केवल महिलाएं ही नहीं पुरुष भी हो रहे हैं घरेलू हिंसा के शिकार !

Not only women but men are also becoming victims of domestic violence!

अशोक भाटिया

घरेलू हिंसा या फिर महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा को लेकर न सिर्फ अक्सर बातें होती हैं बल्कि कठोर कानून भी बने हैं, बावजूद इसके इनमें कोई कमी नहीं दिखती। लेकिन इस घरेलू हिंसा का एक पक्ष यह भी है कि घरेलू हिंसा के पीड़ितों में महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष भी हैं लेकिन उनकी आवाज इतनी धीमी है कि वह न तो समाज को और न ही कानून को सुनाई पड़ती है। पारिवारिक मसलों को सुलझाने के मकसद से चलाए जा रहे तमाम परामर्श केंद्रों की मानें तो घरेलू हिंसा से संबंधित शिकायतों में करीब चालीस फीसद शिकायतें पुरुषों से संबंधित होती हैं यानी इनमें पुरुष घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं और उत्पीड़न करने वाली महिलाएं होती हैं।

हाल ही में पुरुषों के साथ हो रही घरेलु हिंसा की घटना अखबारों की सुर्खियाँ बनी हुई है । यह घटना उत्तर प्रदेश के मेरठ की है । यहां पर मुस्कान नाम की महिला ने प्रेमी साहिल के साथ मिलकर अपने पति सौरभ की हत्या कर दी। इसके बाद शव के कई टुकड़े करके नीले रंग के ड्रम में रखकर सीमेंट डाल दिया। पति का मर्डर करने के बाद मुस्कान ने लोगों को बताया कि उसका पति घूमने गया है। वारदात को अंजाम देने के बाद मुस्कान अपने प्रेमी साहिल के साथ हिमाचल प्रदेश के शिमला घूमने चले गई। यही नहीं मुस्कान अपने पति का फोन भी लेकर साथ गई और उसने उसके सोशल मीडिया अकाउंट पर हिमाचल के वीडियो भी डाले, ताकि लोगों को लगे कि सौरभ हिमाचल घूमने गया है। इस घटना के बाद तो ड्रम को लेकर महिलाओं ने ड्रम को अपनी धौस देने का हथियार बना लिया है लेन लग गई है । कई जगह से समाचार आ रहे की पत्नियाँ अपने पति को इसी प्रकार मरने की धमकियां दे रही है ।

मेरठ से ही एक और ऐसा मामला सामने आया है जहां पति-पत्नी के झगड़े में पत्नी ने पति को ऐसी ही भयानक हत्या की धमकी दे डाली। शख्स की पत्नी ने उससे कहा कि अगर हरकतों से बाज नहीं आया तो वह उसके टुकड़े कर ड्रम में भर देगी। आरोप है कि पत्नी ने सोते समय पति के सर पर ईंट मारकर उसे घायल भी कर दिया था। घायल हालत में पति का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो मामला सामने आया है। गोंडा में पत्नी अपने पति को मेरठ हत्याकांड जैसी धमकी दे रही है। पति ने अवैध संबंधों का विरोध किया तो पत्नी ने सरेआम पीटा। धमकी दी- ज्यादा चूं-चपाट की तो गोंडा वाले सौरभ की तरह काटकर ड्रम में भर दूंगी। इतना ही नहीं, निर्माणाधीन मकान में रखे नीले रंग का ड्रम और सीमेंट की बोरियों को दिखाकर डराया भी।प्रताड़ित पति का एक वीडियो भी सामने आया है। इस वीडियो में पत्नी अपने पति को घर के बाहर बीच सड़क वाइपर से पीटते हुए दिख रही है। मोहल्ले वाले पत्नी की करतूत को देख रहे हैं। इससे पहले भी दो बार पीड़ित पति की पिटाई हो चुकी है।

