- मेरी ताकत रफ्तार व डी के भीतर सही फैसला ले निशाने लगा गोल करना
- मैं ऑस्ट्रेलिया के टॉम क्रेग की तरह बनना चाहता हूं, मनदीप का मुरीद हूं
- एचआईएल में हमारी बंगाल टाइगर्स को सूरमा क्लब से कड़ी चुनौती मिलेगी
- लकी अपने नाम के मुताबिक मेरे लिए बहुत ’लकी‘ रहे
- श्रीजेश की चीफ कोच के रूप में भारत की जू. हॉकी टीम की नींव मजबूत होगी
सत्येन्द्र पाल सिंह
नई दिल्ली : 25 बरस के अभिषेक नैन का दिल्ली से एकदम सटे सोनीपत जैसे छोटे शहर से आकर अपनी रफ्तार और खासतौर पर डी के भीतर अचूक निशानेबाजी से भारतीय हॉकी टीम के स्टार स्ट्राइकर के रूप में पहचान बनाने का सफर खासा रोचक और उतार-चढ़ाव वाला रहा है। उनकी गिनती अब भारत ही नहीं दुनिया के ऐसे चतुर व कुशल हॉकी स्ट्राइकर के रूप में होती है जो खुद गोल के मौके बनाने के साथ नए जमाने जरूरी प्रमुख पेनल्टी कॉर्नर बनाना भी खूब जानते हैं। देश की आजादी के दिन यानी 15 अगस्त को 1999 में जन्मे नैन ने खुद को करीब एक दशक से भी ज्यादा भारत के प्रमुख स्ट्राइकर रहे आकाशदीप सिंह का सही विकल्प साबित कर अपने साथी सुखजीत सिंह के साथ पहले ग्राहम रीड और अब क्रेग फुल्टन सरीखे देश के चीफ हॉकी कोच का विश्वास जीता है। विशेष पुलिस फोर्स में रहे सत्यनारायण नैन और सूरत देवी के बेटे और हिंदी अध्यायक और जुनूनी हॉकी कोच शमशेर सिंह दहिया के शार्गिद अभिषेक बतौर स्ट्राइकर भारत को 2022 के एशियाई खेलों और 2024 की एशियन चैंपियंस ट्रॉफी में स्वर्ण और 2024 में पेरिस ओलंपिक में कांसा जिता कर देश और दुनिया के हॉकी प्रेमियों का दिल चुके हैं। सात बरस बाद फिर से शुरू हो रही हॉकी इंडिया लीग (एचआईएल) 2024-25 की नीलामी में सूरमा हॉकी क्लब पंजाब के भारत के कप्तान ड्रैग फ्लिकर हरमनप्रीत सिंह (78 लाख रुपये) के बाद अभिषेक नैन (72 लाख रुपये) श्राची बंगाल टाइगर्स द्वारा खरीदे दूसरे सबसे महंगे खिलाड़ी रहे। प्रस्तुत है अभिषेक के साथ अब तक हॉकी सफर और भारत के लिए भविष्य के उनके लक्ष्यों पर उनसे की खास बात।
अभिषेक नैन अपने शुरुआती दिनों से भारतीय हॉकी टीम के स्टार स्ट्राइकर तक के सफर की चर्चा करते हुए अतीत में खो जाते हैं। वह बताते हैं, ’अपने स्कूल छोटू राम जमींदार (सीआरजेड) ,सोनीपत में अपने साथी ’लकी‘ को हॉकी खेलता देख हॉकी खेलना शुरू किया और वह अपने नाम के मुताबिक मेरे लिए बहुत ’लकी‘ साबित हुए। अफसोस लकी ने घर की परेशानियों के चलते हॉकी छोड़ दी लेकिन मुझमें हॉकी का ऐसा जुनून भरा की मैं इस का हो गया। हॉकी में मेरे पहले गुरु मेरे हिंदी शिक्षक शमशेर सिंह दहिया जी दस बरस से मेरे कोच है। वह खुद कभी हॉकी नहीं खेले लेकिन उनमें अपने शार्गिदों को हॉकी खिलाने का जुनून हमेशा से रहा और आज भी है। वह हमें घास पर ही हॉकी का अभ्यास कराते थे। बचपन में और बच्चों की तरह खेलते हुए मस्ती और शरारतें मैंने भी खूब की। एक दिन की बात हॉकी के मैदान पर गुरू (शमशेर) जी आए नही