अब मचा हलाल पर बवाल , जानिए क्या है वजह सियासत या कुछ और !!

प्रीती पांडेय

बीते दिनों उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने हलाल सर्टिफिकेशन वाले प्रोडक्ट की बिक्री पर रोक लगा दी. हलाल लेबल वाली दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों के बनाने, स्टोर करने और बेचने पर लगाई गई रोक को लागू करने के लिए पूरे राज्य में छापे मारे जा रहे हैं. इसके बाद से इसको लेकर विवाद छिड़ गया. हलाल सर्टिफिकेशन देने वाली 9 कंपनियों पर लखनऊ में एफआईआर दर्ज कराई गई है. एफआईआर में हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड चेन्नई, जमीयत उलेमा हिन्द हलाल ट्रस्ट दिल्ली, हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया मुम्बई, जमीयत उलेमा महाराष्ट्र मुंबई आदि का नाम है. इन कंपनियों पर आरोप है कि ये एक मजहब के नाम पर कुछ उत्पादों पर हलाल सर्टिफिकेशन दे रहे हैं जबकि ये देने का उनका अधिकार नहीं है. खान-पान के उत्पादों की सर्टिफिकेशन लिए FSSAI और ISI जैसी संस्थाओं को अधिकृत किया गया है. कहा जा रहा है पूरे मामले की जड़ में कुछ दिन पहले लखनऊ में दर्ज कराई गई एक एफ़आईआर है जिसमें हलाल का सर्टिफ़िकेट देने वाली संस्थाओं पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं.

हलाल सर्टिफिकेशन क्या होता है?
हलाल सर्टिफिकेशन का मतलब इस्लामी कानून के तहत बने उत्पादों से है.हलाल का मतलब है इस्लामिक शरीयत के हिसाब से बनाया गया प्रोडक्ट. आसान भाषा में कहें तो मतलब ये है कि यह प्रोडक्ट मुस्लिमों के इस्तेमाल के लिए है. मुस्लिम देशों में कोई भी प्रोडक्ट एक्सपोर्ट करने के हलाल सर्टिफिकेशन जरूरी होता है. मगर भारत में शाकाहारी उत्पादों पर भी इसका इस्तेमाल किया जा रहा था. आरोप ये है कि कुछ कंपनियां डेयरी, कपड़ा, चीनी, नमकीन, तेल, मसाले और साबुन सहित शाकाहारी उत्पादों को भी हलाल सर्टिफाइड कर रही थी. पिछले दिनों इसको लेकर काफी बवाल खड़ा हुआ था. चाय के पैकेट पर हलाल देखा गया था. रेलवे में यात्रा करते समय एक यात्री ने इस पर सवाल खड़ा किया था. जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ था.

हलाल सर्टिफिकेट कौन देता है?
भारत में करीब 12 कंपनियां सर्टिफिकेट देती हैं. इस्लामी कानूनों के तहत सर्टिफिकेशन होता है. भारत में सर्टिफिकेट देने वाली संस्थाएं हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमीयत उलमा-ए-हिंद और जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट हैं. वहीं, इस्लामिक देशों में इस्लामिक संगठन हलाल सर्टिफिकेट देते हैं.

18 नवंबर को राज्य की अपर मुख्य सचिव अनीता सिंह ने उत्तर प्रदेश में हलाल सर्टिफाइड उत्पादों पर रोक लगाने का आदेश जारी किया. 1940 के ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स एक्ट के नियमों के तहत यह आदेश जारी किया गया है, आदेश में कहा गया है कि मौजूदा कानून में “दवाओं और कॉस्मेटिक उत्पादों पर हलाल का लेबल लगाने का कोई प्रावधान नहीं है.”आदेश में लिखा गया है कि अगर कोई दवाइयों और सौंदर्य प्रसाधनों पर हलाल का लेबल लगाता है तो उसे मौजूदा कानूनों के तहत भ्रामक जानकारी देने का दोषी माना जाएगा और यह 1940 के ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स कानून के तहत सज़ा हो सकती है.