कंकरखेड़ा में दंपती के बीच घरेलू बातों को लेकर हुए झगड़े में पति को धमकी दी कि अगर, हरकतों से बाज नहीं आया तो काटकर ड्रम में भर दूंगी। घायल पति थाने पहुंया और पुलिस को मामला बताया। पुलिस ने घायल का मेडिकल उपचार कराया । कंकरखेड़ा थाना क्षेत्र में दून हाईवे स्थित एक कॉलोनी निवासी युवक ने बताया कि वह मजदूरी करता है। पांच साल पहले उसकी शादी हुई थी। दंपती के दो बच्चे हैं। आरोप लगाया कि पत्नी आए दिन उसके साथ झगड़ा करती है। कई बार घर से खींचकर गली में झाडू तक से पीटा है। मोहल्ले के लोगों ने बीच बचाव कराया था।

बताया जाता है मेरठ में ड्रम कांड के बाद उन पतियों में भी खौफ का माहौल है, जिनकी पत्नियां शादी के बाद भी अपने बॉयफ्रेंड के साथ रिलेशन में हैं। ग्वालियर में ऐसे ही एक पति को अपनी हत्या का डर सता रहा है। इस युवक की पत्नी की चार बॉयफ्रेंड हैं। वह अपने पति को छोड़कर एक बॉयफ्रेंड के साथ रह रही है। ये बॉयफ्रेंड पति को हत्या की धमकी दे रहा है। जब पुलिस ने युवक की बात को गंभीरता से नहीं सुना तो वह फूलबाग चौराहे पर मुख्यमंत्री के नाम पोस्टर लेकर धरने पर बैठ गया।पीड़ित पति ने मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव से मदद की गुहार लगाई है। उसने आशंका जाहिर की है कि कहीं उसकी पत्नी पूजा भी मेरठ कांड की तरह उसे कटवाकर ड्रम में सीमेंट से न दबवा दे।ऐसे कई उदहारण है जिसमें पत्नियां पतियों के साथ मारपीट करती रहती है ।

वैसे भारत में अभी तक ऐसा कोई सरकारी अध्ययन या सर्वेक्षण नहीं हुआ है जिससे इस बात का पता लग सके कि घरेलू हिंसा में शिकार पुरुषों की तादाद कितनी है लेकिन कुछ गैर सरकारी संस्थान इस दिशा में जरूर काम कर रहे हैं। ‘सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन‘ और ‘माई नेशन‘ नाम की गैर सरकारी संस्थाओं के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि भारत में नब्बे फीसद से ज्यादा पति तीन साल की रिलेशनशिप में कम से कम एक बार घरेलू हिंसा का सामना कर चुके होते हैं। इस रिपोर्ट में यह भी गया है पुरुषों ने जब इस तरह की शिकायतें पुलिस में या फिर किसी अन्य प्लेटफॉर्म पर करनी चाही तो लोगों ने इस पर विश्वास नहीं किया और शिकायत करने वाले पुरुषों को हंसी का पात्र बना दिया गया।

लखनऊ में पीड़ित पुरुषों की समस्याओं पर काम करने वाली एक संस्था के संचालक देवेश कुमार बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान ऐसी समस्याओं के बारे में और ज्यादा जानकारी मिली थी क्योंकि इस दौरान ज्यादातर पति-पत्नी साथ रहे हैं। देवेश कुमार बताते हैं, “लोग कई तरह की समस्याएं लेकर आते थे । मसलन, एक युवक इस बात से परेशान था कि उसकी पत्नी के किसी अन्य व्यक्ति से अवैध संबंध थे। मना करने के बावजूद संबंध जारी रहे। लॉकडाउन के दौरान ही उसे ये बातें पता चलीं। दोनों में विवाद हुआ और लड़की के घर वालों ने युवक को यह कहते हुए धमकाया कि यदि उसने कुछ करने की कोशिश की तो दहेज प्रताड़ना के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया जाएगा।”

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, देश में पुरुषों की आत्महत्या की दर महिलाओं की तुलना में दो गुने से भी ज्यादा है। इसके पीछे तमाम कारणों में पुरुषों का घरेलू हिंसा का शिकार होना भी बताया जाता है, जिसकी शिकायत वो किसी फोरम पर कर भी नहीं पाते हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि पुरुषों के खिलाफ हिंसा की किसी को जानकारी नहीं है या फिर इसके खिलाफ आवाज नहीं उठती है लेकिन यह आवाज एक तो उठती ही बहुत धीमी है और उसके बाद खामोश भी बहुत जल्दी हो जाती है।

