प्रकृति पुत्रों का धरती माता के प्रति आभार प्रकटीकरण का पर्व नवाई

Navai is a festival of expression of gratitude of the sons of nature towards Mother Earth

नरेंद्र तिवारी

भारत एक कृषि प्रधान देश हैं, यहाँ कृषि से जुड़े परम्परागत पर्व और उत्सव देश के सभी राज्यों में अपने-अपने तौर-तरीकों, परम्पराओं के साथ मनाए जाते हैं। यह कृषि पर्व प्रकृति के प्रति आस्था को प्रकट करने धरती माता के प्रति आभार व्यक्त करने का वार्षिक फसल उत्सव है। पश्चिम निमाड़ के आदिवासी बाहुल्य जिले बड़वानी के सीमावर्ती शहर सेंधवा का निवासी होने के कारण आदिवासी लोक परम्पराओं को निकटता से समझने का अवसर मिलता रहता हैं। यहां निमाड़ में आदिवासी समुदाय फलिया या मजरा टोला में रहते हैं। एक फलिया में 150 से 200 मकान रहते है। गाँव फलिया से मिलकर ही बना होता है। अक्सर एक फलिया में एक ही कुटुंब के लोग रहते है। यह समुदाय अपने गाँव या फलिया का कृषि पर्व सांस्कृतिक उत्साह, उमंग एवं उल्लास से मानते है। जब खाने योग्य फसल आ जाती है, गाँव में पटेल, पुजारा, वारती सामूहिक रूप से चर्चाकर उत्सव बनाए जाने का का निर्णय लेते हैं, गांव में ढोंढी पिटवाकर सूचना दी जाती है। जिसे निमाड़ क्षेत्र में नवाई या नवई कहते हैं। इस प्रकृति उत्सव, धरती माता को धन्यवाद देने के सामूहिक पर्व को ओड़िसा एवं छत्तीसगढ़ नुआखाई कहा जाता है। जो नये धान के स्वागत के लिए मनाया जाता हैं। देश के अन्य प्रांतों में नवाई या नुआखाई को फसल चक्र के अनुसार विविध तौर तरीकों से मनाए जाने की यह लोक परम्परा आदिवासी समाज में सदियों से प्रचलित है।

आदिवासी समाज का प्रकृति से निकट का जुड़ाव रहता है। इस समाज की अधिकांश आबादी प्रकृति की गोद में बसती है। जल, जंगल, पहाड़ जैसे प्राकृतिक वातावरण के मध्य अपना जीवन यापन करती है। यह प्रकृति पुत्र धरती माता के प्रति आभार या प्रकृति के प्रति गहरी आस्था रखते है। अपने लोक उत्सवों में यह प्रकृति की वंदना, पूजा, अराधना कर धरती माता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते है। नवाई का त्यौहार भी खेतों में लहलहाती पहली फसल का स्वागत करने, प्रकृति की कृपा का आभार प्रदर्शन का सामूहिक उत्सव है।

राज्य कर सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी आदिवासी सामजिक कार्यकर्ता पोरलाल खरतें ने आदिवासी सांस्कृतिक त्यौहार नवाई के संबंध में अपने विचारों से अवगत कराते हुए बताया की दुनियाँ में जहाँ-जहाँ आदिवासी समाज निवास करता है। इस त्यौहार को किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। देश के अधिकांश राज्यों में इसे मुंग, उड़द, मक्के की फसल खेतों में कटाई करने से पहले नई फसल को खाने की शुरुआत करने से पहले नवाखाई, नवाई त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। मध्यप्रदेश के अधिकांश जिलों में खरीब या बरसात की फसल जैसे मुंग, चवले, भादी काकड़ी, काचरा और भुट्टे खेतों में पककर तैयार हो जाती है। इस फसल को पकाकार खाने से पहले नवाई त्यौहार मनाते है। यह उत्सव हर गाँव में अलग अलग दिन मनाया जाता है। जिसका कारण हर गाँव में बुआई का समय अलग अलग होता है। नवाई की तारीख का निर्धारण गाँव पटेल, गाँव डाहला, वारती, कूटवाल, पुजारा चौकीदार, फलिया के वरिष्ठजन बैठकर सर्वानुमति से करते है। इस निर्णय को सभी स्वीकारते है। आदिवासी समाज में सामूहिक निर्णय की भावना को तहरीज दी जाती है। गाँव में किसी परिवार में मृत्यु होने की दशा में पूरा गांव नवाई के त्यौहार को टाल देता है। इसे कुछ दिनों बाद सामूहिक रूप से मनाया जाता है।

