राकेश अचल
मजबूरी है 4 जून तक बेतुकी सियासत के साथ आपके साथ बने रहना। बीते रोज कांग्रेस ने गांधी परिवार की पारम्परिक कहें या पुश्तैनी सीट से राहुल गांधी को अपना उम्मीदवार बनाकर भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दीं। भाजपा वैसे ही तमाम मुद्दों के हाथ से फिसलने के बाद हलकान है और विपक्ष के पाले में आकर खेलने या खेला करने के लिए विवश है। ऊपर से बकौल भाजपा कांग्रेस के शाहजादे ने एक और तुरुप चल दी। भाजपा राहुल गाँधी को शाहजादा क्यों कहती है ,इसके बारे में शोध की जरूरत है। मुझे तो राहुल किसी भी कोण से शाहजादे नजर नहीं आते। बहरहाल अब भाजपा राहुल को अमेठी से चुनाव न लड़ने के लिए ‘ रणछोड़ ‘ बनाने पर उतारू है।
भाजपा जिसे जो चाहे सो बना देती है। उसके पास शायद बंगाल का काला जादू है। भाजपा ने पहले राहुल को ‘ पप्पू’ बनाया ,बेचारे राहुल पप्पू बन भी गये । जब पूरा देश पप्पू बन सकता है तो राहुल किस खेत की मूली हैं ? लेकिन ये राहुल ही थे जो अपने ऊपर चस्पा किये गए पप्पू के लेबिल को खींचने में कामयाब रहे और उन्होंने फेंकू के सामने खुद को मुकाबले में ला खड़ा किया। भाजपा की मुसीबत सचमुच राहुल और उनकी कांग्रेस ही है । बाकी दलों से तो भाजपा निबट भी ले किन्तु कांग्रेस से निबटना उसके लिए अभी तक मुमकिन नहीं हुआ। कांग्रेस को निबटने में भाजपा ने अपने बहुमूल्य दस साल बर्बाद कर लिये । इस समय का इस्तेमाल भाजपा अगर देश को बनाने में करती तो मुमकिन है कि आज उसे हांफना न पड़ता। कांग्रेस ने राहुल को रायबरेली से प्रत्याशी बनाकर भाजपा की तमाम रणनीति को नाकाम कर दिया।
आप जानते हैं कि उत्तर प्रदेश को जीते बिना भाजपा का तीसरी बार सत्ता में वापस आने का सपना पूरा नहीं हो सकता। 2019 में भाजपा ने जैसे -तैसे अमेठी से राहुल गांधी को पराजित कर यूपी से बाहर करने में कामयाबी हासिल कर ली थी,लेकिन भाजपा तमाम कसबल के बावजूद रायबरेली से श्रीमती सोनिया गाँधी को नहीं हरा पाई थी । राहुल ने इसीलिए वायनाड से चुनाव लड़ा। भाजपा ने राहुल की सांसदी छीनने के लिए दूसरे हथकंडे भी अपनाये थे, सांसदी छीन भी ली थी किन्तु माननीय बड़ी अदालत आड़े आ गयी।अब राहुल ने उत्तर प्रदेश में दोबारा वापसी दर्ज कराकर भाजपा की नींद हराम कर दी है। राहुल की उत्तर प्रदेश वापसी का मतलब भाजपा की आधी ताकत राहुल को संसद जाने से रोकने में खर्च करना है। भाजपा ने अमेठी से तो राहुल को बेदखल कर दिया था लेकिन रायबरेली से शायद ये मुमकिन न हो। मैंने शायद शब्द का इस्तेमाल किया है ,क्योंकि मै किसी भी चीज को असम्भव नहीं मानता ,क्योंकि अभी देश में मोदी जी हैं जो कुछ भी मुमकिन कर सकते हैं।
भाजपा कांग्रेस और राहुल से किस कदर परेशान है इसका उदाहरण खुद प्रधानमंत्री मोदी जी के भाषण हैं। मोदी जी ने उत्तरप्रदेश से दूर अपने गृहराज्य गुजरात के टाटा मैदान में कांग्रेस के उस ‘ वोट जिहाद ‘ को लेकर अपनी चिंता जताई जो पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने चलाने की बात कही थी। खुर्शीद न कांग्रेस हैं और न कोई मौलवी। वे एक जननेता हैं और उन्होंने जिस वोट क्रांति की बात कही है उसे लेकर भाजपा की यानि माननीय प्रधानमंत्री तक की नींद उड़ गयी है। चुनाव प्रचार में हिन्दू-मुसलमान का जुमला उछलने के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग के नोटिस की परवाह किये बिना मोदी जी और उनकी पूरी पार्टी देश के बाहुसंख्यक हिन्दुओं को अल्पसंख्यक मुसलमानों से डराने की कोशिश कर रही है।वोट जिहाद ने तो भाजपा को और भयभीत कर दिया है और अब भाजपा ने इसे भी चुनावी मुद्दा बना लिया है।
