आर.के. सिन्हा
जिस बात का देश से प्रेम करने वाले हरेक नागरिक को विगत दशकों से इंतजार था, वह अब हो गई है। अब किसी आंदोलन के दौरान कथित आंदोलनकारी सरकारी या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगे। यदि नुकसान पहुंचाया तो उन्हें सख्त सजा होगी। हमारे यहां सरकार से अपनी मांगों के समर्थन में आंदोलन करने वाले आमतौर पर सरकारी बसों, इमारतों, रेलों और दूसरी सार्वजनिक सम्पतियों को बेशर्मी से तोड़ते रहे हैं। कहना न होगा आजाद भारत में इस कारण से सत्तर सालों में अरबों-खरबों रुपये का नुकसान हुआ। जिन्होंने नुकसान किया उन्हें किसी ने कुछ नहीं कहा। वे दशकों से मौज करते रहे। उनमें से कई बड़े नेता भी बन गए। पर अब आगे किसी ने सरकारी संपत्तियों को हानि पहुंचाई तो लेने के देने पड़ जाएंगे। इसलिए ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की ओर से पिछले मंगलवार को संसद में पेश भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023 के अपडेटेड वर्जन में आतंकवाद के कृत्यों से निपटने वाली धारा 113 में संशोधन किया गया है। इसमें ‘आतंकवादी कृत्य’ में देश की आर्थिक सुरक्षा और मौद्रिक स्थिरता पर हमले भी शामिल किये गये हैं।
संसद की स्थायी समिति की ओर से सुझाए गए संशोधनों को ध्यान में रखते हुए मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मानसून सत्र में सदन में पेश किए गए भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 को वापस लेने का प्रस्ताव रखा जिसे सदन ने मंजूरी दी। इसके बाद उन्होंने नए विधेयकों को पेश किया।
भारतीय न्याय संहिता विधेयक की धारा 113(1) में प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति ऐसी मंशा या हरकत करता है, जिससे देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता को नुकसान या खतरा पैदा होता है, या आतंकी घटना की मंशा रखता हो, आतंकी हमले करता हो, इसके लिए बम, हथियार, केमिकल, बॉयोलॉजिकल हथियार और जहर आदि का इस्तेमाल करता हो, जिससे जान-माल का नुकसान हो तो ऐसे मामले में दोषी शख्स को उम्रकैद या फांसी की सजा तक हो सकती है।
भारतीय न्याय संहिता विधेयक की धारा 113(5) में कहा गया है कि अगर कोई शख्स भारत की रक्षा परिसंपत्ति को नुकसान पहुंचाता हो या अन्य तरह की सरकार की ऐसी संपत्ति को नुकसान पहुंचाता हो तो वह आतंकवाद यानी टेरर एक्ट माना जाएगा। इसी कानून की धारा 113(बी) में कहा गया- अगर कोई संवैधानिक पद पर बैठे या पब्लिक फंक्शनरी पर हमला करता है या अगवा करता है या ऐसी मंशा रखता है तो ऐसे मामले को भी टेरर एक्ट माना जाएगा। इससे मौत होने पर उम्रकैद और फांसी की सजा का प्रावधान है।
आपको याद होगा कि नागरिकता संशोधन एक्ट (सीएए) के खिलाफ देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए थे। कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन ने हिंसक रुख भी अख्तियार कर लिया। दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों ने भी विरोध प्रदर्शन के दौरान बसें और दूसरी गाड़ियां जला दीं थीं। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि छात्रों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार है, लेकिन कोर्ट ने प्रदर्शन के दौरान हुए सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान पर नाखुशी जाहिर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि छात्रों को बसें जलाने का अधिकार किसने दे दिया? कोर्ट ने छात्रों को चेतावनी देते हुए कहा कि अपनी बात रखने के लिए उन्हें सड़क पर उतरने का अधिकार तो है लेकिन, वो अगर सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान करेंगे तो कोर्ट उनकी बात नहीं सुनेगा।
अक्सर विरोध प्रदर्शनों में सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान होता है। कभी बसें जला दी जाती हैं, कभी ट्रेनों पर पथराव होता है, कभी सरकारी इमारतों में तोड़-फोड़ होती है, तो कभी सरकारी ट्रांसपोर्ट व्यवस्था का नुकसान किया जाता है। ये सवाल बार-बार पूछा जाता था कि अगर विरोध प्रदर्शन में सरकारी संपत्ति का नुकसान होता है तो इसका जिम्मेदार कौन है? अब स्थिति साफ हो गई है। अब किसी ने सरकारी संपति को हानि पहुंचाई तो लेने के देने पड़ जाएंगे। कहना ना होगा कि विरोध प्रदर्शन के कारण भारतीय रेलवे को तो हमेशा बलि का बकरा ही समझा जाता है। रेलवे को पिछले तीन सालों में लगभग 262 करोड़ रुपए का नुकसान झेलना पड़ा है और रेलवे को सबसे ज्यादा नुकसान 2022 में हुआ है। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कुछ समय पहले संसद में बताया था कि बीते तीन सालों में यानी कि 2020, 2021 और 2022 में भारतीय रेलवे को 1.78, 0.68 और 259.44 करोड़ रुपए का नुकसान विरोध प्रदर्शनों के दौरान रेलवे संपत्ति को क्षति पहुंचाने के कारण हुआ है।2022 में भारतीय सेना द्वारा सेना में भर्ती के लिए अग्निपथ योजना लाई गई थी जिसका देश के कई राज्यों में काफी विरोध हुआ था। उस समय रेलवे की संपत्ति में तोड़फोड़ की कई घटनाएं सामने आई थीं। वहीं कई ट्रेनों को भी प्रदर्शनकारियों ने आग के हवाले कर दिया था।
दरअसल सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ कानून पहले भी था। उसे सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम 1984 कहते थे। इसके प्रावधानों के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति सरकारी या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का दोषी साबित होता है तो उसे 5 साल की सजा हो सकती थी। इसमें जुर्माने का भी प्रावधान था। ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर सजा और जुर्माना दोनों हो सकता था। पर पुराना कानून कमजोर पड़ रहा था या कहें कि उसका असर नहीं हो रहा था। इसलिए नए और सख्त कानून की दरकार थी।
सुप्रीम कोर्ट को भी हमेशा लगता रहा कि इस मामले में और भी उपाय किए जाने की जरूरत है। 2007 में सार्वजनिक संपत्ति के भीषण नुकसान की खबरों पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था। उस वक्त हिंसक विरोध प्रदर्शन, बंद और हड़ताल में सरकारी संपत्ति का खूब नुकसान हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में कानून में बदलाव के लिए दो कमिटी बनाई थी। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज केटी थॉमस और सीनियर वकील फली नरीमन को कमेटियों का प्रमुख बनाया गया था। 2009 में इन दोनों कमिटियों की सलाह पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति को लेकर कुछ गाइडलाइंस जारी किए थे।
कहना ना होगा कि अब एक उम्मीद पैदा हुई है कि सरकारी संपत्ति से तोड़-फोड़ करने से पहले देश के दुश्मन दस बार सोचेंगे।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)