थे। हम बच्चों को ऐसे में मस्ती सूझी और मैं इसी में मैदान से सटी दीवार के बाहर पेड़ पर से जामुन तोड़ने पहुंच गया, लेकिन तभी किसी ने साथी बच्चे ने कहा कि पेड़ का मालिक आ गया। मैं बिना देखे नीचे कूद गया और मेरा पूरा हाथ नीचे जिस दीवार पर लगे शीशे से बुरी तरह कट गया और मुझे तब जल्दी से अस्पताल ले जाया और 15 टांके आए। तब मुझे याद है कि डॉक्टर ने कहा था कि यदि उसके पास ले जाने में पांच दस मिनट की भी देरी हो गई तो शायद मैं बच न पाता। ईश्वर की बहुत कृपा रही और मैं बच गया। परिवार वालों ने इसके बाद मुझे मैदान पर नहीं भेजेगे लेकिन गुरुजी (शमशेर) जैसे तैसे मेरे माता पिता को मुझे हॉकी खेलना जारी रखने के लिए मनाने में कामयाब रहे और मेरा हॉकी सफर जारी रहा। मेरी मां ने हर घड़ी मेरा बराबर हौसल बढ़ाया और इसी से में मैं आज इस मुकाम तक पहुंच पाया।‘
अभिषेक कहते हैं, ’मेरे लिए 2024 के पेरिस ओलंपिक में भारत की लगातार दूसरी बार कांसा जीतने वाली टीम टीम का सदस्य होना गर्व की बात और एक सुखद अहसास है। मैं चाहता हूं कि हमारी भारतीय हॉकी का पहले की तरह ओलंपिक में स्वर्ण जीतने का दौर फिर वापस लौटे ।हमारी टीम इसी लक्ष्य को पाने के लिए शिद्दत से जुटी भी है। अंतर्राष्ट्रीय हॉकी आज एक शतरंज की बिसात की तरह हो गई है और खासतौर पर हर अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में चीफ कोच हर प्रतिद्वंद्वी के लिए अलग रणनीति की बिसात बिछाते हैं। हमारी भारतीय हॉकी टीम की किसी भी प्रतिद्वंद्वी टीम के खिलाफ मैच से पहले मीटिंग होती है। हर टीम मैच के देख उसके लिए अलग रणनीति बनाई जाती है। हमारी कोशिश उसी रणनीति को मैदान पर अमली जामा पहनाने की होती है। बतौर हॉकी खिलाड़ी मेरी ताकत मैदान पर मेरी रफ्तार और डी के भीतर सही समय पर सही फैसला ले अचूक निशाने लगा गोल करना और अपनी टीम के लिए बराबर पेनल्टी कॉर्नर बनाना है। मैं ऑस्ट्रेलियाई के स्ट्राइकर टॉम क्रेग के खेल और खासतौर पर उनकी रफ्तार का कायल हूं। मैं टॉम क्रेग की तरह डी के भीतर सही समय पर सही निशाने जमा गोल करने का कौशल हासिल करने की कोशिश करता हूं और उन जैसा बनना चाहता हूं। भारतीय खिलाड़ियों में मैं अपने सीनियर साथी स्ट्राइकर मनदीप सिंह की डी के सही वक्त पर निशाने और मौकों को खूब भुनाने के कौशल का मुरीद हैं। सात बरस के लंबे के बाद फिर से शुरू हो रही हॉकी इंडिया लीग में मैं श्राची बंगाल टाइगर्स के लिए ऑस्ट्रेलियाई कोच कॉलिन बेच के मार्गदर्शन में बेल्जियम के फ्लोरेंट वान अबूल और ऑस्ट्रेलिया के लेकलन शॉर्प जैसे जाने माने विदेशी धुरंधर खिलाड़ियों के कई घरेलू हॉकी के ऐसे नौजवान खिलाड़ी हैं जे कि बढ़िया प्रदर्शन कर भारतीय टीम में स्थान बनाने के लिए उन पर बेहतर प्रदर्शन का दबाव बना उनके कम्फर्ट जोन से बाहर निकलने की चुनौती पेश करेंगे। मेरा मानना है कि एचआईएल में हमारी बंगाल टाइगर्स को सूरमा हॉकी क्लब पंजाब से कड़ी