भारतीय जनता पार्टी की ‘महा विजय संकल्प सभा’ को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, ‘‘कांग्रेस आपकी संपत्ति वोट जिहाद में शामिल लोगों को बांटना चाहती है लेकिन मोदी सुनिश्चित करेगा कि गरीबों, दलितों और आदिवासियों का देश की संपत्ति पर पहला अधिकार हो. पृथ्वी पर किसी भी ताकत को हमारे संविधान को बदलने या उससे छेड़छाड़ की अनुमति नहीं दी जाएग। सवाल ये है की मोदी ये सब सुनिचित किस हैसियत से करेंगे ? क्या वे भारत के भाग्यविधाता हैं।? क्या उन्हें देश ने तीसरी बार जनादेश दे दिया है ? या उन्होंने खुद जनादेश हड़पने की पूरी तैयारी कर ली है ? ’। मोदी जी तीसरी क्या चौथी बार प्रधानमंत्री बनें हमें क्या फर्क पड़ने वाला है ,लेकिन उनके दम्भ और उसके पीछे छिपे भय को देखकर मुझे और मेरे जैसे तमाम संवेदनशील लोगों को मोदी जी पर अब दया आने लगी है।
मोदी जी आदिकाल से गांधी परिवार विहीन देश और कांग्रेस विहीन संसद देखना चाहते है। वे देश की अठारहवीं सांसद को अपने सपनों की संसद बनाना चाहते हैं लेकिन बना नहीं पा रहे। संसद के सर्वोच्च सदन में कांग्रेस की प्रमुख श्रीमती सोनिया गाँधी पहले ही पहुँच चुकी है। यानि कम से कम छह साल तक तो कांग्रेस की उपस्थिति संसद में रहना ही है और अब राहुल गांधी भी वायनाड के साथ ही रायबरेली से चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतर चुके हैं। अर्थात राहुल कहीं न कहीं से संसद में प्रवेश पा जायेंगे। ऐसे में न कांग्रेस विहीन भारत बन पायेगा और न कांग्रेस विहीन संसद। मोदी जी को अपना सपना पूरा करने के लिए मुमकिन है कि एक जन्म और लेना पड़े !
राहुल गांधी रणछोड़ हैं या नहीं ये मै नहीं कह सकता। क्योंकि यदि इस तरह की कोई सूची बनाई जाएगी तो भाजपा के आदि पुरुष माननीय श्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी सबसे बड़े रणछोड़ माने जायेंगे। अटल जी तो पूरे जीवन इधर से उधर भागते रहे। यूपी के बलरामपुर से विदिशा,ग्वालियर और लखनऊ तक। उन्होंने 1985 में अपने गृहनगर ग्वालियर से हारने के बाद कभी ग्वालियर की और मुंह नहीं किया। वैसे हम सनातनी हैं। हम अपने इष्ट को भी रणछोड़ के नाम से बुलाते हैं। हमारे रणछोड़ के इलाके से आजकल श्रीमती हेमामालिनी चुनाव लड़ती हैं। इसलिए मेरी दृष्टि में रणछोड़ होना भी बुरी बात नहीं है । रणछोड़ भी रणनीति का ही एक अंग है ,जैसे खुद मोदी जी का गुजरात से उत्तर प्रदेश आकर चुनाव लड़ना। मै राहुल को रणछोड़ तब मानता जब वे संसद का चुनाव लड़ने के बजाय पिछले दरवाजे से यानि राज्य सभा के जरिये संसद में प्रवेश करते। लेकिन राहुल ने ऐसा नहीं किया । जाहिर है वे रण में हैं। उन्होंने रण नहीं छोड़ा। उलटे वे भाजपा को रण छोड़ने के लिए विवश कर रहे हैं।
अब देश को यूपी का रण देखना ही पडेगा। देखना पडेगा की यूपी के योगी और मोशा की जोड़ी उत्तर प्रदेश के रणन में कांग्रेस और कथित रूप से कांग्रेस के शाहजादे राहुल गांधी को चित कर पाती है या नहीं ? रणभेरियां बज रहीं हैं। योद्धा मैदान में जिरह-बख्तर पहनकर उतर चुके हैं। भाजपा और मोदी जी के सर से कांग्रेस और राहुल का भूत रायबरेली के चुनाव परिणामों से ही उतरेगा। राहुल हारे तो भूत उतरेगा और नहीं हारे तो भूत भाजपा और मोदी जी को परेशान करता ही रहेगा 2029 तक।