कुछ समय पहले यूपी में भारतीय जनता पार्टी के कुछ सांसदों ने यह मांग उठाई थी कि राष्ट्रीय महिला आयोग की तर्ज पर राष्ट्रीय पुरुष आयोग जैसी भी एक संवैधानिक संस्था बननी चाहिए। इन सांसदों ने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा था। पत्र लिखने वाले एक सांसद हरिनारायण राजभर ने उस वक्त यह दावा किया था कि पत्नी प्रताड़ित कई पुरुष जेलों में बंद हैं, लेकिन कानून के एकतरफा रुख और समाज में हंसी के डर से वे खुद के ऊपर होने वाले घरेलू अत्याचारों के खिलाफ आवाज नहीं उठा रहे हैं।

पुरुष आयोग की मांग के समर्थन में जो तर्क दिए जाते हैं, उनमें सबसे बड़ा तर्क यह है कि महिलाओं को सुरक्षा देने के जो कानून बने हैं, उनके दुरुपयोग से पुरुषों को प्रताड़ित किया जाता रहा है। इन कानूनों में दहेज कानून यानी धारा 498-ए सबसे प्रमुख है। सुप्रीम कोर्ट में वकील दिलीप कुमार दुबे कहते हैं, “अमेरिका के जिस कानून से प्रेरित होकर यह कानून बनाया गया, वह अमेरिकी कानून जेंडर निरपेक्ष है और उसमें पुरुषों की प्रताड़ना के मामले भी देखे जाते हैं। लेकिन हमारे यहां यह एकतरफा हो गया है। जबकि दहेज प्रताड़ना से संबंधित ज्यादातर मामले खुद अदालत की निगाह में गलत पाए गए हैं।”

करीब चार साल पहले घरेलू हिंसा या उत्पीड़न के शिकार पुरुषों की मदद के लिए एक स्वयंसेवी संस्था ने ‘सिफ’ नाम का एक ऐप बनाया था जिसके जरिए ऐसे पुरुष अपनी पीड़ा दर्ज करा सकते थे। ऐसे पुरुषों को यह संस्था कानूनी मदद भी दिलाती थी। संस्था के प्रमुख अमित कुमार कहते हैं कि इस ऐप के जरिए 25 राज्यों के 50 शहरों में 50 एनजीओ से कानूनी मदद के लिए संपर्क किया जा सकता है। उनका दावा है कि हेल्पलाइन जारी होने के 50 दिन के भीतर ही उन्हें 16,000 से ज्यादा फोन कॉल्स मिली थीं। अमित बताते हैं कि अब तक कई लोगों को कानूनी मदद दिलाई जा चुकी है और कई परिवारों की काउंसिलिंग कराकर उनकी समस्या को दूर किया गया है।

ज्ञात हो कि केरल में पुलिस के लिए नियमित संवेदीकरण कार्यशालाओं के परिणामस्वरूप लिंग-आधारित शिकायतों का अधिक संतुलित संचालन हुआ है। संगठनों को समावेशी कार्यस्थल नीतियाँ अपनाने के लिए बाध्य करें जो पितृत्व अवकाश, पुरुषों द्वारा सामना किए जाने वाले यौन उत्पीड़न और मानसिक स्वास्थ्य सहायता जैसे मुद्दों को सम्बोधित करती हैं। स्वीडन की पैतृक अवकाश नीति पिताओं को समान अवकाश प्रदान करती है, जो घर पर साझा पालन-पोषण और लैंगिक समानता को बढ़ावा देती है। लैंगिक न्याय के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए पुरुषों के अधिकारों को समान ईमानदारी से सम्बोधित करने की आवश्यकता है। लैंगिक-तटस्थ कानून, मानसिक स्वास्थ्य सहायता में वृद्धि और सामाजिक रूढ़ियों को ख़त्म करने के लिए जागरूकता अभियान महत्त्वपूर्ण क़दम हैं। जैसा कि मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा था, “किसी भी जगह अन्याय हर जगह न्याय के लिए ख़तरा है।” एक सही मायने में समावेशी प्रणाली सभी लिंगों को ऊपर उठाती है, समाज में निष्पक्षता और सद्भाव को बढ़ावा देती है।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार