प्रदूषण के लिए केवल पटाखे ही दोषी

Only firecrackers are responsible for pollution

राकेश शर्मा

पटाखे, पटाखे और हवा में ज़हर के लिए सिर्फ़ पटाखे ही दोषी है??? कल सर्वोच्च न्यायालय ने एक आदेश में दिल्ली सरकार को कहा कि आपको दिल्ली में सभी पक्षों को सुनकर निर्णय लेना चाहिए कि क्यूँ ना दिल्ली एनसीआर में पटाखों पर परमानेंट प्रतिबंध लगाया जाये? दिल्ली जो अब गैस चैम्बर बनकर प्रदूषण के कारण यहाँ के निवासियों का दम घोट रहा है , जान ले रहा है, घर में बंद होने को मजबूर कर रहा है, कैंसर एवं तरह तरह की अन्य बीमारियों को जन्म दे रहा है, हर व्यक्ति को बीस सिगरेट के बराबर धुआँ पीने को मजबूर कर रहा है, गुलाबी फेफड़े काले कर रहा है वहाँ प्रदूषण के कारणों पर गंभीर चर्चा और प्रभावी कदम उठाने का समय कल था, आज देरी है और कल विध्वंस होना तय है। यह समस्या सिर्फ़ पटाखों की नहीं है, पटाखों पर हर तरफ़ से , हर प्रकार की गोलीयाँ चलाकर प्रदूषण की समस्या से सिर्फ़ मुँह मोड़ रहें है या इस समस्या से दिल्ली वालों को अनवरत जूझने का एक और बहाना ढूँढ रहे हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपना आदेश सुनाते हुए ठीक ही कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 हमें प्रदूषण रहित जीने का अधिकार देता है। इसलिए पटाखों पर बारह महीने प्रतिबंध क्यूँ ना लगाया जाये। अच्छा सुझाव है लेकिन समग्रता में नहीं है। प्रश्न यह है कि दीपावली के पटाखों से पंद्रह दिन पूर्व ही दिल्ली का प्रदूषण 350 एक्यूआई पार कर गया था, दीपावली से अगले दिन 354 था और आज भी दीपावली के बारह दिन बाद जब पटाखे नहीं चल रहे तब भी 350 के पार है। इसका मतलब पटाखों सहित प्रदूषण की जड़ में और भी महत्वपूर्ण कारण हैं और जब तक समग्रता में सब पर इकट्ठा प्रहार बग़ैर किसी से हमदर्दी या मदद करने के उद्देश्य से नहीं किया जाएगा तब तक हर वर्ष हम प्रदूषण की सालाना शोक सभा करते रहेंगे और दिल्लीवासियों को उनके अपने हाल पर मरने के लिए छोड़कर निर्णय लेने वाले चंद लोग अपने घरों की चारदिवारियों में एयरप्युरीफ़ायर की कई कई मशीने लगाकर अपनी प्रजा की स्थिति पर ठहाके लगाते रहेंगे, झूठ बोलते रहेंगे, एक दूसरे को ब्लेम करते रहेंगे और प्रदूषण स्वतः समाप्त होकर अगले साल आने वाले प्रदूषण के मौसम का इंतज़ार करेंगे। इस व्यवहार को मैं प्रदूषणों का सरदार मानसिक प्रदूषण मानता हूँ , जो यह मानकर चलता है कि जनता की यारदास्त बहुत कमजोर होती है, चुनाव तक भूल जाएँगे , मुफ़्त बिजली, मुफ़्त पानी , मुफ़्त बस यात्रा के झाँसे में अपनी जान देने को तैयार रहेंगे, पानी मिले ना मिले, यमुना का झाग वाला प्रदूषित पानी मिले, मीलों चलकर एक बाल्टी पानी लाना पड़े, सड़क में गड्ढों की जगह सड़क में गड्डे हों, मोहल्ला क्लिनिक में जानवर लेटे हों, जल बोर्ड घोटाला हो, दवाई घोटाला हो, शराब घोटाला हो, शीशमहल घोटाला हो। दिल्ली में पटाखों के होने वाले प्रदूषण से कहीं ज़्यादा गंभीर डस्ट प्रदूषण, वाहन प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, बायोमास प्रदूषण, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट इत्यादि हैं। लेकिन जैसा मैंने पहले कहा कि मानसिक प्रदूषण समाप्त किए बिना इन सबका समाधान असंभव है । यह सभी मानसिक प्रदूषण के कारण भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते है और कुछ लोगो को प्रदूषण के हथियार से नरसंहार करने का लाइसेंस मिल जाता है। मैं कठोर शब्दों में कहना चाहूँगा की जो प्रदूषण से मानवता की हत्या करते है उन्हें इरादतन हत्या का दोषी मानकर सजा मिलनी चाहिए और क़ानून स्पष्ट होना चाहिए कोई इधर उधर निकलकर बचने का मौक़ा ही ना हो फिर चाहें मंत्री हो या मुख्यमंत्री, फिर देखो क़ानून का पालन कैसे होता है।

जो लोग सड़कों पर चलते हैं वह देखते ही होंगे की कैसे बम्पर टू बम्पर कारें चलती हैं , प्रतिदिन अट्ठारह सो नई कारें और लगभग चार हज़ार दो पहिया वाहन प्रतिदिन सड़कों पर आकर वाहन प्रदूषण बढ़ाते ही हैं। दिल्ली लैंड लॉक्ड शहर है इस रफ़्तार से वाहन बढ़ते रहे तो आप वाहन प्रदूषण का अन्दाज़ भी नहीं लगा सकते। इलेक्ट्रिक वाहन के अलावा हर प्रकार का नया वाहन दिल्ली में बैन होना चाहिए इसमें वाहन लॉबी कुछ करे परवाह नहीं करना चाहिए लोगों के जीवन का प्रश्न है। बिल्डर धूल का प्रदूषण, सड़कों के किनारे की धूल, टूटी सड़कों की धूल लोगों का जीवन बारह महीने दूभर करते हैं, इस पर भी सख़्त क़ानून और और उसपर अमल तुरंत होना चाहिए। पिछले दस साल से अरविंद केजरीवाल यमुना में दिल्ली वालों के साथ डुबकी की बात लगातार कर रहें है लेकिन यमुना माँ की स्थिति हर साल ख़राब हो रही है, ऐसे झूठे नेताओं पर व्यक्तिगत कार्यवाही होनी चाहिये वरना यह जनता और न्यायालय को मूर्ख बनाते रहेंगे। यदि प्रदूषण से लोगों को बचाना है तो प्रदूषण के प्रति कार्यपालिका, शासन, प्रशासन और न्यायपालिका को बारह महीने, चॉबिस घंटे सतर्क होना पड़ेगा , पालन ना करने वालों पर आपराधिक कार्यवाही जब तक नहीं होगी तब तक यह वार्षिक संस्कार होता रहेगा जनता मरती रहेगी। दिल्ली के न्यायाधीशों आप भी दिल्ली की ज़हरीली हवा में साँस लेने को मजबूर हो। कुछ ऐसा कर जाओ की मानवता ज़िंदा रहें। राजनेताओं की आत्मा तो मर चुकी है उन्हें सिर्फ़ सत्ता चाहिए। पटाखों के उत्पादन पर पूरे देश में बैन लगाओ , पटाखा लॉबी चिल्लाए तो चिल्लाए। ग्रीन पटाखों पर विचार कर सकते हो।