साहित्यकार को नोबेल पुरस्कार

Nobel Prize for Literature

डॉ. सतीश “बब्बा”

इतने सारे हूकर, इतनी सारी गाड़ियां; जिसमें लाल, हरी, पीली बत्तियों से लैस तीव्रगामी दौड़ती हुई आ रही थीं। बेचारा साहित्यकार घबड़ाना भूल गया था जो उसके अंदर बिराजमान था।

जिंदगी में इतनी गाड़ियां एक साथ नहीं देखी थी। पढ़-लिखकर जबसे याद है, जब शाम साढ़े सात बजे से साढ़े आठ बजे तक बी बी सी लंदन सुनने के लिए रेडियो में चिपका रहता था। तब से अब तक एक साथ मंत्री, कलेक्टर, चपरासी, पुलिस सुपरिटेंडेंट, सिपाही सभी को गांव में तो देखा ही नहीं था।

गांव के लिए टोपी लगाकर एक सिपाही ही काफी था जो गांव आकर हजारों कमाकर ले जाता था।

गरीब साहित्यकार जो कलम घिसते – घिसते खुद भी घिस गया था। साहित्यकार को लिखने से फुर्सत नहीं मिलती है, साहित्यकार समाज को सुधारने में लगा रहता है, कलम चलाने में ही व्यस्त रहता है। जुमले बाज ने एक जुमला लिखा, एक जुमला बका कि, मीडिया ले उड़ी, नेता जी का चहेता जुमले बाज भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

यह साहित्यकार, कलमकार, सिर्फ लिखता रहा, छपता रहा, छपता रहा! किताबें बनीं, संग्रह बने लोग पढ़ते रहे, पढ़ते रहे, पर किसी नेता की वक्र दृष्टि इनपर नहीं पड़ी थी।

आज इतनी सारी गाड़ियां चारपाई में पड़ते ही दौड़ने लगी थीं।

एक गाड़ी से मंत्री साहब उनके पी ए तथा चपरासी उतरे थे। एक गाड़ी से कुछ अंग्रेज रिपोर्टर्स उतरे थे। जो सीधे साहित्यकार के पास जा पहुंचे थे। साहित्यकार अपने-आप सकपका गया था।

इधर नेता जी, कैबिनेट मंत्री अपने-आपको परेशान से दिखाई दे रहे थे। मंत्री जी साहित्यकार को पहचानते नहीं थे, वरना धमकी दे डाली होती, जो मंत्री चाहता वही साहित्यकार कहता, कोई जरूरी नहीं था फिर भी मंत्री की ऐसी सोच थी।

अचानक इस तरह से विदेशी रिपोर्टरों को यूं देखकर साहित्यकार घबरा सा गया था। साहित्यकार सोच रहा था कहीं कोई गलती हो गई क्या मुझसे!

आते ही विदेशी रिपोर्टरों ने बताया कि, “आपको साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया है। इसमें आपको कई सौ करोड़ रुपए मिलेंगे! अपको कैसा लग रहा है!”

“मुझे बहुत अच्छा लग रहा है!” साहित्यकार ने चौंकते हुए कहा था।

मंत्री से रहाइश नहीं हो रही थी। उसने इतने में झट से दखलंदाजी करते हुए कहा, “आपको इतने रुपए मिलेंगे, आप क्या करेंगे?”

साहित्यकार को आग लग गई थी। उसने झट कहा, “यह बताओ आपने मुझे क्या दिया है? जी एस टी काटने के लिए तैयार होंगे, एक कटोरा लेकर भीख मांग सकते हो!”

मंत्री जल-भुन गया था, लेकिन विदेशी रिपोर्टरों ने अपना कैमरा आन कर रखा था। मंत्री बोला, “देश के लिए तो कुछ करना ही चाहिए!”

साहित्यकार ने मंत्री से ही पूछ लिया, “तुम अपने को देश मानते हो, क्या मैं विदेश में था कि, मुझे तुम नहीं पहचान पाए थे, विदेश वालों ने मुझे पहचान लिया है; भीख मांगने तुम चले आए हो! ध्यान से सुन लो मंत्री जी मैं अब विदेश ही चला जाता हूं, वहां आखिर लोग मुझे पहचानेंगे। मेरे घर में बीमारी हुई मैं चिल्लाता रहा कोई सहायता मुझे इस सरकार से नहीं मिली थी। मंत्री, एम एल ए, सांसद के रिश्तेदारों की फ्री में दवाई हुई थी! आखिर वहां तो ऐसा नहीं होगा”

लाइव कार्यक्रम था, बात बिगड़ती देख कर, सही – सही, खरी – खरी बात से सरकार की बदनामी हो रही थी। साहित्यकार ने देखा तीन – चार हेलीकॉप्टर आसमान से उतर रहे हैं। साहित्यकार के देखते – देखते मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आ गए थे।

आते ही विदेशी कैमरे के सामने प्रधानमंत्री ने साहित्यकार से बताया कि, “आपको भारतरत्न सम्मान देने का निर्णय हो चुका था। घोषणा बाकी थी जो अब मैं कर रहा हूं!”

