापन, तनाव और सामाजिक असुरक्षा में भी इजाफा हुआ है। संघ का मानना है कि परिवार केवल निजी इकाई नहीं है बल्कि राष्ट्र निर्माण की पहली पाठशाला है। संस्कार, संवाद और स्नेह से भरा कुटुंब समाज को स्थिरता देता है। जब कुटुंब मजबूत होते हैं, तो समाज स्वत: सशक्त होता है। एक सशक्त समाज से ही सशक्त देश की परिकल्पना साकार होती है।

इसी प्रकार नागरिकों के कत्र्तव्य का विचार महत्वपूर्ण है। जब से देश आजाद हुआ है हम अपने अधिकारों की बात तो करते हैं लेकिन कत्र्तव्यों से दूर होते जा रहे हैं। नागरिक कर्तव्य का सूत्र हमें जिम्मेदारियों का बोध करवाता है। स्वच्छता, अनुशासन, सेवा और कत्र्तव्य बोध किसी सरकारी आदेश से नहीं आता है बल्कि इसके लिए आंतरिक संकल्प जरूरी है। पंच परिवर्तन प्रत्येक नागरिक से जीवनशैली में स्वच्छता, अनुशासन, सेवा और कत्र्तव्य बोध के मूल्यों को उतारने पर जोर देते हैं। इसके जरिए संघ हर देशवासी को जिम्मेदार नागरिक बनाना चाहता है क्योंकि जिम्मेदार नागरिक ही मजबूत लोकतंत्र की नींव होते हैं।

मुझे संघ शताब्दी वर्ष के कई आयोजनों मेंं जा कर सार्थक विमर्श का हिस्सा बनने का सौभाग्य हासिल हुआ है। मैंने पाया है कि शताब्दी वर्ष में संघ का जोर पंच परिवर्तनों पर ही है। संघ का हर स्वयंसेवक पंच सूत्रों के जरिए समाज में परिवर्तन पर काम करने के लिए उत्साहित है। संघ पंच परिवर्तन का यह विचार लेकर आया है, उसके लिए उसकी श्लाघा की जानी चाहिए मगर इस विचार को यथार्थ के धरातल पर उतारने के लिए सबको काम करना होगा। क्योंकि जब तक परिवर्तन धरातल पर दिखाई नहीं देगा, तब तक हमारा देश समर्थ, विकसित, आत्मनिर्भर और विश्व गुरु नहीं बन पाएगा। दिशा और दशा में यदि वास्तविक बदलाव आता है तो अनेक समस्याओं के समाधान के रास्ते अपने-आप खुलने लगते हैं। यही कारण है कि संघ के स्वयंसेवक देश भर में पंच परिवर्तन के विचार को समाज के अंतस तक पहुंचाने में जुटे हैं।

पीएम नरेन्द्र मोदी ने भी पंच परिवर्तन की पहल को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया है। उनका जोर इस बात पर है कि आर्थिक विकास के साथ-साथ राष्ट्र और पर्यावरण का संतुलन भी बना रहे। यह दृष्टि शासन और समाज के बीच सेतु का काम कर सकती है। पंच परिवर्तन के सूत्र हमेंं आत्म परिवर्तन के लिए प्रेरित करने वाले हैं। यदि हम इन पांच सूत्रों को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना लें तो क्या चहुंमुखी बदलाव संभव है। सिर्फ बातों से यह होने वाला नहीं है। इसके लिए हमें अपने परिवार में संवाद बढ़ाना होगा। समाज में समरसता का व्यवहार करना होगा। प्रकृति के प्रति संवेदनशील होना, स्वदेशी को अपनाना और नागरिक कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाने के लिए दृढ़ संकल्पित होना होगा। अगर हम ऐसा कर लेंगे तो कोई वजह नहीं कि परिवर्तन न हो। यह परिवर्तन लाना अपरिहार्य है। क्योंकि यह परिवर्तन परिवार में बदलाव लाएगा। उसके बाद यह समाज को बदलेगा और समाज के बदलने से राष्ट्र का बदलना तय है। सही मायने में पंच परिवर्तन से ही राष्ट्र परिवर्तन संभव है। यह केवल विचार नहीं है बल्कि समय की पुकार भी है। हर देशवासी को समय की इस पुकार को सुनना चाहिए।
(लेखक प्रख्यात चिंतक, विचारक और शिक्षा विद् हैं। वह 44 सालों तक दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाते रहे हैं।)