गोपेंद्र नाथ भट्ट
राजस्थान के नए मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने बुधवार को पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से उनके निवास पर जाकर भेंट की और प्रदेश में कई दशकों से मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री की मुलाकातों की समाप्त सी हो गई परम्परा को फिर से पुनर्जीवित किया है। अशोक गहलोत जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो वे भैरों सिंह शेखावत और अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों से अक्सर मिलने जाते थे लेकिन वसुन्धरा राजे के मुख्यमंत्री बनने के बाद शपथ ग्रहण समारोह को छोड़ कर यह परम्परा लगभग बंद सी हो गई थी और यह सिलसिला करीब तीस वर्षों से चला आ रहा था क्योंकि गहलोत और वसुंधरा राजे ही इन वर्षों में बारी-बारी से मुख्यमंत्री बन रहे थे ।वे इन वर्षों में कभी एक दूसरे के निवास पर जाकर नही मिले थे। गहलोत ने कई बार इसे लेकर सार्वजनिक मंचों पर उलाहना भी दिया कि राजे को उनके सलाहकारों ने एक दूसरे से नही मिलने की राय देकर प्रदेश के विकास के मुद्दों को लेकर एक दूसरे के मध्य होने वाले सार्थक इंटरेक्शन को अवरूद्ध कर दिया है। हालांकि राजनीतिक हलकों में प्रायः यह अफवाहें उड़ती थी कि राजे और गहलोत अंदर से मिले हुए है और अपने राजनीतिक हितों के लिए एक दूसरे की मदद करते है लेकिन यथार्थ में सार्वजनिक मंचों को छोड़ वे एक दूसरे के निवास पर नही जाते थे।
गहलोत-राजे युग से पहले प्रदेश के सभी मुख्यमंत्री विशेष कर सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहे मोहन लाल सुखाडिया प्रतिपक्ष के नेताओं से मिलते थे। भैरों सिंह शेखावत से उनकी ट्यूनिंग जग जाहिर थी।इस परम्परा को बरकतउल्ला खान, हरिदेव जोशी, शिव चरण माथुर और भैरों सिंह शेखावत आदि ने जारी रखा था। 1977 में देश में जनता पार्टी की भारी जीत के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी प्रतिपक्ष के नेता महारावल लक्ष्मण सिंह और भैरों सिंह शेखावत आदि से मिलने उनके निवास पर गए थे तथा उनकी यह मुलाकात राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा का विषय बनी थी ।
पक्ष-प्रतिपक्ष के नेताओं की इन मुलाकातों से राजस्थान में हमेशा राजनीति की स्वस्थ परंपराएं और मर्यादाएं बनी रही और देश के कई प्रदेशों की तरह राजस्थान में कभी राजनीतिक वैमनस्यता और बदले की भावना से काम करने की भावनाएं विकसित नहीं हुई तथा प्रदेश के सर्वांगीण विकास और हित के विषयों में पक्ष विपक्ष एक साथ खड़ा दिखा तथा कई ऐसे उदाहरण देखे गए कि दोनों पक्षों ने मिल कर विधानसभा में संकल्प पत्र पारित कर केंद्र सरकार को भिजवाएं फिर वह राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने और संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ने का मामला क्यों नही हो अथवा अंतर राज्यीय समझौते के अनुरूप पंजाब से राजस्थान के हिस्से का पूरा पानी दिलाने का मामला ही क्यों न हो और ऐसे ही अन्य मामलों में राजस्थान के पक्ष विपक्ष ने एक साथ मिल कर संकल्प पत्र पारित किए । नब्बे के दशक तक प्रदेश के सांसदों ने भी राज्य हित के विषयों को संसद में एक स्वर से उठाया और अपनी आवाज बुलन्द की । इस परम्परा को और अधिक मजबूत बनाने के लिए नई दिल्ली के आवासीय आयुक्त कार्यालय में सांसद प्रकोष्ठ भी बनाया गया लेकिन कालांतर में यह राजनीति की भेंट चढ़ गया और कांग्रेस की सरकार में भाजपा तथा भाजपा की सरकार में कांग्रेस के सांसद अलग-अलग खेमों में बटे दिखें तथा मामले भी अलग अलग ही उठाने लगे जिससे प्रदेश की वाजिब मांगे भी सिरे पर नही चढ़ पाई और सांसद प्रकोष्ठ की प्रासंगिकता पर भी प्रशन चिन्ह लग गया। हालांकि प्रदेश का योजना विभाग हर संसद सत्र से पहले प्रदेश के केंद्र में लंबित मामलों की पुस्तिका हर सांसद को भिजवाता आ रहा है फिर भी पक्ष विपक्ष की एकता नहीं होने से भाखड़ा व्यास केनाल बोर्ड में आज भी राजस्थान का स्थाई सदस्य नहीं बन पाया है और प्रदेश को उसके हक का पानी भी नहीं मिल पा रहा है।उम्मीद है मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा इस दिशा में पहल कर प्रदेश के हितों की रक्षा के लिए आगे आकर पहल करेगे।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से भेंट कर मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने वर्षों से टूटी परम्परा के अवरोध को तोड़ कर एक स्वस्थ परंपरा को शुरू करने के लिए जो पहल की है वह स्वागत योग्य है और इससे उम्मीद की एक किरण भी जगी है कि राज्य के हितों के मामलों में राजनीति से ऊपर उठ कर पक्ष विपक्ष अब हर मंच पर सामूहिक रूप से आवाज उठाएंगे तथा प्रदेश के विकास के विकास का नया रोड मैप तैयार करेंगे। निश्चित ही मुख्यमंत्री शर्मा की यह पहल प्रदेश में मील का पत्थर साबित होंगी।