चुनौती मिलेगी क्योंकि उनके पास दुनिया की मजबूत रक्षापंक्ति और मध्य पंक्ति के साथ तेज तर्रार अग्रिम पंक्ति है। में चल रहे जूनियर एशिया कप में शिरकत कर रही भारतीय जूनियर टीम के अरिजित सिंह हुंडल और गुरजोत सिंह जैसे नौजवान खिलाड़ियों से बहुत प्रभावित हूं और इनसे भविष्य के लिए बहुत उम्मीद हैं। हमारे पुराने साथी लगातार दो ओलंपिक में भारत को कांसा जिताने वाली टीम के सदस्य और अब अंतर्राष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कह जूनियर भारतीय पुरुष हॉकी टीम के चीफ कोच पीआर श्रीजेश की मौजूदगी में जूनियर टीम का नींव बहुत मजबूत होगी और भविष्य के लिए भारत को बराबर प्रतिभाशाली खिलाड़ी मिलेंगे।‘
वह अपने शुरुआती की चर्चा पर लौटते हुए कहते हैं, ’ मैं 2014 में हरियाणा के लिए पहली बार दिल्ली में नैशनल स्टेडियम में सब जूनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में खेला और तब मुझे पहली बार लगा कि मैं भी भारत के लिए खेल सकता हूं। 2016 में मेरा तभी दिल्ली में पूर्व ओलपियन एमपी गणेश के मार्गदर्शन में बनी नैशनल हॉकी एकेडमी (एनएचए) मे चयन हो गया और इसमें तब देश की हॉकी क्रीम थी। वहीं से मेरा सीधे भारत की अंडर 18 एशिया कप के लिए चयन हो गया। उस टूर से मैं भारत में 2017- 18 भारत के जूनियर कैंप आया तब जूड फेलिक्स सर और करियरप्पा सर हमारे कोच थे। 2018 के बाद ऐसा नियम आया कि जिसमे 1996 में जन्में खिलाड़ी ही जूनियर विश्व में भाग ले सकते थे और तब मेरे साथ मेरी तरह 1999 में जन्में सभी खिलाड़ी जूनियर विश्व कप शिविर से बाहर कर दिए और इनमें रोशन, फराज और विशाल जैसे खिलाड़ी थे। तब दो तीन साल मैं भारतीय टीम से बाहर रहा था। मेरी खुशकिस्मती थी मैं तब तक पंजाब नैशनल बैंक (पीएनबी) में नौकरी करने लगा था और मेरे साथ तब मेरे अब भारतीय टीम में साथी सुखजीत सिंह भी थे। तब अच्छी बात यह रही कि हमारे संस्थान पीएनबी की बराबर प्रैक्टिस होती तो हमारे कोच रमेश पठानिया हमे बराबर अभ्यास कराते थे। मैंने इस संघर्ष के दौर में तब खुद से यही कहा कि किसी तरह की बहाने बाजी और खुद को कोसने से बेहतर अपनी कड़ी मेहनत जारी रखी जाए और मुझे इसका सिला भी मिला। 2022 में एफआईएच प्रो लीग में सीनियर भारतीय टीम के लिए पहला बड़ा टूर्नामेंट था मैं जब सीनियर भारतीय टीम में आया तो भारतीय हॉकी टीम में मेरे पहले कोच ग्राहम रीड थे लेकिन हम 2023 विश्व कप मे नौंवे पर रहे थे । बावजूद इसके भारतीय हॉकी टीम के प्रबंधन में सभी ने मुझ जैसे नौजवान खिलाड़ी पर भरोसा रखा। मैं जब भी कभी निराशा हुआ तो अपने पिछले दस के शुरु के कोच शमशेर सिंह से बात करता और वह हमेशा मुझे खुद पर भरोसा बनाए रखने की बात कह मेरा हौसला बढ़ाते हैं। मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि हमारी भारतीय हॉकी टीम के मौजूदा चीफ कोच ने भी मुझ पर भरोसा बरकरार रखा और इसी से मैं आगे का संघर्ष जारी रख चुका हूं।