एक नेशन-एक इलेक्शन, राजनेताओं का टेशन

One nation-one election, tension of politicians

जनता जर्नादन के कई सबाल एक नेशन एक इलेक्शन के कितने लाभ और कितने नुकसान

विनोद कुमार सिंह

विश्व के विशालत्तम लोकतंत्र भारत के चहूँ दिशाओं में एक ही गरमा गर्म चर्चा व चिन्तन हो रही है।अब यह मुद्दा लोकतंत्र का महापर्व चुनाव तक सीमित ना रह कर राजनीतिक दलों में बहस का मुद्दा बन गया है।विगत दिनों मोदी कैबिनेट ने वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद वन नेशन-वन इलेक्शन’ के लाभ और नुकसान पर गर्मा गर्म बहस छिड़ सी गई है।ऐसे मे जनता जर्नादन के कई सबाल एक नेशन एक इलेक्शन के कितने लाभ और कितने नुकसान,मोदी सरकार व सतारूढ़ सहयोगी राजनीतिक दलो के लिए यह मोदी मिशन है,वही काँग्रेस समेत 15विपक्षी राजनीतिक दलों व क्षेत्रीय दलों के लिए टेशन है ।

आप को बता दे कि एक राष्ट्र-एक चुनाव की नीति के तहत लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे।इस संदर्भ में मोदी सरकार संसद के आगामी शीतकालीन सत्र यानी नवंबर -दिसंबर में इस बारे में बिल पेश करेगी।सर्व विदित रहे कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली कमेटी ने इस पर मार्च में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।कमेटी ने सिफारिश की थी कि लोकसभा और राज्यों के विधान सभा चुनाव एक साथ संपन्न होने के100 दिन के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव हो जाने चाहिए।वन नेशन-वन इलेक्शन का मतलब है कि भारत में लोक सभा और सभी राज्यों के विधान सभा चुनाव एक साथ कराए जाएं।

साथ ही स्थानीय निकायों के चुनाव भी एक ही दिन या एक तय समय सीमा में कराए जाएं।पी एम मोदी लंबे समय से वन नेशन वन इलेक्शन की वकालत करते आए हैं।उन्होंने कहा था कि चुनाव सिर्फ तीन या चार महीने के लिए होने चाहिए,पूरे 5 साल राजनीति नहीं होनी चाहिए। साथ ही चुनावों में खर्च कम हो और प्रशासनिक मशीनरी पर बोझ न बढ़े।इसके पीछे मोदी सरकार का तर्क है कि इससे जनता को बार-बार के चुनाव से मुक्ति व चुनावी खर्च बचेगा और वोटिंग परसेंट में इजाफा होगा।सरकारें बार-बार चुनावी मोड में जाने की बजाय विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।प्रशासन को भी इसका फायदा मिलेगा,
अधिकारियों का समय और एनर्जी बचेगी।इसका बड़ा आर्थिक फायदा भी है।सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा और आर्थिक विकास में तेजी आएगी।आप के सबाल होगे कि वन नेशन-वन इलेक्शन का सुझाव किसने व कब दिया।आपको बता दे कि केन्द्र सरकार नें विगत दिनों पूर्व वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर 2023 को कमेटी बनाई गई थी।कोविंद की कमेटी में गृह मंत्री अमित शाह,पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद,जाने माने वकील हरीश साल्वे,कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी,15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, पॉलिटिकल साइंटिस्ट सुभाष कश्यप,पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (CVC) संजय कोठारी समेत 8 मेंबर हैं।केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल कमेटी के विशेष सदस्य बनाए गए हैं।कमेटी ने इसके लिए 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया।इनमें से 32 पार्टियों ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया।वहीं,15 दलों ने इसका विरोध किया था।जबकि15 ऐसी पार्टियां भी थीं,जिन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।191दिन की रिसर्च के बाद कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी. कमेटी की रिपोर्ट 18 हजार 626 पेज की है।कोविंद समिति के सिफारिशें पर नजर डाल लेते है। वन नेशन -वन इलेक्शन की ओर बढ़ने के लिए सरकार को एक बार ही एक बड़ा कदम उठाना होगा।

*इसके तहत केंद्र सरकार लोकसभा चुनाव 2029 के बाद एक तारीख तय करेगी ।
*इस तारीख पर ही सभी राज्यों की विधानसभाएं भंग हो जाएंगी.
-इसके बाद पहले फेज में लोकसभा के टर्म के हिसाब से सभी विधानसभाओं के चुनाव कराए जाएंगे ।
*इसके 100 दिन के अंदर दूसरे फेज में नगर निकाय और पंचायत चुनाव कराए जाएंगे ।
*इन सभी चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट होगी।
*लोकतंत्र में कोई सरकार गिर भी सकती है. ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव के कारण लोकसभा या किसी विधानसभा के भंग होने पर ये सुझाव दिया गया है कि नए चुनाव उतने ही समय के लिए कराए जाएं, जितना समय सदन का बचा हुआ है। *इसके बाद लोकसभा के साथ फिर नए सिरे से चुनाव कराए जाएं ।
*इस कानून को पास कराने के लिए 18 संवैधानिक संशोधन ज़रूरी होंगे ‘ ज़्यादातर संशोधनों में राज्यों की मंज़ूरी जरूरी नहीं है।
*इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ने से पहले देश भर में जनता और अलग-अलग नागरिक संगठनों की राय ली जाएगी
वन नेशन वन इलेक्शन के रास्ते में सबसे पहले तो संसद में ही चुनौती आएगी।एक देश एक चुनाव के लिए कई संवैधानिक संशोधनों की ज़रूरत होगी।इसके लिए संसद के दोनों ही सदनों में सरकार के सामने दो-तिहाई बहुमत जुटाने की चुनौती है। *राज्यसभा में सरकार के पास पूर्ण बहुमत नहीं है।245 सीटों में से एन डी ए (NDA)को 112 सीटें ही हासिल हैं,जबकि दो-तिहाई बहुमत का आंकड़ा 164 पर होगा।
*लोकसभा में भी 543 सीटों में से दो-तिहाई बहुमत का आंकड़ा 362 है,जबकि एनडीए (NDA)के पास 292 सीटें ही हैं।हालांकि,दो-तिहाई बहुमत का फैसला वोटिंग में हिस्सा लेने वाले सदस्यों की संख्या के आधार पर तय होता है।
*वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर संघवाद की चिंता भी है।कुछ जानकारों का कहना है कि इससे भारत की राजनीतिक व्यवस्था के संघीय ढांचे पर असर पड़ेगा।राज्य सरकारों की स्वायत्तता कम होगी । विधि आयोग भी मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था में एक साथ चुनाव की व्यावहारिकता पर सवाल उठा चुका है।
*व्यावहारिक तौर पर देखा जाए तो एक साथ चुनाव कराने में भारी मात्रा में संसाधनों की ज़रूरत पड़ेगी, जिसका इंतजाम करना चुनाव आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती है। एक साथ चुनाव कराने के लिए बड़ी मात्रा में ई बी एम(EVM)और ट्रेंड लोगों की ज़रूरत पड़ेगी.ताकि पूरी चुनावी प्रक्रिया ठीक से पूरी की जा सके ।
*वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व का भी सवाल है।अक्सर होने वाले चुनावों के ज़रिए जनता समय-समय पर अपनी पसंद तय कर सकती है, लेकिन अगर सिर्फ 5 साल बाद ऐसा होगा,तो जनता की इस पसंद को ज़ाहिर करने में दिक्कत आएगी.
*इससे एक पार्टी के प्रभुत्व का ख़तरा बढ़ जाएगा।कई अध्ययन बताते हैं कि जब भी एक साथ चुनाव होते हैं,तो एक ही पार्टी के राष्ट्रीय और राज्य चुनावों के जीतने की संभावना बढ़ जाती है।जिससे स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों में घालमेल हो जाता है। *वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर कई कानूनी पेचीदगियां हैं।कई जानकारों का कहना है कि एक देश एक चुनाव के कानून को कई संवैधानिक सिद्धांतों पर भी खरा उतरना पड़ेगा।अगर एक देश,एक चुनाव होता है तो ये चुनाव प्रक्रिया पांच साल में एक ही बार होगी या फिर बीच में कुछ विधानसभाएं भंग हुईं,तो उतनी बार चुनाव होंगे।समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा कि त्रिशंकु स्थिति या अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी स्थिति में नयी लोकसभा के गठन के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।

