डॉ. क्षमा पांडेय
उपन्यास लेखिका संतोष श्रीवास्तव ने मुझे सदा आकृष्ट किया है। क्योंकि उनके उपन्यास नए-नए विषयों पर रहते हैं। उनकी लेखन शैली भाषा शिल्प आदि किसी भी तरह के लेखन में अलग स्थान रखता है जो पाठकों को आकर्षित करता है और अध्ययन करते समय बांधे रखता है कथा की समाप्ति तक रुचि बनी रहती है। यही विशेषताएं उन्हें एक उपन्यासकार बनाने में सफल हुई हैं। मुझे उनके द्वारा रचित उपन्यास कैथरीन और नागासाधुओं की रहस्यमयी दुनिया को पढ़ने का शुभ अवसर मिला।
यह उपन्यास उन्होंने लगभग 9 वर्षों में पूरा किया। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है उपन्यास लेखन में कितनी मेहनत की गई है और वह भी एक ऐसे विषय में जो लगभग अधिकांश पाठकों से अछूता ही है । मैं क्योंकि उत्तर भारतीय हूं और इलाहाबाद जाना आना हुआ है कुंभ में नागा साधुओं के दर्शन भी किए हैं परंतु कभी इन व्यक्तियों के बारे में उपन्यास पढ़ने को मिलेगा सोचा नहीं था संतोष जी ने उनकी जीवनकथा को कलात्मक दृष्टि से उपन्यास का स्वरूप प्रदान कर पाठकों के समक्ष इस दुर्लभ विषय को रखा है।
वास्तव में जैसा कि उन्होंने उपन्यास के समर्पण में लिखा है कि महाकुंभ में जाकर मैंने यथार्थवादी अनुभव और साहित्यिक विशेषताओं के आधार पर संतुलन बनाते हुए उपन्यास का स्वरूप प्रदान किया। जैसा कि उपन्यास के प्रारंभिक शब्द “कैथरीन” से स्पष्ट होता है कि यह उपन्यास की एक प्रमुख विदेशी महिला पात्र है। जिसके कथानक के आसपास ही उपन्यास केंद्रित है। नरोत्तम गिरी उपन्यास का नायक है। पूर्व सांसारिक जीवन के असफल, अपूर्ण प्रेम की वजह से व्यक्ति किस प्रकार से कठोर निर्णय लेते हुए नागा सन्यासी बनता है और अंततः सन्यासी पुन: प्रेम पाश में जकड़ जाता है। वस्तुत: उपन्यास एक नैसर्गिक प्रेम की अनिवार्यता के धरातल पर आधारित है।
यह उपन्यास नागा साधुओं के माध्यम से यह संदेश देता है कि यदि आत्म संतुष्टि जीवन में नहीं है तो वह सन्यासी जीवन में भी प्राप्त नहीं होती ।प्रेम तो सर्वत्र सदाबहार है ,सर्वव्यापी है ,शाश्वत है जिसे कहीं भी अनुभव व प्राप्त किया जा सकता है। मानव जीवन का अटल सत्य है प्रेम के बिना जीवन व्यर्थ है। यह उपन्यास इसी सार्वकालिक ,सार्वदेशिक शाश्वत सत्य की पुष्टि करता है। नागा साधु बनने की संपूर्ण प्रक्रिया का वर्णन उपन्यास में किया गया है इसे पढ़कर ही दिल दहल जाता है फिर व्यवहारी जीवन में निर्णय लेना वैसा जीवन जीना कितना कठिन काम होता होगा। जैसा की एक जगह लेखिका लिखती है कि हिमालय की बर्फीली हवाओं के बीच बैठा एक तपस्वी नरोत्तम गिरी वस्त्रहीन अवस्था में किस प्रकार अवस्थित है। पूछने पर उसने अपने नागा बनने की कहानी सुनाई -बातों ही बातों में बताया कि 6 से 12 वर्ष साधु बनने में लग जाता है। मोह माया त्याग कर भोग विलासी जीवन को लात मार कर यहां आना पड़ता है ,ठंड,गर्मी बरसात हमें प्रभावित नहीं करती। इतना कठोर तप कराया जाता है कि इनका अनुभव ही नहीं होता। हमें स्वयं कभी पिंडदान जीते जी करना होता है, लिंग को एकदम शांत कर दिया जाता है। सभी इंद्रियां संकुचित हो जाती हैं लेकिन स्वभाव में संवेदनहीनता नहीं आती। तभी तो कैथरीन के अनकहे प्रेम का असर उसके त्यागी जीवन को भी स्पर्श करता है। वस्त्रों के स्थान पर विशेष जड़ी बूटियों से बनी भस्म लपेटी जाती है। रुद्राक्ष की माला धारण कर ध्यान योग आदि से परिष्कृत होकर मानवीय कमजोरियों से राहत मिलती है।
लेखिका अगले अध्याय में उपन्यास में नया मोड़ देते लिखती हैं कि आस्ट्रेलियन युवती कैथरीन इन सब के बावजूद (पूर्व नाम मंगल) नरोत्तम गिरी के जीवन में प्रभाव डालती है और साधु वेष में छुपा हुआ प्रेम पुन: जागृत होता है। जैसा कि भारतीय धर्म ग्रंथो में मेनका, उर्वशी आदि अप्सराओं ने भी ऋषि मुनियों की तपस्या भंग कर उनके जीवन में प्रवेश किया था।
