एक बार फिर कश्मीर में वो हो रहा है, जो 1990 में हुआ था, क्यों ?

सीता राम शर्मा ‘चेतन’

बड़े कदम उठाते समय यदि बड़ी चुनौतियों का पूर्वानुमान ना हो और आने वाली हर संभावित चुनौतियों के त्वरित समाधान की तैयारी ना हो तो वही होता है, जो अभी कश्मीर में हो रहा है । कश्मीर को धारा 370 और 35 ए के कोढ़ से मुक्ति दिलाने का बड़ा और ऐतिहासिक काम मोदी सरकार ने किया था, पर अब उसके पौने तीन साल बाद एक बार फिर कश्मीर में वो हो रहा है, जो 1990 में हुआ था तो क्यों ? स्थिति 1990 जैसी विस्फोटक नहीं है, पर किसी भी देश के किसी भी हिस्से में जब जनता आतंक के भय से पलायन को विवश हो जाए तो वह बहुत स्पष्ट और सीधे तौर पर सरकार की कमजोरी और नाकामी कही जाएगी, इसमें किसी भी तरह के किंतु-परंतु या तर्क-कुतर्क के लिए जगह नहीं होनी चाहिए । कश्मीर का सच और वहां की स्थिति, वास्तविकता आज पूरा देश जानता है । सबको मालूम है कि कश्मीर की स्थिति और वहां पलते आ रहे आतंकवाद के पिछे सिर्फ पाकिस्तान का ही हाथ नहीं है, उसका तो साथ भर है, जो हमारे अपने गद्दारों के अधीन पलते अलगाववादियों, आतंकवादियों के हाथों के साथ हैं । जब तक हमारे अपने लोग गद्दार होंगे, बनते रहेंगे हम कभी कश्मीर को शांत, उतना सुरक्षित, समृद्ध और रमणीक नहीं बना पाएंगे, जिसकी चाहत पूरा देश रखता है । यह बेहद अफसोस की बात है कि धारा 370 हटाने के बाद भी पिछले तीन वर्षों में हम कश्मीर के लिए वैसी नीतियाँ और नियम कानून नहीं बना पाए, वो हर जरूरो कदम नहीं उठा पाए, जो उसके लिए बेहद जरूरी थे । यहां यह बात बहुत गंभीरतापूर्वक और बहुत जरूरी तौर पर सोचने समझने की है कि क्या किसी भी आतंकवाद से घोर पीड़ित क्षेत्र में हम सिर्फ बड़ी धनराशि खर्च कर, विकास योजनाएं चलाकर और समृद्धि के सपनों और वादों से पूर्ण या जरूरी शांति बहाल कर सकते हैं ? उत्तर साफ है – कदापि नहीं । कश्मीर में केंद्र सरकार ने पिछले तीन साल में यही किया है । जबकि इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी था कि ये कदम उठाते हुए वहां वर्षों से फलते-फूलते आतंकवाद की जड़ तक जाकर उसका समूल नाश करने की और यह जब भी होगा, गलत राह पर चलते या चलने के संभावित लोगों पर, उनके जानकार सगे संबंधियों पर, उनके काले या सफेदपोश सहयोगियों पर कठोर प्रहार कर ही संभव होगा । अब तक सरकार ने यही नहीं किया है, जो उसे अब बिना समय गंवाए करना चाहिए । गौरतलब है कि मैंने छह महिने पहले भी कश्मीर की बिगड़ती स्थिति पर एक आलेख लिखा था, जिसका शीर्षक था – यह कश्मीर समस्या का पूर्ण निदान है । सबसे बड़ी और चिंतनीय बात यह कि मेरे सुझाव वाला वह आलेख कई अखबारों में प्रकाशित हुआ था, जिसे मैंने माननीय प्रधानमंत्री जी को भी भेजा था, पर बिना किसी संकोच और दुराव-छिपाव के कहूँ तो उस पर अमल अब हो रहा है ! माननीय गृहमंत्री जी की हाई लेवल मीटिंग के बाद आते समाचारों से यह स्पष्ट भी है तो सबसे बड़ा सवाल यह कि इतना विलंब क्यों ? क्या सरकार सचमुच देश की जनता, देश के लेखकों, बुद्धिजीवियों की सुनती है ? और यदि सुनती समझती है तो फिर कम से कम गंभीर मुद्दों पर इतना विलंब क्यों ? मैंने तब उस लेख में लिखा था – कश्मीर के लिए जरूरी काम क्या हैं और क्या हो सकते हैं, यह बहुत गंभीरता से सोचने समझने की जरूरत है । हालांकि सटीक चिंतन और नीति बनाने का ये काम और उनसे जुड़े तमाम बड़े-छोटे नियम कानून बनाने तथा उन्हें जमीन पर सफलतापूर्वक उतारने की जिम्मेदारी कश्मीर के साथ राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञो और राजनेताओं के साथ पूरे सरकारी तंत्र की है, पर एक आम नागरिक की समझ से कश्मीर में जो सबसे जरूरी कुछ काम दिखाई देते हैं, वह है आतंकवाद के समूल नाश और सुरक्षा तथा खुफिया तंत्र के बहुआयामी विकास के । इनके लिए जरूरत है