सीता राम शर्मा ” चेतन “
ऐसा कहना जल्दबाजी होगी ! पर आम नागरिक की स्वाभाविक मानवीय भावनाओं, राष्ट्रीय संवेदनाओं और निश्चल मस्तिष्क की वैचारिक संभावनाओं के धरातल पर कभी-कभी जो स्वतः स्फूर्त त्वरित प्रतिक्रिया हमारी अंतरात्मा से आती है, वह इन दिनों बार-बार आ रही है, जो यही है – भ्रष्टाचार पर कठोर प्रहार के लिए वेलडन मोदी सरकार ! हालाकि वर्तमान सिद्धांतहीन, घोर अविश्वसनीय बदहाल भारतीय राजनीतिक व्यवस्था पर ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हुए इन दिनों कलेजा भीतर तक कांप उठता है । ऐसा लिखते कहते हुए खुद को गलत सिद्ध करने की प्रक्रिया खुद के भीतर ही एक अजीब सा कोलाहल उत्पन्न करती है । ऐसा लिखना कहना ना सिर्फ खोखले अति आत्मविश्वास, पापी और मूर्खतापूर्ण विचारों का द्योतक लगता है बल्कि मन-मस्तिष्क के किसी कोने में छिपे दबे कुचले टूटे बिखरे आक्रोश और अज्ञात भय की कई नई लकीरें भी खींच जाता है । इसके कारण भी बहुत स्पष्ट और पिछले कुछ वर्षों में स्वंय सिद्ध हैं । खासकर राजनीतिक भ्रष्टाचार को लेकर तो फिलहाल इसमें संदेह की अंश मात्र भी गुंजाइश नहीं है । कोई भी दल इससे अछूता नहीं । विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में होने वाले नित्य नए अपडेट की तरह बिना सबूत भ्रष्टाचार करने के नए तरीकों से जो जितना अपडेट है, वह आज उतना ही ज्यादा उसमें लिप्त है । भ्रष्टाचार कर रहा है, इसमें संदेह की तनिक भी गुंजाइश नही है । किसी दल विशेष में शीर्षस्थ अथवा मुख्य एक-दो या फिर कुछ नेता इमानदार हो सकते हैं, दलगत इमानदारी के लिए प्रयासरत हो सकते हैं, पर भीतर तक भ्रष्ट हो चुकी राजनीतिक व्यवस्था में पूर्ण पारदर्शिता, इमानदारी और कर्तव्यपरायणता की स्थिति अभी सिर्फ एक दिवास्वप्न या सार्थक चिंतन ही है, जिस पर कोई भी बात करना, लिखना, पढ़ना या सुनना देश का अधिकांश जनमानस निरर्थक ही मानता है । मुझे लगता है जनमानस की यह सोच और स्थिति भी इसके लिए ज्यादा दोषी है । यदि वह बिना जाति धर्म या स्वार्थ के ऐसे नेताओं और दलों का विरोध करने लगे तो स्थिति आपरूपी सुधर सकती है । जनता को संगठित और सार्वजनिक तौर पर ऐसा करना भी चाहिए, बहुत स्पष्टता से कहें तो करना ही चाहिए क्योंकि भ्रष्टाचार मुक्त राजनीतिक व्यवस्था या राजनीतिक दल बनाने का काम ना तो किसी दल के एक-दो या कुछ नेता कर सकते हैं और ना ही इसमें हमारे देश की न्यायपालिका या कार्यपालिका ही सक्षम दिखती है । अब सवाल यह है कि क्या जनता ऐसा करेगी ? जो भारतीय राजनीतिक भ्रष्टाचार से बीते हुए कल में भी लाचार और त्रस्त थी, आज भी उससे अभिशप्त है । जवाब स्पष्ट है – क्या अशिक्षित और क्या शिक्षित या उच्च शिक्षित लोग, वर्तमान समय में सबमें जीवन और राष्ट्र को लेकर उस व्यापक जरूरी, दूरदर्शी बौद्धिक और राजनीतिक चेतना का घोर अभाव है, जो एक सभ्य, कर्तव्यनिष्ठ और पूर्ण विकसित मनुष्य, समाज अथवा राष्ट्र में होना चाहिए । यह सच है कि जनमानस की इस स्थिति के लिए भी जिम्मेवार सिर्फ वह नहीं है क्योंकि उसकी इस स्थिति के लिए भी उसे जिस सामाजिक और राष्ट्रीय व्यवस्था की, शिक्षा की जरूरत थी या है, वह हमेशा उन राजनीतिक दलों के हाथों में रही है, जो स्वार्थ और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए थे और आज भी हैं । अब सबसे बड़ा सवाल यह कि स्वार्थ, उपभोक्तावाद, विज्ञान