
अशोक भाटिया
चाबहार बंदरगाह को प्रतिबंधों से छूट खत्म करने का अमेरिकी फैसला भारत को आर्थिक और रणनीतिक नुकसान पहुंचाने वाला साबित होगा। एक तरफ जहां भारत इस बंदरगाह के बुनियादी ढांचे के विकास पर 85 मिलियन डॉलर (749 करोड़ रुपये) का निवेश कर चुका है जबकि 120 मिलियन डॉलर (1057 करोड़ रुपये) की योजनाएं पाइपलाइन में हैं। वहीं यूरोप, रूस, अफगानिस्तान और पश्चिम एशिया तक सीधी पहुंच के कारण इसे रणनीतिक स्तर पर चीन की बेल्ट एंड रोड पहल का जवाब माना जाता रहा है।
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दोस्ती को लेकर शहद में डूबी बातें कहीं. उन्होंने खुद को ‘भारत के करीब’ बताया. खुद को ‘भारत के पीएम के नजदीक’ बताया. PM मोदी के साथ अपने रिश्तों को ‘बहुत अच्छा’ बताया. लगभग इसी समय अमेरिका ने भारत को झटका देते हुए ईरान के रणनीतिक चाबहार पोर्ट पर 2018 में दी गई प्रतिबंधों से छूट को रद्द कर दिया.
इस छूट के तहत भारतीय कंपनियों को चाबहार पोर्ट में काम करने की अनुमति मिल गई थी और ये कंपनियां अमेरिकी प्रतिबंधों की जद में नहीं आती थी. लेकिन इस प्रतिबंध के हटने से यहां काम कर रही भारतीय कंपनियों को सीधे सीधे अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा. भारत ईरान स्थित इस पोर्ट को विकसित कर रहा है. यह पोर्ट भारत के लिए मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक व्यापार और कनेक्टिविटी के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है.
यही सवाल आता है भारत के खिलाफ ट्रंप के डबल गेम का. ट्रंप भारत-अमेरिका रिश्तों को दुनिया की सबसे मज़बूत साझेदारी करार देते हैं. लेकिन दूसरी ओर कठोर आर्थिक और कूटनीतिक कदमों से भारत को दबाव में भी लाने की कोशिश करते हैं.
ट्रंप का यही विरोधाभास आज न सिर्फ भारतीय रणनीतिक हलकों में बल्कि आम जनमानस में भी गहराई से चर्चा का विषय बनी हुई है. सवाल यह है कि क्या ट्रंप वास्तव में भारत के साथ खड़े हैं या केवल अपना स्वार्थ साध रहे हैं. क्या ट्रंप विश्व पटल पर भारत की एक स्वतंत्र सत्ता के रूप में अंगडाई से असहज महसूस कर रहे हैं. क्या अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान ताकतवर भारत का स्वीकार नहीं कर पाता है इसलिए आर्थिक और कूटनीतिक कदमों से भारत को दबाने की कोशिश करता है.
रक्षा एक्सपर्ट डॉक्टर ब्रह्म चेलानी ट्रंप के इस डबल गेम की पोल खोलते हुए एक्स पर लिखा कि ट्रंप की भारत नीति स्पष्ट होती जा रही है, मोदी की लगातार प्रशंसा करते हुए उन पर शिकंजा कसते रहो. मोदी को “महान”, “बहुत करीबी दोस्त” और “बहुत बढ़िया काम कर रहे हैं” कहना ट्रंप की कड़वी बातों पर मीठा पर्दा डालने जैसा है.” ब्रह्म चेलानी ने कहा ने कहा रूस से कच्चा तेल खरीदने के लिए दूसरे चरण के प्रतिबंधों में सिर्फ भारत पर प्रतिबंध लगाना और जो चाबहार भारत के लिए ग्वादर का काउंटर था उस पर मिले छूट को खत्म कर देना अमेरिका की नीति को स्पष्ट कर देता है.उन्होंने कहा कि ट्रंप की ‘द आर्ट ऑफ द डील’में चापलूसी दोस्ती नहीं है- यह लोहे की मुट्ठी पर मखमली दस्ताना है.
राजनीतिक मंच पर ट्रंप ने कई बार भारत को ‘मजबूत साझेदार’ बताया, लेकिन वास्तविक नीति में वे ‘अमेरिका फर्स्ट’ के कठोर पैमाने से ही चलते रहे. अमेरिका ने जब भारत पर टैरिफ बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया तो भारत अपनी विदेश नीति की स्वायत्तता दिखाते हुए चीन की अगुआई वाले SCO की बैठक में एक स्वावलंबी देश की तरह पहुंचा. यहां से आई तस्वीरों ने ट्रंप को परेशान कर दिया और वे यह कहने को मजबूर हुए कि मैंने भारत-रूस को चीन के हाथों में खो दिया.
लेकिन भारत से रिश्ते सुधारने के ट्रंप के एप्रोच कॉस्मेटिक ही रहे, इसमें ठोस भावना नहीं थी. यही वजह रही कि लगभग इसी दौरान ट्रंप के सलाहकार पीटर नवारो, अमेरिकी वाणिज्य मंत्री स्कॉट बेसेंट भारत के खिलाफ बयान देते रहे और रूसी तेल की खरीद बंद करने के लिए भारत पर दबाव बनाते रहे. इसी दौरान अमेरिका ने भारत के साथ रक्षा व्यापार में कीमतें बढ़ा दी, अमेरिकी बाजार में भारत की पहुंच को सीमित कर दिया और वीजा नियमों को कठोर बना दिया. दरअसल भारत-अमेरिका रिश्तों का जो चमकदार चेहरा ट्रंप ने प्रस्तुत किया, उसके भीतर प्रबल अमेरिकी महत्वाकांक्षा, व्यापारिक झगड़े और रणनीतिक दबाव की सच्चाई छिपी रही.