कुछ ऐसे बड़े फैसलों की, जिनके जमीन पर उतरने के बाद भय और आतंकवाद के भविष्य की संभावना तक को खत्म किया जा सके । अब सवाल यह उठता है कि आतंकवाद का समूल नाश कैसे ? उपाय क्या ? इस पर बात करते हैं ! निःसंदेह फिलहाल सबसे पहले कश्मीर में आतंकवाद और उसके समर्थकों के विरूद्ध ज्यादा कठोर कदम उठाने होंगे । सरकार द्वारा कश्मीरी आवाम को यह स्पष्ट संदेश देना होगा कि वह विदेशी आतंकवादियों के साथ किसी भी स्थानीय आतंकवादी और अराजकता फैलाने वाले आपराधिक लोगों के साथ-साथ उन्हें संरक्षण, समर्थन देने वाले लोगों के साथ भी पूरी सख्ती से निपटेगी । बाहरी और भीतरी आतंकवादियों को किसी भी तरह का सहयोग या सरंक्षण देने वाले अपने या पराये लोगों पर सरकार कठोर कार्रवाई करेगी । उन्हें प्रत्यक्ष रूप से देशविरोधी और देशद्रोही माना जाएगा । अतः किसी भी नागरिक को यदि आतंकवादी गतिविधियों या फिर अराजकता फैलाने वाली गतिविधियों में संलग्न किसी भी अपने या दूसरे लोगों की जानकारी हो, तो उसे त्वरित सरकार को सूचना देनी होगी । यदि ऐसा नहीं किया गया और फिर उससे जुड़े किसी भी आतंकवादी या अराजक लोगों तक सरकार की पहुंच हुई तो वह उसे भी गुनाहगार मानकर उस पर सख्त कार्रवाई करेगी । दूसरी तरफ जो राज्य की शांति और सुरक्षा को प्राथमिकता देकर ऐसे आपराधिक लोगों की सूचना देंगे, उन्हें सरकार हर संभव सहयोग और पुरस्कार देगी । सरकार को इस दिशा में त्वरित कुछ कठोर कानून बनाने चाहिए । आतंकवाद और अराजकता फैलाने वाले लोगों पर त्वरित कठोर कार्रवाई से एक तरफ जहां शांति, सुरक्षा और विकास पसंद जनता का भरोसा सरकार पर बढ़ेगा, वहीं आतंकवाद और अपराध से जुड़े लोगों में भय भी व्याप्त होगा । आतंकवाद और अराजकता फैलाने वाले लोगों को पूरी तरह तबाह करने की कठोर नीति के साथ कश्मीर में जरूरत है एक बड़ा खुफिया तंत्र विकसित करने की । हर गांव, हर शहर और शहर के मोहल्ले तक में सरकार को एक पेशेवर खुफिया तंत्र का अभिनव और सफल प्रयोग करना होगा । कम से कम एक दशक के लिए थानों की संख्या में बड़ा इजाफा कर हर थाने में एक सरकारी और गुप्त रूप से एक प्राइवेट सिविल जासूस की बहाली करनी होगी । खुफिया तंत्र में जो जितना बेहतर काम करे, उसे इनाम भी उतना ज्यादा दिया जाए, तो कुछ बड़े सकारात्मक परिणाम आसानी से हासिल किए जा सकते हैं । रही बात 1990 के हालात वाले जिक्र की, तो 1990 के दंगे के दोषियों पर कार्रवाई और उस दौरान हुई तमाम जान-माल की लूट का न्याय करने की बात अब खुद सरकार को करनी चाहिए । सरकार को यह स्पष्ट घोषणा करनी चाहिए कि वह कश्मीर की शांतिपूर्ण भूमिगत स्थिति और व्यवस्था को 1990 के पहले वाली स्थिति में बहाल करेगी । कश्मीर और कश्मीरियों के शांतिपूर्ण विकास के लिए केंद्र सरकार को कश्मीर में अपने स्मार्ट सिटि वाले विजन को वृहद रूप और संख्या में फलीभूत करने की जरूरत है । ऐसा करते हुए उसे कुछ पुराने शहरों का भी नए सिरे से सर्वांगीण और संतुलित विकास करना होगा । अंत में रही बात पाकिस्तानी आतंकवाद और उसको परोक्ष-अपरोक्ष रूप से समर्थन देने वाले कुछ मुट्ठी भर कश्मीरी लोगों की तो दोनों के लिए ही सरकार को पूरी सख्ती दिखानी होगी । पूरे खात्मे तक । यह कश्मीर समस्या का पूर्ण निदान है ।
अब उस आलेख से आगे एक बेहद महत्वपूर्ण और जरूरी सुझाव या बात यह कि देशहित और कश्मीर के सुरक्षित और समृद्धशाली भविष्य के लिए सरकार को अब देश के कई हिस्सों में रह रहे कम से कम दो से तीन करोड़ लोगों को कश्मीर में बसाने की एक नई योजना बना उसके लिए आकर्षक और लाभदायी नीतियाँ बनानी चाहिए ताकि वहां एक समावेशी और लोकतांत्रिक व्यवस्था का भविष्य सुरक्षित किया जा सके । आशा है सरकार इस पर विलंब की पुरानी गलती दोहराए बिना भय मुक्त हो पूरे साहस के साथ पूरी ईमानदारी से गंभीरतापूर्वक अविलंब विचार करेगी ।