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सुनील कुमार महला
परीक्षा पे चर्चा(पीपीसी)- 2025 कार्यक्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में संपन्न हो चुका है।पीएम ने परीक्षा पे चर्चा(पीपीसी) में स्टूडेंट्स को डिप्रेशन से लड़ने का तरीका बताया।पीएम ने टीचर्स और माता-पिता को अपने बच्चों पर अनावश्यक प्रेशर न देने को कहा है, लेकिन आज के इस आधुनिक प्रतिस्पर्धी युग में यह देखा गया है कि बच्चे परीक्षा के दौरान बहुत अधिक तनाव महसूस करते हैं। आज हर कहीं प्रतिस्पर्धा का भयंकर दौर है और हर अभिभावक, माता-पिता यह चाहते हैं कि उनका बच्चा किसी भी अन्य बच्चों से पढ़ाई में कमजोर न हो। अभिभावक, माता-पिता अपने बच्चों को हमेशा आगे बढ़ना देखना चाहते हैं और बच्चों से उनकी बहुत सी अपेक्षाएं होतीं हैं। जीवन में जो अभिभावक स्वयं नहीं कर सके, वे (अभिभावक) वह सब अपने बच्चों को फलीभूत होना देखना चाहते हैं, ऐसे में बच्चों पर अनावश्यक दबाव आ जाता है। शायद यही वजह है कि पिछले कुछ वर्षों में बच्चों में परीक्षा का तनाव कुछ अधिक देखा जा रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि परीक्षा का दबाव छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत ज़्यादा असर डाल सकता है। इससे बच्चों के समक्ष तनाव, निराशा और अन्य भावनात्मक समस्याएं हो सकती हैं, जो कि उनके शैक्षणिक प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है। प्रायः यह देखा जाता है कि जब भी बोर्ड की परीक्षाएं नजदीक आतीं हैं, तो बच्चों में आत्मविश्वास की कमी झलकने लगतीं हैं।एग्जाम में कम मार्क्स और असफल होने का डर अक्सर बच्चों को तनाव और अवसाद की स्थिति में डाल देता हैं। वास्तव में परीक्षा के तनाव से बचने के लिए हमें यह चाहिए कि हम बच्चों को मोटिवेट करें, उनमें सकारात्मक सोच विकसित करने का प्रयास करें। अभिभावकों को यह चाहिए कि वे अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों के साथ कभी भी नहीं करें, क्यों कि प्रत्येक बच्चे में ईश्वर ने अलग-अलग क्वालिटी दी है, कोई बच्चा किसी क्षेत्र में मजबूत होता है, कोई किसी अन्य क्षेत्र में। हर बच्चे में व्यक्तिगत अंतर(व्यक्तिगत विभिन्नता) पाये जाते हैं। परीक्षा के तनाव से बचने के लिए बच्चों को यह चाहिए कि वे शांत चित्त रहें और गहरी साँस लें और उसे धीरे-धीरे छोड़ें। कहना चाहूंगा कि परीक्षा तनाव प्रबंधन के लिए माइंडफुलनेस तकनीक एक बहुत ही शक्तिशाली उपकरण व उपयोगी तकनीक साबित हो सकती है। हर दिन कुछ मिनट गहरी साँस लेने, ध्यान लगाने या योगाभ्यास करने से मन को शांत होता है और परीक्षा के प्रति चिन्ता कम होती है। इतना ही नहीं, जब चिंता कम होती है तो परीक्षा पर ध्यान केंद्रित करने में भी मदद मिलती है। हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि, शांत मन ही एकाग्र मन होता है और एकाग्रता होने पर पढ़ी हुई चीजें आसानी से याद रख सकते हैं। एकाग्रता से आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी होती है। सकारात्मक सोच बहुत जरूरी है।परीक्षा के तनाव को प्रबंधित करने के लिए खुद का ख्याल रखना बहुत ज़रूरी है।यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बच्चे पर्याप्त नींद ले रहे हैं और हाइड्रेटेड रह रहे हैं। एग्जाम के दौरान शरीर और मतिष्क को अतिरिक्त पोषण की जरूरत होती है, इसलिए फल, दूध, ड्राई फ्रूट्स, ओट्स, बींस, शकरकंद, ताजा जूस, हरी सब्जियां, नारियल पानी, पनीर, दही, छाछ का सेवन करना चाहिए। फास्ट फूड, जंक फूड से पूरी तरह बचना चाहिए।व्यायाम भी तनाव से राहत दिलाने में बहुत कारगर हो सकता है, इसलिए जब भी संभव हो कुछ शारीरिक गतिविधि करने की कोशिश की जानी चाहिए। परीक्षा की ठीक से प्लानिंग भी बहुत आवश्यक है। एक छात्र को परीक्षा तनाव से बचने के लिए अपनी अध्ययन सामग्री को एक साथ निपटाने की बजाय प्रबंधनीय टुकड़ों में विभाजित करके अध्ययन करना चाहिए।साथ ही, रिजीवन के लिए भी उचित समय निकालना होगा। एक छात्र को यह चाहिए कि वह जीवन के लक्ष्यों के बारे में शांति और संयम से सोचे और उनको प्राप्त करने के लिए अपनी कोशिश करे। याद रखिए कि कोशिश करने वालों की कभी भी हार नहीं होती है।कहना चाहूंगा कि अपनी भावनाओं और चिंताओं के बारे में बात करने से, तनाव कम करने और मूल्यवान दृष्टिकोण प्रदान करने में मदद मिल सकती है। आज सरकार भी विद्यार्थियों का तनाव कम करने की दिशा में लगातार काम कर रही है। मसलन, परीक्षा का तनाव कम करने के अनेक आज उपाय तलाशे जा रहे हैं।