साहित्यकार अचंभित होकर सबको देख रहा था। तभी मुख्यमंत्री ने कहा, “हमारा मतलब यह था कि, इतने सारे रुपए पाकर कुछ देश के लिए, प्रदेश के लिए भी करना चाहेंगे?”

साहित्यकार ने कहा, “आपके, आपके मंत्रिओं के पास इतना पैसा है, उसका आप क्या करेंगे, देश के लिए, प्रदेश के लिए!”

साहित्यकार ने खड़े होकर कहा था कि, “चलो विदेश वालों ने मुझे पहचाना तो आप भी तो मुझे जान गए हैं, नहीं तो मैं कलम घिसते – घिसते मर जाता, मरने के बाद फिर मेरे पाठक, प्रकाशक ही जानते बस!”

साहित्यकार को आज जीवन में पहली बार क्रोध हुआ था। साहित्यकार के होंठ फड़कने लगे थे, पूरा चेहरा लाल हो गया था।

साहित्यकार ने प्रधानमंत्री की ओर देखते हुए कहा था कि, “अगर मेरे गांव को ही पहचान लिया गया होता तो भी ठीक था। मेरे लिए तो मेरा गांव ही मेरा प्रदेश है, मेरा देश है। मैं जो कुछ भी करूंगा अपने गांव के लिए करूंगा। आपने मेरे गांव के लिए किया है, शराब की दुकान दिया है। सबको जी एस टी दिया है, एक काम के लिए हजारों कागज बनवाने की सौगात दिया है!”

साहित्यकार ने कहा, “प्रधानमंत्री साहब मुझे अपने गांव के लिए कुछ करने का मौका देंगे। मैं अपने गांव में स्कूल, कालेज, अस्पताल आदि बनवा दूं तो आप सरकारी मान्यता उनको देंगे, आयोग से कर्मचारी देकर उन्हें पूरी तरह से सरकारी बना देंगे!”

प्रधानमंत्री का चेहरा तमतमा उठा था। गुस्से से लाल होकर प्रधानमंत्री साहब ने कहा था कि, “तुम अपने-आपको क्या समझते हो, खुद सरकार बनते हो! कान खोलकर सुन लो, जो तुम पैसा पाओगे उसका दशांश प्रधानमंत्री कोश में जमा कराओगे, वरना अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहोगे!”

प्रधानमंत्री ने कहा, “पहरा बैठा दो यह कहीं जाने नहीं पाए!”

कैमरा वाले विदेशियों से कहा, “तुम लोग सब डिलीट कर दो वरना ठीक नहीं होगा। हम जासूसी करने के आरोप में तुम सबको सीधे जेल भेज देंगे!”

बहुत बड़ी हलचल मच गई थी। शोर से साहित्यकार जाग कर उठ बैठा था। साहित्यकार ने देखा गांव के लोग एक आवारा सांड़ को पकड़ने के लिए शोर मचा रहे थे। ताकि उसे बांधकर अपनी फसल की रक्षा कर सकें। काफी लोग इकट्ठे हो गए थे।

साहित्यकार ने सोचा, ‘यह नोबेल पुरस्कार चलो सपने में ही मिल गया!’ वरना ये आए हुए सभी स्वप्न वाले अधिकारी, नेता अब – तक अपने किसी चाटुकार, जुमले बाज खासमखास गोबरगणेश साहित्यकार का नाम भेज ही चुके होंगे, इसमें कोई दो राय नहीं है!

असली साहित्यकार ने सोचा, ‘चलो कोई बात नहीं है, असलियत में असली साहित्यकार को नोबेल पुरस्कार नहीं मिला तो नहीं मिला सपने में ही उसे पाकर थोड़ी देर के लिए ही सही, वह खुशी तो मिली!’

सपने में ही भारतरत्न, सपने में ही कुछ मन का कहने की आजादी तो मिल गई थी। यह सोचकर खुश साहित्यकार ने फिर से कलम उठा लिया था।