डॉ. वेदप्रताप वैदिक
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन अगले माह सउदी अरब की यात्रा पर जा रहे हैं। उस दौरान वे इस्राइल और फलस्तीन भी जाएंगे लेकिन इन यात्राओं से भी एक बड़ी चीज जो वहां होने जा रही है, वह है— एक नए चौगुटे की धमाकेदार शुरुआत! इस नए चौगुटे में अमेरिका, भारत, इस्राइल और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) होंगे। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जो चौगुटा चल रहा है, उसके सदस्य हैं— अमेरिका, भारत, जापान और आस्ट्रेलिया। इस और उस चौगुटे में फर्क यह है कि उसे चीन-विरोधी गठबंधन माना जाता है जबकि इस पश्चिम एशिया क्षेत्र में चीन के जैसा कोई राष्ट्र नहीं है, जिससे अमेरिका प्रतिद्वंद्विता महसूस करता हो। इसके अलावा इस चौगुटे के तीन सदस्यों का आपस में विशेष संबंध बन चुका है। भारत और सं.अ.अ. के बीच मुक्त व्यापार समझौता है तो ऐसा ही समझौता इस्राइल और सं.अ.अ. के बीच भी हो चुका है। ये समझौते बताते हैं कि पिछले 25-30 साल में दुनिया कितनी बदल चुकी है। इस्राइल- जैसे यहूदी राष्ट्र और भारत—जैसे पाकिस्तान-विरोधी राष्ट्र के साथ एक मुस्लिम राष्ट्र यूएई के संबंधों का इतना घनिष्ट होना अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हो रहे बुनियादी परिवर्तनों का प्रतीक है। अमेरिका के राष्ट्रपति का इस्राइल और फलस्तीन एक साथ जाना भी अपने आप में अति-विशेष घटना है। यों तो पश्चिम एशिया के इस नए चौगुटे की शुरुआत पिछले साल इसके विदेश मंत्रियों की बैठक से शुरु हो गई थी लेकिन अब इसका औपचारिक शुभारंभ काफी धूम-धड़ाके से होगा। मध्य जुलाई में इन चारों राष्ट्रों के शीर्ष नेता इस सम्मेलन में भाग लेंगे। जाहिर है कि यह नाटो, सेंटो या सीटो की तरह कोई सैन्य गठबंधन नहीं है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की उपस्थिति को सैन्य-इरादों से जोड़ा जा सकता है लेकिन पश्चिम एशिया में इस तरह की कोई चुनौती नहीं है। ईरान से परमाणु-मुद्दे पर मतभेद अभी भी हैं लेकिन उसके विरुद्ध कोई सैन्य गठबंधन खड़ा करने की जरुरत अमेरिका को नहीं है। जहां तक भारत का सवाल है, वह किसी भी सैन्य संगठन का सदस्य न कभी बना है और न बनेगा। हिंद-प्रशांत क्षेत्र के चौगुटे में भी उसका रवैया चीन या रूस विरोधी नहीं है। भारत इस मामले में बहुत सावधानी बरत रहा है। वह इन चौगुटों में सक्रिय है लेकिन वह किसी महाशक्ति का पिछलग्गू बनने के लिए तैयार नहीं है। इस वक्त भारत शाघांई सहयोग संगठन और एसियान देशों की बैठकें भी आयोजित कर रहा है। इन सबका लक्ष्य यही है कि आपसी आर्थिक और व्यावसायिक संबंधों की श्रीवृद्धि हो। क्या ही अच्छा होता कि इन सभी संगठनों में पाकिस्तान भी सम्मिलित होता लेकिन इस प्रश्न का हल तो पाकिस्तान ही कर सकता है।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)