खेल शिक्षा की नई दिशा: क्या भारत तैयार है?

New direction of sports education: Is India ready?

विजय गर्ग

भारत में खेल और शारीरिक शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी हैं। देश में खेलों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई नीतियां बनाई हैं, लेकिन अभी भी इस क्षेत्र में कई चुनौतियां बनी हुई हैं। जब भारत 2036 ओलंपिक की मेजबानी ओर कदम बढ़ा रहा है, खेल शिक्षा को और मजबूत करने की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा महसूस हो रही है। कुछ समय पहले तक खेल को शिक्षा और करियर की दृष्टि से गंभीरता से नहीं लिया जाता था, लेकिन आज यह देश की प्राथमिकता सूची में शामिल हो चुका है। सरकार द्वारा खेलों के विकास के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं, हैं, जिससे खेल न केवल एक प्रतिस्पर्धा का माध्यम बल्कि करियर और राष्ट्र निर्माण का अभिन्न हिस्सा बन गया है। इसी के साथ, खेल शिक्षा को भी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल किया जा रहा है, ताकि देश में खेल विज्ञान, खेल प्रबंधन और शारीरिक शिक्षा जैसे विषयों को व्यवस्थित रूप से विकसित किया जा सके।

एक सकारात्मक बदलाव यह है कि अब आइआइटी और आइआइएम जैसे प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में खेल कोटे की व्यवस्था की गई है, जिससे तकनीकी और प्रबंधन क्षेत्रों से जुड़े विद्यार्थी भी खेल शिक्षा से जुड़ रहे हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि खेल केवल मैदान तक सीमित नहीं है, बल्कि शिक्षा, अनुसंधान और नवाचार में भी इसका महत्त्वपूर्ण स्थान बनता जा रहा है। इसके बावजूद, भारत में स्पोटर्स इंजीनियरिंग जैसे विषयों पर अब तक बहुत कम काम हुआ है। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें अत्याधुनिक तकनीक, खेल उपकरणों की डिजाइनिंग और प्रदर्शन विश्लेषण के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। यदि भारत को वैश्विक खेल महाशक्ति बनना है, तो स्पोर्ट्स इंजीनियरिंग पर भी विशेष ध्यान देना होगा, जिससे तकनीकी के माध्यम से खिलाड़ियों का का प्रदर्शन बेहतर किया जा सके और देश को खेल विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी बनाया जा जा सके।

खेल शिक्षा का विकास देश के समग्र खेल ढांचे के लिए आवश्यक है। वर्तमान में देश में खेल शिक्षा के लिए 2 राष्ट्रीय, 9 राज्य स्तरीय खेल विश्वविद्यालय के साथ-साथ 700 से अधिक कॉलेज और विभाग संचालित हैं। राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय, लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा संस्थान, लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय कॉलेज ऑफ फिजिकल एजुकेशन और राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थान खेल शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। संस्थानों में खेल विज्ञान, खेल प्रबंधन, खेल पोषण, खेल मनोविज्ञान, खेल चिकित्सा और शारीरिक शिक्षा जैसे विषय पढ़ाए जा रहे हैं। हालांकि, भारत में खेल शिक्षा अभी भी वैश्विक 5 मानकों तक नहीं पहुंच पाई है। इसे और प्रभावी और सुदृढ़ बनाने के के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

भारत में खेल शिक्षा को लेकर सबसे बड़ी चुनौती एकीकृत नियामक निकाय के अभाव की है। इस दिशा में राष्ट्रीय खेल शिक्षा परिषद जैसे निकाय की स्थापना एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है। वर्तमान में, खेल शिक्षा को संचालित करने वाला कोई केंद्रीय संगठन नहीं है, जिससे विभिन्न संस्थान और नियामक निकाय अपने-अपने तरीके से पाठ्यक्रम संचालित कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, शारीरिक शिक्षा पाठ्यक्रमों को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) द्वारा नियंत्रित किया जाता है, मजे बात यह है कि इस परिषद् में शारीरिक शिक्षा के विशेषज्ञ ही नहीं है। वहीं, खेल विज्ञान और खेल प्रबंधन पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अधीन आते हैं, जिससे एक समन्वित और प्रभावी ढांचा विकसित नहीं हो पाता।
इस असंगठित व्यवस्था के कारण न केवल पाठ्यक्रमों में एकरूपता की कमी है, बल्कि विद्यार्थी भी सही दिशा में मार्गदर्शन से वचित रह जाते हैं। इसके अलावा, भारत में खेल शिक्षा अभी भी पारंपरिक पद्धतियों पर आध्यारित हैं, है, जबकि वैश्विक स्तर पर खेल विज्ञान और तकनीक में निरंतर नवाचार हो रहा है। अत्याधुनिक शिक्षण पद्धतियों और डिजिटल नवाचारों को अपनाने की आवश्यकता है, ताकि खेल शिक्षा को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप विकसित किया सके।

यदि भारत को खेल शिक्षा में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनना है, तो उसे अपने पाठ्यक्रमों और प्रशिक्षण पद्धतियों को वैश्विक मानकों के अनुरूप विकसित करना होगा और यह कार्य एक संगठित नियामक निकाय के माध्यम से ही संभव हो सकता है। भारत 2036 ओलंपिक की मेजबानी की दिशा में अग्रसर हैं, और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए खेल शिक्षा को मजबूत करना बेहद आवश्यक हो गया है केवल विश्वस्तरीय खेल सुविधाओं का निर्माण ही पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि एक प्रभावी खेल शिक्षा प्रणाली भी विकसित करनी होगी, जो प्रतिभाशाली खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों और खेल प्रबंधकों को तैयार कर सके।
यदि खेल शिक्षा को एक केंद्रीकृत नियामक निकाय के तहत लाया जाए, तो यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि भारत न केवल खिलाड़ियों को उत्कृष्ट प्रशिक्षण प्रदान करे, बल्कि खेल विज्ञान और खेल प्रबंधन के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी बन सके। अब समय आ गया है कि सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाए ताकि 2036 ओलपिक तक भारत खेल शिक्षा के भी दुनिया का नेतृत्व कर सके। खेल शिक्षा को वह सम्मान और प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जिसका वह लंबे समय से हकदार है, ताकि भारत खेल महाशक्ति बनने के अपने सपने को साकार कर सके।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल ‌