शिशिर शुक्ला
साक्षरता किसी राष्ट्र के विकास एवं प्रगति का एक महत्वपूर्ण मापदंड होती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो निरक्षरता विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है, फिर विकास चाहे व्यक्ति का हो अथवा समाज का अथवा देश का। केंद्र सरकार के द्वारा शत-प्रतिशत साक्षरता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक बड़ी पहल की गई है। नए साक्षरता अभियान के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में अध्ययन करने वाले प्रत्येक छात्र के लिए प्रतिवर्ष न्यूनतम पांच निरक्षर लोगों को पढ़ाना आवश्यक होगा। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के द्वारा सभी विश्वविद्यालयों एवं उच्च शिक्षा संस्थानों को नवीन सत्र से इस नई साक्षरता योजना को लागू करने के निर्देश दिए गए हैं। योजना की सफलता को सुनिश्चित करने के लिए यूजीसी के द्वारा प्रत्येक पाठ्यक्रम के प्रोजेक्ट वर्क एवं असाइनमेंट को इससे जोड़ने का निर्देश दिया गया है। साथ ही साथ इसमें ऐसी व्यवस्था भी की गई है कि एक अनपढ़ व्यक्ति को पढ़ाने पर विद्यार्थी को पाँच क्रेडिट स्कोर मिलेगा, किंतु ऐसा तब होगा जबकि सीखने वाला व्यक्ति साक्षर होने का प्रमाण पत्र प्राप्त कर लेगा।
वर्तमान स्थिति पर यदि आंकड़ों के माध्यम से दृष्टिपात किया जाए तो विश्व की साक्षरता दर 84 प्रतिशत है जबकि भारत की साक्षरता दर 78 प्रतिशत है। यूनेस्को के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में सर्वाधिक अनपढ़ भारत में ही पाए जाते हैं। साक्षरता का सीधा सा अर्थ है- पढ़ने एवं लिखने की क्षमता प्राप्त कर लेना। किंतु दुर्भाग्यवश हमारे देश में जनसंख्या का एक अच्छा खासा प्रतिशत इस क्षमता से रहित है। यद्यपि आजादी के बाद भारत में साक्षरता का ग्राफ बढ़ा है किंतु फिर भी वैश्विक स्तर पर हम अभी बहुत पीछे हैं। भारत में निरक्षरता हेतु उत्तरदायी कारकों में दो सर्वप्रमुख समस्याएं हैं- जनसंख्या और निर्धनता। जनसंख्या की अनियंत्रित वृद्धि से संसाधनों पर दबाव का बढ़ना स्वाभाविक बात है। संसाधनों की न्यूनता अथवा अनुपलब्धता गरीबी को जन्म देती है। एक निर्धन परिवार के सामने जीविकोपार्जन इतनी बड़ी चुनौती बनकर खड़ा होता है कि उसका सारा श्रम व समय अपने लिए दो वक्त की रोटी की व्यवस्था करने में ही लग जाता है। शिक्षा ग्रहण करने का विचार भी उसके मन मस्तिष्क को स्पर्श नहीं कर पाता। निर्धनता का दुष्प्रभाव यह होता है कि जागरूकता व्यक्ति से कोसों दूर चली जाती है और येन केन प्रकारेण जीवन काटना ही उसका लक्ष्य बन जाता है।
केंद्र सरकार द्वारा निरक्षरता के उन्मूलन हेतु चलाया गया यह नवीन अभियान निस्संदेह आशा की एक तीव्र किरण है। पांच निरक्षर व्यक्तियों को पढ़ाने के कार्य को जब विद्यार्थी की शैक्षणिक प्रगति एवं क्रेडिट पॉइंट से जोड़ा जाएगा तो निस्संदेह यह कार्य एक जिम्मेदारी का रूप ले लेगा। प्रत्येक छात्र पूर्ण लगन एवं तत्परता के साथ इसका निर्वहन करेगा। इस योजना का एक अन्य महत्वपूर्ण लाभ यह होगा कि विद्यार्थियों में सामाजिक सद्भाव एवं समाज के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी की भावना विकसित होगी। आंकड़ों के अनुसार देश में वर्तमान में एक हजार से अधिक विश्वविद्यालय एवं लगभग पैंतालीस हजार कॉलेज हैं। यदि ये सभी नवीन साक्षरता अभियान को सफल बनाने के लिए कमर कस लें, तो निरक्षरता को भारत से मिटाने में अधिक समय नहीं लगेगा। साक्षरता व्यक्ति की विचार करने की क्षमता को नवीन आयाम प्रदान करने के साथ-साथ उसके व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास करती है। यह जाहिर सी बात है कि विश्व के साथ कदम से कदम मिलाकर न चलने पर हम विकास के क्षेत्र में पिछड़ जाएंगे। तकनीकी के इस युग में कदम मिलाकर तभी चला जा सकता है जबकि प्रत्येक व्यक्ति साक्षर हो। निरक्षरता व्यक्ति की स्वतंत्र सोच, निर्णय लेने की क्षमता, अभिव्यक्ति क्षमता एवं उन सभी लक्षणों को दबा देती है जिनके आधार पर मनुष्य एवं पशु में स्पष्ट विभेद किया जा सकता है।
निसंदेह सौ फ़ीसदी साक्षरता के लक्ष्य को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा उठाया गया कदम एक अभूतपूर्व प्रयास है, जो न केवल निरक्षरता का उन्मूलन करेगा अपितु विद्यार्थियों में सामाजिकता की भावना का संचार भी करेगा। प्रतिवर्ष पांच अनपढ़ों को साक्षर बनाने का प्रयास करना किसी भी विद्यार्थी के लिए बहुत मुश्किल नहीं होगा, किंतु इन छोटे-छोटे प्रयासों के सहयोग से प्राप्त होने वाला समेकित अभियान निश्चित रूप से एक बड़ी क्रांति का स्रोत बनेगा। आज भारत प्रत्येक क्षेत्र में वैश्विक पटल पर अपनी पहचान बना रहा है। प्रगति की सरिता के मार्ग में निरक्षरता जैसी चट्टान निस्संदेह एक बड़ी बाधा है। निरक्षरता का उन्मूलन केवल केंद्र सरकार का ही नहीं, बल्कि भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य एवं लक्ष्य होना चाहिए। साक्षरता की यह नवीन योजना समाधान एवं दूरदर्शिता का संगम है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा गया है। भारत विकसित तभी होगा जबकि वह पूर्ण साक्षर होगा। प्रतिवर्ष पांच निरक्षर लोगों को साक्षर बनाने की योजना द्रुत गति से सम्पूर्ण भारत को साक्षर भारत का रूप देगी। यह कहना गलत न होगा कि यह योजना भारत की प्रगति के यज्ञ में एक ऐसी आहुति होगी जो विकास की ज्वाला को धधकाने में कारगर सिद्ध होगी।