वहीं अमेरिका के साथ टकराव में भारत धैर्य से काम ले रहा है. भारत ने साफ किया है कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा. विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत सस्ता तेल जहां से मिलेगा, खरीदेगा. साथ ही भारत जवाबी टैरिफ लगाने से बच रहा है क्योंकि अमेरिका भारत के साथ तनाव बढ़ाना नहीं चाहता है.एयरफोर्स वन में ट्रंप ने जब पीएम नरेंद्र मोदी को अपना दोस्त बताया तो साथ साथ यह भी कहा कि भारत ने लगभग किसी भी देश की तुलना में अमेरिका पर ज्यादा टैरिफ लगाया है. लेकिन अब मैं जिम्मेदारी संभाल रहा हूं और ऐसा अब नहीं चल सकता.भारत जैसे देश के लिए यह संदेश साफ है कि ट्रंप का रवैया दोस्ताना कम और व्यापारिक अधिक है. इसे अवसरवादी भी कहा जा सकता है. ट्रंप भारत को अपनी वैश्विक रणनीति में एक मोहरे की तरह इस्तेमाल करना चाहते है. वे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चीन का उभार संतुलित करने के लिए भारत के कंधे पर बंदूक रखकर चलाना चाहते हैं लेकिन ट्रंप भारत को वास्तविक साझेदार का दर्जा नहीं देना चाहते हैं.
गौरतलब है कि अमेरिका के इस कदम से बंदरगाह पर भारतीय संचालकों के खिलाफ अमेरिका की तरफ से जुर्माने लगाने का खतरा उत्पन्न हो गया है। इसने भारत की सबसे अहम क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं में से एक के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। चाबहार न केवल भारत का सबसे नजदीकी ईरानी बंदरगाह है, बल्कि समुद्री दृष्टिकोण से भी एक उत्कृष्ट बंदरगाह है। भारत के 2018 में सरकारी कंपनी इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लि. के माध्यम से चाबहार स्थित शाहिद बेहेस्ती टर्मिनल का संचालन नियंत्रण अपने हाथ में लिया था। तभी से यह बंदरगाह पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान और पश्चिम एशिया के लिए व्यापार मार्गों को सुरक्षित करने की नई दिल्ली की रणनीति का एक अहम हिस्सा बन गया है। ओमान की खाड़ी में स्थित यह बंदरगाह न केवल क्षेत्रीय वाणिज्य को सुगम बनाता है, बल्कि अफगानिस्तान को मानवीय सहायता पहुंचाने में एक महत्वपूर्ण माध्यम बना हुआ है।
विशेषज्ञों की मानें तो छूट खत्म होने से चाबहार पोर्ट से जुड़ी निवेश, उपकरण सप्लाई, रेल परियोजना जैसी तमाम गतिविधियों और वित्तीय लेन-देन पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू हो सकते हैं। बुनियादी ढांचे के विकास के लिए उपकरण लाना महंगा और जटिल हो जाएगा। शिपिंग और फाइनेंस की लागत बढ़ने से भारतीय कंपनियों के ठेके और कारोबार पर सीधा असर पड़ेगा। 2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाए तो भारत को अफगानिस्तान की आर्थिक और मानवीय सहायता के लिए चाबहार के इस्तेमाल को लेकर छूट मिली थी। छूट की वजह से ही भारत ने इस बंदरगाह के विकास पर खासा निवेश किया। 13 मई 2024 को भारत ने इस पोर्ट को 10 साल तक ऑपरेट करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर भी किए थे।
विकास के साथ हालिया वर्षों में माल परिवहन में तेजी आई है, जिसमें 80 लाख टन से ज्यादा माल की आवाजाही शामिल है। बंदरगाह की क्षमता को 1,00,000 से बढ़ाकर 5,00,000 टीईयू करने और 2026 के मध्य तक इसे ईरान के रेलवे नेटवर्क से जोड़ने की योजना इसके बढ़ते महत्व को और रेखांकित करती है। इस बंदरगाह का होर्मुज जलडमरूमध्य के निकट होना क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिहाज से भी बेहद अहम माना जाता है।
कूटनीतिक विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी का कहना है कि भारत ने एक बार ट्रंप के पहले कार्यकाल के प्रतिबंधों का पालन करने के लिए ईरान से सभी तेल आयात रोककर अपने हितों को दांव पर लगाया था। इससे चीन को अप्रत्याशित लाभ हुआ, जिससे वह ईरान के सस्ते कच्चे तेल (जो दुनिया में सबसे सस्ता है) का लगभग एकमात्र खरीदार बन गया। इससे भारत की कीमत पर चीन की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत हुई। अब, चाबहार पर छूट खत्म करने से एक बार फिर भारत के हितों को गहरी चोट पहुंच सकती है। चाबहार चीन के रोड एंड बेल्ट में शामिल पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का रणनीतिक जवाब है। लेकिन ट्रंप की नीतियों से भारत को समुद्री क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे पर अंकुश लगाने के बदले में दंड ही भुगतना पड़ रहा है। ट्रंप के अधिकतम दबाव का मतलब हमेशा बीजिंग के लिए अधिकतम लाभ रहा है, और इसकी कीमत भारत को चुकानी पड़ रही है।