कर्ज़ ,मर्ज़ और फ़र्ज़ तीनों को कभी न भूलो

पिंकी सिंघल

समाज में रहते हुए हमारे कुछ दायित्व होते हैं जिनको निभाना हम सब की सामाजिक जिम्मेदारी होती है। एक दूसरे के साथ काम करते हुए और समाज को बेहतर बनाने के लिए हमें अपने सभी दायित्वों और कर्त्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है। किसी ने सही कहा है कि जीवन में तीन चीजों को कभी भूलना नहीं चाहिए ।जैसा कि शीर्षक में बताया भी गया है कि कर्ज़, कर्ज़ और फ़र्ज़ इन तीनों ही मामलों में हमें कोताही नहीं बरतनी चाहिए और इन्हें कभी भूलना नहीं चाहिए।

पहले बात करते हैं कर्ज़ की। कर्ज़ का शाब्दिक अर्थ हम सभी जानते हैं कर्ज़ वह सहायता होती है जो हम किसी से जरूरत पड़ने पर मांगते हैं और जब हमारी आवश्यकता पूरी हो जाती है और हम इतने सक्षम हो जाते हैं कि हम उनकी उस मदद को वापस आदर सहित लौटा सकें तो यह हमारा कर्ज चुकाना होता है। मुश्किल घड़ी में यदि किसी से मददस्वरूप कर्ज़ में कोई वस्तु अथवा राशि ले ली जाती है तो इसमें कोई गलत बात नहीं, कुछ अनुचित नहीं क्योंकि हम सभी सामाजिक प्राणी हैं और समाज में रहते हुए हमें एक दूसरे की मदद की कभी ना कभी आवश्यकता पड़ ही जाती है ।दुनिया में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जो सर्व संपन्न और हर प्रकार से सक्षम हो। प्रत्येक व्यक्ति को कभी न कभी किसी दूसरे व्यक्ति की मदद की आवश्यकता पड़ ही जाती है ।यह किसी वस्तु या धन के रूप में भी हो सकती है।परंतु कर्ज़ लेने के पश्चात लेने वाले को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उसने जिस व्यक्ति से क़र्ज़ लिया है उसने अपना बड़ा दिल और उदारता दिखाते हुए मुश्किल समय में उसकी सहायता की है तो अभी उसका भी यह फर्ज बनता है कि प्राप्त की गई वस्तु को सम्मान सहित वापस लौट आए और धन्यवाद ज्ञापित करे।

अब बात आती है मर्ज़ की। मर्ज से तात्पर्य हमें शारीरिक अथवा मानसिक रूप से होने वाली कोई दिक्कत परेशानी अथवा बीमारी होती है जिसका समय पर इलाज कराया जाना बहुत ही आवश्यक है ।यदि मर्ज की तरफ समय रहते ध्यान ना दिया जाए और उसे बढ़ने दिया जाए तो एक दिन यह जानलेवा भी सिद्ध हो सकता है ।इसलिए समय पर समस्या का निदान करना ,मर्ज का पता लगाना बहुत ही आवश्यक है और पता चलने के बाद उस मर्ज के इलाज पर भी उतना ही ध्यान दिया जाना चाहिए ।ऐसा न करने की स्थिति में मर्ज इलाज के बाहर हो जाता है और उस वक्त हम खुद को बहुत ही असहाय महसूस करने लगते हैं क्योंकि वक्त बीतने के पश्चात पछताने का कोई लाभ नहीं होता।

तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात फ़र्ज़। फ़र्ज़ अर्थात हमारा कर्तव्य ।हमें अपने कर्तव्यों और दायित्वों का भलीभांति ज्ञान होता है यदि किसी कारणवश हमें अपनी जिम्मेदारियों का ज्ञान नहीं होता है, जानकारी नहीं होती है तो हमें चाहिए कि हम अपने आसपास होने वाली घटनाओं पर नजर रखें अपने साथ रह रहे लोगों के प्रति विश्वास बनाए रखें और उन्हें किसी प्रकार की परेशानी ना हो इस बात का खास ख्याल रखें ,बस यही हमारी जिम्मेदारी है ।अपने प्रति भी हमारी एक बड़ी जिम्मेदारी बनती है। अपने को स्वस्थ और प्रसन्न रखना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है क्योंकि अपने प्रति जिम्मेदारी का जिस व्यक्ति को ज्ञान होता है वह व्यक्ति ही दूसरों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भलीभांति निभा सकता है ,पूरा कर सकता है।

समाज के प्रति, राष्ट्र के प्रति, विश्व के प्रति भी हमारी बहुत सी जिम्मेदारियां होती हैं,बहुत से कर्तव्य होते हैं जिनको निभाकर हम एक सशक्त और जागरूक नागरिक होने का फर्ज निभा सकते हैं। एक नागरिक होने के नाते हमें अपने सभी कार्यों को बेहद दुरुस्त तरीकों से करना चाहिए और ईमानदारी का पालन करते हुए उन्हें अंजाम देना चाहिए। समाज में रहते हुए हमारी अपने प्रति,अपने माता-पिता ,भाई-बहन ,बच्चों, जीवनसाथी ,अड़ोसी पड़ोसी ,सगे संबंधियों ,मित्रों,अपने गांव, शहर, क्षेत्र ,राज्य, राष्ट्र और पूरी सृष्टि के प्रति हमारी बहुत सी जिम्मेदारियां होती हैं ।इन सभी जिम्मेदारियों के बीच उचित तालमेल बनाए रखने के बाद ही हम आत्म संतुष्टि का अनुभव करते हैं।

यह सत्य है कि सभी की अपेक्षाओं पर खरा उतरना संभव नहीं है ,किंतु अपने को अच्छा महसूस कराने और आत्म संतुष्टि का अनुभव कराने के लिए हमें अपना हर कार्य ईमानदारी से करना चाहिए और समर्पण की भावना को सर्वोपरि रखकर ही अपने सभी दायित्वों को निभाना चाहिए। ऐसा न करने की स्थिति में हम ना केवल अपने आप को धोखा देते हैं अपितु अपने अपनों को और अपने राष्ट्र ,समाज और समस्त मानव जाति को धोखा देते हैं जो एक सभ्य समाज के निर्माण में बाधक सिद्ध होती है।इसलिए अपने समाज, राष्ट्र और विश्व का समुचित विकास करने के लिए हमें उपरोक्त जिम्मेदारियों का ध्यान रखना चाहिए और उन्हें निभाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़नी चाहिए। यही सच्ची मानवता है और मानवता का धर्म ही जीवन में सबसे बड़ा धर्म माना जाता है।