रंगनाथ द्विवेदी
पिछले दो वर्ष तक कोरोना जैसी महामारी की वजह से दशहरे के आस-पास रावण जैसे महान खल चरित्र पर कोई भी व्यंग्य ना लिख पाने का मुझे आजीवन मलाल रहेगा. इसे आप मेरे व्यंग्य लेखन की अब तक की सबसे बड़ी अपूरणीय क्षति कह सकते हैं. जिसकी खानापूर्ति हो पाना तो मुमकिन नहीं लेकिन इस बार मैं दशहरे के इर्द गिर्द रावण पर कोई “श्रेष्ठ और शास्त्रीय व्यंग्य” लिखकर अपने व्यंग्य के कलेजे को थोड़ी सी राहत पहुंचाने की पूरी कोशिश करूंगा ऐसी मेरी भीष्म प्रतिज्ञा हैं.
अपनी इसी सनक या यूं कहे की प्रतिज्ञा की इतिश्री के लिए मैंने कुछ स्तरीय रावण की तलाश भी शुरू कर दी है. इतना ही नही मैने अपने कुछ करीबियों को भी इत्तला कर दिया है कि उन्हें अगर किसी भी रामलीला समिति में ऐसा कोई योग्य और होनहार रावण दिखाई पड़े तो वे मुझे तत्काल इसकी सुचना या जानकारी दे.
वैसे काम चलाऊ टाइप के रावण तो कमो बेस हर रामलीला समिति के पास पहले से ही मौजुद है लेकिन भाई ‘रावण आखिर रावण हैं.’ कम से कम जब वह हंसे तो लगे कि वह रावण हंस रहा हैं और उसकी हंसी को देखने और सुनने के बाद एक सामान्य व्यक्ति का ब्लड प्रेशर भी कुछ देर के लिए ऐबनॉर्मल हो जाए. हालांकि पिछले दो वर्ष के कोरोना काल ने हर रामलीला के रावण के इम्यूनिटी सिस्टम को 30% तक क्षतिग्रस्त कर दिया है.
कुछ बेचारे रावण की हंसी तो इतनी डैमेज हो चुकी है कि कुछ पूछिए मत! वे जब हंसने का अपने रियाज कर रहे थे तो मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे वे कोई अंग्रेजी की दवा खा के हंस रहे हो. इसी तलाश में एक और अजीबो गरीब और काफी रोचक रावण से मिलने का सौभाग्य भी मुझे प्राप्त हुआ. दरअसल वे जिस रामलीला समिति में रावण बना था, उससे पहले उस रामलीला समिती में जो व्यक्ति रावण बनता था वे थोड़ा आधुनिक टाइप का रावण निकला. उसने रामलीला सीमित के अध्यक्ष की पत्नी व उसके दो छोटे छोटे बच्चो को लेके कही फरार हो गया.
इसी घटना से दुःखी होकर उस रामलीला समिति के अध्यक्ष ने अपने अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया और अपनी पत्नी को शहर के हर थाने–थाने जाकर बेचारा बिल्कुल पागलो की तरह ऐसे ढूढ रहा हैं कि जैसे “भगवान राम ने कभी अपनी पत्नी सीता को ढूढा होगा.” इसी घटना के डर की वजह से इस बार इस रामलीला समिति का कोई भी व्यक्ति अध्यक्ष बनने को तैयार नही हुआ.उन्हें लगा कि कही उनकी पत्नी भी पुराने अध्यक्ष के पत्नी की तरह रामलीला के किसी कलाकार के साथ कही भाग ना जाए फिर उसका और उसके परिवार का क्या होगा ? इसलिए इस बार इस समिती ने अपनी रामलीला बिना किसी अध्यक्ष के कराने का निर्णय लिया.
चूंकि बिना अध्यक्ष के रामलीला का आयोजन तो हो सकता है लेकिन बिना किसी रावण के कोई भी रामलीला नही हो सकती और इस बार समस्या संस्था के सामने यह भी थी कि उनकी रामलीला का होनहार रावण अध्यक्ष की ही पत्नी को लेके फरार हो गया था. ऐसे में तुरंत ही कही से रावण को ढूढना मुमकिन नही था. इसलिए सर्व सम्मति से संस्था ने इस बार रावण का रोल प्ले करने के लिए अपने ही शहर के एक चर्चित पहलवान का चयन किया. लेकिन समस्या और संदेह की बात ये थी कि एक तरफ विद्वान रावण और दुसरी तरफ रोल प्ले करने वाला शरीर और बुद्धि दोनो से पैदल पहलवान.
अर्थात उस रामलीला के रावण की बुद्धि का दुर दुर तक कोई ताल मेल नही. अगर बहुत गंभीरता से उससे पूछा जाए कि, अक्ल बड़ी या भैंस! तो वे सीधे सीधे भैंस को बड़ी कह देगा. चूंकि रावण बनाने के लिए संस्था ने आपात स्थिति में इस पहलवान का चयन किया था तो थोड़ी बहुत कीमत संस्था को तो चुकानी ही चुकानी थी. वे पट्ठा रिहर्सल से पहले डेढ़ दर्जन केले और दो लीटर दुध के साथ बादाम खाता पीता तब कही जा कर वे अपने रावण होने की प्रेक्टिस शुरु करता.
इतना ही नही एक दिन प्रेक्टिस के समय किसी बात को लेकर उसकी कहा सुनी संस्था में हनुमान जी का रोल प्ले करने वाले व्यक्ति से हो गई और उसने “आव देखा ना ताव” सीधे हनुमान जी को उठाकर उसने ऐसा पटका कि क्या उस तरह दारा सिंह ने अंतरराष्ट्रीय पहलवान किंग कांग को पटका होगा. दुसरे दिन बेचारे हनुमान जी ने हनुमान का रोल प्ले करने से इंकार कर दिया. किसी तरह बहुत समझाने बुझाने पे वे आने को तैयार भी हुए तो रावण अगर पूरब की तरफ प्रेक्टिस करते तो बेचारे हनुमान जी पश्चिम की तरफ मुंह करके प्रैक्टिस करते वह भी बीच–बीच में अपने घुटने पर आयोडेक्स मलने के बाद . इस बार लोगो की मंशा बस किसी तरह अपने एतिहासिक रामलीला की नाक बचा लेने की थी. भले ही इसके बदले रामलीला के किसी कलाकार कि नाक इस पहलवान रूपी रावण के हाथों सुपनखा से भी ज्यादा डैमेज हो जाए.