- नीतीश कुमार व तेजस्वी यादव की संपत्ति कितनी
- नेताओं की संपत्ति के अंधाधुंध बढ़ने का राज किसी काे नहीं पता
- सुप्रीम कोर्ट भी हैरान.परेशान
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नेताओं की आय का स्रोत जनता को पता होना चाहिए
- कई नेताओं की संपत्ति में चंद सालों में 2100 फीसदी तक उछाल
- सीबीडीटी की गोपनीय रिपोर्ट में खुलासा
संदीप ठाकुर
पांच साल पहले यानी 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आश्चर्य जताया था कि
सांसद या विधायक बनने के बाद नेताओं की संपत्ति बेतहाशा वृद्धि कैसे हो
जाती है ? इस मामले पर कोर्ट ने केंद्र को निर्देश देते हुए विस्तृत
रिपोर्ट पेश करने को कहा था। इस मामले का क्या हुआ कुछ नहीं पता। नेताओं
की संपत्ति काे लेकर आए दिन चर्चा होती रहती है। बिहार में सत्ता
परिवर्तन के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव
की संपत्ति काे लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा छिड़ गई है कि दोनों में से
अधिक अमीर कौन है ? दाेनाें के पास कितनी संपत्ति है।
एडीआर 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक नीतीश कुमार के पास पूरे 3 करोड़ की
संपत्ति है। एडीआर की उस रिपोर्ट के अनुसार नीतीश कुल 3 करोड़ 9 लाख 83
हजार 431 करोड़ रुपयों के मालिक हैं।नीतीश कुमार के ऊपर एक पैसे का कर्ज
नहीं है यानी वे लाेन से बिलकुल फ्री हैं। 2020 में आई रिपोर्ट के
मुताबिक नीतीश कुमार ने स्टेट बैंक और ऑफ इंडिया और पंजाब नेशनल बैंक के
अपने अकाउंट में 88 लाख रुपए जमा किए हुए थे। वहीं नीतीश के करीब 2.58
लाख रुपये शेयर में निवेश किए थे। वहीं दूसरी ओर दौलत के मामले में
तेजस्वी के मुकाबले नीतीश काफी पीछे हैं। 2020 में तेजस्वी द्वारा दिए गए
चुनावी हलफनामा के मुताबिक उनके पास 5 करोड़ 88 लाख 90 हजार 61 करोड़
रुपयों की संपत्ति है। तेजस्वी यादव ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में 31 लाख
79 हजार रुपये जमा दिखाए थे। उन्होंने उस वक्त करीब 4.88 लाख का निवेश
भी कर रखा था। तेजस्वी गहने के भी शौकीन हैं। उनके पास करीब सवा 4 लाख
रुपयों के गहने है। जमीन के मामले में भी तेजस्वी नीतीश से काफी अमीर
हैं। उनके पास 2020 में 9 ऐसी कृषि योग्य संपत्तियां थीं जिसकी कीमत करीब
36 लाख रुपये थी। ऐसे नेताओं की फेहरिस्त काफी लंबी है। कई नेताओं की
संपत्ति ताे चंद सालों में 500 गुणा तक बढ़ी है।
फिर से वही सवाल कि पार्षद, विधायक, सांसद और मंत्री बनते ही देखते ही
देखते मालामाल कैसे हो जाते हैं ? इसका कोई संतोषजनक जवाब हमारे किसी
नेता के पास नहीं है। संपत्ति बढ़ने-बढ़ाने का यह सियासी फॉर्मूला न तो
नेता काे पता है और न ही उनकाे जो बेरोजगारी और गरीबी की मार से जूझ रहे
हैं। भारत में इस समय करीब 10 करोड़ से अधिक लोग रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं।
बेरोजगारी एवं गरीबी भी उन मुद्दों में से प्रमुख है, जिनका राग अलाप कर
लोग राजनीति में आते हैं। सेवा के नाम पर की जा रही सियासत जिस तरह से
भारी मुनाफा देने वाले उद्योग में बदलती जा रही है, उससे राजनीति के
साथसाथ लोकतंत्र की सार्थकता पर भी सवाल खड़े होते हैं। आम भारतीय को ये
समझ नहीं आ रहा है कि आखिर नेताओं की संपत्ति का इस तरह अंधाधुंध बढ़ने
का राज क्या है ?