प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तर्ज पर राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भी आजादी के जश्न से पहले जवानों के मध्य रहेंगे

On the lines of Prime Minister Narendra Modi, Rajasthan Chief Minister Bhajanlal Sharma will also be among the soldiers before the Independence Day celebrations

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगभग हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर सीमाओं की रक्षा करने करने वाले जवानों के मध्य जाकर उनकी हौंसला अफजाई करते है। इसी तर्ज पर इस बार आजादी के जश्न से पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भी भारत-पाकिस्तान की सीमा पर स्थित थार रेगिस्तान के हृदय स्थल बीकानेर जिले के खाजूवाला सेक्टर के कोडेवाला बॉर्डर पोस्ट पर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों के मध्य रह कर उनका हौंसला बढ़ाएंगे। भारत के पश्चिमी क्षेत्र की सुरक्षा की जिम्मेदारी सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों के सुरक्षित हाथों में है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की इस पहल की सभी ओर प्रशंसा की जा रही है। भारतीय सेनाओं में राजस्थान के जवानों की संख्या सबसे अधिक है। साथ ही सीमाओं पर शहीद होने वाले बहादुर जवानों में भी राजस्थान के जवान सबसे अधिक है। ऐसे में 79 वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल का जवानों के मध्य जाना निश्चित रूप से एक सही दिशा में उठाया गया सही कदम है।

आजादी के पर्व स्वाधीनता दिवस पर जब पूरा देश जश्न में डूबा रहता है तब सीमाओं पर तैनात ये रणबांकुरे देश के पहरेदार बन दुर्गम सीमा क्षेत्रों में अपनी ड्युटी में कोई कौर कसर बाकी नहीं रखते है। स्वतंत्रता दिवस पर जब देश तिरंगे के नीचे शानदार जश्न मना रहा होता है, तब ये जवान सीमा पर उसी तिरंगे को सीने में बसाकर और हथियार थामे खड़े रहते हैं। यही है मातृभूमि की रक्षा के लिए उनकी सच्ची सलामी। ऐसे में राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा का स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले भारत-पाक सीमा पर सीमा सुरक्षा बलों के जवानों की हौसला अफ़ज़ाई के लिए बीकानेर के खाजूवाला क्षेत्र की कोडेवाला बॉर्डर पोस्ट पर जाने का निर्णय काबिले तारीफ है।

सरहद की इन विकट पोस्ट पर जवानों के हौसलों, उनकी देशभक्ति के जज्बातों और शौर्य की गाथाएँ देखना और सुनना किसी जबरदस्त रोमांच से किसी भी तरह कम नहीं है। भारत और पाकिस्तान की सीमा पर तैनात बीएसएफ का हर सैनिक हर मौसम और हर परिस्थिति में देशवासियों को सुरक्षा की गारंटी देता है। देश के पश्चिमी क्षेत्र का यह सीमावर्ती इलाका देश की सीमाओं के सबसे मुश्किल क्षेत्रों में से एक है। यहां की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के मध्य काम करना आसान नहीं होता है। रेतीले टीलों पर जब सूरज 50 डिग्री से भी ऊपर तक तपता है और विशाल क्षेत्र में पसरे रेगिस्तान की सर्द रातों के बीच चीरती ठंडी बर्फीली हवाएं रूह को कंपकंपा देती है। वहीं कभी बारिश तो कभी तूफ़ान तो कहीं दलदल की चुनौतियां आदि इन सबके बीच तैनात सीमा सुरक्षा बल के ये जांबाज जवान रेगिस्तान के जहाज ऊंट और जीपों पर सवार होकर अथवा पैदल चलते हुए सरहद की तारबंदी के इस पार एक सच्चे प्रहरी के रूप में अपने जान की परवाह किए बिना पूरी मुस्तैदी के साथ देश की सीमाओं की सुरक्षा करते है। साथ ही सीमा पार से होने वाली घुसपैठ,अवैध हथियारों और मादक पदार्थों की तस्करी आदि पर भी पैनी निगाहें गढ़ाए रखते है।