आदेश में ये भी लिखा है कि एक्सपोर्ट होने वाले प्रोडक्ट्स को छोड़कर उत्तर प्रदेश में हलाल लेबल वाली दवाइयों और सौंदर्य प्रसाधनों की मैन्युफैक्चरिंग, स्टोरेज, डिस्ट्रीब्यूशन और खरीद-बिक्री होने पर 1940 के ड्रग्स और कॉमेटिक्स एक्ट के तहत कठोर कार्रवाई की जाएगी. इसके अलावा एक अधिसूचना जारी की गई है जिसमें कहा गया है कि सरकार को जानकारी मिली है कि कुछ कंपनियाँ डेरी प्रोडक्ट्स, बेकरी, तेल, नमकीन, फ़ूड ऑयल और अन्य प्रोडक्ट्स पर हलाल का लेबल लगा रही हैं. इस नोटिफिकेशन में लिखा गया है, “फ़ूड प्रोडक्ट्स का हलाल सर्टिफिकेशन एक सामानांतर (पैरेलल) व्यवस्था है जो फ़ूड प्रोडक्ट्स के बारे में भ्रम की स्थिति पैदा करता है और कानून के विरुद्ध है. दवाइयों और कॉस्मेटिक उत्पाद पर हलाल लेबलिंग भ्रामक जानकारी देना है जो खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के तहत एक अपराध है.”

सरकार के रोक के आदेश के तकरीबन 24 घंटे पहले लखनऊ के हज़रतगंज थाने में कई उत्पादों पर हलाल का स्टिकर लगाए जाने की शिकायत करते हुए एक एफ़आईआर लिखवाई गई. इस एफआईआर में चेन्नई की हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली की जमीयत उलेमा हिन्द हलाल ट्रस्ट, जमीयत उलेमा महाराष्ट्र, और अज्ञात कंपनियों, उनके मालिकों और मैनेजमेंट के खिलाफ आरोप लगाया गए हैं.

एफ़आईआर में लिखा गया है कि यह हलाल सर्टिफिकेट देकर और लेबल लगाकर एक धर्म विशेष के ग्राहकों में उनकी बिक्री बढ़ाने का छल किया जा रहा है. ये आरोप भी है कि हलाल सर्टिफिकेट देने में जाली दस्तावेज़ों का इस्तेमाल हो रहा है जिससे लोगों आस्था के साथ खिलवाड़ हो रहा है. एफआईआर में आरोप यह भी है कि जो कंपनियां यह हलाल सर्टिफिकेशन नहीं ले रही हैं उनके प्रोडक्ट्स की बिक्री इससे प्रभावित होती है जो गलत है. माँस रहित उत्पादों जैसे तेल, साबुन, शहद वग़ैरह की बिक्री के लिए हलाल सर्टिफिकेट दिया जा रहा है जो अनावश्यक है. ये भी आरोप है कि इसकी वजह से ग़ैर-मुसलमान व्यापारियों के व्यावसायिक हितों का नुकसान हो रहा है. शिकायत करने वाले ने तो यहां तक आरोप लगा डाले कि उन्हें आशंका है कि इसमें देश को कमज़ोर करने वाले लोग शामिल हैं, करोड़ों रूपए कमाए जा रहे हैं और इन पैसों से आतंकवादी संगठनों और राष्ट्रविरोधी संगठनों की फंडिंग की जा सकती है.
लखनऊ में दर्ज कराई गई इस एफआईआर में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द हलाल ट्रस्ट का भी नाम है.

एफआईआर दर्ज होने की खबर के बाद जमीयत उलेमा ए हिंद हलाल ट्रस्ट ने प्रेस रिलीज़ जारी करके कहा है, “हमारी छवि ख़राब करने के उद्देश्य से लगाए गए निराधार आरोपों के जवाब में, जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट ऐसी गलत सूचनाओं का मुकाबला करने के लिए आवश्यक कानूनी कदम उठाएगा.” ट्रस्ट के मुताबिक़, विश्व भर में हलाल ट्रेड तकरीबन 3.5 ट्रिलियन डॉलर है और भारत को उसका काफ़ी फायदा पहुंचता है. उनका दावा है कि उनका हलाल सर्टिफिकेशन प्रोसेस घरेलू डिस्ट्रीब्यूशन और अंतर्राष्ट्रीय एक्सपोर्ट, दोनों के लिए है. वो कहते हैं कि हलाल सर्टिफिकेशन भारत को लाभ पहुंचाने वाली एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि है और यह केवल निर्यात के लिए ही नहीं, बल्कि भारत में आने वाले पर्यटकों के लिए भी एक आवश्यकता है जो हलाल का लेबल देखकर ही सामान ख़रीदते हैं.

