रविवार दिल्ली नेटवर्क
लखनऊ : हमारे हालात तो सांप-छछुंदर जैसे हो गए थे। जिस कला से जुड़े हैं उसे न छोड़ सकते थे न बनाए रख सकते थे। कोई हमारे हुनर की कद्र करता था तो चिढ़ होती थी। कोई सीखना चाहता था तो मना कर देते थे। यह सोचकर कि जिसमें मेरा कोई भविष्य नहीं दिखता उसमें किसी और को क्यों सपने दिखाए। इसके लिए मुझे भला बुरा भी कहा गया। पर ये बातें पुरानी है। सरकार से सहयोग मिला तो हालात बदल गए। आज हमारे पास इतने आर्डर हैं कि सप्लाई नहीं दे पाता।
यह कहना है काशी के ओपी शर्मा का। शर्मा बेजान लकड़ी में अपने हुनर से जान डालने के फन में माहिर हैं। यहां इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान आयोजित जीबीसी में सरकार के आमंत्रण पर उन्होंने स्टॉल लगा रखा था। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओडीओपी (एक जिला एक उत्पाद योजना) योजना ने तो वोकल फ़ॉर लोकल के नारे को जमीन पर उतार दिया। इससे हम जैसे स्थानीय कलाकारों के हुनर का देश-दुनिया में कद्र बढ़ी। हमारी पहचान में भी इजाफा हुआ। सरकार के ऐसे मौकों ने हमारे फलक को बढ़ा दिया। यहां स्टॉल से लेकर खाने-रहने की सारी व्यवस्था निःशुल्क है। अगर सरकार का यह सहयोग नहीं होता तो हम यहां तक कैसे पहुंचते। किस तरह देश-दुनिया से आये लोग मेरे हुनर के बारे में जनते। आप कह सकते हैं सरकार हमारी कला के संजीवनी बन गई।
50 फ्लेवर का गुड़ बनाते हैं अयोध्या के अविनाश
गुड़ अयोध्या का ओडीओपी (एक जिला, एक उत्पाद है। आईजीपी में अपने स्टॉल पर मिले अविनाश दूबे बेहद खुश थे। खुश भी क्यों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और मूख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जीबीसी-3 के शुभारंभ के पहले उनके स्टॉल पर आये थे। उनके गुड़ का स्वाद चखा। उनकी खूबियों के बाबत जाना। अविनाश ने बताया कि उनके यहां करीब 50 फ्लेवर के गुड़ बनते हैं। इसमें सोने और चांदी की वर्क वाले गुड़ के प्रति किलोग्राम दाम क्रमशः 80 हजार और 20 हजार रुपये तक है। 8 हजार किलोग्राम वाले गुड़ के खरीददार तो उनको यहां भी। मिल गये। बिक्री की बात पूछने पर वह कहते हैं कि बिक्री से जरूरी है एक्सपोजर। इसीसे लोग हमारे प्रोडक्ट के बारे में जानते हैं। आप की तरह इनक्वायरी करते हैं। इसके बाद बिक्री तो अपने आप बढ़ जाती है। हम सरकार के सहयोग और ओडीओपी पर फोकस्ड काम से खुश हूं।
मिट्टी में जान डालते हैं आजमगढ़ के सोहित
आजमगढ़ के निजामबाद की ब्लैक पॉटरी बनाने वाले सोहित कुमार प्रजापति बताते हैं कि हमारा उत्पाद बेहद खास होता है। अधिकांश काम मैनुअल होता है। मिट्टी और कृत्रिम पारे का प्रयोग होता है। रंग धुंए से चढ़ाते हैं। सरकार की ओर से पूरी मदद मिलती है। 1 करोड़ 81 लाख मुझे ही मिले हैं। यह मेरे काम के लिए पर्याप्त है। इत्र नगरी कन्नौज के गौतम शुक्ला का भी यही कहना है।