गाँव में नवाई की तारीख तय होने के बाद घरों की गोबर से लिपाई की जाती है घर के चूल्हे से लेकर मुख्य द्वार तक लिपाई की जाती है। गायना होता है जिसमे ब्रह्माण्ड की सम्पूर्ण जीवन प्रणाली के हित में गीत गाए जाते है। जीवन उत्पत्ति की अवधारनाएं / परिकल्पनाएं से लेकर वर्तमान समय तक का मौखिक वाचन किया जाता है। जो गाता है ढाक के साथ उसे गायन कहते है। गायना में पूरी रात गाँव के वरिष्ठ लोगो द्वारा जिन्हे गीत की कढ़ी की पूरी जानकारी होती है वो ढाक बजाकर गीत गाते है। इस त्यौहार में घर के वरिष्ठ सदस्य पुरखो की आत्माओं का सम्मान करते हुए नई फ़सल को नहीं खाते। त्यौहार के दिन घर के मुखिया व्रत रखते है। पूजा सामग्री में चावल, मुंग या चवले की दाल, पानी पलाश के पत्ते, महूए की दारू, उवकी, सूपड़ा आदि का इस्तमाल किया जाता है। सागोन की लकड़ी की बनी घिचरी कुल देवी की पूजा की जाती है। रानी काजल माता, राजू पांन्तु, भीलट सहित प्रकृति की पूजा की जाती है। यह दाहिने हाथ से दाहिनी तरफ तीन बार और बाए हाथ से दो बार बायीं तरफ पानी तरफते है। पलाश के पत्तों पर नये पकवान को रखा जाता है। फिर महूए की दारू की बुँदे जमीन गिराई जाती है। इस दौरान चाँद, सूरज, धरती, अनाज और पुरखो की आत्माओं को याद करते हुए धीरे-धीरे महुआ दारु की बुँदे धरती पर गिराई जाती है। इस दिन पूजा के लिए बना पकवान फलिया के सभी घरों में बच्चो को बाट दिया जाता है। नवाई का आमंत्रण आसपास के गाँव नाते रिश्तेदारों को भेजा जाता है।

युवा अधिवक्ता, आदिवासी लोक गीतों एवं नृत्य में पारंगत लोक कलाकार ललिता नरगावे ने बताया की नवाई आदिवासी समाज का फसलीय त्यौहार है। जो नयी फसल खाने लायक हो जाने पर मनाया जाता है। नई फसल देवी, देवताओं, पूर्वजों और प्रकृति को सबसे पहले अर्पित करने करने के बाद खाते है। इस दिन गाँव की महिलाए और पुरुष एकत्र होकर गरबा गीत गाते हुए ताली बजाकर नाचते है। लोक गीत और नृत्य कलाकार ललिता के अनुसार यह सिर्फ नृत्य या गीत नहीं, बल्कि आदिवासी संस्कृति, परम्परा और समाज की एकता का प्रतिक है। उनके अनुसार पारम्परिक नवाई गीतों की गूंज पुरे माहौल को पावन और उत्सवमय बना देती है। समाज अपनी कुलदेवी, बाबदेवी और पूर्वजों की पूजा कर आभार व्यक्त करता है। यह त्योहार समाज में भाईचारा और एकता का संदेश फैलाता है।

नवाई, नवाखाई धरती पुत्र किसान से जुडा आदिवासी समाज का प्रमुख फसलीय पर्व है। प्रकृति की गोद में रहकर प्रकृति के प्रति आस्था, सम्मान और आभार व्यक्त करने का सम्पूर्ण दर्शन इस आदिवासी पर्व में साफ तौर पर नजर आता है। प्रकृति के आभार का, धरती के धन्यवाद का महत्वपूर्ण आदिवासी पर्व नवाई बनाया जा रहा है। गाँव-गाँव धरती पुत्र किसान अपनी लहलहाती फसलों को देखकर अपने पूर्वजों, धरती माता, चाँद, सूरज, आकाश, नदी, मिट्टी के प्रति आस्था व्यक्त कर रहे है। नवाई का त्यौहार धूमधाम और उत्साह और लोक मान्यताओं के अनुसार मनाया जा रहा है।