समिति ने कहा कि लोकसभा के लिए जब नये चुनाव होते हैं,तो उस सदन का कार्यकाल ठीक पहले की लोकसभा के कार्यकाल के शेष समय के लिए ही होगा।जब राज्य विधानसभाओं के लिए नए चुनाव होते हैं,तो ऐसी नयी विधानसभाओं का कार्यकाल(अगर जल्दी भंग नहीं हो जाएं)लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल तक रहेगा।समिति ने कहा कि इस तरह की व्यवस्था लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 83(संसद के सदनों की अवधि)और अनुच्छेद172(राज्य विधानमंडलों की अवधि)में संशोधन की आवश्यकता होगी।समिति ने कहा,’इस संवैधानिक संशोधन की राज्यों द्वारा पुष्टि किए जाने की आवश्यकता नहीं होगी।

उसने यह भी सिफारिश की कि भारत निर्वाचन आयोग राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से एकल मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र तैयार करे। समिति ने कहा कि इस उद्देश्य के लिए मतदाता सूची से संबंधित अनुच्छेद 325 को संशोधित किया जा सकता है।आप को बता दें कि वन नेशन-वन इलेक्शन व्यवस्था लागू करने में चुनौतियां भी कम नहीं है।एक देश एक चुनाव के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा। इसके बाद इसे राज्य विधानसभाओं से पास कराना होगा।वैसे तो लोक सभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पाँच साल का होता है लेकिन इन्हें पहले भी भंग किया जा सकता है।सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि अगर लोक सभा या किसी राज्य की विधानसभा भंग होती है तो एक देश,एक चुनाव का क्रम कैसे बनाए रखें।अपने देश में ईवीएम और वीवीपैट से चुनाव होते हैं,जिनकी संख्या सीमित है।लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग होने से इनकी संख्या पूरी पड़ जाती है।एक साथ लोक सभा और विधानसभाओं के चुनाव होंगे तो अधिक मशीनों की जरूरत पड़ेगी।इनको पूरा करना भी चुनौती होगी।देश में एक साथ चुनाव के लिए ज्यादा प्रशासनिक अफसरों और सुरक्षाबलों की जरूरत को पूरा करना भी एक बड़ा सवाल बनकर सामने आएगा।

हम आपको बता दें कि वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए सभी राजनीतिक दलों के अलग-अलग विचार हैं,इस पर एक राय नहीं बन पा रही है।कुछ राजनीतिक दलों का मानना है कि ऐसे चुनाव से राष्ट्रीय दलों को तो फायदा होगा,लेकिन क्षेत्रीय दलों को इससे नुकसान होगा।खासकर क्षेत्रीय दल इस तरह के चुनाव के लिए तैयार नहीं हैं। इनका यह भी मानना है कि अगर वन नेशन-वन इलेक्शन की व्यवस्था की गई तो राष्ट्रीय मुद्दों के सामने राज्य स्तर के मुद्दे दब जाएंगे।

