ललित गर्ग
अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस हर साल 20 दिसंबर को मनाया जाता है, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2005 में घोषित किया था और इसका मुख्य उद्देश्य गरीबी उन्मूलन, सतत विकास और विविधता में एकता को बढ़ावा देने के लिए लोगों को एकजुटता के महत्व के बारे में जागरूक करना है, ताकि वैश्विक चुनौतियों से मिलकर निपटा जा सके। इस दिवस को मनाते हुए मुख्य विचार है कि ‘एकजुटता में नवाचार और प्रौद्योगिकी’, ‘युवा-नेतृत्व वाली एकजुटता’ और ‘सतत विकास लक्ष्यों के लिए एकजुटता’ जैसे विषयों पर केंद्रित है। आज की दुनिया एक विचित्र और विरोधाभासी दौर से गुजर रही है। एक ओर विज्ञान, तकनीक और संचार ने पूरी पृथ्वी को एक छोटे से गाँव में बदल दिया है, तो दूसरी ओर मनुष्यों के बीच की दूरी, गरीबी, अशिक्षा, अविश्वास और वैमनस्य लगातार बढ़ता जा रहा है। युद्ध, आतंक, हिंसा, नस्लवाद, धार्मिक कट्टरता और आर्थिक असमानता ने मानव सभ्यता के मूल उद्देश्य पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिया है। ऐसे समय में अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता एवं एकजुटता दिवस न केवल नये मानवीय मूल्यों से प्रेरित समतामूलक समाज-संरचना की प्रेरणा है, बल्कि मानव जाति के लिए आत्ममंथन और आत्मसुधार का अवसर है। इस दिवस की मूल भावना यही है कि गरीबी का उन्मूलन हो, विकास अंतिम आदमी तक पहुंचे, मनुष्य पहले मनुष्य बने, उसके बाद उसकी पहचान राष्ट्र, धर्म, भाषा, रंग या विचारधारा से हो। आज जब दुनिया अनेक खेमों में बँटती जा रही है, तब “सभी मानव पहले मानव” की चेतना को पुनः जाग्रत करना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता बन गई है।
भारतीय चिंतन ने सदियों पहले “वसुधैव कुटुम्बकम्” का जो सूत्र दिया था, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है, बल्कि पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गया है। इसका अर्थ केवल इतना नहीं कि पूरी पृथ्वी एक परिवार है, बल्कि यह भी है कि परिवार के हर सदस्य का सुख-दुःख, सम्मान और अस्तित्व समान रूप से महत्वपूर्ण है। दुर्भाग्यवश आधुनिक विश्व ने इस सूत्र को एक सुंदर नारे तक सीमित कर दिया है। व्यवहार में हम राष्ट्रहित, संप्रदायहित और व्यक्तिगत स्वार्थ को मानवहित से ऊपर रख देते हैं। परिणामस्वरूप युद्ध की आग में निर्दाेष बच्चे झुलसते हैं, आतंक की छाया में सामान्य नागरिक भय के साथ जीने को मजबूर होते हैं और आर्थिक शोषण के कारण करोड़ों लोग अभाव और भूख की रेखा के नीचे जीवन बिताते हैं। मानव एकता का दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि जब तक मनुष्य की दृष्टि संकीर्ण रहेगी, तब तक शांति केवल एक सपना बनी रहेगी।
आज के युद्ध केवल सीमाओं पर नहीं लड़े जा रहे, वे विचारों, सूचनाओं और मानसिकताओं में भी लड़े जा रहे हैं। कहीं नस्ल के नाम पर घृणा फैलाई जा रही है, कहीं धर्म के नाम पर हिंसा को सही ठहराया जा रहा है, तो कहीं राष्ट्रवाद के उग्र स्वर मानवता की कोमल आवाज़ को दबा रहे हैं। आतंकवाद इसी विकृत मानसिकता का सबसे घातक रूप है, जो न धर्म को मानता है, न मानव मूल्यों को। ऐसे में शांति की बातें करना कई लोगों को आदर्शवादी या अव्यावहारिक लग सकता है, किंतु इतिहास साक्षी है कि हिंसा ने कभी स्थायी समाधान नहीं दिया। अस्तित्व की रक्षा केवल शांति, संवाद और सह-अस्तित्व से ही संभव है। मानव एकता दिवस इसी सत्य को वैश्विक चेतना में पुनः स्थापित करने का प्रयास है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के सहस्राब्दी घोषणापत्र में एकजुटता को इक्कीसवीं सदी के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के मूलभूत मूल्यों में से एक बताया गया है, जिसके अनुसार सबसे कम पीड़ित या सबसे कम लाभान्वित लोगों को सबसे अधिक लाभान्वित लोगों से सहायता मिलनी चाहिए। इसलिए, वैश्वीकरण और बढ़ती असमानता की चुनौती के संदर्भ में, अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता को मजबूत करना अपरिहार्य है। इसलिए, संयुक्त राष्ट्र महासभा इस बात से आश्वस्त है कि गरीबी से लड़ने के लिए एकजुटता की संस्कृति और साझा करने की भावना को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है। गरीबी उन्मूलन के लिए विश्व एकजुटता कोष की स्थापना और अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस की घोषणा जैसी पहलों के माध्यम से, एकजुटता की अवधारणा को गरीबी के खिलाफ लड़ाई में और सभी संबंधित हितधारकों की भागीदारी में महत्वपूर्ण के रूप में बढ़ावा दिया गया।