इस क्रम में आज पाठ्यक्रम का बोझ कम किया गया है। प्रश्नपत्रों को भी व्यावहारिक और अपेक्षाकृत आसान बनाया जा रहा है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि हाल ही में सीबीएसई बोर्ड ने कक्षा 10वीं के लिए साल में दो बार बोर्ड परीक्षाएं आयोजित करने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी है। जानकारी के अनुसार यह बदलाव वर्ष 2026 से लागू होगा। इस बदलाव का छात्रों को फायदा यह होगा कि छात्रों को परीक्षा में अपना प्रदर्शन सुधारने का एक अतिरिक्त अवसर मिल सकेगा। पाठकों को बताता चलूं कि नए स्वीकृत मसौदा दिशा-निर्देशों के अनुसार, कक्षा 10वीं की बोर्ड परीक्षाएं दो चरणों में आयोजित की जाएंगी। पहला चरण फरवरी और मार्च के बीच होगा, जबकि दूसरा चरण मई में होगा। दोनों परीक्षाओं में पूरे पाठ्यक्रम को शामिल किया जाएगा, जिससे छात्रों के ज्ञान और कौशल का व्यापक मूल्यांकन सुनिश्चित हो सकेगा। वास्तव में, नई परीक्षा रूपरेखा विषयों को सात समूहों में वर्गीकृत करती है: भाषा 1, भाषा 2, ऐच्छिक 1, ऐच्छिक 2, ऐच्छिक 3, क्षेत्रीय और विदेशी भाषाएं तथा शेष विषय।यहां यह भी उल्लेखनीय है कि प्रैक्टिकल और आंतरिक मूल्यांकन साल में केवल एक बार ही आयोजित किए जाएंगे।इस नए ढांचे का उद्देश्य छात्रों को अधिक लचीलापन प्रदान करना और एकल वार्षिक परीक्षा से जुड़े दबाव को कम करना है। छात्रों को दोनों सत्रों में उपस्थित होने और अपनी तैयारी के लिए सबसे उपयुक्त सत्र चुनने का अवसर मिलेगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि इससे विद्यार्थियों पर परीक्षा का मनोवैज्ञानिक दबाव कम होगा और उन्हें अपना परिणाम सुधारने के अधिक अवसर मिल सकेंगे। सच तो यह है कि इस निर्णय से छात्रों को परीक्षा फोबिया से मुक्ति मिलेगी। यदि हम यहां आंकड़ों की बात करें तो कुछ रिपोर्टों का अनुमान है कि 40% छात्र परीक्षा संबंधी चिंता का अनुभव करते हैं। एनसीईआरटी के एक सर्वेक्षण के मुताबिक 81 प्रतिशत विद्यार्थियों ने पढ़ाई, परीक्षा और नतीजों को एंजायटी का कारण बताया था। बहरहाल,हमारी परीक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों पर परीक्षा में अधिक से अधिक अंक प्राप्त करने का दबाव होता है।अब नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में विद्यार्थियों के सीखने-जानने एवं मूल्यांकन के समग्र दृष्टिकोण पर जोर दिया गया है।इस शिक्षा नीति में छात्रों में रचनात्मक सोच, तार्किक निर्णय और नवाचार की भावना को प्रोत्साहित करने पर बल दिया गया है।विषयों के लचीलेपन के संदर्भ में समग्र और बहुविषयक शिक्षा पर बल दिया गया है।रिपोर्ट कार्ड केवल अंकों और विवरणों के बजाय कौशल और क्षमताओं पर एक व्यापक रिपोर्ट होगी।नई शिक्षा नीति में वर्तमान में सक्रिय 10+2 के शैक्षिक मॉडल के स्थान पर शैक्षिक पाठ्यक्रम को 5+3+3+4 प्रणाली के आधार पर विभाजित करने की बात कही गई है। इतना ही नहीं, प्रारंभिक शिक्षा को बहुस्तरीय खेल और गतिविधि आधारित बनाने को प्राथमिकता दी जाएगी।नई शिक्षा नीति में कक्षा-5 तक की शिक्षा में मातृभाषा/ स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को अध्यापन के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है, साथ ही इस नीति में मातृभाषा को कक्षा-8 और आगे की शिक्षा के लिये प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है।इस नीति में प्रस्तावित सुधारों के अनुसार, कला और विज्ञान, व्यावसायिक तथा शैक्षणिक विषयों एवं पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं होगा। इसमें छात्रों के सीखने की प्रगति की बेहतर जानकारी हेतु नियमित और रचनात्मक आकलन प्रणाली को अपनाने का सुझाव दिया गया है। साथ ही इसमें विश्लेषण तथा तार्किक क्षमता एवं सैद्धांतिक स्पष्टता के आकलन को प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि अभी तक पाठ्यक्रम(करिकुलम) बड़ी नौकरियों और प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता था, लेकिन अब कौशल विकास(स्किल डेवलपमेंट) पर अधिक जोर दिया गया है। बहरहाल, एनईपी-2020 का उद्देश्य स्कूली पाठ्यक्रम की सामग्री को न्यूनतम करके और विश्लेषणात्मक और आलोचनात्मक सोच, अनुभवात्मक शिक्षा और रचनात्मकता जैसे 21वीं सदी के कौशल पर ध्यान केंद्रित करके छात्रों को समग्र और लचीला सीखने का अनुभव प्रदान करना है। अंत में, यही कहूंगा कि परीक्षाओं को आसान बनाने का उद्देश्य विद्यार्थियों और अभिभावकों, माता-पिता के तनाव और अवसाद को कम करना है। संक्षेप में कहें तो, नई शिक्षा नीति का उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, समानता और सुलभता को बढ़ावा देना है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम परीक्षा को लेकर लापरवाही बरतें और इसे गंभीरता से लेना ही बंद कर दें।