सीमा सुरक्षा बल की स्थापना 1965 में हुई थी। भारत–पाक युद्ध ने देश को यह एहसास करा दिया था कि सीमाओं की रक्षा के लिए एक विशेष, संगठित और प्रशिक्षित बल की ज़रूरत है। युद्ध के दौरान सेना अपनी मुख्य मोर्चाबंदी में व्यस्त रहती थी और कई इलाकों में सीमाओं पर निगरानी का अभाव महसूस किया गया। 1965 के युद्ध में सीमा पर कई जगह अचानक हमले हुए एवं ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग सीधे खतरे के सामने आ गए। सेना की मौजूदगी के बावजूद यह साफ था कि एक स्थायी और समर्पित सीमा प्रहरी बल होना चाहिए, जो चौबीसों घंटे सीमा की रक्षा करे और दुश्मन की हर हरकत पर नज़र रखे। ऐसे में युद्ध समाप्त होते ही केंद्र सरकार ने एक निर्णायक कदम उठाया और बीएसएफ के रूप में एक नए बल का जन्म हुआ और गठन किया गया। इस बल के पहले महानिदेशक बने के. एफ. रूस्तमजी, जिन्हें बल का निर्माता भी कहा जाता है। बीएसएफ का उद्देश्य स्पष्ट था सीमाओं की सुरक्षा, तस्करी और घुसपैठ रोकना और युद्धकाल में सेना के साथ मिलकर मोर्चा संभालना। अपनी स्थापना के पहले दिन की तैनाती से आज तक यह बल अपनी कर्त्तव्यपरायणता को साबित करता आ रहा है।शुरुआती दिनों में बीएसएफ की तैनाती मुख्य रूप से पाकिस्तान सीमा पर ही हुई थीं। जवान ऊंटों और जीप के साथ-साथ पैदल भी गश्त करते थे। प्रारम्भ में वे साधारण हथियारों से लैस होकर रेगिस्तान, दलदली और दुर्गम क्षेत्रों की चौकसी करते थे। यह काम आसान नहीं था, दिन में जलती रेत, रात में हड्डियां कंपा देने वाली ठंड, और हर पल घुसपैठ का खतरा रहता था । समय के साथ बीएसएफ ने अपने कदम देश के हर कोने तक फैलाए तथा बल ने बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल सीमा की निगरानी से लेकर नक्सल प्रभावित इलाकों और दंगों में आंतरिक सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी संभाली। बीएसएफ केवल हथियारों से नहीं, बल्कि अपने जज़्बे से देश की रक्षा करती है। राजस्थान के तनोट माता मंदिर से लेकर कश्मीर की बर्फीली चौकियों तक, बीएसएफ के जवान हर मौसम, हर हाल में तैनात रहते हैं। 1971 के लोंगेवाला युद्ध, पंजाब और कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियान, और ऑपरेशन सिन्दूर जैसे ऑपरेशन्स , ड्रोन से अंतर्राष्ट्रीय तस्करी जैसी चुनौतियों के बीच बीएसएफ ने अपने ध्येय वाक्य ‘सेवा जीवन पर्यंत’ पर अमल करते हुए सीमा पर अपनी उपदेयता सिद्ध की है ।आज की बीएसएफ बदलते समय के साथ आज बीएसएफ के पास आधुनिक हथियार, ड्रोन, थर्मल इमेजिंग, स्मार्ट फेंसिंग और कमांड कंट्रोल सेंटर जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। इतना ही नहीं अब बीएसएफ के दस्ते में महिलाएं भी ना केवल शामिल है बल्कि दुर्गम मोर्चो पर दुश्मन के समक्ष रणचण्डी बन टूटने को तैयार है । उनका देश के लिए जान देने का जुनून देखने लायक और सलाम करने लायक है। पश्चिमी राजस्थान की लंबी और कठिन सीमाएं सिर्फ भौगोलिक चुनौती नहीं, बल्कि साहस और समर्पण की कसौटी भी है। यहां तैनात हर जवान, देश की सुरक्षा का जीता-जागता उदाहरण है।

राजस्थान से सटी भारत–पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा देश के पश्चिमी क्षेत्र की सबसे बड़ी 1,048 किलोमीटर लंबी सीमा है। इसके आगे गुजरात के सौराष्ट्र से भी पाकिस्तान की सीमाएं लगती हैं। यह सिर्फ भूगोल की एक रेखा नहीं, वरन भारत की संप्रभुता की पहली दीवार है और यहां बीएसएफ के जवानों का हौसला देखने लायक है। वे रेत के बहते दरिया के मध्य भी एक मजबूत चट्टान की तरह अडिग रहते हुए अपनी ड्यूटी को अंजाम देते है। 1971 के भारत-पाक युद्ध में दुश्मन देश की भारी गोलाबारी के बावजूद तनिक भी नहीं डगमगाए तनोट माता मंदिर से लेकर लोंगेवाला के युद्धक्षेत्र तक और खाजूवाला से मुनाबाव तक रेत के कण-कण में अपने गौरवशाली इतिहास की इबारत लिखे जाने के साथ ही इसमें समाई शौर्य की गाथाएं हमारे जवानों को चट्टान सा मजबूत बनाए रखती है। पश्चिमी राजस्थान की हर पोस्ट पर जवानों की पैनी निगाहें दूरबीनों से दूर-दूर तक फैली रहती हैं,ताकि दुश्मन की ओर से कोई खतरा सरहद पार न कर सके।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तर्ज पर राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का भी आजादी के जश्न से पहले सीमाओं की रक्षा करने करने वाले बहादुर जवानों के मध्य समय बिताना निश्चित रूप से भारतीय जवानों में एक नया जोश एवं उमंग और देश भक्ति का नया जज्बा भरेगा,उसमें कोई सन्देह नहीं है।