गोपेंद्र नाथ भट्ट
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राजस्थान,मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक विजय दर्ज कर अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले हुए सेमीफाइनल की लड़ाई जीत ली है। इन प्रदेशों में चुनाव परिणाम घोषित हुए अभी 18 दिन ही हुए हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 13 दिसंबर और राजस्थान में 15 दिसंबर को नई सरकार का गठन हुआ है ।भाजपा ने तीनों ही प्रदेशों में अप्रत्याशित ढंग से मुख्यमंत्री के रूप में बिल्कुल नए चेहरों को सामने लाई है और राजस्थान में तों पहली ही बार विधायक बने भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया है। तीनों ही राज्यों में सरकार का गठन हुए भी एक हफ्ते से अधिक समय हो चुका है लेकिन छत्तीसगढ़ को छोड़ दें तो शेष दो राज्यों में अब तक मंत्रिमंडल का गठन नहीं हो सका है। इसके लिए जयपुर, भोपाल और रायपुर से लेकर नई दिल्ली तक बैठकों का दौर भी चला है। राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा सप्ताह में दूसरी बार नई दिल्ली की यात्रा कर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा और अन्य वरिष्ठ नेताओं से भेंट कर अपने मंत्रिपरिषद के विस्तार के संबंध में चर्चा करके गुरुवार को जयपुर लौट है।
राजस्थान सहित मध्य प्रदेश में नए मंत्रिमंडल की तस्वीर क्या होगी, किसे मंत्री पद मिलेगा, मंत्री के लिए चेहरों का कैसे चयन किया जाएगा? इसे लेकर कयासों का दौर जारी है। कहा तो ये भी जा रहा है कि जिस तरह से बीजेपी ने तीनों राज्यों के चुनाव में जीत के बाद सरकार का चेहरा बदल दिया,नए सीएम दिए, मंत्रिमंडल भी पूरी तरह नया हो सकता है। गुजरात में तों भाजपा ने सभी पुराने मंत्री ही बदल दिए थे। इस बार मंत्रिमंडल गठन का फॉर्मूला क्या हो सकता है? इस पर भी चर्चा का बाजार जोरों पर है।
तीनों ही राज्यों, खासकर राजस्थान और मध्य प्रदेश में खूब चर्चा हो रही है कि क्या भैरों सिंह शेखावत,वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली पुरानी सरकार में मंत्री रहे विधायकों को फिर से मंत्री पद मिलेगा अथवा नहीं ? ऐसा इसलिए भी है क्योंकि बीजेपी ने तीनों ही राज्यों में नए सीएम बनाकर यह संदेश दे दिया है कि पार्टी अब बदलाव के मूड में है। ऐसे में उन विधायकों के मंत्री बनने या न बनने को लेकर सबसे अधिक चर्चा हो रही है जो पार्टी की पिछली सरकारों में मंत्री रहे हैं। कयास तो इस बात को लेकर भी है कि भाजपा नए सीएम के साथ बहुत पुराने चेहरों, तीन या इससे अधिक बार मंत्री रह चुके विधायकों को मंत्री बनाने के मूड में नहीं है ,हालांकि छत्तीसगढ़ के मंत्रिमंडल में बृजमोहन अग्रवाल इस फॉर्मूले के अपवाद बने हैं।अग्रवाल भी रमण सिंह के साथ मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार थे।
राजस्थान और मध्य प्रदेश में अगर आगामी लोकसभा चुनाव को मद्दे नजर नए खून को मौका देने का मापदंड तय हुआ तो दोनों प्रदेशों में 2003 से बीजेपी की हर सरकार में मंत्री रहे दिग्गजों के मंत्रिमंडल में शामिल होने की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है ।राजस्थान में डॉ किरोड़ीलाल मीणा,मदन दिलावर, जोगेश्वर गर्ग, कालीचरण सराफ, प्रताप सिंह सिंघवी, श्रीचंद कृपलानी जैसे कई कद्दावर नेता भी मंत्री पद की रेस से बाहर हो सकते हैं।
लोकसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने बाकी हैं। ऐसे में मंत्रिमंडल गठन पर 2024 के चुनाव की छाप नजर आएगी। भाजपा की रणनीति तीनों राज्यों में बड़े चेहरों से ज्यादा ऐसे नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह देने की होगी जिनकी पहचान जमीनी नेता की है,यानी मंत्री इस तरह से बनाए जाएंगे जिससे लोकसभा की सीटों को कवर किया जा सके। इस तरह का चेहरा चुना जाए जिससे पूरे लोकसभा क्षेत्र के वोटरों को प्रभावित किया जा सके और उन्हें पार्टी के पक्ष में मोड़ा जा सके।छत्तीसगढ़ के मंत्रिमंडल में राम विचार नेताम और बृजमोहन अग्रवाल जैसे नेताओं को जगह दिए जाने के पीछे इसी फैक्टर को अहम माना जा रहा है।
