अब देश के मेधावी छात्रों की पढ़ाई में रूकावट नहीं होगी

Now there will be no hindrance in the studies of meritorious students of the country

डॉ. बी.आर. नलवाया

देश के मेधावी छात्रों की पढ़ाई में, अब रूकावट, धन की कमी के कारण नहीं होगी। मेधावी छात्रों के लिए उच्च शिक्षा में अध्ययन के लिए 10 लाख रू. तक का ऋण बगैर किसी गारंटी और गिरवी के ही मिलेगा। इतना फायदा देश के शीर्ष 850 उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले 22 लाख से अधिक छात्र ले सकेंगे। ऐसे परिवारों के एक लाख छात्रों को उनकी आठ लाख तक की सालाना आय वाले परिवार के लिए सस्ते ऋण की व्यवस्था भी की गई। इसमें ऐसे छात्रों के लिए 10 लाख रू. तक के ऋण पर 3 प्रतिशत की ब्याज की छूट भी दी जाएगी। ‘‘प्रधानमंत्री विद्यालक्ष्मी योजना’’ का मकसद कोई भी मेधावी छात्र आर्थिक अभाव मंे उच्च शिक्षा से वंचित न रहे। इसमें उन छात्रों को प्राथमिकता दी, जाएगी जो तकनीकी एवं व्यवसायिक शिक्षा ग्रहण कर रहें है।

विगत वर्षो में ऋण लेकर उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों की संस्था अभी करीबन 3 लाख, उम्मीद है कि, इस योजना के बाद शिक्षा ऋण लेने वालों छात्रों की संख्या में अच्छी वृद्धि होगी। इस योजना से निर्धन, वंचित, निम्न एवं मध्यमवर्गीय श्रेणी के विद्यार्थियों के लिए उनकी रूचि के पाठ्यक्रमों एवं संस्थानों में प्रवेश के द्वार खुलेंगे।

आज देश में 1200 से ज्यादा विश्वविद्यालयों के अधीन 53,000 कालेज कार्यरत होने से उच्च शिक्षा के अवसर अधिक सुलभ होते जा रहें है। अभी 1200 विश्वविद्यालय में चार करोड़ से ज्यादा छात्र है। लेकिन इनमें से केवल 29 प्रतिशत विश्वविद्यालय प्रणाली में दाखिला लेते है। वास्तव में कम से कम 50 प्रतिशत छात्रों को कालेज में होना चाहिए। तकनीकी, चिकित्सा व व्यवसायिक पाठ्यक्रमों जैसे प्रमुख क्षेत्र, जिन्हें सभी के लिए वहनीय नहीं माना जाता था। इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में सुधारों एवं अवसरों को गति प्रदान करने तथा कल्याणकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों को लागू करने की दिशा में मोदी सरकार ने ‘‘प्रधानमंत्री विद्या लक्ष्मी योजना’’ को स्वीकृति प्रदान की, ताकि मेधावी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा प्राप्त करने में हर संभव सहायता दी जाए। जिससे धन की कमी उनकी प्रगति में अवरोध उत्पन्न न हो सके।

‘‘प्रधानमंत्री विद्या लक्ष्मी योजना’’ सरकारी और निजी दोनों तरह के संस्थानों पर लागू होगी। यह योजना उच्च शिक्षा को लेकर केन्द्र सरकार की गंभीरता, प्रतिबद्धता एवं संवेदनशीलता को तो दर्शाती है, किन्तु इतना ही पर्याप्त नहीं है, आवश्यकता शिक्षा में गुणवत्ता के सुधार की भी है, क्योंकि समाज एवं राष्ट्र की आवश्यकता के अनुकूल पाठ्यक्रमों में परिवर्तन की मांग पूरी होना भी आवश्यक है। इसके लिए तकनीकी, चिकित्सा व व्यावसायिक कौशल आधारित, मूल्य परक एवं रोजगारोन्मुखी शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। वैसे तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की संस्तुति में इस तरह व्यवस्था की गई, परंतु चार वर्षो के बाद भी आम नागरिक की समझ के बाहर है। इसके साथ ही इस दिशा में न तो केंद्रीय मंत्रालय की ओर से कोई ठोस निर्णायक पहल की गई। देश के विभिन्न राज्यों के बोर्डो की ओर से नियमों का प्रसारण भी नहीं किया गया।

इसके कारण इस योजना में अगले सात वर्षो में अर्थात् 2024-25 से 2030-31 के बीच कुल 3,600 करोड़ रू. खर्च होंगे। इसके साथ इन सात सालों में सात लाख नए छात्रों को ऋण में अनुदान का लाभ भी मिलेगा। वहीं दूसरी ओर केन्द्र सरकार भारतीय छात्रों द्वारा 2025 तक विदेश में शिक्षा पर लगभग 5.88 करोड़ रू. खर्च करने का अनुमान है। वर्ष 2030 तक दुनियाभर में 90 लाख से अधिक छात्र अपने देश के बाहर यानी विदेश में पढ़ रहें होंगे। 2019 में ऐसे छात्रों की संख्या करीब 60 लाख थी। विदेश में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या हर साल 4 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी। विदेश में पढ़ने वालों के नई शर्तो के अनुसार नवीन योजना बनाना चाहिए जिससे वे भी ‘‘पीएम विद्यालक्ष्मी योजना’’ की तरह डिजिटल हो, उसमें आवेदन की प्रक्रिया सुव्यवस्थित, अधिक पारदर्शी और सुलभ बने। वहीं विदेश में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों की संख्या 2030 तक चीन से आगे निकल सकेगी।

निश्चित है कि विदेशांे में पढ़ने वाले छात्रों को प्रोत्साहन दिए बिना शिक्षा के क्षेत्र में प्रयास अधूरे ही होंगे।

डॉ. बी.आर. नलवाया
पूर्व प्राध्यापक – वाणिज्य