सीता राम शर्मा ‘चेतन’
पाकिस्तान एक आतंक परस्त आतंकवादी देश है, इस बात को दुनिया एक साथ एक आवाज में चाहे आज स्वीकार करे या कल, भारत बहुत पहले जान और स्वीकार करने के साथ दुनिया को बता भी चुका है ! यह अलग बात है कि दुनिया के कुछ बड़े और शक्तिशाली देश, यह सच बखूबी जानते हुए आज भी उससे अपने पुराने पापी साथ और स्वार्थ के लिए मधुर संबंध बनाए हुए हैं या बनाए रखने को विवश हैं । अमेरिका इस सूची में शीर्ष स्थान पर है, जो आतंकवाद की बड़ी त्रासदी झेलने और अपने हजारों निर्दोष अमेरिकन नागरिकों को बेरहमी के साथ मौत के घाट उतारने वाले आतंकी ओसामा बिन लादेन को वर्षों तक अपनी सैन्य छावनी वाले सर्वाधिक सुरक्षित इलाके में पनाह देने का अक्षम्य अपराध और षड्यंत्र रचने वाले नापाक पाकिस्तान से आज भी मधुर संबंध बनाए हुए है । इतना ही नहीं वह उसके आतंकवाद के पाप को जिंदा रखने के लिए खैरात देने की अपनी कूटनीति भी जारी रखा हुआ है । हालांकि उसके पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस दिशा में अमेरिकन नीति में सुधार की कोशिश जरूर की थी, पर अब वह बाइडेन के बडेन के साथ फिर से अपने पुराने नक्शे कदम पर है । जो अमेरिका और हर अमेरिकन नागरिक के दृष्टिकोण से भी पूरी तरह गलत और अक्षम्य है । खैर, पाक-अमेरिकी नापाक संबंधों पर ज्यादा बात करने से कोई फायदा भी नहीं, क्योंकि ऐसे हर संबधों का अंत समय खुद निर्धारित करता है । आतंकवाद को लेकर चाहे जो भी देश उसके संरक्षण, संवर्धन और समर्थन में साथ है उसका अंततोगत्वा आतंकवाद से ही विनाश होना तय है । आतंकवाद के प्रकार और परिणाम पर विस्तार से बात फिर कभी, फिलहाल बात चीन और पाकिस्तान के ताजा घटनाक्रम की, जिसमें एक तरफ जहां चीन ने पाकिस्तानी आतंकवादी लश्कर-ए–तैय्यबा के डेप्युटी चीफ अब्दुल रहमान मक्की को संयुक्त राष्ट्र द्वारा काली सूची में डालने से बचाने की अपनी काली करतूत छोड़ दी है तो दूसरी तरफ आतंकवाद के सबसे बड़े वैश्विक जन्मदाता और संरक्षण कर्ता पूरी तरह से नापाक हो चुके पाकिस्तान ने घुटने पर आते हुए भारत से बातचीत की भीख मांगी है । गौरतलब है कि यह वही चीन है, जिसने पिछले साल जून में इसी वैश्विक आतंकवादी मक्की को संयुक्त राष्ट्र में वैश्विक आतंकवादी घोषित कराने के भारत और अमेरिका के संयुक्त प्रयास को अपने वीटो के अधिकार का दुरुपयोग कर बाधित कर दिया था ! आज जब चीन अपनी उस पापी मंशा और काली करतूत से बाज आकर मक्की को वैश्विक आतंकवादी मानने लगा है तो दुनिया को विशेषकर भारत और अमेरिका को उससे यह सवाल बहुत जरूरी तौर पर पूछना चाहिए कि क्या मक्की जून 2022 के बाद आतंकवादी बन गया है ? या फिर क्या पिछले सात महीने में उसे उसके वैश्विक आतंकवादी होने के ठोस सबूत मिले हैं ? या फिर क्या इसी दौरान चीन ने आतंकवाद और आतंकवादी की सही पहचान करने की योग्यता हासिल की है ? स्पष्ट है कि चीन का काला चरित्र कोरोना कालखंड में दुनिया के सामने पूरी तरह उजागर हो चुका है और आज वह खुद एक वैश्विक षड्यंत्रकारी और विस्तारवादी देश की काली पहचान के साथ वैश्विक मुजरिम की भूमिका में है । संभव है कि वह वैश्विक मानवता और बदलती वैश्विक परिस्थितियों के दबाव में एक सोची समझी कुटनीति या फिर षड्यंत्र के तहत ही मक्की को आतंकवादी मानने को विवश हुआ हो, पर उसकी यह विवशता भारत के साथ वैश्विक दृष्टिकोण से भी अच्छी ही है । भारत के साथ पूरी दुनिया को चीन को घुटने पर लाने के ऐसे संयुक्त और प्रभावी प्रयास जारी रखने होंगे ।
अब बात पूरी तरह नापाक हो चुके आतंक परस्त पाकिस्तान की, तो उसका भारत के सामने बातचीत की भीख मांगना बड़ी विवशता हो या फिर षडयंत्र, इस पर ज्यादा नहीं, थोड़ा भी सोचने विचारने की जरूरत फिलहाल भारत को बिल्कुल भी नहीं है । पाकिस्तान आज बदहाली और कंगाली के जिस कगार पर खड़ा है, यदि उसकी यही स्थिति बनी रही तो उसका पोषित आतंकवाद खुद ब खुद अपना और पाकिस्तान की बड़ी तबाही का कारण होगा, यह संभावित नहीं सुनिश्चित सच है, जिसे भारत को पूरी गंभीरता और दूरदर्शिता से जानने समझने की जरूरत है । भारत को किसी भी स्थिति में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की वार्ता भीख या विनती को तब तक रत्ती भर भी तवज्जो नहीं देना चाहिए जब तक वह अपना पाखंडी और षड्यंत्रकारी कश्मीर विलाप छोड़कर अपने यहां पोषित आतंकवाद को समाप्त करने के साथ उसका किसी भी स्थिति में भारत के लिए उपयोग नहीं होने देने की गारंटी नहीं देता है । इस दिशा में जब पाकिस्तान सकारात्मक रवैया दिखाए और खुली स्पष्ट शपथ ले तो भी भारत को सबसे पहले उसे दाऊद इब्राहिम, हाफिज सईद, मसूद अजहर और मक्की जैसे अपने बड़े गुनाहगार आतंकवादियों को सौंपने की शर्त रखनी चाहिए । साथ ही वार्ता मेज पर जाने से पहले भारत को चाहिए कि वह पाकिस्तान से यह शपथ-पत्र ले कि वह अपनी जमीन पर किसी भी देश का किसी भी प्रकार का ऐसा कोई काम नहीं होने देगा, जिससे भारत की अस्मिता, एकता, अखंडता और शांति तथा विकास व्यवस्था को नुकसान पहुंचता हो या भविष्य में पहुंच सकता हो । कम से कम पाकिस्तान जैसे आतंक परस्त नापाक देश के साथ ऐसी कठोर विदेश नीति का उपयोग अब भारत को करना ही चाहिए । ऐसी भारतीय विदेश नीति ना सिर्फ पाकिस्तान को सुधारने के लिए जरुरी है बल्कि भारत के साथ मित्रवत संबंध बनाने या बनाए रखने के इच्छुक देशों की भारत के प्रति सही नीति और नीयत को बनाने और बनाए रखने में भी सहायक सिद्ध होगी ।