केंद्रीय कैबिनेट ने सर्वसम्मति से ये प्रस्ताव पास किया है।मोदी सरकार के लिए वन नेशन वन इलेक्शन एक मिशन है।वन नेशन वन इलेक्शन का बीजेपी(BJP,)जेडीयू (JDU)ए आई ए डी एम के (AIADMK)ए न पी पी(NPP,)बी जे डी(BJD)अकाली दल,एल जे पी (आर(LJP(R)अपना दल (सोनेलाल)ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन,असम गण परिषद व शिवसेना (शिंदे गुट)ने समर्थन किया है।खास बात ये है कि बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने भी X पर पोस्ट करते वन नेशन वन इलेक्शन का सपोर्ट किया है। मायावती ने इसे पार्टी का पॉजिटिव स्टैंड बताया है।वही सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के संग समाजवादी पार्टी (SP)आम आदमी पार्टी(AAP) सीपीएम(CPM)सी पी आई (CPI)टी एम सी(TMC)डी एम के (DMK)ए आई एम आई एम (AIMIM )व सी पी आई-एम एल (CPI-ML)समेत15दल इसके खिलाफ है।जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा(JMM)इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग(IUML)समेत15दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन पर कोई जवाब नहीं दिया।आपके मन में प्रशन उठना स्वाभाविक है कि क्या वास्तविक मे वन नेशन -वन इलेक्सन लागु हो सकता है तो हम आप को बता दे कि कई देशों में एक साथ चुनाव होते हैं।दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय और प्रांतीय चुनाव हर 5 साल पर एक साथ होते हैं।स्थानीय निकाय चुनाव दो साल बाद होते हैं ।
*स्वीडन में राष्ट्रीय,प्रांतीय और स्थानीय चुनाव हर चार साल पर एक साथ होते हैं।

*इंग्लैंड में भी संसद कार्यकल र्निधारित अवधि अधिनियम2011 (Fixed-term Parliaments Act,2011)के तहत चुनाव का एक निश्चित कार्यक्रम है।वही जर्मनी और जापान की बात करें,तो यहां पहले पीएम का सिलेक्शन होता है,फिर बाकी चुनाव होते हैं।इसी तरह इंडोनेशिया में भी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव साथ में होते हैं।अपने देश में आजादी के बाद से 1952,1957,1962 और 1967 में दोनों चुनाव एक साथ हुए थे,यानि 1967 तक लोकसभा और विधान सभा के चुनाव एक साथ कराए जाते थे,लैकिन विषम परिस्थितियों उत्पन्न होने के कारण इस व्यवस्था में परिवर्तन किया गया।क्योंकि संघीय व्यवस्था व राज्यो की स्वायता व आश्यकता को ध्यान में रखकर कर किया गया है।परिणाम स्वरूप भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों का जन्म हुआ,कालान्तार में क्षेत्रीय दलों नें स्थानीय मुद्दों को उठाया है तथा कई राज्यों में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को सता से सिंधासन से दुर रखते हुए सरकार बनाई व केन्द्र सरकार बनाने में भी अपनी अंहम भुमिका निभाई है।वही भारतीय राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले राजनीतिक पंडितयों में भी दबी जुबान से चर्चा होने लगी है कि मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में सरकार तो किसी तरह बना ली है। लैकिन जनता के मध्य मोदी मैजिक की चमक फीकी हुई उनकी लोक प्रियता में कमी है।

जिन के कारण केन्द्र की भाजपा व सहयोगी दलों चिन्ता की लकीरें स्पष्ट नजर आने लगी है।ऐसे मोदी सरकार जनता के समाने चुतराई के चक्र से वन नेशन – वन इलेक्शन च चक्रब्यहु के झाल फैसा कर केन्द्र के संग राज्यों की सता व सिंधासन आसीन हो का दिवा स्वपन्न देख रही है।क्योंकि इनके पास भोली भाली जनता के शँखों में धुल झोकने के लिए कोई मुद्दे नही रह गये है।वही देश की जनता महंगाई,बेरोजगारी त्रस्त है।वैसे भी एक राष्ट्र – एक चुनाव की नाव चुनौतीयों से भरा हुआ है। जिसकी असली पतवार जनता जर्नादन के पास है। जिसकी झलक भारतीय मतदाताओं हाल में ही लोक सभा साधारण चुनाव 24 के दौरान दे कर ” अबकी 400 पार का सपना चकना चुर कर दिया है।वन नेशन वन इलेक्शन को लागु करना साहिब के लिए इतना आसान नही है।जितना वे समझ रहे,क्योंकि ये पब्लिक है ,पब्लिक साहिब ये सब जानती है।