और अत्याधुनिक तकनीकी संसाधनों के मायाजाल में उलझी आज की जनता अपनी मानसिक विकृतियों से बाहर निकल समाज या राष्ट्र में व्यापक परिवर्तन लाए तो कैसे ? जनता के स्तर पर शून्य होती ऐसी संभावनाओं के धरातल पर देश और देश की संपूर्ण व्यवस्था में जिस व्यापक सुधार की आशा का अंततः जो एकमात्र दीपक टिमटिमाता दिखाई देता है, वह उस राजनीति का ही क्षेत्र है, जिसके मुख्य केंद्र का प्रतिनिधित्व अभी मोदीजी कर रहे हैं । जिन्होंने अपने आठ वर्षों के स्वर्णिम काल में प्राप्त किए जन समर्थन और विश्वास के बाद अब भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के उस काले और भयावह बिल में हाथ डालने की घोषणा की है, जहां अनगिनत भ्रष्ट विषधर शक्तिशाली विषपुरूष बैठे हैं और जो लगभग पूरे देश की भ्रष्ट व्यवस्था का संचालन कर पूरी राष्ट्रीय व्यवस्था को अस्त व्यस्त और त्रस्त किए हुए हैं । इसलिए अंतरात्मा से एक आवाज निकलती है – ऑपरेशन भ्रष्टाचार के लिए वेलडन मोदी सरकार !
यूं तो पिछले कुछ दशकों में कई बार कई नेताओं ने अपनी बनावटी बातों, अपने दिखावटी भ्रष्टाचार विरोधी व्यक्तित्त्व, पापी छलिया दृढ इरादों और वादों से जनता के विश्वास को इतना छला है कि अब भ्रष्टाचार मुक्ती की बातों को लेकर किसी भी नेता या व्यक्ति पर विश्वास करना, खुद को छलने जैसा लगता है, बावजूद इसके सच तो यही है कि वर्तमान की इस सारी अव्यवस्था और भ्रष्टाचार से मुक्ति का कार्य जब भी होगा, होगा तो किसी शासक के नेतृत्व में ही, फिलहाल वह विश्वसनीय नेतृत्व मोदीजी में दिखाई देता है । अब देखना यह है कि वे भ्रष्टाचार मुक्त राजनीतिक व्यवस्था का लक्ष्य कैसे साधते हैं ? क्योंकि इस लक्ष्य को साधने में जो सबसे बड़ी बाधा और चुनौति है, वह सबसे पहले अपने दल को भ्रष्टाचार मुक्त करने की है ! बहुत संभव है कि वे भ्रष्टाचार पर कठोर प्रहार करने और भ्रष्टाचार मुक्त राजनीतिक व्यवस्था की घोषणा करने से पहले अपनी आतंरिक चुनौतियों पर भलिभांति वृहद चिंतन कर चुके होंगे । सच यह भी है कि उनकी इस घोषणा से इन दिनों विपक्षी दलों के साथ भाजपा के भीतर भी भ्रष्टाचार में डूबे नेताओं में बैचेनी का आलम होगा, जो निकट भविष्य में लामबंद होकर मोदी विरोध में खड़े हो सकते हैं । सच कहें तो इन अपनों से मोदी को निकट भविष्य में जीवन सुरक्षा तक का संकट भी खड़ा हो सकता है । खैर फिलहाल इस पूरे चिंतन का निष्कर्ष यह है कि उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजों के बाद या फिर स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले से देश को संबोधित करते हुए मोदीजी ने भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के अपने जिस संकल्प की बात कही और दोहराई है, उससे और इन दिनों देश के कई हिस्सों में भ्रष्टाचारियों के विरूद्ध होती प्राथमिक ठोस कार्रवाईयों से यह आशा जगती है कि अब भ्रष्टाचार मुक्त, खासकर राजनीतिक भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए मोदी सरकार कठोर और परिणामदायी नतीजों वाले साहसिक कार्य को अंजाम देगी । बेहतर होता कि हम जनता की इस आशंकित आशा को जन विश्वास में बदलने के लिए मोदी यह घोषणा भी अभी ही कर देते कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा एक भी आरोपी और संदिग्ध अपराधी या भ्रष्टाचारी को अपना उम्मीदवार नहीं बनाएगी ।