मानव एकजुटता का अर्थ केवल संकट के समय सहायता करना नहीं है, बल्कि दैनिक जीवन में संवेदनशीलता, करुणा, समानता और सहानुभूति को अपनाना है। जब हम किसी दूसरे देश के युद्ध पीड़ितों को केवल समाचार की सुर्खी मानकर आगे बढ़ जाते हैं, तब हमारी मानवता कहीं न कहीं मर जाती है। जब शरणार्थियों को बोझ समझा जाता है और गरीब देशों की पीड़ा को अनदेखा किया जाता है, तब वैश्विक एकता का विचार खोखला प्रतीत होता है। मानव एकता का संदेश यह है कि किसी भी कोने में बहाया गया रक्त, पूरी मानवता को आहत करता है और कहीं भी बहाया गया आँसू, हमारी सामूहिक असफलता का प्रतीक है। यह दिवस हमें सिखाता है कि विविधता हमारी कमजोरी नहीं, बल्कि हमारी सबसे बड़ी ताकत है। भाषाएँ अलग हों, पूजा-पद्धतियाँ अलग हों, पर मनुष्य की पीड़ा, उसकी आशा और उसका सपना हर जगह एक जैसा होता है।
हिंसा और युद्ध के इस दौर में शांति की भाषा बोलना साहस का कार्य है। शांति केवल हथियारों के मौन का नाम नहीं, बल्कि न्याय, समानता और सम्मान से उपजा हुआ विश्वास है। जब तक दुनिया में गहरी आर्थिक असमानता रहेगी, जब तक कुछ देशों का विकास दूसरों के शोषण पर आधारित रहेगा, तब तक वास्तविक मानव एकता संभव नहीं है। इसलिए मानव एकजुटता दिवस सामाजिक और आर्थिक न्याय की भी माँग करता है। यह याद दिलाता है कि संपन्नता का उद्देश्य केवल उपभोग नहीं, बल्कि साझेदारी है और शक्ति का उद्देश्य केवल प्रभुत्व नहीं, बल्कि संरक्षण है। आज आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षा, मीडिया और राजनीति मानव एकता के मूल्यों को बढ़ावा दें। बच्चों को प्रारंभ से ही यह सिखाया जाए कि दूसरे का दर्द समझना कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी शक्ति है। युवाओं में वैश्विक नागरिकता की भावना विकसित हो, जिसमें वे स्वयं को केवल किसी एक राष्ट्र का नहीं, बल्कि पूरी मानवता का उत्तरदायी सदस्य मानें। तकनीक का उपयोग नफरत फैलाने के लिए नहीं, बल्कि संवाद और समझ बढ़ाने के लिए हो। तभी यह दिवस केवल कैलेंडर की एक तारीख नहीं रहेगा, बल्कि जीवन की एक जीवंत प्रेरणा बन सकेगा।
एकजुटता का अर्थ केवल सरकारी संबंध ही नहीं, बल्कि समस्त जन कल्याण भी है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार और सामाजिक विकास संबंधी पहलों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देता है, जिसका उद्देश्य एक ऐसी समतापूर्ण दुनिया का निर्माण करना है जहाँ सभी को विकास के अवसर प्राप्त हों। यह प्रतिबद्धता एकजुटता के आधारशिला के रूप में सार्वभौमिक प्रगति में गहरी आस्था को दर्शाती है। संयुक्त राष्ट्र की एकजुटता की अवधारणा ही उसके मिशन का आधार है। सामूहिक सुरक्षा एक ऐसा सिद्धांत है जो राष्ट्रों के बीच आपसी सहयोग को प्रोत्साहित करता है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर इस बात पर ज़ोर देता है कि सदस्य देशों को सहयोग के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। इससे राष्ट्र सशस्त्र संघर्ष या आतंकवाद जैसे किसी भी खतरे के खिलाफ एकजुट हो सकते हैं। वैश्विक चुनौतियों के परस्पर संबंध को पहचानते हुए, संयुक्त राष्ट्र गरीबी, भूख और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की वकालत करता है। एकजुटता साझेदारी के माध्यम से प्रकट होती है जो संसाधनों के बंटवारे को बढ़ावा देती है और प्रत्येक राष्ट्र के प्रयासों को मजबूत करती है।
अंततः मानव एकता एवं एकजुटता दिवस हमें एक सरल लेकिन गहन सत्य की ओर लौटने का आह्वान करता है कि मनुष्य की सबसे बड़ी पहचान उसका मनुष्य होना है। यदि हम इस पहचान को बचा पाए, तो युद्ध, आतंक और हिंसा की अंधेरी रात अपने आप छँटने लगेगी। वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को व्यवहार में उतारकर ही हम एक ऐसी दुनिया का निर्माण कर सकते हैं जहाँ अस्तित्व भय से नहीं, विश्वास से संचालित हो; जहाँ शक्ति हथियारों में नहीं, करुणा में निहित हो; और जहाँ भविष्य की पीढ़ियाँ हमें एक ऐसी मानवता के रूप में याद करें, जिसने विभाजन नहीं, बल्कि एकता को चुना।