यह कहानी इस बात का समर्थन करती है कि केवल गृह त्याग, शारीरिक वेष भूषा, कार्य का स्वरूप बदलने से अंतर्मन नहीं बदलता। और यही शायद उपन्यास लिखने का उद्देश्य भी है, और मानव जीवन का मूल संदेश भी। कई बार तो कैथरीन के तर्कपूर्ण सवालों ने नरोत्तम और अन्य नागा साधुओं की बोलती भी बंद कर दी क्योंकि वह स्वयं भी एक लेखिका है-पूर्ण को अपूर्ण बनाना, लिंग भंग अमानवीय कृत्य की क्या आवश्यकता? इन सब बातों के माध्यम से लेखिका ने कहानी को विस्तार तो दिया है रोचक भी बनाया है ।वास्तव में नागा साधुओं का जीवन क्या होता है स्पष्ट किया है। और इस विषय पर शोध करने हेतु विवश भी किया है कि क्या नागा साधु बनने के लिए इस क्रूर (अमानवीय) प्रक्रिया में सुधार नहीं हो सकता? उपन्यास की प्रेम कथा के माध्यम से लेखिका ने भारतीय ज्योतिर्लिंगों, शक्तिपीठों, हिमालय की खूबसूरत स्वास्थ्यवर्धक पर्यावरणीय , इसरो की वैज्ञानिक झांकी प्रस्तुत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसा लगता है कि सब कुछ है इस उपन्यास में है। नायिका कैथरीन प्रकृति के साथ तालमेल बिठाते हुए चंद्रमा के साथ प्रेमपूर्ण वार्तालाप नरोत्तम गिरी के लिए ही कर रही है– चांद को सदैव अपने समीप ही महसूस करती रही। एक बार कैथरीन नरोत्तम से कहती है कि” मैं तुम्हें पथभ्रष्ट नहीं होने दूंगी, प्यार कीमत नहीं मांगता।” (पेज -243)
एक बार वह खुद से कहती है कि यह” कैसी बेचैनी है ईश्वर मुक्ति दो।”
इसी प्रकार नरोत्तम गिरी का महाप्रयाण के समय यह कहना कि “तुम्हारे प्यार का मूल्य नहीं चुका पाया कैथरीन!” उसके प्रति असीम प्रेम का प्रतीक है। कैथरीन ने भी अपना भावी सांसारिक जीवन प्रेम रूपी हवन कुंड में विसर्जित कर , नरोत्तम के अधूरे कार्यों को पूर्ण करने का निश्चय किया।
उसी के शब्दों में –“जूना अखाड़े की नई सदस्य जो अपने प्रेम को संपूर्ण करेगी ,पूर्ण करेंगी नरोत्तम के अधूरे कामों को ,जिसके प्रकाश धर्म को वर्षों तक देखेगा जमाना।”
नागा साधुओं की रहस्यमयी कहानी को पढ़कर वास्तव में महसूस हो रहा है कि प्रेम स्वयं मानव जीवन का एक रहस्यमयी विषय है जो कभी भी ,कहीं भी, किसी के साथ भी ,घटित हो सकता है इसमें पूर्व निर्धारण या सीमाएं नहीं होतीं। यह भी एक प्रकार का प्रारब्ध है जो ईश्वर प्रदत्त है। ऐसे प्रेम से कोई दूर नहीं होना चाहता। क्योंकि ऐसा प्रेम नि:स्वार्थ और दिव्य है जो प्राय: सबको उपलब्ध नहीं होता। यह उपन्यास प्रेम दर्शन पर आधारित नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया की विस्तृत विवेचना करता है। कहा जा सकता है कि उपन्यास पूर्णत: दुखांत /सुखांत भी नहीं है। नागा साधुओं के माध्यम से कहीं जाने वाली प्रेम गाथा है जिसकी संपूर्ण जगत को सदैव जरूरत है।
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पुस्तक का अध्ययन करने पर ज्ञात हुआ कि नागा साधुओं की भूमिका देश की रक्षार्थ भी रही है और अनेक अवसरों पर उन्होंने अपने शस्त्रों का उपयोग दुश्मनों को परास्त करने के लिए भी किया।
पेज 241–में लिखा है कि आज भी हरिद्वार में हुए युद्ध के अंतर्गत मारे गए नागाओं की समाधियां हैं, गुजरात के धौलूका व मेहसाणा जिले में आज भी समाधिया हैं।
इन बातों के आधार पर नागा साधुओं के राष्ट्रीय महत्व पर अनुसंधान की अत्यंत आवश्यकता है क्योंकि नागा साधु परिवर्तित स्वरूप में हमारे समाज का ही एक भाग है इन्हें दृष्टि से ओझल नहीं किया जाना चाहिए। आशा है पाठकों को यह उपन्यास इस क्षेत्र में सहयोग कर सकेगा, नागा साधुओं के प्रति मानस पटल पर व्याप्त रहस्य को समाप्त करना होगा।
संतोष श्रीवास्तव ने ऐसे नवीन रहस्यमयी, अछूते विषयों को उठाकर सामाजिक शोध के लिए मार्ग प्रशस्त किया है और पाठकों को नागा साधुओं के रहस्य से पर्दा हटाने हेतु जागृत भी किया है।
उपन्यास की लेखिका को हार्दिक बधाई देती हूं आशा करती हूं कि आगे भी ऐसे छिपे -दबे विषयों पर स्व लेखन जारी रखेंगी।
कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमई दुनिया
लेखिका- संतोष श्रीवास्तव
प्रकाशक -किताब वाले दिल्ली
मूल्य ₹700