ट्रस्ट के मुताबिक वो केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के सरकारी नियमों का पालन करते हैं और उनका ट्रस्ट नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर सर्टिफिकेशन बॉडीज़ के अंतरगर्त क्वालिटी काउंसिल ऑफ़ इंडिया (एनएबीसीबी) के साथ रजिस्टर्ड है. उनका दावा है कि जो हलाल सर्टिफिकेट जो जारी करते हैं उसे मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, कतर, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब जैसे देशों में विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है और वो वर्ल्ड हलाल फूड्स काउंसिल के सदस्य भी हैं. उनका कहना है कि हलाल सर्टिफिकेशन और लेबल न केवल हलाल उपभोक्ताओं की सहायता करता है बल्कि सभी ग्राहकों को ‘इन्फोर्मड च्वाइस’ देता है.

एफ़आईआर दर्ज कराने वाले शैलेन्द्र शर्मा अपने आपको भाजपा का कार्यकर्ता बताते हैं और कहते हैं कि वो पहले भारतीय जनता युवा मोर्चा के अवध क्षेत्र के उपाध्यक्ष रह चुके हैं.शैलेंद्र का कहना है कि हलाल सर्टिफिकेशन की व्यवस्था सरकार की व्यवस्था के समानांतर व्यवस्था है ग़लत है. शैलेन्द्र शर्मा ने अपनी बातों को रखते हुए कहा कि वो एलोवेरा, आई ड्रॉप्स और तुलसी अर्क जैसे उत्पादों का खुद इस्तेमाल करते हैं,लेकिन हैरानी की बात है कि इन उत्पादों पर भी हलाल के लेबल हैं जो समझ के परें हैं । हैरानी की बात तो ये है कि शैलेन्द्र शर्मा की शिकायत पर 17 नवंबर को मुक़दमा दर्ज हुआ और 18 नवंबर को उत्तर प्रदेश सरकार ने हलाल सर्टिफिकेशन वाले उत्पादों पर रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया. हालांकि शैलेन्द्र शर्मा कहते हैं कि उनकी एफआईआर दर्ज होने और उसके ठीक बाद सरकार के आदेश में कोई कनेक्शन नहीं है. अपनी शिकायक में शैलेन्द्र शर्मा ने पूछा हैं कि, “सामान्य रूप से हम माँस के उत्पादों में हलाल और झटका सुनते आए हैं लेकिन सामान्य जीवन में उपयोग आने वाली चीज़ों पर यह ज़रूरी क्यों है? मसाले से क्या मतलब, हल्दी और धनिया पाउडर से हलाल का क्या मतलब?”

हलाल के मुद्दे पर राजनीतिक पार्टियां खामोश हैं
उत्तर प्रदेश सरकार के हलाल सर्टिफिकेशन वाली दवाइयों, कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स और फ़ूड प्रोडक्ट्स के उत्पादन, भण्डारण और बिक्री पर रोक के आदेश के तीन दिन बाद भी अभी तक उत्तर प्रदेश के किसी कद्दावर नेता ने इस मुद्दे पर अपनी राय नहीं दी है. भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी इस सरकारी फैसले को सोशल मीडिया पर साझा नहीं किया गया है. सिर्फ उत्तर प्रदेश सरकार ने एक्स (ट्विटर) पर इससे जुड़ी मीडिया रिपोर्ट्स शेयर की हैं. समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने या उनके पार्टी के सोशल मीडिया हैंडल्स ने इस बारे में कोई बयान दिया है या पोस्ट साझा किया है.