विनोद कुमार विक्की
एक दौर था जब नववर्ष सहित अन्य अवसरों पर गले मिलकर अथवा हाथ मिलाकर फिजिकली शुभकामनाएं और बधाइयां दिये जाने का प्रावधान था। कोरोना प्रेरित सोशल डिस्टैंसिंग के पदार्पण से दशक पूर्व ही सोशल मीडिया ने फिजिकल शुभकामना संदेश को डिजिटल शुभकामना संदेश में परिवर्तित और प्रोन्नत कर दिया है। मन से निकलने वाला शुभकामना संदेश अब मेटा से अर्थात फेसबुक, व्हाट्सएप्प पर प्रसारित और सीमित होने लगा है।
मोबाइल पूर्व मनीआर्डर युग में फर्स्ट जनवरी मानव द्वारा मानने और मनाये जाने वाला वर्ष का पहला उत्सव के रूप में जाना जाता है। हालांकि स्वयंमेव प्रसारित इस महापर्व की व्याख्या किसी भी धर्म ग्रंथों में वर्णित नहीं हैं तथापि इसकी व्यापकता वैश्विक स्तर पर देखी गई और देखी जा रही है।
अंग्रेजी कैलेंडर वर्ष के प्रथम तिथि को पटाखा फोड़ने, हाथ मिलाकर अथवा दूरभाष पर शुभकामना प्रेषित करने तथा ग्रीटिंग कार्ड्स के आदान-प्रदान की परंपरा रही है। उस युग में मनुष्य स्वघोषित नववर्ष के उत्सव पर औकात,आमदनी एवं जुगाड़ के अनुसार घर से दूर प्रकृति,पहाड़, पार्क से पड़ोस तक में वेज-नानवेज पिकनिक का आयोजन किया करता था। मदिरा में रुचिरत लोगों के लिए नववर्ष की प्रथम तिथि को होली से पूर्व पियक्कड़ मिलन समारोह का पूर्वाभ्यास माना जाता रहा है। मोबाइल पूर्व युगीन मानव को छात्र जीवन के दौरान गणतंत्र दिवस,शिक्षक दिवस,स्वाधीनता दिवस और गाँधी जयंती आदि राष्ट्रीय पर्व का तथा सामाजिक जीवन में नवरात्रि,होली, दीपावली ईद, मोहर्रम, क्रिसमस, गुरु पूर्णिमा आदि वर्ष भर के कुछ गिने-चुने दिवसों अथवा तिथियों की ही जानकारी थी। इन तिथियों अथवा उत्सवों को परस्पर सहभागिता से हर्षोल्लास पूर्वक मनाया भी करते थे।
कालांतर में मोबाइल नामक यंत्र के आविष्कार से मानवीय रहन-सहन में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिला।
यूं तो समय और दिन की महत्ता का वर्णन प्राचीन काल से ही साधुओं और दार्शनिकों द्वारा किया जाता रहा है किन्तु लोगों को शाश्वत ज्ञान की प्राप्ति गूगल यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने के पश्चात ही हो पायी।
मोबाइल अवतरण के पश्चात मानव ने ज्योंहि गूगल यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया, तब से उन्हें इस दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई कि कैलेंडर वर्ष के प्रत्येक दिवस को किसी न किसी विशेष दिवस का दर्जा अथवा मानद उपाधि प्राप्त है। फिर क्या, मोबाइल के कारण मानव जीवन में पर्व अथवा विशेष दिवसों की संख्या महंगाई की तरह बढ़ती चली गई। स्मार्ट फोन के पुण्य प्रताप से राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय दिवस विशेष का आनलाइन भान होते ही हर आदमजात स्पेशल डे को पूरी तन्मयता से ऑनलाइन या वर्चुअल सेलिब्रेट करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रहा। गूगल के कारण त्योहार मानने की संख्या में इजाफा तो जरूर हुआ लेकिन त्योहार मनाने के उत्साह में कमी आ गई और बधाईयों का डिजिटलीकरण प्रारंभ हो गया।
डिजिटलीकरण एवं अति व्यस्तता के दौर में जहाँ इंसान अपना और अपनों का जन्मदिन अथवा वैवाहिक वर्षगांठ की तिथि तक भूलते जा रहे हैं, वहीं गूगल जीवी मानव जनवरी से दिसंबर माह तक बिना रुके, बिना थके तन्मयता एवं तत्परता से डिजिटल शुभकामनाओं का प्रेषण निर्बाध रूप से कर रहा है।
बहरहाल जनवरी प्रथम तिथि के अहले सुबह मनुष्य द्वारा कसम,प्रण,प्रतिज्ञा का रिचार्ज किए गए मोरल टॉपअप और उत्साह की वैद्यता भले ही शाम तक में समाप्त हो जाए, लेकिन संपूर्ण कैलेंडर वर्ष में प्रत्येक दिवस को विशेष दिवस के रूप में मानने और मनाने की लाइफटाइम वैलिडिटी हमेशा बनी रहती है ।