प्रदेशों में मंत्रिमंडल के जरिए भाजपा की रणनीति जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन साधने की होगी। मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29, राजस्थान में 25 और छत्तीसगढ़ में 11 सीटें हैं। वर्ष 2018 के चुनाव में जब भाजपा तीनों राज्यों में विधानसभा चुनाव हार गई थी, तब भी पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनाव में इन राज्यों की कुल 65 में से 61 सीटों पर जीत मिली थी।
भाजपा इस बार भी इन तीनों राज्यों की सभी सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है। ऐसे में पार्टी की रणनीति यही होगी कि मंत्रिमंडल गठन में हर रीजन को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए जिससे कहीं भी उपेक्षा का संदेश न जाने पाए।किसी भी एक क्षेत्र से ज्यादा मंत्री नहीं बन सकें ताकि किसी एक रीजन की उपेक्षा जैसी बातें वोटरों को पार्टी से दूर न कर दें। छत्तीसगढ़ के नए मंत्रिमंडल पर इसकी छाप दिख भी रही है। जहां तक राजस्थान का सवाल है यहां जातिगत और क्षेत्रीय संतुलन के साथ नए और पुराने अनुभवी नेताओं को मंत्रिपरिषद में साधने पर विशेष ध्यान दिया जा सकता है।
इस तरह राजस्थान और मध्य प्रदेश के नए मंत्रिमंडल में नए चेहरों के साथ ही अनुभव का मिश्रण देखने को मिल सकता है।जैसा छत्तीसगढ़ के नवगठित मंत्रिमंडल में बृजमोहन अग्रवाल जैसे अनुभवी नेता हैं तो ओपी चौधरी जैसे नए चेहरे भी शामिल किए गए है ।
भाजपा अपने वरिष्ठ नेताओं को नजर अंदाज कर उनकी नाराजगी नहीं लेना चाहेगी इसलिए चर्चा है कि कैबिनेट में सीनियर-जूनियर का संतुलन देखने को मिल सकता है और कम से कम 60 फीसदी मंत्री सीनियर और 40 परसेंट विधायकों को मंत्री बनाकर कैबिनेट में संतुलन साधा जा सकता है।छत्तीसगढ़ विधानसभा की सदस्य संख्या 90 है। नियमों के मुताबिक सूबे की सरकार में सीएम समेत अधिकतम 13 मंत्री हो सकते हैं।नौ नए नाम के साथ ही अब मंत्रिमंडल में 12 सदस्य हो गए हैं, यानी एक सीट अब भी खाली है।
भाजपा ने राजस्थान में सात सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारा था जिनमे से डॉ किरोड़ी लाल मीणा, कर्नल राज्यवर्धन सिंह, दिया कुमारी और बाबा बालकनाथ विधानसभा चुनाव जीत गए है । इनमे से दिया कुमारी को उप मुख्य मंत्री बनाया जा चुका है। इसी प्रकार मध्य प्रदेश में केंद्र की सरकार में मंत्री रहे प्रह्लाद पटेल, नरेंद्र सिंह तोमर और कैलाश विजयवर्गीय जैसे कद्दावर नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा था। इनमें से नरेंद्र सिंह तोमर को स्पीकर बना दिया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्रिमंडल में कई बड़े चेहरे जगह नहीं पा सके। ऐसे में ये सवाल अब और भी गहरा हो गया है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान के कद्दावर चेहरों का क्या होगा?
राजस्थान विधानसभा में दौ सौ सीटों के हिसाब से कुल तीस मंत्री बनाए जा सकते है जिसमे से सीएम सहित दो डिप्टी सीएम बनाए जा चुके है और अब 27 मंत्रियों को शामिल करने की गुंजाइश शेष है। पाँच बार के विधायक वासुदेव देवनानी को विधान सभा अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है।इसके अलावा सरकार के पास विधायकों को अन्य कर सरकारी अर्द्ध सरकारी बोर्ड निगमों आदि में भी समायोजित किया जा सकता है।
राजस्थान और मध्यप्रदेश में मंत्रिपरिषद विस्तार को लेकर नए और पुराने विधायक इंतजार में बेताब हो रहे है । राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा प्रदेश में मंत्रिपरिषद विस्तार को लेकर कटाक्ष भी कर रहे है। हालाकि भाजपा का कहना है कि कांग्रेस की सरकार के गठन के वक्त अशोक गहलोत और सचिन पायलट के मध्य चले संघर्ष और देरी को सभी ने देखा था।
देखना है राजस्थान और मध्यप्रदेश में अतिशीघ्र होने वाले मंत्रिपरिषद के विस्तार में स्थान पाने वाले खुश किस्मत विधायक कौन कौन से विधायक होंगे?